जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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23 July 2008

पर ऎसा भी क्या हो गया…कि ,

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भटक कर आये हुये आलेख की दुम…..यहाँ जारी है
पर ऎसा भी क्या हो गया कि अनुपम को यह सब करना पड़ा ? एक प्रश्न और अनेक उत्तर होंगे । क्या यह क्षणिक आवेग मात्र था, शायद हाँ..और शायद नहीं भी ? आवेग के पक्ष में निश्चित ही अधिक वोट आयेंगे । पर एक बात साफ़ हो जाये…कि यह क्षणिक आवेग ही सही, किंतु यह तो मानेंगे कि उसकी पराकाष्ठा है, यानि किसी भी आवेग की । अपनी बात को कायम करवाने के लिये अपना ही जीवन ख़त्म करने का प्रयास केवल एक घटना नहीं, बल्कि व्यक्ति के मानस के साथ हुई कई दुर्घटनाओं को दर्शाता है । केवल इसी परिप्रेक्ष्य में देखें तो साफ है..
                                                                                           e2285
                                       बच्चा बच्चा हाल हमारा जाने है । और फिर गली गली यही गूँजेगा
कि तीन राजनयिकों की व्यक्तिगत महात्वाकांक्षा, उनकी नाक की लड़ाई ने, कुछ दिनों के लिये पूरे देश को कई घड़ों में बाँट दिया था । मीडिया को टी.आर.पी. बढ़ानी होती है, सो वह हर दिन हर पल नये नये अविष्कार करते रहे, और एक्सक्लूसिव की थाल में सजा सजा कर बख़ूबी परोसते रहे ।  निश्चित ही ( बचे खुचे ) लोकतंत्र का यह खंभा अपनी जगह पर सीधा खड़े रहने में असमर्थ हो चला है, या कि उसे भ्रम है कि वही आगे आने समय के भारत भाग्य विधाता हैं । बहस के लिये ही सही.. ( और कर भी क्या सकते हैं ? ) किंतु यह दुःखदायी है ।
भोंड़ेंपन की हद त्तक, माछेर बाज़ार की तरह इतना सेंसेशन, इतना सस्पेंस, इतनी फ़्रेंज़ी ( रोमांच.. उत्तेजक अनिश्चय.. उन्माद वगैरह ) परोसी गई कि यह सब मरता क्या न करता जैसी खुराक़ बन कर लोगों के पेट में उतर गयी। ख़रीद – फ़रोख़्त, लेन-देन के किस्से पान की दुकानों तक अपने अपने ढंग से रंग-रूप बदलने लगे । आभिजात्य कहलाये जाने वाले ड्राइंगरूम्स में यह '>'>'>'>हार्स-ट्रेडिंग कहलाया जाने लगा । 1790 के अमेरिकन राष्ट्रपति ज़ेफ़रसन व ब्रिटिश लोकशाही के संदर्भ भुला कर बिहार में इसका खुल कर उपयोग हुआ । और मीडिया के कर्णधारों को देश को दिशा देने वाला एक नया ज़ुमला मिल गया । समय असमय देश के इस कोने से उस कोने तक लुढ़कता उछलता यह सत्ताधारी नेतृत्व के शब्दकोष में जा कर टिक गया । मुद्रित व इलेक्ट्रानिक मीडिया यहीं से इसे उधार लेकर इसका भरपूर उपयोग करके, फिर आने वाले आड़े वक़्त के लिये सहेज कर रख छोड़ती है । नतीज़तन कोमल मन की बात तो दरकिनार  पके प्रौढ़ दिमाग भी इस फोड़े की वज़ह से टप्प टप्प टपकने लगे । भारत अज़ूबों का देश तो रहा ही है, अब अटकलों से समृद्ध देश भी बन गया ।
अडवानी पर कुछ न बोलूँगा, अनुपम आहत होंगे । किंतु उनकी ‘ कउआ कान ले गया ‘ वाला माहौल बना देने की राजनीति से लोग जागते क्यों नहीं । माया बोलीं ‘ दलित की बेटी ‘को प्रधानमंत्री पद से अलग करने कि रणनीति काम कर गयी ! अज़ब है, तू माया – ग़ज़ब है तू माया ! प्रबुद्ध मनमोहन ‘ नाच री कठपुतली मेरी ‘ पर थिरकते देखे जा सकते हैं । सोनिया को अपने आक्रोशात्मक पैंतरों को छिपा पाना मुश्किल पड़ रहा है, वह कोशिश भी नहीं करतीं । भारत-पाकिस्तान क्रिकेट की तर्ज़ पर लाइव कमेन्ट्री चलती रही, अब चार की आवश्यकता, अब दो लुढ़के , यह धोती-उघाड़ कुश्ती हम सीधे आपको संसद के सेंट्रल हाल से दिखा रहे हैं, जाइयेगा नहीं अभी आते हैं..”आँप क्लौंज़-अप किँयॊं नेंहिं करतेए  हँयअ अ ऽ ऽ “ और पूरा मुलुक क्लोज़-अप में जुट गया, काश कोई इन धुरंधरों का क्लोज़-अप भी दिखलाता ! टनों क्लोज़-अप ख़र्च हो गया, और हमारा नेतृत्व अपने दाँत पहले से ज़्यादा मज़बूत साबित कर, दुग्ध-धवल की झमकार बिखेरता हुआ देश को कृतार्थ करता भया ! उनकी आन के पीछे सिर तुड़ाने वालों को राहत देने की तैयारी चल रही है । कतार से आओ.. सबको मिलेगा ! चलें देखें, क्या मिलने  वाला है ? बहुत देर से यूँ ही निट्ठल्ला बैठा हुआ कुछ तो है को गंदा कर रहा हूँ ! दुनिया चैन से सो रही है, मैं क्यों बेचैन हूँ ?
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21 July 2008

शिव को कैसे मनाऊँ रे….शिव मानत नाहिं ऽ

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शिव को कैसे मनाऊँ रे शिव मानत नाहिं … शाल दुसाला शिव लेतो नाहीं है, बाघचर्म कहाँ पाऊँ रे शिव मानत नाहीं । मेवा मिठाई शिव भावत नाहीं है, भाँग धतूरा कहाँ पाऊँ रे शिव मानत नाहीं ….आह ! बचपन में सुनी हुई मिथिला-वैशाली के ’नचारी ’ लोकगीत की यह पंक्तियाँ आज भी कान में गूँजा करती हैं । भोले शिव..  औघड़ शिव…  दानी शिव… आशुतोष शिव… क्रोधी  शिव…  महानुरागी शिव… नेपथ्य से श्रीराम की लीलाओं को संचालित करते शिव

हलाहल पान करते शिव.. प्रियतमा विरह से दग्ध तांडव करते शिव.. .. आह ! अनोखे हैं हमारे शिव – आज है श्रावण मास का प्रथम सोमवार..  पंडिताइन का व्रत..  मेरे जैसा औघढ़ पाकर कुपित होती है..  फिर भी क्यों छोड़े अपना शिव ? शिव पर इनका इतराना देखो तो आप भूल ही जाओगे..  जल चढ़ाने को मंदिर को लपकते श्रद्धालु , उत्साह उछाह.. आस्था विश्वास.. वर और वरदान के प्रतीक भोले शिव…  देते पहले हैं, सोचते बाद में शिव !

                                       हमारे शिव भोले शिव -अमर एवं रूबी शिवार्पित 21 जुलाई 2008

         हर हर महादेव शिव शंभु त्रिपुरारीॐ नमः शिवाय

अब ऎसे औघड़दानी को हम क्या चढ़ा सकते हैं, सभी में तो..  शिव मानत नाहीं ! आज एक पोस्ट ही चढ़ा देते हैं, किंवा चिहुँक कर इसी से मान जायें

                                            श्रीरुद्राष्टकम

                          ani_leaf         ॐ        ani_leaf

नमामी शमीशान् निर्वार्णरूप्ं । विभुं व्यापक्ं ब्रह्म् वेद स्वरूप्ं ।

निज्ं निर्गुण्ं निर्विकल्प्ं निरीह्ं । चिदाकाशमाकाशवास् भजेऽह्ं ॥१॥

निराकारमोङ्कारमूल्ं तुरीय्ं । गिराज्ञान् गोतीतमीश्ं गिरीश ।

कराल्ं महाकाल् काल्ं कृपाल्ं । गुणागार स्ंसारपार्ं नतोऽह्ं ॥२॥

तुषाराद्रि स्ंकाशगौर्ं गभीर्ं । मनोभूत् कोटि प्रभाश्री शरीर्ं ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारूग्ंगा । लसद्भाल् बालेन्दु कण्ठे भुज्ंगा ॥३॥

चलत्कुण्डल्ं भ्रुसुनेत्र्ं विशाल्ं । प्रसन्नानन्ं नीलकण्ठं दयाल्ं ।

मृगाधीश् चर्माम्बर्ं मुण्डमाल्ं । प्रिय्ं श्ंकर्ं सर्वनाथ्ं भजामि ॥४॥

प्रचण्ड्ं प्रकृष्ट्ं प्रगल्भ्ं परेश्ं । अखण्ड्ं अज्ं भानुकोटि प्रकाशम् ।

त्रय्ःशूलनिर्मूलन्ं शुलपाणिं । भजेऽह्ं भवानीपतिं भावगम्य्ं ॥५॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनान्ंद् दाता त्रिपुरारि ।

चिदान्ंद - सदोह मोहापहारी।प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथहारी ॥६॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्द । भजतीह लोके परे वा नराणां ।

न तावत्सुख्ं शान्ति सन्ताप नाश्ं । प्रसीद् प्रभो सर्व भूताधिवास्ं ॥७॥

न जानामि योग जप्ं नैव पूजां। नतोऽह्ं सदा सर्वदा श्ंभु तुभ्यं ।

जरा जन्म दुःखौघतातप्य मान्ं।प्रभो पाहि आपन्नमामीश श्ंभो।रुद्राष्टकमिद्ं प्रोक्त्ं विप्रेण् हरतोषये।ये पठन्ति तेषां शम्भुःप्रसीदति ॥८॥

                                                        इति श्री गोस्वामी तुलसीदास कृत्ं श्री रुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

सो, मित्रों मेरे पास जो श्रद्धा-सुमन हैं, वह इस पोस्ट के रूप में त्रिपुरांतकारी भोलेनाथ को चढ़ा दिया । आप साक्षी हैं, कैलाशपति आपको सुख-शांति दें ।

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19 July 2008

ब्लागजगत में टिप्पणियों का भविष्य – एक सार्थक पेशकश

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पहले तो यह बता दूँ कि हमारे शिवकुमार मिसिर महा के खखेड़ी जीव हैं, आज सुबह नित्यकर्म से अर्धनिवृत होकर ( दूसरी खेप बकाया कर आया था ) पंडिताइन की सौतन को पकड़ कर बैठ गया । पहले बड़कऊ को देखा..उनकी दिनोंदिन गंभीर से गंभीतम होती जाती पोस्ट पर घिघ्घी बँध गयी, एक स्माइली ठोका और ब्लागस्वामी के रहम-ओ-करम पर छोड़ कर आगे बढ़ा । येल्लो..छोटकऊ तो सो रहे थे । गंगानहान के दिन तो दिखाने भर का पुण्य तो कर लेते..बाद में चित्रगुप्त ताऊ से कह कहा कर उनके खाते में दो-तीन ज़ीरो मैं बढ़वा ही देता । बहुतों से मुलाकात वगैरह हुई । कवि के बाद ब्लागर प्रजाति ही ऎसी है जिससे आने वाली पीढ़ीयाँ पनाह माँगेंगी । उनकी रचनाधर्मिता से नहीं.. बल्कि पेलो और ठेलोधर्मिता *। * से  ! किसी कवि के चिंचिंयाते तरन्नुम से निज़ात पानी हो..एक फ़िकरा भर छोड़ने की देरी होगी..” भागिये भाई साहब, वो ब्लागर आ रहा हैं  ! “ कहाँ है ? हमारे चौराहा-कवि सहम कर अपनी सद्यःउगली हुई आधी कविता कंठ में सटक कर चौकन्ने होते हैं । वो देखिये नुक्कड़ पर टहल रहा है, और लीजिये महाशय-जी यह जा.. वह जा । खड़बड़  खड़बड़ बगल की गली में घुसायमान हो थरथर काँप रहे हैं, आशंकित हैं… कोस रहे हैं, दाँत पीस रहे हैं..,’ छुट्टा हो गये हैं.. कोई भरोसा नहीं आज क्या लिये टहल रहे हों,  पा जायें तो यहीं के यहीं ठेल दें..होरॆ राम होरॆ राम हॊरे कृ..’ जेई देशे बाघेर भय - सेई देशे रात हॊय ( जहाँ बाघ का डर था – वहीं पर रात हो गयी ) अब जय हनुमान ज्ञानगुन सागर की रुँधीं गुहार 33 rpm में, उनके पता नहीं कहाँ से निकल रही है । निकल रही है तो बस समझ लीजिये कि निकल ही पड़ी है, यहीं बात ख़त्तम ! असल बात तो ब्लागर पावर की है, सो देख लें, चवन्नी उछाल के । चवन्नी फ़ुरसतिया  गुरु के पास प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, संपर्क करें । नहीं, चवन्नी चैप तो रांग नम्बर है, जी । उछालै वाली चवन्नी तो हम सुकुल गुरु को कानपुर छोड़ते वक्त ही दे आये थे ! मुकर जायें तो बात दूसरी है । कलयुग में तो भगवान भी फुसला कर ही सही एकाध पुण्य-कार्य तो करवा ही लेते हैं, फिर बाद में मुकर जाते हैं, बाँयें हाथ से आम चूसते हुये दायें हाथ से बरज देते हैं, ‘चल फूट, फलप्राप्ति की चिंता जिन कर ।’ जा आपस में टिप्पणी लड़ा.. वही तेरा प्रारब्ध है ! खुद तो चूसने को आम पा गये हैं, और… इहाँ फ़क़त टिप्पणियों से बहटिया बहटिया के हम संतों से गवा रहे हैं, “ चलो टिप्पणी लड़ायें ♪ ♪चलो टिप्पणी लड़ायें ♪ ♪चलो टिप्पणी लड़ायें..♪ ♪ सन्नम..♫ ♫ ऊह्हू ﬠ ♪ऊह्हू ﬠ ♪ “ लगे रहिये….जमाये रहिये ….ऊह्हू ﬠ♪ऊह्हू ﬠ♪ एडसेंस तो पीठ पर झाड़ू मार गया.. ऊह्हू ﬠ♪ऊह्हू ﬠ♪ ऽऽ चलो टिप्पणी लड़ायें ♪ ♪चलो टिप्पणी लड़ायें ♪ ♪चलो टिप्पणी लड़ायें..♪ ♪ सन्नम..♫ ♫ ऊह्हू ﬠ ♪ऊह्हू ﬠ ♪
                                                                                mail (2)
                                                        DalmBar
                                                                       मेरी चिरकुट मंडली
तो भाईयों ( अउर उनके सिर पे सवार बहिनों ), कैसी चली है..ये हवा अपुन के ब्लागिंग में..ऽ ♫ऽ ♫♪♪ ,क्या हो गया है ? चिरकुट चिंतन के संक्रमण की ऎसी महामारी फैलती दिख रही है, कि पूछो ही मत ! ब्लागर ने तो अपनी ताकत से सरकारों को हिला दिया है, कुछ तो है.. जो कि, फ़िलिम वाले हिज़ हाइटनेस  भी दुनिया से लुकाय-छिपाय के नहीं बल्कि गुर्राय-गुर्राय के रोज अइसी-तइसी पेले पड़े हैं । ऎसे में देखिये..आजकल अपने ज़िंदादिल शिवकुमार जी किस कदर चिरकुटग्रस्त दिख रहे हैं ।  न्यू-इम्प्रूव्ड के उलट अपनी पोस्ट के शीर्ष में ऊह्हू-चिरकुट काहे चिपका देते हो मित्रवर ? हमारी गौरमिंन्टिया गाहे बगाहे विरोध जताने की परंपरा निभाती है, सो… समझॊ कि हम भी विरोधई जता रहे हैं, अपनी गली से ! आपके टिप्पणी बक्से में आधा घंटे फँसे रहने के बाद, निकल कर हिंयाँ से यानि अपने परदेश से विरोध प्रगट कर रहें हैं । तो जानम समझा करो, बुरा मानोगे तो बाकी लोग हँसेंगे । हँसेंगे.. काहे कि प्रगट ही तो कर रहे हैं… आप रिसीविंग ले लीजिये । किसी को विरोध दिखायी दिया अब तक ? तो मेरा यह चिरकुट विरो…ऽऽध, ईश्श..ऽ उड़ि बाबा ऒरॆ ठाकुर, संगॆ दोषे ग्रामॊ  नष्टॊ  ( সংগে দোষে গ্রামো নষ্ট ) बूझलेन तो दादा ? संगत में तो गाँव तबाह हो जाता है । नाहिं नाहिं ऊशमें गोरमाने का बात नेंईं है, ऊ तो गलती से बोलाः गया था, मूँ से ! अच्छा तो एक काम करते हैं, आप तो मिलीजुली को चलाने का पर्याप्त अनुभव रखते हैं, सो…..पहले बोलिये मानेंगे तो ? सो… भविष्य को देखते हुये, क्यों न एक टिप्पणी बैंक खोली जाये ?
                                                         शिवकुमार-अमर कुमार टिप्पणी बैंक स्थापित 18 जुलाई 2008
शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लाग की परंपरा में एक शिव अमर टिप्पणी बैंक खोलने का विचार कैसा है ? यह 3-5 का काम अच्छा चलेगा, यानि तीन ले जाओ...पाँच दे जाओ । लोग ज़रूरत पड़ने पर यदि तीन टिप्पणी उधार हाँ हाँ.. वही वही, लोन लेंगे और बदले में गैर-ब्लागिंग के फ़ालतू टाइम में दो नई टिप्पणी गढ़ के ओरिज़िनल तीन के संग जोड़ कर पाँच बना कर दे जायेंगे । यानि अपनी बैंक की पूँजी में बिना लागत मुनाफ़ा । टिप्पणियों की शुरुआती पूँजी ? हम हैं ना, काहे फिकिर करते हो ? अभी सबसे जमा करा लिया जाय । जमा की हुई पाँच टिप्पणी पर फ़ी पोस्ट दो नई टिप्पणी का ब्याज़ लिया जायेगा । है ना चोखा आइडिया ? धन्यवाद दो कि तुमको पार्टनर बनाने का प्रस्ताव भेज रहा हूँ, वरना तुम्हरे बड़कऊ तो हास्य-व्यंग ( लेबल लगा देने से व्यंग थोड़े बन जाता है, जी ) में घायल होकर वैकल्पिक विधा की खोज में भटक कर हमारे दरवज़्ज़े पर भड़भड़ा कर जा चुके हैं । जल्दी जवाब दो भैय्या, आख़िर हम कब तक लैट्रिन में छुपे बैठे रहेंगे ? उनका कोनो भरोसा नहीं, हिंयईं लैट्रिनवा में घुसि के फोटू अँईंच लें और भोर में छापि दें । तब तक हमार ई पोस्टिओ ससुर गंधा जायेगी । उनकी तो चौंचक हलचल  होय जावेगी, अउर लेकिन अपनी भी तो सोचो, भईय्या । भागि आवो, बोलि देयो, “ अब लौं नसानि – अब न नसइहौं “ ताड़ाताड़ी ( झटपट ) ! हाँय भइय्या ?
                                                      newsflash
                     अमर शिव टिप्पणी बैंक का गूगल चीफ़ द्वारा भव्य उद्घाटन ।
              श्री शिवकुमार भारत स्थित ब्लागर टिप्पणी ब्यूरो के चीफ मनोनीत किये गये
ऎसी सुर्खियाँ आपके कदम चूमेंगी । सच्ची में..लोग टिप्पणी जमा कर जाया करेंगे और हम लोग ऎश करेंगे, ठीक एमवे वालों की तरह, बड़ी सोच का बड़ा जादू तो सुनबै किये होंगे । हमलोग तो माछेर तेले माछ भाजा ( মাছের তেলে মাছ ভাজা ) हमें उसी मछली के तेल से उसी मछली की फ़्राई बनाना है । टिप्पणी जमा करो…कौन सी किस गुट के खाते व स्कीम में रखी जायेगी, यह निर्धारित करो । इतने गुटों के बीच निर्गुटों का भी एक गुट सामने आ रहा है, वह मुश्किल पैदा कर सकता है, कोई वांदा नहीं, इनको देख लिया जायेगा । कन्याभेदी, हृदयभेदी, सिसकारी, हुँकारी कैटेगरी वगैरह की विशेष माँग रहेगी । वाह-वाह , लगे रहिये, जमा गये जी जैसे लुहाती टिप्पणियों पर ब्याज़ दर इसके टर्नओवर के हिसाब से कम भी की जा सकती है । जरा इधर भी घूम जाइये की गुहार लगाने वालों से रिरियाहट सरचार्ज़ लेने पर भी विचार किया जा सकता है । गोहार लगा लगा कर टिप्पणी माँगने वाले भी हैं, उनको अपात्रता की चेतावनी देनी पर सकती है, खैर अपने घर में तो इसको आप मौखिक ही संभाल लेंगे, यह विश्वास है । एक मुफ़्त सुविधा ( शुरुआत में ) बाद में अर्थ का अनर्थ विशेषज्ञ तो आप हो ही, अब तक आये डिपाज़िट की झलक भर दूँगा ( बीमा नहीं है अभी ) , यह जुगाड़ू सुविधा अधिक दिन तक मुफ़्त देना ठीक नहीं, ब्लागर बंधुओं के मुँह जुगाड़ बुरी तरह लग गया है । अच्छा, अब तक आये टिप्पणियों को देख लीजिये , यह कुछ ऎसी है…
                                                       जित देखो तित समीर
©आपकी सोच को नमन है
©एक और संवेदनशील पोस्ट..
©संवेदना का झरना..
©बहुत मार्मिक प्रस्तुति !
©यही जिन्दगी है जी।
©एक विचारणीय आलेख।
©माल की पोस्ट है... साधुवाद :-)
©बहुत खूब सत्य को उकेरती रचना।
©कल्‍पनालोक का यथार्थ बहुत क्रूर है...
©लिखते रहिये, ©Bahut badhiya
©सुंदर प्रस्तुति....बधाई
©Ha ha ha, Nice and fine blog
©बड़ी ही गहरी बात मार दी जी....
©बहुत सुन्दर लिखा है
©just mindbloowingggggggg
©बहत सुन्दर.बहुत बधाई.
©यह लेख सोचने पर मजबूर कर देता है
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©विचारणीय लेख है ....यह तो
©खूबसूरत रचना...हमेशा की तरह.
©अच्छी लगी आपकी रचना
©रचना मस्त है
©बहुत अच्छी रचना
©रचना पसंद आई.
©हमेशा की तरह संवेदना जगाती रचना.
©अजी गजब ढा दिया रचना ने
©सही कह रहे हो
©बहुत कायदे से भाव उकेरे हैं-बेहतरीन
©पोस्ट मार्मिक बन पड़ी है
©अच्छा है, कभी इधर भी घूम जाइये
©बहुत सुन्दर हे इस कविता के भाव
©बात तो ठीक है, पर करें क्या ?
©बहुत अच्छा पोस्ट लिखा है आपने.
©आपकी अभिव्यक्ति बेहद सुंदर है
©बहुत बढिया और सुंदर आलेख !
©वास्तव में बहुत लाजवाब लेख  बधाई |
©दिल को अन्दर तक हिला डाला आपके लेख ने
©खुश कर दिया भाई
©हाहाहा मजा आ गया
मज़ा तो ले गये अल्ली रज़ा, अब सिर्फ़ हम और आप बचे हैं । टिप्पणियों की मारकेटिंग में अपना भविष्य देखिये, प्रभु । आज 3609 चिट्ठे तो धड़ाधड़ महाराज के यहाँ दर्ज़ हैं, मान ही लें कि मात्र 900 ही सक्रिय हैं, तो जुटे लगभग 450 पाठक, पेट भरने भ्रर को लोग 5 टिप्पणी से बहल जाते हैं..तो 450 X 5 = 2250 टिप्पणियों की माँग नित्यप्रति होगी । और…अपने बफ़र स्टाक में तो 500 भी नहीं है, जी । तो चिरकुटई..ऽऽईश्श..वही न, संगॆ दोषे ग्रामॊ  नष्टॊ  ! हाँ, मेरी वाली पंडिताइन अभी अभी एक भूलसुधार कर गयी हैं..पहली वाली लाइन में पंडिताइन की सौतन बोले तो मेरी कम्पू-बेबी..न कि तेरी वाली पंडिताइन ! कृपया आप बंधुगण भी ध्यान दें, गलती सुधार ली गयी है । तो शिवकुमार गुरु, सोचो मत…हिंदी ब्लागिंग का स्वर्णयुग आना ही चाहता है, एकदम से आसमाँ पर घिरी चली आ रही है । देयर इज़ अ बिग एन्ड प्रोसपेरस मार्केट इन टिप्पणीज़ , हरी-अप !
जरा सोचिये, क्या बात होगी… ख़ूब ग़ुज़रेगी, जब बैठेंगे तीन यार, हम तुम और (सोडा-) ब्लागर ! लोग आराम से तहमद का पिछवाड़ा खजुआते हुये, उबासी लेते अल्ल्सुबह आयेंगे, नो टेंशन आफ़ करी करी न करी, दन्न से ये उठाया, वो कापी-पेस्ट । देखा रचना जी पर तो अभिव्यक्ति वाली माकूल रहेगी..खड़बड़ खड़बड़ । नहीं मिल रही है..फोन घुमाया, अरे डाक्टर साहब, अभी तो बिज़ी होंगे, अच्छा बताइये वो अभिव्यक्ति वाली खाली है, क्या ? हाँ हाँ वही, रंजू जी को बहुत पसंद है । अँय, नहीं है..कुश ने अभी लौटायी नहीं, अच्छा रोज़ ब्याज में नई टिप्पणी भेज देता है, लेकिन भाई डाक्टर साहब जरा देखिये इसको ? आप देख नहीं रहें हैं । अरे यहाँ टिप्पणियों की अदला बदली चल रही है..और आप बेख़बर हैं । कल नहीं तो शायद परसों..कुशजी उड़न तश्तरी की ‘ हा हा..हाहाहूती ‘वाली वह चेंप रहे थे, और ई उड़नतश्तरिया न, भाई का बतायें सीनियर होगये हैं , अउर ई सब काम करते हैं । भाई रोकिये इसको आप लोग, GB की मीटिंग में बवाल कर दूँगा हम । आखिर कोनो ईहाँ वोट-बैंक बनाने का पिलेट्फारम तो नहीं है, नू ? नाहिं नाहिं हमारा ऊ सब मानी मतलब नहिं था , मिसकोट मत करिये हमको । हमारा ग्रुपवा जानते तो अईसे बोलबे नहिं करते आप ! अब आप बताइये साहब…क्या आप भी बोलेंगे या कि बोलतिये बंद हो गयी है ? चलिये होता ई सब, लेकिन पूरा पढ़ें हैं कि ऎसे ही आगे बढ़ें हैं ? हम भी चलता हूँ शीव-भाई, नमस्कार !
सूचना : यह आलेख सद्यःप्रकाशित ‘ अमर कुमार के पत्र शिवकुमार के नाम ® ’ से साभार ली गयी है । © हलचल प्रकाशन, प्रयाग- 2008
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05 July 2008

इसका शीर्षक क्या हो सकता है , ?

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हेरा-फेरी ठोंकि के एकु पोस्टिया तौ लिया बनाय, पाठक आपहू बाँचि कै शीर्षक दियो बताय । दो दिन से वाकई निट्ठल्ले से माहौल से दो-चार हो रहा हूँ, वज़ह—  अनवरत वर्षा ! बादल देख कर किसका मनमयूर न नाचता होगा, केवल हाइड्रोफोबिया का मरीज़ एक अपवाद है । लेकिन जब नाच नाच कर मनमयूर थक जाये, और भीगे पंख सुखाने को कोई ठौर न मिल न रहा हो, तो मनमयूर का सारा उल्लास हवा हो जाता है । दूसरे अपवाद फ़ुरसतिया गुरु दिख रहे हैं । बरसात पर बड़ी मस्त काव्य-पोस्ट ठोकी है । लेकिन हमारे जैसे दिहाड़ी पर मज़ूरी करने वाले से पूछो, महीने का पहला हफ़्ता…, पाँच – छः जन की सैलरी ( चलो, वेतन ही सही, आगे बढ़ें ? ) निकालनी है, ऎसे में मरीज़ों का आनाजाना ठप्प है, सो अलग ….

कल दोपहर को क्लिनिक से लौटते हुये ऊबा हुआ सा लौट रहा था, पेट्रोल की पोज़ीशन देखने की हिम्मत जुटाते जुटाते फिर टाल ही गया । आज छुट्टी है, कल रात से लगातार झिर्र-झिर्र लगी है । आज सुबह बरसात का मज़ा लेने के शगुन करने भर को दूर हाई-वे पर यादव के होटल तक जा उसकी प्रसिद्ध पकौड़ी खाने निकल गया । लौटने में पेट्रोल-मीटर की सूई पर निगाह गयी और यादवजी की पकौड़ी गले में आकर जैसे अटकने लगी ।

तेल अगर ऎसे ही हमारा तेल निकालता रहेगा.. तो कैसे चलेगा ?  शायद ऎसे ्तेरी दुनिया से दूर - अमर

ाखिर काम आ रही हार्स-पावर-अमर  रजिस्ट्रेसन करवाया है भाई - अमर  एक सवारी - अमर     

आख़िर फ़िज़िक्स ( भौतिकी ) में पढ़ी हुई  हार्स-पावर की महिमा दिखने लगी । घोड़े जी को लोग भुला बैठे, अब बुला रहे हैं । कुछ तो है.. जो कि ! वैज्ञानिक लोग बैलशक्ति, भैंसशक्ति या गदहाशक्ति को एक किनारे कर अश्व-शक्ति पर टिक गये । अब देखो, घोड़ा होता तो पेट्रोल की ज़रूरत ही कहाँ पड़ती ? अधिक से अधिक हर जगह पर घास-डिपो ही तो होते, घास की खपत इतनी बढ़ जाती कि हमारे लिये चरने को घास ही न बचती । घोड़े की सवारी की सवारी और लीद से बायोगैस बना कर रसोई गैस सिलिंडर के लिये लाइन न लगाना पड़ता । सो…मित्रों, अश्वम शरणम गच्छामि ॥

 ्पंछी बनूँ उड़ता फिरूँ - अमर निट्ठल्ला एक्सप्रेस - अमर डैशबोर्ड मेरी गाड़ी का - अमर

       चलो ऎसे ही उड़ो - अमर हवा में उड़ता जाये - अमर एक विकल्प यह भी - अमरकुमार  

 

                                         < इस तस्वीर > अरे दीदी, बाबू अम्मा ने मना किया था कि बेचारे कार वालों से पैसा मत माँगना-पहले ही परेशान हैं तुम भी न नोचों जाइये अंकल आपको छोड़ दिया  - अमर <पर क्लिक करें >

अब देखिये जरा, इस लड़की बेचारी को याद दिलाया जा रहा है कि गाड़ी वालों से पैसा क्यों माँग रही हो ? बेचारे कार वाले खुद ही मँगते हो रहे हैं ! तेल बेचने वालों की इतनी क़दर बढ़ गयी है, कि फ़ारसी पढ़ना भी अब कोई ज़रूरी न रह गया । कोई जन इ्नका विकल्प दोपहिया  को न बताने लगना ।

दोपहिया वालों को भी तो अब यह रास्ता अख़्तियार करना पड़ेगा…

                                                                mail-1 (2)

अब आप भी जाकर प्रैक्टिस करो, आगे काम आयेगा । और मुझे भी चलने दो…यह निट्ठल्ला चिंतन तो इस समय जैसे दिमाग उड़ाये दे रहा है ।  बाहर बारिश भी रुक गयी है, देखूँ जरा शहर में अमन-चैन है तो ? यदि इंन्दौर में नहीं रहते तो..आप भी अपने शहर का हाल लिख भेजना ।

 चलो इस पर स्यापा करने को ज़िन्दगी पड़ी है, अभी तो एक शीर्षक सुझाओ

 

 

 

 

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02 July 2008

आओ , आज जरा डाक्टरों की खबर ली जाये !

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निबन्ध

                                                                                    तुम आगे हम पीछे हम आगे तुम पीछे -अमर 1.7.8

शीर्षक – डाक्टर दिवस

प्रस्तावना :- हमारा भारत एक महान देश है । भारत एक निराश कृषकप्रधान देश भी है । भारतवर्ष को एक दिवस-प्रधान देश भी कहा जा सकता है । हमारे देश में समारोहों की बहुतायत है । भारतवर्ष में नित नये नये दिवस और समारोह मनते देखे जा सकते हैं । उदाहरण के लिये:- स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, बाल दिवस, शिक्षक दिवस, हिंदी दिवस, सैनिक दिवस, यह दिवस-वह दिवस  इत्यादि । इसी प्रकार भारतवर्ष में हर वर्ष एक जुलाई को डाक्टर-दिवस भी मनाया जाता है । यह दिन डाक्टरों के आदर्शों और नैतिकता के जागरूकता दिवस के रूप में भी जाना जाता है

विषय-वस्तु :- हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी एक जुलाई को पूरे भारत में डाक्टर-दिवस जिसको डाक्टर्स-डे भी कहते हैं, मनाया जा रहा है । डाक्टर हमारे समाज के एक आवश्यक अंग हैं । इनके बिना किसी सभ्यता की कल्पना नहीं की जा सकती । इसीलिये एक जुलाई को डाक्टर-दिवस  के रूप में मनाते हैं । एक जुलाई 1882 को हमारे देश के बिहार प्रान्त में स्थित पटना शहर मॆं डाक्टर बिधानचंन्द्र राय का जन्म हुआ था । मध्यमवर्ग के परिवार में जन्मे बिधानचन्द्र ने अपने परिश्रम एवं तीक्ष्णबुद्धि से  मेडिकल के द्वितीय वर्ष से ही छात्रवृत्ति प्राप्त कर अपनी पढ़ाई पूरी करने में सफल रहे ।  डा० राय 1925 में  राष्ट्रपिता गाँधी के सम्पर्क में आये, एवं राजनीति में भी सक्रिय हुये । वह एक सफ़ल डाक्टर, सफल प्राध्यापक, कलकत्ता के लोकप्रिय मेयर, सफल सांसद, जनता के चहेते मुख्यमंत्री  सिद्ध होने के साथ ही अन्त तक एक सफल शल्यचिकित्सक रहे ।

23 जनवरी 1948 को वह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री चुने गये । भुखमरी, साम्प्रदायिक दंगों, नये ज़िलों के गठन, आबादी की अदला बदली से संकटग्रस्त बंगाल का दायित्व उन्होंने कुशलतापूर्वक निभाया । वह इन्डियन मेडिकल काउंसिल ( IMA ) के संस्थापक सदस्य और  प्रथम राष्ट्रीय-अध्यक्ष भी रहे ।  वह बहुआयामी कुशाग्रता की एक अनोखी मिसाल हैं । भारत के डाक्टर लोग उनको अपना आदर्श एवं पथप्रदर्शक मानते हैं ।

सारांश :- यह हमारे समाज में पाये जाने वाले डाक्टरों की सेवाओं को सम्मान देने का अवसर है । इस दिन हम लोग इन डाक्टरों  के सेवाओं की सराहना में जश्न मनाते हैं । डाक्टर लोग भी समाज से सम्मानित न किये जाने की परवाह किये बिना, आपस में ही लड्डू-पेड़ा वगैरह मिल बाँट कर खाते हैं । कहीं कहीं पर तो भाषण और नाच-गाना भी होता है । एक दूसरे के गले मिलने की रस्म भी पूरी की जाती है । इस दिन गरीबों की सेवा और परस्पर एकता की कसमें खाने का रिवाज़ भी आजकल चल पड़ा है । कसम एक सुपाच्य भारतीय व्यंजन है, और हर तबके में बड़े चाव से उत्साह के साथ खाया जाता है । डाक्टर लोग भी अपनी डाक्टरी की शुरुआत, कसम खाकर ही करते हैं, जैसे सांसद या मंत्री वगैरह ।

उपसंहार :- अधिकांश दिवसों की परंपरा में डाक्टर्स-डे भी रखा जा सकता है । महान भारत के महान युगपुरुष पन्डित जवाहिरलाल नेहरू ने, नवभारत के निर्माण का इतिहास रचने के लिये कुछ दिवसों की परिकल्पना की । इसी क्रम में उनके साथ साथ कुछ अन्य व्यक्तियों के जन्मदिन को दिवसों के रूप में मनाना घोषित किया गया । इस प्रकार यह शिक्षक दिवस, डाक्टर-दिवस इत्यादि अपने आदर्शों को दोहराने, स्मरण करने से अधिक जन्म-समारोहों के रूप में मनाया जाता है । फलस्वरूप यह सभी दिवस इत्यादि जनता के हृदय से अधिक सामान्य ज्ञान की पुस्तकों में अपना स्थान रखते हैं । डाक्टर बी०सी० राय का निधन भी इसी तारीख़ को यानि एक जुलाई 1962 में हुआ था । अतः डाक्टर बी०सी० राय जयंती डाक्टर्स-डे के रूप में एक जुलाई को मनाये जाने का प्राविधान है ।  आओ, हम सब मिल कर उनके आदर्शों को दोहरायें.. और खूब उत्सव मनायें ।

----x----x----x----x--- श्री सरस्वत्याय नमः ---x---x---x---x---

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यह अपना हिन्दी ब्लागजगत, जहाँ थोड़ा बहुत आपसी विवाद चलता ही है, बुद्धिजीवियों का वैचारिक मतभेद !

शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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