tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post9099601316434635251..comments2023-04-13T14:44:36.920+05:30Comments on कुछ तो है.....जो कि ! *: नतीज़ा रहा सिफ़र ?डा. अमर कुमारhttp://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-57105568442880720712009-03-17T01:35:00.000+05:302009-03-17T01:35:00.000+05:30निहायत बेशरम है, कोई फर्क नहीं पड़ता उसे साइनबोर्ड...निहायत बेशरम है, कोई फर्क नहीं पड़ता उसे साइनबोर्ड हो या चौराहे में लगे पोस्टर .. अब आया इधर तो आई पी ब्लाक कर दूंगी.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-58545268899593646412009-03-16T22:52:00.000+05:302009-03-16T22:52:00.000+05:30इस नीलोफ़र का पता चला क्या? नीलोफ़र है कि ‘लोफ़र’। घट...इस नीलोफ़र का पता चला क्या? नीलोफ़र है कि ‘लोफ़र’। घटिया टिप्पणी करके किस बिल में जा घुसी/घुसा। ये अनुराधा जी के मेल बॉक्स में कहाँ से अवतरित होकर पुनः सोंइस (न जानते हों तो ज्ञानजी से संपर्क करें) की तरह डुबकी मार गयी। <BR/><BR/>वैसे इस टिप्पणी ने मसिजी्वी जी की स्याही का रंग जरूर उजागर कर दिया। कुंठा में आदमी अपनी सोच का संतुलन खो देता है। चलिए इसी बहाने अच्छी चर्चा हो ली।Malayahttps://www.blogger.com/profile/00391978161610948618noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-33154094917307289922009-03-16T20:31:00.000+05:302009-03-16T20:31:00.000+05:30सबने अपने अपने हिस्से के सच चुन लिए है गुरुदेव.......सबने अपने अपने हिस्से के सच चुन लिए है गुरुदेव....सबके अपने अपने सरोकार है....सबकी अपनी अपनी बहस है ...हमारी मुखरता कभी अश्लीलता के दायरे में आती है...सच तो ये है की हम सब लोग जो सोचते है उसे लिखते नहीं.शब्द कोम्पुटर पर आते आते छिप जाते है या इशारो प्रतीकों में छिप जाते है...तो काहे की अभिव्यक्ति ?कहाँ अभिव्यक्त हुए हम ?डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-18246565885244944382009-03-16T19:09:00.000+05:302009-03-16T19:09:00.000+05:30@ लवली कुमारी गोस्वामीआहाहा.. स्वागत है, लवली बिटि...<I><BR/>@ लवली कुमारी गोस्वामी<BR/>आहाहा.. स्वागत है, लवली बिटिया !<BR/>मैं भी डस्ट-बिन के बिना जीने की कल्पना नहीं कर सकता,<BR/>बल्कि लगभग हर कमरे में एक अदद ऎसा कोई डिब्बा रखा ही रहता है !<BR/>मैं बाहैसियत चिकित्सक किसी भी रंगी पुती नार की असलियत साड़ी से झाँकते<BR/>मैल से चीकट पेटीकोट के किनारों.. और ब्रा के स्ट्रैप से ही आँकता हूँ, फिर ?<BR/>उसका मैल का यूँ बार बार ढाँपते रहना किस काम आया ?<BR/>जाने कहाँ की बात कहाँ ले आयी, तुम भी !<BR/><BR/>समाज में इस तरह की... <BR/>अच्छा चल, इस पर एक पोस्ट ही लिख दूँगा !<BR/>बट.. बाई द वे.. ऎवेईं बकिया डिलीट करने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी..<BR/>मैं तो उसे पड़ा रहने देता.. ताकि लोग उससे परिचित हो जायें !<BR/>वह लौट लौट कर अपने ओछेपन का साइनबोर्ड देखता और खिसियाता रहता..<BR/><BR/>कुल ज़मा यह, कि किसी भी अशालीनता को ढकते रहने सहन कर जाने से उसे आगे बढ़ते रहने का बल ही मिलता है,<BR/>ताज़्ज़ुब नही ऎसी मानसिकता वाले आगे बढ़ मंत्रालयों में अपना स्थान बना लेते हों ! </I>डा. अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-21106891640429367602009-03-16T16:58:00.000+05:302009-03-16T16:58:00.000+05:30आप की बात एकदम सही है, किसी भी स्त्री की सफ़लताओं प...आप की बात एकदम सही है, किसी भी स्त्री की सफ़लताओं पर सिर्फ़ इस लिए ताली पीटना कि उसने स्त्री हो कर भी सफ़लता प्राप्त की<BR/> दरअसल पूर्वग्रह ही दर्शाता है। लिंग भेद हों या जाती भेद असमानता का रोना बहुत हो गयाAnita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-78667719398803484432009-03-16T15:16:00.000+05:302009-03-16T15:16:00.000+05:30मोडेरेसन हटाने की हिम्मत मेरी नही है कल २० कमेन्...मोडेरेसन हटाने की हिम्मत मेरी नही है कल २० कमेन्ट कर के गए कोई भाई साहब ..बिना मतलब के सारे कमेन्ट में एक ही बात ..३ गलती से छप गई बाकि १७ मैंने डिलीट कर डी ..मुझे सडांध खुले में डालने की आदत नही न ही मैं इसका समर्थन करुगी ..उसकी जगह डस्ट बिन है और वही रहनी चाहिए ..चौराहा नही .L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-66668728421950275862009-03-16T13:27:00.000+05:302009-03-16T13:27:00.000+05:30दरअसल किसी को ज्यादा महत्त्व दिया जाना, उसे विशेष ...दरअसल किसी को ज्यादा महत्त्व दिया जाना, उसे विशेष उपनाम दिया जाना या उसके लिए अलग से दिवस मनाया जाना ही ये इंगित करता है प्रत्यक्ष में उसे सम्मातित करने वाले हम परोक्ष में उसे कह रहे हैं ही हमारी बराबरी करने की औकात नहीं है तुम्हारी !तुम कमतर हो और रहोगे !अगर सभी सामान हैं तो अलग ट्रीटमेंट क्यों?pallavi trivedihttps://www.blogger.com/profile/13303235514780334791noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-3882531971176822552009-03-16T11:16:00.000+05:302009-03-16T11:16:00.000+05:30यह ज्ञान तो प्राप्त हो चुका है, कि..." दो मुख्य ब्...<I><BR/>यह ज्ञान तो प्राप्त हो चुका है, कि...<BR/>" दो मुख्य ब्राण्ड हैं पॉलीमिक्सी के - नारीमुक्ति और दलित । घणे टिप्पणीचर्णक हैं ये ब्राण्ड " <BR/>परजीवी की इस तत्वहीन पोस्ट को अभी पुनः ध्यान से पढ़ा भी है....<BR/>ज़िन्दा क़ौमों की टिप्पणीजीवी ब्लागिंग में परजीवी होने का कितना यथार्थ है..<BR/>यह भी पॉलीमिक्सी की एक अलग किसिम की ' लपसी ' तैयार करने की कितनी योग्यता रखता है ?<BR/>ख़ैर.. अपने मष्तिष्क के महामंथन से कुल ज़मा इतना ही तत्व निकाल सका कि..<BR/>' दलित ' को अपशब्द और सहानुभूति का ब्राँण्ड बना कर जीवित रखने की कुटिलता का उत्तरदायी हमारे बीच ही है । वैसे तो भारत की दुर्दशा के लिये विदेशी सदैव ज़िम्मेदार माने जाते रहे हैं, पर यह तो विदेश से नहीं आया है, शायद ? <BR/>सदियों तक चोट देकर अब निरंतर सहलाने को आप क्या कहेंगी ?<BR/>भौतिकतापरक तुच्छ विदेशी <B><A HREF="http://c2amar.blogspot.com/2008/03/blog-post_14.html" REL="nofollow">" अनियंतंत्रित बस ने दलित को रौंदा " </A></B> जैसे शीर्षकों का महत्व क्या जानें ? <BR/>नारीमुक्ति की गोहार किससे और क्यों ?<BR/>स्त्री को कमतर करके आँकने वाला समाज़ उसके उपलब्धियों पर ताली पीट सकता है..<BR/>पर मैं आज तक इस तरह की ताली नहीं पीट पाया..<BR/>इसके दो ही कारण हो सकते हैं..<BR/>या तो मेरे मूल में असमाजिकता का कीड़ा है..<BR/>या फिर मैं नारी को कमतर करके आँकें जाने औचित्य नहीं पा सका हूँ !<BR/>कोई कृपालु देगा क्या. .है कोई दाता ?<BR/><BR/>@ लावण्या शाह<BR/>लावण्या दी आपके लिखे स्नेह में मुझे स्नेह झलकता है.. तभी तो ?<BR/>@ घूघुती दी,<BR/>मेरी तो हसरत ही है, कि ऎसी कोई टिप्पणी इधर भी भटक कर आ जाये..<BR/>सच मानें मैं उसे ससम्मान पड़ा रहने देता..<BR/>क्योंकि ऎसी हरकत को मैं इस समाज में घुली हुई कुँठा की अभिव्यक्ति से अधिक कुछ और नहीं मानता !<BR/>ढके रखे जाने से कोई भी बज़बज़ाती सड़ाँध लुप्त तो न हो जाती होगी ?<BR/>आभार आपका !<BR/>@ शिवभाई<BR/>यही तो शिवभाई ? <BR/>हमारे नतीज़े का यही सिफ़र तो अपने विकल्प में लातोर्लाइट ( नक्सलाइट ) सोच को जन्म देती होगी ?<BR/>फिर उसे कुचलने और ज़िन्दा रखे जाने का कुचक्र आरंभ होता है !<BR/>@ भाई कुश <BR/>ऎई कुश, यहाँ भी मौज़ ले रहा है ?<BR/>किसी दिन त्तेरा कान खींचा जायेगा.. छैतान वच्चा ! </I>डा. अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-54243832811086677132009-03-16T10:50:00.000+05:302009-03-16T10:50:00.000+05:30आपने बहुत अच्छा लिखा है.... शुभकामनाए(अब हम नौसिखि...<B>आपने बहुत अच्छा लिखा है.... शुभकामनाए</B><BR/><BR/>(अब हम नौसिखिए नही रहे जी टिप्पणी करना जान गये है)कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-40554449072381673412009-03-16T10:12:00.000+05:302009-03-16T10:12:00.000+05:30नतीजा सिफ़र ही रहता है. शायद सिफ़र के ऐतिहासिक महत्...नतीजा सिफ़र ही रहता है. शायद सिफ़र के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रख हम उसी नतीजे पर बार-बार पहुंचना चाहते हैं....:-)<BR/><BR/>और गाते रहते हैं; "गर शून्य न देता भारत तो फिर चाँद पर जाना मुश्किल था...."<BR/> <BR/>रंगपंचमी की घणी राम रामShivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-53769941157724916522009-03-16T06:40:00.000+05:302009-03-16T06:40:00.000+05:30माडरेशन अपनी राह खुद तय कर लेगा। लगना है नहीं लोग ...माडरेशन अपनी राह खुद तय कर लेगा। लगना है नहीं लोग तय करते जायेंगे! शौकिया या मजबूरी में!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-63379646015435846742009-03-16T03:02:00.000+05:302009-03-16T03:02:00.000+05:30टिप्पणी मॉडरेन लगाने में बहुत मानसिक कष्ट होता है।...टिप्पणी मॉडरेन लगाने में बहुत मानसिक कष्ट होता है। कुछ दिन पहले यह बताया गया कि अपने ब्लॉग पर लिखे व टिपियाये के लिए आप उत्तरदायी हैं। एक दिन किसी का एक ब्लॉग पढ़ा तो वहाँ टिप्पणी के रूप में कोई पॉर्न कहानी छोड़ आए थे। अब ब्लॉग स्वामी जब तक देखते नहीं वह वहीं विराजमान रहता। तब से मैंने मॉडरेशन लगा दिया है। परन्तु मन करता है कि हटा दूँ।<BR/>नीलोफर जी की टिप्पणी पर बहुत चर्चा हो गई है। अब और कहने को क्या बचा है।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-46222848504167865872009-03-16T03:01:00.000+05:302009-03-16T03:01:00.000+05:30D.Amar bhai sahab, most surprising thing is the de...D.Amar bhai sahab,<BR/><BR/> most surprising thing is the deafning <BR/>& compelete SILENCE from this Lady Nilofer jee. <BR/><BR/> warm regards,<BR/> <BR/> - Lavanyaलावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2018512552827670142.post-10838256992200559432009-03-15T23:54:00.000+05:302009-03-15T23:54:00.000+05:30चलिए आप बाहर तो निकले। होली के पहले से रंगपंचमी तक...चलिए आप बाहर तो निकले। होली के पहले से रंगपंचमी तक रंग के डर से छुपे रहे शायद। आप की गैर हाजरी इस मौसम में बहुत अखरी। पर भूलिए मत हम यहाँ हाड़ौती में होली के बारहवें दिन न्हाण खेलते हैं। सूखे रंगों की पूरी मनाही है। डोलची से रंगीन पानी मारा जाता है। तैयार रहिएगा।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com