आज शनिवार है या समझिये कि था...
वैसे तो इतने दिनों गायब रहा ही, पर आज है मेरी साप्ताहिक छुट्टी, और यही दिन तो असल छुट्टी में शुमार है, सो अपने मेल इनबाक्स का थोड़ा बहुत ज़ायज़ा वगैरह लिया ही था, कि एक हितैषी का मेल देखा.. वैसे तो इनका लगाई-बुझाई करने जैसा व्यक्तित्व नहीं है, पर इन्होंने श्री ई-स्वामी जी के किसी साइड एफ़ेक्ट पोस्ट का जिक्र कर, इशारा दिया कि मैं अपना भी पक्ष रखूँ ! अब मैं अपना भेजा तो अंबाला में छोड़ आया हूँ, गुड़ाई-निराई व सिंचाई के लिये, क्या करूँ ? पक्ष धरी धरी.. या न धरी !
लेकिन अपना पक्षवा काहे रखूँ, भाई.. ई कोनो ज़िल्ले-इलाही हैं ? अगर हैं भी, तो होंगे... ईहाँ सैकड़न के भाव से स्वामी भरे पड़े हैं.. सभी समझते अपने को तारणहार
आजौकाल एक फँसा पड़ा है, दर्ज़नन के भाव से बेभाव की पड़ रही है, स्वा्मी अमृतानंद को.. बोलिये
गली गली में फलाहारी, वृथाकारी, ब्रह्मचारी, दुराचारी, व्यभिचारी इत्यादि जनता बेचारी को चर रहे हैं
धत्त-स्वामी, हट्ट-स्वामी, ऊ-स्वामी, ई-स्वामी.. अब किस किस को क्या क्या साइड-इफ़ेक्ट होता है, हम्मैं क्या करना ? लै दस्स, भगवान का इफ़ेक्ट भले न दिखे.. स्वामियों का इफ़ेक्ट औ' साइड-इफ़ेक्ट तो जग को गंधा रहा है इंटरनेट को भी नहीं बख़्सा, आसमान से गिरे.. नेट पर अटके, भला यह कोई बात हुई ? हे राम.. नेट पर साँस भी न ले पाये थे, कि यहाँ भी ई-स्वामी ! क्या पता, रामचन्द्र क्या कह गये रहें अपने सिया से.. त्राहिमाम त्राहिमाम, हम तो ईहाँ देख रहें हैं, एक अउर स्वामी ?
बहुत गुलामी हुई गयी भगवन, अब क्या ई-ग़ुलामी भी करवाओगे ?
मन में बहुत कुछ चलता है.. यानि कि यही सब ! मन है तो मैं हूँ, मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है.यह विचार, पाकिट में पड़ा गुरु ज्ञानदत्त जी का यह सूत्र चिढ़ा रहा है.. चल रहा है, तो ठेलो ! सो, किंचित विचलित हुआ, पर यह स्वमिया शुरु से ही बड़ा खुरखुंदी है... स्थितप्रज्ञ तो नहीं ही लगता, शायद मुझे विचलित करना ही उसका मन्तव्य रहा हो, ज़बरन दिमाग को झटका देकर, बाहर आकर अपने एक प्रिय आँवलें के पेड़ के नीचे बैठ गया, शांति की आस में.. एक बाग के बीचोबीच मेरा आवास है, आबादी से कुछ दूर एक अलिखित से डोन्ट डिस्टर्ब डिस्टेन्स पर..इस सुख से वंचित बंधु इससे मिलने वाले मनोरम एहसास को महसूस करने को आमंत्रित हैं , इंडिया के रोम.. यानि कि अपुन सोनिया के रायबरेली में
सामने निर्माणाधीन चहारदीवारी चार-पाँच ईंट तक उठ कर रुकी हुई है,
वैभव और रिशी के बीच की बहन पल्लवी उस पर उछल-कूद मचाये है
( यह पल्लवियाँ ऎसी ही खुराफ़ाती होतीं हैं क्या ? एक पल्लवी जोशी अभिनेत्री को जानता था, बड़ी भूचाली कन्या थी..एक ताँगे वाली पल्लवी है, हमारे कबीले में भी,...खैर ! ) हमारे पोस्ट की इस पल्लवी बिटिया के संग आज एक कोई नया लड़का भी है । मात्र 4 या 4½ वर्ष का यह बच्चा दोनों हाथ व पैरों का सहारा लेकर लगभग काँखते हुये इन ईटों पर चढ़ता है.. इतनी ऊँचाई तक जा फ़ुरसतिया ब्रांड पुलकित च किलकित होते हुये, सबको शेरपा-तेन्ज़िंगनुमा एक स्माइल देता है, आवाज़ भरसक मोटी बना कर,सबको पुकार पुकार अपना करतब मिस न करने की हिदायत भी दोहराये जा रहा है. फिर धम्म से कूद पड़ता, यही क्रम चल रहा है । कूदते हुये स्वयं ही मुँह से आवाज़ भी निकालता है, अंकल देखो, देखिये.. हैय्यऽहः धर्रड़ाम्म, अब देखना.. देखो देखो, ओऽओय्यः धऽड़ाम्म.
अपनी इतनी बड़ी उपलब्धि से पुलकित होता जाता उसका चेहरा देखते ही बनता था,आनन्दम..वह विजय आभा !
जैसे कि कोड बदल बदल कर साफ़्टवेयर बनाने वाले मिस्त्री एक दूसरे से अपनी उपलब्धि बघारते हैं व उसपर ध्यान न देने वालों को देख लेने की धमकी देने के अंदाज़ का अनोखापन,अति आनन्दम
धमकी भी क्या.. कि जाओ तुमसे नहीं बोलेंगे ! भला किस पाषाणहृदय के मन में रस नहीं घुलेगा ?
आनन्दम च आनन्दम, ज़रूर इसपर कभी पोस्ट लिखूँगा, कैसे लिखा जाय.. इसी पर सप्रयास मनन कर रहा था.. लिखने-ऊखने में मेरा दिमाग दर-असल एक सुस्त किसिम के बाबू-किरानी की तरह टालू व्यवहार किया करता है, शनैः शनैः.... धीरे धीरे..किसी भी घटनाक्रम की फ़ाइल तो खोल लेगा.. फिर उसपर, सुस्त रफ़्तार बैलगाड़ी सा.. और से भी और धीरे धीरे मनन करते करते जैसे ऊँघ जाता है । फिर थके होने का बेवज़ह बहाना बना, मनन हो गया, अब बाद में इसपर खनन करेंगे कह कर पूरी की पूरी फैइलिया खोपड़ी के पिछले कोने में कहीं दबा-सरका देता है, श्री आलोक पुराणिक कृपया ध्यान दें,सुखराम से सीख लेकर मैंने डायरी में कुछ भी दर्ज़ करने की आदत से तौबा कर ली है, आप भी कल्लो ! सो मेरा दस्तावेज़ी मन दिल को बहलाने को ग़ालिब के अच्छे ख़्यालों की गवाही में, आगामी किसी मनन सत्र में फ़रदर खनन करने का भरोसा दिला, इस मनन को दफ़न कर देता है, इसीलिये रह गया.. यूँ ही निट्ठल्ला ! अलबत्ता मुझको यह इत्मिनान दिलाता है, कि..⺄ आगामी किसी संभावित खनन में इसी में से एक नायाब हीरा सा पोस्ट निकाल कर दिखलाऊँगा, इन टिप्पणीचूसों को..
अपनी सोच का यह लड्डू मन ही मन टूँग रहा था,कि.. ... कि, क्या ?
अरे, थोड़ा दम धरने दो.. कोई भूचाल नहीं आया, यह तो मेरी वाली ' ..कि ' हैं ! तो यह तथाकथित कि,साइड-डोर से एक अमरूद कचरती हुई पंडिताइन के रूप में अवतरित हुईं.. कचर कचर कचर..ऎई, कचर.. तुमसे ही कह रहीं हूँ, कचर कचर... नहाओगे नहीं ? कच्च कच्च, भईय्या तुम्हारी...कचर..कचर कचर, ये छुट्टी क्या होती है.. मेरा तो सारा.. कचर कचर सेड्यूल ( सोने का ) बिगड़ जाता है, कच्चक कच्च....चलो उट्ठो.. कचर कचर कचर.. निट्ठल्ले बैठे कैसे समय काट लेते हो..कचर कचर ! अब इनको बीबी के परमानेन्ट पोस्ट पर बहाल किहौ है.. तो सुनो, कुछ तो बीबी कहेगी.. बीबियों का काम है कैनाऽ ऽ..छोड़ोऽ बेकार की इस कचर-कचर में छिन न जायेऽ चैना ♫♪ मैंने उचटती हुई एक थेथ्थर दृष्टि उन पर डाली, एक पर्याप्त उत्तर, "चलता हूँ यार, दम न करो " फिर सामने वाले बच्चे की शौर्य-क्रीड़ा देखने लगा, मेरी दृष्टि का पीछा कर, वह भी बच्चे पर केन्द्रित होती भयीं, आंटी को दिखा कर वह फिर कूद पड़ा, धर्रड़ाम्मः, इस बार दो गुलाटी खा स्पाइडरमैन सा खड़ा भया पुल्लिंग चाहे जिस आयु का भी हो, स्त्रीलिंग को देखकर क्यों करतबी हो जाता है ? सो, मोहतरमा कचर कच्च के कंठ से फूटा, “ बच्चे को देखो तो, इतनी कम उम्र में भी किस तरह बेचारा कूद कूद कर अपने को शाबासी दे रहा है… “ अमरूद पर हुआ एक और लास्ट-ओवर दंतप्रहार, ख़च्चाक कच्चक कच्चक कच्च... कौन है यह , .. कचर कचर कचर... कचर, तुम इसको, बच्चे को जानते हो ? यह बच्चा कौन है ? मैं उसको देख देख, अब तक इतना मुदित हो गया था.. कि हठात मेरे मुँह से निकल पड़ा…. ये बच्चाऽ ? नाम तो यार मैं भी नहीं जानता, यह बच्चा शायद … ठीक से तो पता नहीं,पर समझो तो लगता है अपना ई-स्वामी !"
हो सकता है,कि मेरे प्रमुदित मन के अवचेतन में भी स्वामी जी कचर कचर मचाये रहें हों, तभी तो.. वरना इस तरह, ऎसा ज़ुलुम बात हमरा मुँह से निकलता ही कइसे, भाई ? एथिक्स भी तो अथिया कुच्छौ है न जी ?
“ई-स्वामी ? यह स्वामी कौन है, क्या यहाँ भी स्वामी होते हैं, कौन है.. ई-स्वामी ?” अब उनके ज़ुल्मी संग लड़ी भयी अनुभवी आँखों में बार्नविटा क्विज़ कांटेस्ट के रैपिड राउंड प्रश्नावली की ये इनबिल्ट अधीरता मुझको ऎसे ही परेशान करती है ! “क्या यार,तुम भी ? अरे, ई-स्वामी बोले तो ई-स्वामी, इतनी भी समझ नहीं है ?” अब धनिये की चटनी चाटी जा रही है, “तो चिल्ला क्यों रहे हो ? मैं तो यह पूछ रही हूँ, कि जैसे अरुण-पंगेबाज़ हैं तरुण- निट्ठल्ला चिंतन हैं, लिंकित मन-नीलिमा हैं, अपने अनूप जी-फ़ुरसतिया हैं.. वैसे ही इसका भी तो कोई नाम होगा ?” ब्लागीवुड की इतनी गहन जानकारी देख, मैं अचंभित होगया..‘कैसी चलायी ये हवा भाभी रीता पांडे ने’
“हाँ हाँ हाँ, याद आया.. वही तो नहीं, जो तुम्हारी टिप्पणी माडरेट-वाडरेट करके लौटा दी थी, कि तुम चार महीने से लिख रहे हो, मैं चार साल पुराना ब्लागर हूँ. जाकर पहले मेरा लिखा पढ़ो, फिर टिप्पणी करने लौट कर आओ।”
अमर, आपकी टिप्पणी मिली. ज़रा ड्राफ़्डिया मोड में लिखी हुई है! यह समझ में नहीं आया की आप किसे गरिया रहे हैं? किसके लेखन को कचरा कह रहे हैं? कौन दबाव में लिख रहा है और कौन वेश्यावृत्ती कर रहा है? आपकी यह टिप्पणी प्रकाशित नहीं कर रहा, आपका संदेश मुझ तक पहुंचना था पहुंच गया, ठीक! मेरा एक निवेदन है, प्रवचन देने में जल्दबाज़ी ना करें, आप चार माह से ब्लागिंग कर रहे होंगे हम साढे चार साल से हिंदिनी चला रहे हैं! जरा समय लें और हमारा पुराना लिखा ही पढ लें! शेष कुशल, ई-स्वामी 2008/8/18 WordPress A new comment on the post #182 "प्रतिक्रियाएं जो टिप्पणियों में नहीं मिलतीं! " is waiting for your approval http://hindini.com/eswami/?p=182 Author : डा.अमर कुमार (IP: 59.94.129.81 , 59.94.129.81) E-mail : c4Blog@gmail.com URL : http://c2amar.blogspot.com Whois : http://ws.arin.net/cgi-bin/whois.pl?queryinput=59.94.129.81 |
“हाँ यार, वही !” मैं आज़िज़ हो गया, इस वाचाल नारी से !“क्या फिर कुछ लिखा-ऊखा है, क्या नाम है, इसका ?” फिर वही ढाक के तीन पात..मैं खीझ गया, “ अरे, तुम उसके नाम के पीछे काहे पड़ी हो, जब वह अपने माँ-बाप का दिया नाम ज़ाहिर नहीं करना चाहता, तो मुझे क्या पड़ी है.. होगी कोई बात ?” हार कैसे मान जाय, सो एक छोटा सा ज़ुमला उछाल दिया, “फिर भी..?” हे राम, अब इसका क्या करूँ.. सो, मैं चिल्लाने लग पड़ा, “ जाकर ताली ठोकूँ, शौनक की अम्मा, ज़रा ये तो बता, तेरे शौनक के बप्पा का नाम क्या है ? वैसे भी इस सब का उसकी सोच, लेखन और भाषा से क्या ताल्लुक है ?” उन्होंने मुँह फेर लिया, पर बन्द न किया,” मुझे क्या करना, लेकिन कहाँ का है,यह तो बता दो ?” यह थी अगली बाल! अज़ीब परेशानी है, पता नहीं क्यों इस सनीचर को आज ही सवार होना था, “अमें यार खोपड़ी ख़लास मत करो, सभी उड़न-तश्तरी नहीं हुआ करते, कि जबलपुर से कनाडा सर्रर्रर्र हो जाने को स्वीकार करें.. यह शायद अंबाला से लांच हुये थे, अब ग्लोबल आरबिट में मँडरा रहे हैं, नीचे उतर आयें..फिर काहे के ई अउर काहे के स्वामी ? वैसे CA से कंट्रोल किये जाते हैं ।” अब आगे कुछ न पूछना, पाप लगेगा ! पर पंडिताइन आज भिड़ाने के मूड में है,” फिर भी जाकर देख तो लो, कि क्या उल्टा-सीधा लिखा है, वहाँ ?“ अरे राम, ई शनिचरवा के हम का करी ? “ तुम तो जानती हो कि मैं कई ज़गहों पर मूतने भी नहीं जाता, फिर क्यों भेज रही हो ? जाऊँगा तो कुछ लिखूँगा ज़रूर, कुछ टिप्पणी बक्से ऎसे हैं, जो सब हज़म कर जाते हैं, इट्स शीयर वेस्टेज़ आफ़ टाइम ! ज़नानियाँ ऎसा करें तो ठीक भी लगता है, पर,” इससे आगे मैं बोल नहीं पाया
क्योंकि बीच में ही टपक पड़ीं,” पर ज्ञानदत्त जी को लेकर..” छड्डयार, उनकी बात अलग है, मुझको हमेशा लगता है कि टिप्पणी-लोलुपता के चलते अपनी विद्वता व क्षमता का सदुपयोग न करके वह ज़मीनी हक़ीक़त को इग्नोर कर जाते हैं ! इशारों में ही तो बताया,और क्या ? अपना बिना परिचय दिये मिल भी आया, और क्या ? अब बस्स!
वैसे मेरे शनिवार अवकाश का तो कचरा हो ही गया, यह कचरा पोस्ट लिख कर ! इस माहौल में सृजनशीलता.. ना बाबा, ना !
आदरणीय दिनेशराय द्विवेदी जी, आपकी रात्रि/प्रातः 3 बजे वाली पोस्ट की फ़रमाइश पूरी की गयी, ख़ुश ! लवली बिटिया, तू अपनी ज़ान की ख़ैर मना, हमारे तंत्र द्वारा रख़्शंदा नेट पर सक्रिय पायी गयी है, औ’ तू फँस गयी ! निजता की बात करने वालों से बाद में बात होगी । ई-कचरा जारी रहेगा, असहमत, कुछ तो है..पर