खाय न देब तऽ थरिया उल्टाइन देब
यदि मुझे अपनी मर्ज़ी अनुसार पसँद नहीं मिलेगी,
तो मैं परसी हुई पूरी थाली उल्टा तो सकता ही हूँ !
रात्रि के 11.37 पर पेज़ रिफ़्रेश करने को F5 दबाया और आईला ’ रुकावट के लिये खेद है ’ जैसा ब्लागवाणी का पन्ना चमकने लगा । अफ़सोस दिल गड्ढे में जा गिरा । कीबोर्डवा से फौरन F5 नोंच कर फेंक दिया, ससुरी यही है, झगड़े की जड़ ! Freedom at Midnight पढ़ने में मन लगाना चाहा, देसी रियासत रज़वाड़ों की खुदगर्ज़ी के किस्से पढ़ कर अपनी कौम पर गर्व हो आया, लगा कि हम उनसे किसी मायने में अलग नहीं हैं । आख़िर अपने ब्लाग का मालिकाना हक़ है, हमरे पास.. जुगाड़ से चार ठो चारण भी जुटा लिये हैं । अयहय, अब कोई यह तो कहेगा कि ’ अलि कली सों बिन्ध्यौं, अब आगे कौन हवाल ! “ अउर हवाल यह कि अपने हाथन कली नोंच कर फेंक दिया । पाठकों के पसँद नापसँद को लेकर ऎसी सजगता, और कहाँ ? आख़िर कीबोर्ड के वाज़िद अली शाह हैं हम !
सिरफिरा था भगत सिंह जो कल अपने जन्म दिन पर अपने वतन में याद तक न किया गया । वयम पोस्ट लिखित्वा ब्लाग वाः साहित्यवाः के फेर में चिन्तामग्न साहित्यलॉग कर्मी दुष्यँत कुमार की बरसी पर किसीको याद भी न आये | या तो स्मृति समारोह में जाने को पहनने को कमीज़ उठायी होगी, और लेयो थमक गये, “ हँय मेरी कमीज़ उसकी कमीज़ से मैली क्यों ? मेरे अद्वितीय पोस्ट की पसँद उसके सड़े पोस्ट से निचली क्यों ? “ लिहाज़ा धप्प से बईठ गये, उनके शून्य विचार में बस यही आया होगा कि, " चलो आज एक धत्त तेरी की – हत्त तेरी की पोस्ट लिखी जाय, यह नूतन विधा है, मैथिली बाज़ार बड़े शवाब पर है ,थोड़ी भगदड़ सही ! ऎसे कुविचार ब्लागलेखन के अनिवार्य तत्व हैं, यह सब अनाप शनाप सोच नींद को अपने पैर जमाने से रोक रही थीं । एम.पी.थ्री प्लेयर का हेडफोन कान से लगा लिया, धीरे से आजा री निंदिया अँखिंयों में निंदिया आजा री आजा !
अयईयो ये किया गडबड जे.. श्रीधर सुनिधि की जोड़ी हेडफोन में घुस कर चिढ़ाने लगीं । इनको कैसे पता चला कि, ब्लागवाणी ने रुसवाई चुन ली है ? चाहें तो आप ही लपक लें, वाह क्या स्क्रिप्ट बन पड़ी है, " ब्लाग आज कल ! "
चोर बाजारी दो नैनों की,
पहले थी आदत जो हट गयी,
प्यार की जो तेरी मेरी,
उम्र आई थी वो कट गयी,
दुनिया की तो फ़िक्र कहाँ थी,
तेरी भी अब चिंता मिट गयी...
तू भी तू है मैं भी मैं हूँ
दुनिया सारी देख उलट गयी,
तू न जाने मैं न जानूं,
कैसे सारी बात पलट गयी,
घटनी ही थी ये भी घटना,
घटते घटते ये भी घट गयी...
चोर बाजारी...
तारीफ तेरी करना, तुझे खोने से डरना ,
हाँ भूल गया अब तुझपे दिन में चार दफा मरना...
प्यार खुमारी उतारी सारी,
बातों की बदली भी छट गयी,
हम से मैं पे आये ऐसे,
मुझको तो मैं ही मैं जच गयी...
एक हुए थे दो से दोनों,
दोनों की अब राहें पट गयी...
अब कोई फ़िक्र नहीं, गम का भी जिक्र नहीं,
हाँ होता हूँ मैं जिस रस्ते पे आये ख़ुशी वहीँ...
आज़ाद हूँ मैं तुझसे, अज़स्द है तू मुझसे,
हाँ जो जी चाहे जैसे चाहे करले आज यहीं...
लाज शर्म की छोटी मोटी,
जो थी डोरी वो भी कट गयी,
चौक चौबारे, गली मौहल्ले,
खोल के मैं सारे घूंघट गयी...
तू न बदली मैं न बदला ,
दिल्ली सारी देख बदल गयी...
एक घूँट में दुनिया सारी,
की भी सारी समझ निकल गयी,
रंग बिरंगा पानी पीके,
सीधी साधी कुडी बिगड़ गयी...
देख के मुझको हँसता गाता,
जल गयी ये दुनिया जल गयी....
वईसे विजयादशमी शुभकामनाओं की तो होती ही है, इसे चाहे जिस रूप में ग्रहण करें, मर्ज़ी आपकी
ताज़ा अपडेट
ब्लागवाणी का यह निर्णय किन्हीं निहित तत्वों के मँसूबों को फलीभूत कर रहा है,
बल्कि होना तो यह चाहिये था कि, इनकी अवहेलना कर इस पर तुषारापात किया जाये,
ऎसा तभी सँभव है, यदि यह टीम अपने फैसले पर पुनर्विचार कर कुछ कड़े तेवर के साथ प्रकट हो ।
बल्कि होना तो यह चाहिये कि अभी कुछ दिनों तक त्राहि त्राहि मचने दें,
जिसके लेखन में दम हो वह अपनी पोस्ट अपने कलम और सम्पर्क के बूते औरों को पढ़वा ले ।
एक मज़ेदार तथ्य यह कि, मैं मूरख से ज्ञानी जी की पोस्ट पर ब्लागवाणी के जरिये ही पहुँचा,
उत्सुकता केवल इतनी थी कि, कल सर्वाधिक पसँद प्राप्त पोस्ट में आख़िर क्या है !
मज़बूरी में, चलिये यही गाते हैं
तारीफ तेरी करना, तुझे खोने से डरना ,
हाँ भूल गया अब तुझपे दिन में चार दफा मरना...
प्यार खुमारी उतारी सारी,
बातों की बदली भी छट गयी,