भाई माफ़ करना, अच्छा भला सोने का मूड बन रहा था, कि मति मारी गयी । एक नादान हरकत और नींद की लक्ज़री से फ़ुरसत ! जाते जाते सोचा कि लाओ चिट्ठाजगत एक बार खंगाल लिया जाय, मेरे चिट्ठा खिंचायी में क्या घालमेल चल रहा है, देखूँ तो ? प्रवेश करते ही डिबिया से टकरा गया, और जैसे उसमें से कोई ज़िन्न निकल आया हो । यह सरबजीत का मामला क्या है भाई, कोई बतायेगा ? सरबजीत की फाँसी फिर टली । समझ नहीं आता कि यह मुश्शर्रफ़ की दरियादिली है, या लोमड़ीगिरी है । इस तरह का टुकड़े टुकड़े एक्सटेंशन, सरबजीत, उसके परिवारजन और हम भारतीयों के लिये कितना यंत्रणादायक है । क्या सरबजीत को अपनी एक एक साँस ज़िन्दगी की चंगुल में कैद न लगती होगी ? देश के लिये ज़ाँनिसार करने का ज़ज़्बा लिये एक चलता फिरता मनुष्य, अपने पूरे होशोहवास में यदि पल पल अनिश्चय का जीवन जी रहा हो, तो इसे क्या कहेंगे ? मैं तो इन पलों को, अपना आज का शीर्षक ही कहूँगा ।
सदर-ए-ज़म्हूरियत ज़नाब मुश्शर्रफ़ मियाँ एक ब्लैकमेलर सरीखे हरकतें करके क्या साबित कर रहे हैं ? शु़क्र है उनके ईमान का कि वह " हुण इत्थों राजीखुसी हाँ, चिन्ता दी कोई लोड़ नईं,छेत्ती आँवंगे, तुस्सी फिकिर ना करीं " जैसा फोनालाप सरबजीत के घर वालों से नहीं करवा रहे हैं । किंतु यह तय है कि किसी किसिम का फोनालाप दोनों सरकारों के बीच चल तो रहा है । इंडिया बोले तो भारत जब सोचने का समय माँगता है, तो पाकी ज़ल्लाद फाँसी की रस्सी ढीली कर सुस्ताने लग पड़ते हैं । ज़ाहिर है कि राजनयिक स्तर की सौदेबाजी चल रही है । पर सारा हिन्दोस्ताँ क्यों चुप है ?
यही नाटक कश्मीर सिंह के साथ भी चला था । उनको रात दो बज़े उठा कर रस्सी की मज़बूती परखने वास्ते बोरे में बराबर वज़न का मिट्टी भर कर तौल लिया गया । डाक्टरों ने फाँसी से पहले की औपचारिकता के तहत मुयायना करके उनके ज़िन्दा होने की तस्दीक भी कर दी । चार बजने के इंतज़ार में सब टहल रहे थे कि ढाई बजे रिहायी के हुक्म का तामील करवाया गया, निश्चय ही आधी रात में पैगंबर के फ़रिश्ते तो न आयें होंगे, रहम की दरख़्वास्त करने, तो ? मुझे आडियो क्लिप अभी लगानी नहीं आती, बीबीसी हिंदी पर दिये गये इस इंटरव्यू की क्लिपिंग अवश्य पेश करता ।
प्रणव दादा रहम की भीख माँग कर पहले ही देश को शर्मिन्दा कर चुके हैं, " मैं पाकिस्तान से अपील करता हूँ कि मामले की कानूनी पहलुओं को अलग रखते हुये इंसानियत के आधार पर ही इस बदकिस्मत इंसान के साथ दया दिखायी जाये । " 18 अप्रैल का बयान क्यों ऎसी ज़रूरत आन पड़ी दादा ? क्या महाशक्ति बनने से पहले ही देश को फ़ुस्स कर दोगे । उनकी ज़मीन, उनका कानून ! यदि वह यह कहें कि अफ़ज़ल कुकुर को छोड़ दो, तब ? और यही चल रहा है । इंसानियत का आधार उसको दिखाओ, जो यह फ़ारसी जानता हो । उन्हें हिंदी में याद दिलाओ कि तुमने कभी उनके साथ इंसानियत दिखाने की नादानी की थी । घुटने टेक चुके 93,000 पाकियों को लौटाने की नादानी, अंडमान में एक बंदिस्तान क्यों नहीं बन सकता था ? ये बुज़दिल सही किंतु इतने फ़ौज़ियों से हाथ धोने के बाद उनकी यह ताकत आज न होती कि आप दया की भीख माँगते दिखते । जो जीता वही सिकंदर, फिर भी आप हारे को हरिनाम गा रहे हैं ।
मैं तो अपने गुरु पूर्णेन्द्र मिसिर का शठे शाठ्यम समाचरेत से ज़्यादा जानना भी नहीं चाहता । जाइये, आज आपको छोड़ता हूँ, मेरी पंडिताइन के जगने का समय हो रहा है, वरना कल को आप उससे भी दया की भीख माँगते दिखोगे । भाई, आप भी लोग भी जाइये, अपना अपना काम करिये, कोई ख़ास बात नहीं है । और...यह कुछ भी तो नहीं है । नमःस्कार ! अपने तिरंगे पर टूलटिप फिरायें, धन्यवाद
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1 टिप्पणी:
पूर्ण सहमति है आपसे।
आपके ब्लॉग की फीड मिलने में दिक्कत है। मेरे गूगल रीडर पर दिखता नहीं। आप अगर फीडबर्नर की फीड दे रहे हैं तो पूरा ठेका उसे दे दें।
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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