आपणाची मुंबई शंघाई बनने जा रहा है, कब तक ? मैं वापसी के ट्रेन में था, और दो जनों के बीच शायद टाइमपास बातचीत चल रही थी , क्योंकि दोनोंजन एक साथ ही अपने बोलने लग पड़े थे । पीछे की बर्थ से किसी ने चुटकी ली, जब भईय्ये लोग बाहर हो जायेंगे और गौरमिंट आरक्षण वगैरह के विकराल कब़्ज़ियत से फ़ारिग हो लेगी तब ? पण कवायद चालू आहे
कुछ फोटू शोटू देख कर आप भी तसल्ली कर लो ।
इनको गौर से देखें, व ज़ुर्माने की रकम पर नज़र डालें, अपने ब्राउज़र पेज़ को 150% पर सेट करेंगे तो सुविधा होगी ।
ज़रा मुस्कुरा दीजिये, शंघाई ज़ल्द आपके द्वारे आ रहा है । ठीक वैसे ही, जैसे सामाजिक समानता आ रही है । प्रतीक्षा करें ।
0 टिप्पणी:
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
Note: only a member of this blog may post a comment.