पहले तो यह बता दूँ कि हमारे
शिवकुमार मिसिर महा के खखेड़ी जीव हैं, आज सुबह नित्यकर्म से अर्धनिवृत होकर ( दूसरी खेप बकाया कर आया था ) पंडिताइन की सौतन को पकड़ कर बैठ गया । पहले
बड़कऊ को देखा..उनकी दिनोंदिन गंभीर से गंभीतम होती जाती पोस्ट पर घिघ्घी बँध गयी, एक स्माइली ठोका और ब्लागस्वामी के रहम-ओ-करम पर छोड़ कर आगे बढ़ा । येल्लो..छोटकऊ तो सो रहे थे । गंगानहान के दिन तो दिखाने भर का पुण्य तो कर लेते..बाद में चित्रगुप्त ताऊ से कह कहा कर उनके खाते में दो-तीन ज़ीरो मैं बढ़वा ही देता । बहुतों से मुलाकात वगैरह हुई । कवि के बाद ब्लागर प्रजाति ही ऎसी है जिससे आने वाली पीढ़ीयाँ पनाह माँगेंगी । उनकी रचनाधर्मिता से नहीं.. बल्कि पेलो और ठेलोधर्मिता
*। * से ! किसी कवि के चिंचिंयाते तरन्नुम से निज़ात पानी हो..एक फ़िकरा भर छोड़ने की देरी होगी..” भागिये भाई साहब, वो ब्लागर आ रहा हैं ! “ कहाँ है ? हमारे चौराहा-कवि सहम कर अपनी सद्यःउगली हुई आधी कविता कंठ में सटक कर चौकन्ने होते हैं । वो देखिये
नुक्कड़ पर टहल रहा है, और लीजिये महाशय-जी यह जा.. वह जा । खड़बड़ खड़बड़ बगल की गली में घुसायमान हो थरथर काँप रहे हैं, आशंकित हैं… कोस रहे हैं, दाँत पीस रहे हैं..,’ छुट्टा हो गये हैं.. कोई भरोसा नहीं आज क्या लिये टहल रहे हों, पा जायें तो यहीं के यहीं ठेल दें..होरॆ राम होरॆ राम हॊरे कृ..’ जेई देशे बाघेर भय - सेई देशे रात हॊय ( जहाँ बाघ का डर था – वहीं पर रात हो गयी ) अब जय हनुमान ज्ञानगुन सागर की रुँधीं गुहार 33 rpm में, उनके पता नहीं कहाँ से निकल रही है । निकल रही है तो बस समझ लीजिये कि निकल ही पड़ी है, यहीं बात ख़त्तम ! असल बात तो ब्लागर पावर की है, सो देख लें,
चवन्नी उछाल के । चवन्नी
फ़ुरसतिया गुरु के पास प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, संपर्क करें । नहीं, चवन्नी चैप तो रांग नम्बर है, जी । उछालै वाली चवन्नी तो हम सुकुल गुरु को कानपुर छोड़ते वक्त ही दे आये थे ! मुकर जायें तो बात दूसरी है । कलयुग में तो भगवान भी फुसला कर ही सही एकाध पुण्य-कार्य तो करवा ही लेते हैं, फिर बाद में मुकर जाते हैं, बाँयें हाथ से आम चूसते हुये दायें हाथ से बरज देते हैं, ‘चल फूट, फलप्राप्ति की चिंता जिन कर ।’ जा आपस में टिप्पणी लड़ा.. वही तेरा प्रारब्ध है ! खुद तो चूसने को आम पा गये हैं, और… इहाँ फ़क़त टिप्पणियों से बहटिया बहटिया के हम संतों से गवा रहे हैं, “ चलो टिप्पणी लड़ायें ♪ ♪चलो टिप्पणी लड़ायें ♪ ♪चलो टिप्पणी लड़ायें..♪ ♪ सन्नम..♫ ♫ ऊह्हू ﬠ ♪ऊह्हू ﬠ ♪ “ लगे रहिये….जमाये रहिये ….ऊह्हू ﬠ♪ऊह्हू ﬠ♪ एडसेंस तो पीठ पर झाड़ू मार गया.. ऊह्हू ﬠ♪ऊह्हू ﬠ♪ ऽऽ चलो टिप्पणी लड़ायें ♪ ♪चलो टिप्पणी लड़ायें ♪ ♪चलो टिप्पणी लड़ायें..♪ ♪ सन्नम..♫ ♫ ऊह्हू ﬠ ♪ऊह्हू ﬠ ♪
मेरी चिरकुट मंडली
तो भाईयों ( अउर उनके सिर पे सवार बहिनों ), कैसी चली है..ये हवा अपुन के ब्लागिंग में..ऽ ♫ऽ ♫♪♪ ,क्या हो गया है ? चिरकुट चिंतन के संक्रमण की ऎसी महामारी फैलती दिख रही है, कि पूछो ही मत ! ब्लागर ने तो अपनी ताकत से सरकारों को हिला दिया है,
कुछ तो है.. जो कि, फ़िलिम वाले
हिज़ हाइटनेस भी दुनिया से लुकाय-छिपाय के नहीं बल्कि गुर्राय-गुर्राय के रोज अइसी-तइसी पेले पड़े हैं । ऎसे में देखिये..आजकल अपने ज़िंदादिल शिवकुमार जी किस कदर चिरकुटग्रस्त दिख रहे हैं ।
न्यू-इम्प्रूव्ड के उलट अपनी पोस्ट के शीर्ष में
ऊह्हू-चिरकुट काहे चिपका देते हो मित्रवर ? हमारी गौरमिंन्टिया गाहे बगाहे विरोध जताने की परंपरा निभाती है, सो… समझॊ कि हम भी विरोधई जता रहे हैं, अपनी गली से ! आपके टिप्पणी बक्से में आधा घंटे फँसे रहने के बाद, निकल कर हिंयाँ से यानि अपने परदेश से विरोध प्रगट कर रहें हैं । तो जानम समझा करो, बुरा मानोगे तो बाकी लोग हँसेंगे । हँसेंगे.. काहे कि प्रगट ही तो कर रहे हैं… आप रिसीविंग ले लीजिये । किसी को विरोध दिखायी दिया अब तक ? तो मेरा यह चिरकुट विरो…ऽऽध, ईश्श..ऽ उड़ि बाबा ऒरॆ ठाकुर, संगॆ दोषे ग्रामॊ नष्टॊ ( সংগে দোষে গ্রামো নষ্ট ) बूझलेन तो दादा ? संगत में तो गाँव तबाह हो जाता है । नाहिं नाहिं ऊशमें गोरमाने का बात नेंईं है, ऊ तो गलती से बोलाः गया था, मूँ से ! अच्छा तो एक काम करते हैं, आप तो मिलीजुली को चलाने का पर्याप्त अनुभव रखते हैं, सो…..पहले बोलिये मानेंगे तो ? सो… भविष्य को देखते हुये, क्यों न एक टिप्पणी बैंक खोली जाये ?
शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लाग की परंपरा में एक शिव अमर टिप्पणी बैंक खोलने का विचार कैसा है ? यह
3-5 का काम अच्छा चलेगा, यानि तीन ले जाओ...पाँच दे जाओ । लोग ज़रूरत पड़ने पर यदि तीन टिप्पणी उधार हाँ हाँ.. वही वही, लोन लेंगे और बदले में गैर-ब्लागिंग के फ़ालतू टाइम में दो नई टिप्पणी गढ़ के ओरिज़िनल तीन के संग जोड़ कर पाँच बना कर दे जायेंगे । यानि अपनी बैंक की पूँजी में बिना लागत मुनाफ़ा । टिप्पणियों की शुरुआती पूँजी ? हम हैं ना, काहे फिकिर करते हो ? अभी सबसे जमा करा लिया जाय । जमा की हुई पाँच टिप्पणी पर फ़ी पोस्ट दो नई टिप्पणी का ब्याज़ लिया जायेगा । है ना चोखा आइडिया ? धन्यवाद दो कि तुमको पार्टनर बनाने का प्रस्ताव भेज रहा हूँ, वरना तुम्हरे बड़कऊ तो हास्य-व्यंग ( लेबल लगा देने से व्यंग थोड़े बन जाता है, जी ) में घायल होकर वैकल्पिक विधा की खोज में भटक कर हमारे दरवज़्ज़े पर भड़भड़ा कर जा चुके हैं । जल्दी जवाब दो भैय्या, आख़िर हम कब तक लैट्रिन में छुपे बैठे रहेंगे ? उनका कोनो भरोसा नहीं, हिंयईं लैट्रिनवा में घुसि के फोटू अँईंच लें और भोर में छापि दें । तब तक हमार ई पोस्टिओ ससुर गंधा जायेगी । उनकी तो चौंचक
हलचल होय जावेगी, अउर लेकिन अपनी भी तो सोचो, भईय्या । भागि आवो, बोलि देयो, “ अब लौं नसानि – अब न नसइहौं “ ताड़ाताड़ी
( झटपट ) ! हाँय भइय्या ?
अमर शिव टिप्पणी बैंक का गूगल चीफ़ द्वारा भव्य उद्घाटन ।
श्री शिवकुमार भारत स्थित ब्लागर टिप्पणी ब्यूरो के चीफ मनोनीत किये गये
ऎसी सुर्खियाँ आपके कदम चूमेंगी । सच्ची में..लोग टिप्पणी जमा कर जाया करेंगे और हम लोग ऎश करेंगे, ठीक एमवे वालों की तरह, बड़ी सोच का बड़ा जादू तो सुनबै किये होंगे । हमलोग तो माछेर तेले माछ भाजा ( মাছের তেলে মাছ ভাজা ) हमें उसी मछली के तेल से उसी मछली की फ़्राई बनाना है । टिप्पणी जमा करो…कौन सी किस गुट के खाते व स्कीम में रखी जायेगी, यह निर्धारित करो । इतने गुटों के बीच निर्गुटों का भी एक गुट सामने आ रहा है, वह मुश्किल पैदा कर सकता है, कोई वांदा नहीं, इनको देख लिया जायेगा । कन्याभेदी, हृदयभेदी, सिसकारी, हुँकारी कैटेगरी वगैरह की विशेष माँग रहेगी । वाह-वाह , लगे रहिये, जमा गये जी जैसे लुहाती टिप्पणियों पर ब्याज़ दर इसके टर्नओवर के हिसाब से कम भी की जा सकती है । जरा इधर भी घूम जाइये की गुहार लगाने वालों से रिरियाहट सरचार्ज़ लेने पर भी विचार किया जा सकता है । गोहार लगा लगा कर टिप्पणी माँगने वाले भी हैं, उनको अपात्रता की चेतावनी देनी पर सकती है, खैर अपने घर में तो इसको आप मौखिक ही संभाल लेंगे, यह विश्वास है । एक मुफ़्त सुविधा ( शुरुआत में ) बाद में अर्थ का अनर्थ विशेषज्ञ तो आप हो ही, अब तक आये डिपाज़िट की झलक भर दूँगा ( बीमा नहीं है अभी ) , यह जुगाड़ू सुविधा अधिक दिन तक मुफ़्त देना ठीक नहीं, ब्लागर बंधुओं के मुँह जुगाड़ बुरी तरह लग गया है । अच्छा, अब तक आये टिप्पणियों को देख लीजिये , यह कुछ ऎसी है…
©आपकी सोच को नमन है
©एक और संवेदनशील पोस्ट..
©संवेदना का झरना..
©बहुत मार्मिक प्रस्तुति !
©यही जिन्दगी है जी।
©एक विचारणीय आलेख।
©कमाल की पोस्ट है... साधुवाद :-)
©बहुत खूब सत्य को उकेरती रचना।
©कल्पनालोक का यथार्थ बहुत क्रूर है...
©लिखते रहिये,
©Bahut badhiya
©सुंदर प्रस्तुति....बधाई
©Ha ha ha, Nice and fine blog
©बड़ी ही गहरी बात मार दी जी....
©बहुत सुन्दर लिखा है
©just mindbloowingggggggg
©बहत सुन्दर.बहुत बधाई.
©यह लेख सोचने पर मजबूर कर देता है
©विचारणीय लेख है ....यह तो
©खूबसूरत रचना...हमेशा की तरह.
©अच्छी लगी आपकी रचना
©रचना मस्त है
©बहुत अच्छी रचना
©रचना पसंद आई.
©हमेशा की तरह संवेदना जगाती रचना.
©अजी गजब ढा दिया रचना ने
©सही कह रहे हो
©बहुत कायदे से भाव उकेरे हैं-बेहतरीन
©पोस्ट मार्मिक बन पड़ी है
©अच्छा है, कभी इधर भी घूम जाइये
©बहुत सुन्दर हे इस कविता के भाव
©बात तो ठीक है, पर करें क्या ?
©बहुत अच्छा पोस्ट लिखा है आपने.
©आपकी अभिव्यक्ति बेहद सुंदर है
©बहुत बढिया और सुंदर आलेख !
©वास्तव में बहुत लाजवाब लेख बधाई |
©दिल को अन्दर तक हिला डाला आपके लेख ने
©खुश कर दिया भाई
©हाहाहा मजा आ गया
मज़ा तो ले गये अल्ली रज़ा, अब सिर्फ़ हम और आप बचे हैं । टिप्पणियों की मारकेटिंग में अपना भविष्य देखिये, प्रभु । आज 3609 चिट्ठे तो धड़ाधड़ महाराज के यहाँ दर्ज़ हैं, मान ही लें कि मात्र 900 ही सक्रिय हैं, तो जुटे लगभग 450 पाठक, पेट भरने भ्रर को लोग 5 टिप्पणी से बहल जाते हैं..तो 450 X 5 = 2250 टिप्पणियों की माँग नित्यप्रति होगी । और…अपने बफ़र स्टाक में तो 500 भी नहीं है, जी । तो चिरकुटई..ऽऽईश्श..वही न, संगॆ दोषे ग्रामॊ नष्टॊ ! हाँ, मेरी वाली पंडिताइन अभी अभी एक भूलसुधार कर गयी हैं..पहली वाली लाइन में पंडिताइन की सौतन बोले तो मेरी कम्पू-बेबी..न कि तेरी वाली पंडिताइन ! कृपया आप बंधुगण भी ध्यान दें, गलती सुधार ली गयी है । तो शिवकुमार गुरु, सोचो मत…हिंदी ब्लागिंग का स्वर्णयुग आना ही चाहता है, एकदम से आसमाँ पर घिरी चली आ रही है । देयर इज़ अ बिग एन्ड प्रोसपेरस मार्केट इन टिप्पणीज़ , हरी-अप !
जरा सोचिये, क्या बात होगी… ख़ूब ग़ुज़रेगी, जब बैठेंगे तीन यार, हम तुम और (सोडा-) ब्लागर ! लोग आराम से तहमद का पिछवाड़ा खजुआते हुये, उबासी लेते अल्ल्सुबह आयेंगे, नो टेंशन आफ़ करी करी न करी, दन्न से ये उठाया, वो कापी-पेस्ट । देखा रचना जी पर तो अभिव्यक्ति वाली माकूल रहेगी..खड़बड़ खड़बड़ । नहीं मिल रही है..फोन घुमाया, अरे डाक्टर साहब, अभी तो बिज़ी होंगे, अच्छा बताइये वो अभिव्यक्ति वाली खाली है, क्या ? हाँ हाँ वही, रंजू जी को बहुत पसंद है । अँय, नहीं है..कुश ने अभी लौटायी नहीं, अच्छा रोज़ ब्याज में नई टिप्पणी भेज देता है, लेकिन भाई डाक्टर साहब जरा देखिये इसको ? आप देख नहीं रहें हैं । अरे यहाँ टिप्पणियों की अदला बदली चल रही है..और आप बेख़बर हैं । कल नहीं तो शायद परसों..कुशजी उड़न तश्तरी की ‘ हा हा..हाहाहूती ‘वाली वह चेंप रहे थे, और ई उड़नतश्तरिया न, भाई का बतायें सीनियर होगये हैं , अउर ई सब काम करते हैं । भाई रोकिये इसको आप लोग, GB की मीटिंग में बवाल कर दूँगा हम । आखिर कोनो ईहाँ वोट-बैंक बनाने का पिलेट्फारम तो नहीं है, नू ? नाहिं नाहिं हमारा ऊ सब मानी मतलब नहिं था , मिसकोट मत करिये हमको । हमारा ग्रुपवा जानते तो अईसे बोलबे नहिं करते आप ! अब आप बताइये साहब…क्या आप भी बोलेंगे या कि बोलतिये बंद हो गयी है ? चलिये होता ई सब, लेकिन पूरा पढ़ें हैं कि ऎसे ही आगे बढ़ें हैं ? हम भी चलता हूँ शीव-भाई, नमस्कार !
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यह आलेख सद्यःप्रकाशित ‘ अमर कुमार के पत्र शिवकुमार के नाम ® ’ से साभार ली गयी है । © हलचल प्रकाशन, प्रयाग- 2008
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कुश,
मार्केट
①
मत पढ़िये इन ब्लाग्स को ②
टिप्पणी_करी करी न करी ③
टिप्पणियों पर एक चिरकुट चिंतन ④
ब्लागिंग एक चिरकुट चिंतन