ऐसे क्या कारण हैं कि हिन्दी कि फॅमिली बेकग्राउंड होते हुआ भी हिन्दी विषय मे कोई डिग्री नहीं हैं बहुतो से ब्लॉगर के पास ?? क्यूँ ??
क्षमा चाहूँगा, रचना…
मेरा जैसे आपसे मतभेद योग चल रहा है ।
आपका यह प्रश्न ब्लागर के सँदर्भ में तो क्या, साहित्य के सँदर्भ में भी बेमानी है ।
पृष्ठभूमि होने के मायने यह नहीं है कि, उस क्षेत्र या भाषा विशेष पर एकाधिकार ही माना जाये ।
यदि परिवारवाद को लेकर चलें तो भी बेबुनियाद है । परिवार का जिक्र आया ही है, तो यह बता दूँ कि
स्व० जयशँकर प्रसाद अपने पुश्तैनी धँधे, इत्र, तम्बाकू और सुँघनी के व्यापार से ही जीवनपर्यँत ही जुड़े रहे,
परँतु जो उन्होंनें रच दिया, वह पी.एच.डी. करने वाले पर भी भारी पड़ता है । मैथिलीशरण गुप्त, श्रीलाल शुक्ल जैसे बीसियों उदाहरण हैं । विमल मित्र एक मामूली स्टेशन मास्टर थे, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी भी रेलवेकर्मी रहे थे । अँग्रेज़ी तक में उदाहरण लें तो सामरसेट मॉम पेशॆ से डाक्टर थे । जीविकोपार्जन का माध्यम कुछ भी हो, साहित्यिक अभिरुचि इसमें कहाँ आड़े आती है, आपसे जरा तफ़्सील से समझना चाहूँगा । हम सब को ( कम से कम मुझे )आपसे इस विषय को सँदर्भित किये गये पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी । खेद है कि, हम हिन्दी को कुछ देना तो दूर, देने और देते रहने का दम भरते हुये अपनी मातृभाषा को इन्हीं ग़ैरज़रूरी मुद्दों पर जहाँ के तहाँ लटकाये हुये हैं । क्योंकि हमें अपने अलावा किसी अन्य का सुर्ख़ियों में उभरना ग़वारा नहीं है । किसी डिग्री विशेष का रचनाधर्मिता से क्या वास्ता निकलता है, यह रिश्ता जरा मुझे भी भी समझायें । हिन्दी को लेकर अँग्रेज़िन च्यूइँग-गम कब तक चबाया और थूका जाता रहेगा ? क्या ऎसे बहस से हिन्दी माता का यह भ्रम बनाये रखा जाता है कि, उसके तीनों राजकाजी, विद्वान और जनमानस बेटे उसकी सेवा में लगे हुये हैं । सो, इन सबका निराकरण करें, आपका कृपाकाँक्षी हूँ ।