पता नहीं मुझे कभी कभी क्या हो जाता है, किसी घटना को लेकर लगता है कि अरे, यह तो मेरे साथ घटित हुआ था, या हो रहा है । अनजानी जगह पर अनायास यह भावना जोर मारने लगती है कि यहाँ तो मैं आ चुका हूँ । जानता हूँ कि यह कोई रोजमर्रा की सामान्य घटना नहीं मानी जायेगी । किन्तु यह पागलपन भी नहीं है । यह चिकित्साजगत की एक सर्वमान्य प्रतिभासिक तथ्यपरता ( Phenomenon ) है । कारण ? अभी तक हम अनुसंधान ही कर रहे हैं कि ये Déjà-Vu क्यों होता है ?
कभी कभी लगता है कि पंडिताइन का चेहरा बहुत दूर होते होते अजनबी सा हो गया है, और मैं इस अजनबी चेहरे से कब और कैसे मिला था, इसमें गुम हो जाता हूँ । दिमाग पर जोर देते देते सहसा एक झटके से मैं वर्तमान में लौट आता हूँ , सबकुछ झटक कर सहज होने के प्रयास में गुनगुनाने लगता हूँ, ' अज़नबी ..ऽ ऽ तुम जाने पहचाने से लगते होऽ ..ऽ ...ऽऽ
रुकिये भाई, खीझिये मत ! आप इस प्रोब्लेम में कुछ कर नहीं सकते, तो यह आपकी प्रोब्लेम है , किंतु ब्लागस्पाट पर आने को कम से कम इस डाक्टर ने तो आपको नहीं ही कहा था । अब आयें हैं, तो थोड़ा शेयर भी करना ही होगा , ब्लागर स्प्रिट का निषेध चल भी रहा है तो क्या ? मान लीजिये आपको सौजन्यवश यदि टिप्पणी ही करनी पड़ जाये तो, क्या लिखेंगे ?
इधर कुछ दिनों से सुबह सुबह अख़बारों पर सरसरी निगाह मारने मात्र से मुझको लगने लगता है कि मेरा संबन्ध किसी न किसी कबीले से अवश्य है ! ऎसी अनुभूति Déjà-Vu के सैद्धान्तिक अवधारणा के एकदम उलट है, किंतु यह मेरा सच है ।
अव्वल तो मैं कभी पूरा समाचार नहीं पढ़ता, यहाँ कोई शाश्वत साहित्य तो होता नहीं कि इसपर समय दिया जाये, और दूसरे अल्लसुबह निगेटिव किसिम की सुर्खियों से दिन की शुरुआत करना मुझे रास नहीं आता । स्साला, क्या हो रहा है ... कहते हुये अख़बार को मोड़ बगल में सहेज कर रख देने के शुतुरमुर्ग़ी सोच से मेरा असहमत मौन आहत होता है । क्या करें, भला ?
इन दिनों मैं अपने रूट्स यानि कि जड़ें कबाइली हलकों में तलाश रहा हूँ । अपने ख़ानदान का सज़रा भी टटोल डाला, किंतु ड्राफ्टपेपर पर यह मेरे बाबा स्व० नागेश्वर प्रसाद सिन्हा को लाँघता हुआ परबाबा बाबू मनोरथ प्रसाद से उचक कर राय बिलट लाल पर थम जाता है । बड़ी मुश्किल है, ब्लागर पर भी आना जाना छूट गया । खैर, लौट कर इसी जहाज़ पर आना पड़ा, अब आ ही गया हूँ ,तो मेरी सहायता करें । अब श्री बिलट लाल जी को पछाड़ कर मैं पश्चगमन ( Retrograde Journey ) करता हुआ, सुपरफ़ास्ट प्रागैतिहासिक आदिमानव टाइम कैप्सूल से नानस्टाप द्वापर-त्रेता-सतयुग छोड़ वहाँ तक पहुँच भी जाऊँ , तो यह कौन बतायेगा कि, " वह देखो, वह है तुम्हारा छिन्नाछिन्नी लाऊखाऊ पेंचक्कचेंपक हूओअहोऊ कबीला ! " सो यह मेरा भ्रम ही था
भ्रम तोड़ा भी किसने ? कबीरदास नाम के किसी अनपढ़ जुलाहे ने ! पीछे से आवाज़ दी, ' मोको कहाँ ढूँढ़ो रे बंदे... ' तेरा कबीला तो यहीं है, देख तो जरा । 'पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ ' तो डरता क्यूँ है ? अच्छा पोथी मत पढ़, चल अख़बार तो पढ़ेगा ? चाय की चुस्की का मज़ा दुगना कर, अख़बार पढ़ ! परेशान मत हुआ कर, यदा कदा लाली भी देख लिया कर । कबीला बाद में देखना ।
हा विधाता, यह कैसी बारिश करवा रहे हो कि आज अख़बरवै नहीं आया । तो क्या ? जाके आज कुछ रिवीज़न ही कर ले । धन्य धन्य कबीरा ज़ुलहे , मेरा कबीला तो यहीं बिखरा पड़ा है !
अरे वाह, बरेली ( मेरी वाली नहीं ) में प्रेम करने वाली लड़की घर वालों द्वारा मार डाली गयी और लौंडे को दौड़ा दौड़ा कर पीटा फिर जला डाला गया । बाँदा में तीन ग्रामीणों ने चौथे की रोटी लूट ली । मार लेयो, रोटी तो गयी पेट में । भूख से मरने से अच्छा कि कुछ झापड़ वापड़ खा लिया जाये । हरदोई में लड़की को निर्वस्त्र करके पेड़ से लटका दिया, क्योंकि वह किसी दूसरे से ब्याह रचाना चाहती थी । महोबा में लाठी डंडों से हमला कर गाँव वालों ने पानी लूट लिया । हुँह, अरे पानी है ही लूटने की चीज ! प्यास से कौन मरना चाहता है ? बंगलुरू में खाद माँग रहे कुछ बेवकूफ़ों में एक मारा गया । कोट्टायम में लड़के के लिये ऊलूऊलूलजुलूल ओझा ने दो वर्षीय कन्या की बलि दे दी । देवि खुस्स भयीं, अब देवा आवेगा । देवा अगर होनहार निकला तो बड़े होकर फिर किसी देवी को जलावेगा । गाज़ियाबाद में इस साल अबतक 121 बच्चे गायब किये जा चुके हैं । बलात्कार ? यह तो यहाँ मनोरंजन है । बलात्कारी और न्यायाधिकारी (?) दोनों के मौज की चीज ! अपनी या किसी और की सही माँ, बहन, बहू, बेटी, भाँजी, भतीजी, बच्ची, बूढ़ी... बस औरतिया हो , बदसूरत हो तो भी ठीक, खूबसूरत हो तो क्या कहने.. उसे उठा लो.. इच्छा तृप्त करो और किनारे फेंक दो, ज़िंदा या मुर्दा ! औरतिया तो मरद की ज़रूरत है..तो फिर बवाल काहे का ?
अब तो कोई शक औ ' शुब़हा न रहा कि मेरा वाला कबीला भी यहीं कहीं होगा । क्या ज़रूरत है पुरखों को कूद फाँद कर पीछे भागने की ? सब तो यहीं है । मेरा मन मृग फिर क्यों कबीलाई कस्तूरी की खोज में भाग रहा है ? यहीं तो है कलयुगी कस्तूरी !
धन्य धन्य कबिरा ज़ुलहे, सो मेरा कबीला तो यहीं बिखरा पड़ा है। मैं मूरख déjà-Vu का राग अलाप रहा हूँ, बलिहारी ज़ुलहे आपनो सत्य दियो बताय । फिर भी एक मुश्किल है कि मेरा वाला कौन सा है ? अभी तो, मैं किनारे खड़ा खड़ा लख रहा हूँ कि अपने लोगों का मौन रहने वाला शांतिप्रिय कबीला आख़िर किस खोह में मिल सकता है ? मेरे कबीले की भी तो कोई पहचान अवश्य होगी । बस वही पहचान मुझे चाहिये । प्लीज़, भले मानुष कृपया सहायता करें, मुझे मेरे अपने कबीले से मिला दें ! या कहीं.. .. आप भी तो चक्कर नहीं खा रहे कि ' मैं किस कबीले से हूँ ? '
12 टिप्पणी:
मैं तो खुद ही आपकी वाली नांव में बैठा अपना कबीला तलाश रहा हूँ जी..अब क्या मदद करुँ. साथ साथ दो बूंद आंसू ही बहा सकता हूँ. :)
आयेंगे। आपके कबीले वाले टिप्पणी करने आयेंगे! हैव पेशेंस।
हम आ गए बड़े भाई, पहले का पता नहीं, आज कल आप ही के कबीले में हैं।
आपने तो आँखे खोल दी.. हम चले अपना कबीला ढूँढने
अति उत्तम सर. बहुत ही अच्छा लगा आपको पढ़कर.बहुत उम्दा. लिखते रहिये.
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उल्टा तीर
आपकी रोचक टिप्पणियों की डोर पकड़ हम यहां आ तो गये लेकिन कबीले की पड़ताल में खुद चकरियाने लगे। वैसे आप शोध जारी रखिए। हम फिर आयेंगे।
.........तो यहाँ मनोरंजन है ।
SACHAI HAI IS BAAT MEN
'मैं किस कबीले से हूँ?', यह तो बहुत आसन है जानना. या तो आप शासक कबीले के हैं या शासित कबीले के. या तो आप गरीब कबीले के हैं या अमीर कबीले के. या तो आप अल्पसंख्यक कबीले के हैं या बहुसंख्यक कबीले के. या तो आप ऊंची जाति के कबीलों के हैं या नीची जाति के कबीलों के. अगर इन में से नहीं हैं तब आप हैं हिन्दुस्तानी कबीले के.
ऐक सचिन पायलट नाम के कबीलेबाज हैं, सुना उस दिन किसानों के बीच बैनगाडी से गऐ थे, पत्रकारों ने जब पूछा कि बैलगाडी से आकर कहीं महंगाई का विरोध तो नहीं कर रहे , तो जवाब दिया- नहीं भाई नहीं, वो तो ईसलिऐ बैलगाडी से आऐ कि,पूरखे किसान थे-वो यही तक रूक गऐ वरना कबीले तक पहूंचते तो शायद पत्ते वगैरह लपेटकर या नंगे ही आ जाते, तब शायद पत्रकार पूछते - कबीले मे चुनाव नजदीक लगता है :D
Bada achha laga aapke blogpe aake...!Pehli baar padha!Ab to baar,baar padhne aa jaungi!!
कबीला पता नहीं कौन है लेकिन बड़ा ऊंचा कबीला है आपका। आपकी पोस्ट की तरह!
Bahut behtareen Dr. Saheb kya kahne ?
Hai aapke kabeele main, kabl se hee lal !
Aisee ho shaamilat to, kyon na ho bavaal ?
(Kabl = pahile)
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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