जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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16 April 2008

एक मनगढ़ंत पोस्ट !

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भईय्या, पहले ही बता दूँ ताकि हमारे ऊपर कोई  ऊँगली न उठाये कि यह मनगढ़ंत पोस्ट उनकी है, मेरा यह पात्र जिसका साक्षात्कार मैं आपके सामने परोसने वाला हूँ , नितांत मौलिक है । कुछजनों की ऊँगली आदतन बहुत सक्रिय रहा करती है, हमेशा फ़ड़फ़ड़ाती रहती है, पता नहीं कौन टकरा जाये, सो वह अपनी ऊँगली में तेल वेल लगाकर तत्पर रहा करते हैं, तो सही-गलत ठिंये पर लगाने का मौका चूकें ही  क्यों  ? आजकल सुनते हैं कि ब्लागजगत में चोरी चमारी बहुत हो रही है । यह एक अच्छा संकेत है, यानि चोरी का सीधा संबन्ध समृद्धि से है । नंगटे की लंगोट या नकटे की नाक  पर भला कौन अहमक निगाह भी डालेगा ?  वैसे  कल्पना या कपोलकल्पना से परहेज़ करता हूँ, यह मुझे अफ़ीमची की अफ़ीम लगती है । हाँ पल्प फ़िक्शन की बात और है, निख़ालिस मिलावटी गद्य ! फ़िलहाल चेतन भगत उसको दबोचे पड़े हैं, फ़िर भी... यथार्थ से तो दुनिया भरी पड़ी है, वही पकड़ो, जिसमें थोड़ा नमक मिर्च होना लाज़िमी है,  तभी  कुछ  ग्राहक खींच पाओगे ?  अलबत्ता भोगा हुआ यथार्थ लेकर बिसूरते भी न रहो, वरना बइठे रहो अपनी दुकनिया सजाये ! सभी फ़ुरसतिया गुरु की किस्मत लेकर थोड़े आये हैं ?  याकि पाँड़ें की रसोयी कुछ दिन बंद रहे तो पब्लिकिया बिलबिलाने लगे । उनके ब्लागर योग पर गुरु नौंवे घर से बैठा देख है, या मंगल महाराज की प्रबल शुभ दृष्टि है, तो वह बेचारे  क्या करें ? वह तो कहने नहीं गये होंगे ? तो भाई, किसी से जलो वलो मत ! अपना काम किये जाओ । मैं यहाँ सोच कर क्या आया था, और करने क्या लगा ! शायद ऎसा सबके साथ होता होगा, तभी तो  ! आया था कि ज़ल्दी से ( क्योंकि मेरे पास एक ही घंटे का समय है )  कुछ लोगों को टिप्पणी से नवाज़ दूँ, कल बहुत अच्छी पोस्टें पढ़ने को मिलीं । और...लीजिये, मैं स्वयं ही एक पोस्ट बेवज़ह सी लिखने लगा । क्या चीज़ है, यह ठेलास रोग भी ! इससे ग्रसित व्यक्ति पानी भी नहीं माँगता । चलिये, मैं एक मनगढ़ंत साक्षात्कार प्रकाशित किये देता हूँ ।

साक्षात्कार भी एक नयी विधा के रूप में उभर रही है , द हैपेनिंग थिंग आफ़ मार्डन इंडिया ! कुछेक लेने में व्यस्त हैं, तो कुछेक देने में मस्त हैं । बेचारे पाठक औ' दर्शक इन दोनों से त्रस्त हैं , क्योंकि चढ़ते सूरज़ को प्रणाम करने की परिपाटी  सदियों से झेल रहें हैं । अब देखिये, साक्षात्कार भी कैसे कैसे हो रहे हैं ? एक- वास्तविक साक्षात्कार, दो- प्रायोजित साक्षात्कार, जो स्टिंग जैसा कुछ कहलाता है , तीन- आनलाइन लाइव साक्षात्कार, चार- तात्कालिक साक्षात्कार, रमेश जी क्या चल रहा है वहाँ हमारे दर्शकों को बतायें , पाँच- संस्मरण आधारित साक्षात्कार, सेफेस्ट टू प्ले, छेः- मेरा वाला मनगढ़ंत साक्षात्कार !!

मेरे आज के नायक हैं, घूरहू !

मेरा घूरहू - अमर इनके परिचय में कुछ कहना हैलोज़न लैंप को मोमबत्ती दिखाने जैसा है । यह नोटिस में लिये जाने की हद तक मुझसे अक्सर मिलते हैं, और इनके निर्गुन सोच के आगे तो लगता है कि, सब धन धूरि समान

 

 

क्षमा करना मित्रों, मेरी पंडिताइन विक्रम-बेताल के बेताल की तरह लाल पीली होती हुई प्रगट हो गयी हैं।  ' लगता है तुम ट्रेन छुड़वाओगे ?  आज रात में राँची जाना है ( नहीं,नहीं ऎसी कोई बात नहीं है, फिर मैं तो नया ब्लागर हूँ, इसलिये आपको ऎसी ज़ल्दबाजी में निष्कर्ष नहीं निकाल लेना चाहिये ) वहाँ मेरी छोटी बहन रहती है, व 18 को मुकुल-माला सदन के गृहप्रवेश का आयोजन है । अतः पंडिताइन सिर पर सवार है । अभी यहाँ से 4216 पकड़ कर, भिनसारे इलाहाबाद से 2874 पकड़नी है । ( यह ट्रेन पकड़ना कौन सी धातु है ? Boarding का समानार्थी शब्द अपनी हिंदी में क्या है, कोई बतायेगा ? )

तो लौट के आता हूँ, एक थोड़े लंबे ब्रेक के बाद ......... आप भी इधर तीन चार दिन में घूम जाइयेगा । अपने घूरहू की किस्मत ही ऎसी है, व्यवधान तो आयेगा ही, बेचारा घूरहू !

2 टिप्पणी:

Anonymous का कहना है

मिल लिए आपके घुरहू से। :)

Anonymous का कहना है

बस यही समझो कि यह पोस्ट आपके पेट की मरोड़ कुछ कम कर गई होगी..वरना तो घुरहू...न मोमबत्ती में दिखे और न हेलोजन में..उस पर से टिप्पणी का कहे तो वो भी नहीं कर गये..कम से कम वही करते तो राँची जाने के पहले एक काम तो कम्पलीट हो जाता. सही कर रहीं है पंडिताईन जो चमकाए रही हैं वरना हमारे कहे का तो असर होने से रहा. :)

शुभकामनायें हमारी तरफ से भी दे आईयेगा गृह प्रवेश में.

लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

आपकी टिप्पणी ?

जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

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इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

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