मैं समझूँ .. ना समझूँ , तू समझ ले ज़रूर....... .. यह कैसा दिवालियापन है...ऽ...ऽ ?

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जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..
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हिन्दीकरण © डा० अमर कुमार
August 2009
2 टिप्पणी:
अमर भैया हम तो टीभी न्यूज देखबो छोड़ दीन्ह। अउर महरिया खानो न बनाई तो हमरी छपरिया में आ जाई। हमरी महरिया रोज एक मानुस भोजन कराइब ढूंढत रही।
धन्यवाद द्विवेदी जी,
हमको मानुस समझने के लिये !
पहले मेगास्टार का ज़ुकाम ठीक होने की
ख़बर तो आ जाय, भोजन पानी बाद में देखेंगे ।
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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