यही तो मैं भी कहूँ, कि दिमाग से कुछ फिसल रहा है ! क्या, क्यों और कैसे ? मुझे आज दोपहर तक स्वयं ही मालूम न था । आज क्लिनिक जाते समय, अचानक वोह मारा इस्टाइल में बोधित्सव ( ब्लागर वाले नहीं ) ज्ञान कौंधा कि अनुशासन ही देश को महान बनाता है । सत्य वचन, हम तो भुलाय बैठे थे कि इस मुलुक में अनुशासन नामक चिड़िया भी हुआ करती है । भला हो इस मानसून का कि हमें इसका याद दिलाय दिया ! अनुशासन ही देश को महान बनाता है, हुँह यह कौन सी नयी बात है ? कुशल बहुतेरे महाशय का तो यह तो पुराना पर-उपदेश है !
यह तो भूल ही गया था कि यह मेरे भारत महान का महान राष्ट्रीय नारा है । मानसून की बारिश ने आज याद दिलाया । नहीं भाई , आप सबने तो गलत लाइन पर सोचने का जैसे ठेका ले रखा है ? मानसून का जिक्र आते ही आप नरकपालिका क्यों पहुँच जाते हैं ? यहाँ मैं म्यूनिसपालिटी की बखिया क्यों उधेरूँगा ? वैसे भी म्यूनिसपालिटी का अनुशासन से क्या लेना देना ? घबराइये नहीं, आज एक छोटी सी अनुशासित पोस्ट लिखूँगा, पूरी पढ़ते जाइयेगा । हाँ, यदि अनुशासन से एलर्ज़ी हो तो अलग बात है । वैसे भी हम हिंदुस्तानियों के पास अनुशासन पर लिखने-कहने को कुछ बचा ही कहाँ है ? खैर, नरकपालिका वालों के लाख मनौती-मिन्नतों के बावज़ूद भी इसबार मानसून झूम कर आ गया । उनकी तक़लीफ़, वो जानें, मेरी तो बला से ।
तो मित्रों, आज दोपहर बरसते हुये पानी में प्रस्थान-ए-क्लिनिक कर रहा था, कि एक जगह रोडसाइड होर्डिंग पर निगाह टिक गयी । उस पर से झरझर बहते पानी ने चिपके हुये कोचिंग इंस्टीट्यूटों को धो कर अंदर की कलई उजागर कर दी । होर्डिंग पर जमी हुयी इन्दिरा गाँधी बड़े सलीके से मुस्कुराते हुये थप्पड़ दिखाती, देश को होमवर्क दे रही थीं ' अनुशासन ही देश को महान बनाता है ।' कार में ब्रेक लगते लगते रह गयी, बाँयें से एक सुज़ुकी फर्रर्र से लहरा कर निकल गयी । पीछे की सीट पर एक लड़का, इस तेज़ रफ़्तार सुज़ुकी पर खड़ा दोनों हाथ आसमान की तरफ़ उठाये हो-हो करता हुआ जा रहा था । मैंनें दाँत पीसे, " कहाँ कहाँ देखें ? इस अनुशासन कुलक्षणी के चक्कर में तो आज एक्सीडेंट ही हो जाता । " वैसे तो मैं बहुत ही वीर हूँ, लेकिन ईश्वर के बाद सिर्फ़ पंडिताइन और एक्सीडेंट, इन्हीं दो से डरता हूँ । हँसो मत यार, यदि कोई डाक्टर अपने क्लिनिक में "एक्सीडेंट होगया, रब्बा रब्बा.." गाते कराहते, लँगड़ाते हुये दाखिल हो, तो आपको कैसा लगेगा, एक घायल सुपरमैन ? कत्तई नहीं न ! यह अनुशासन और नागरिक का चक्कर तो चोर सिपाही का खेल है, छोड़िये इसे यहीं ! उनकी तक़लीफ़, वो जानें, मेरी तो बला से ।
' आठवीं फेल गारंटीड हाईस्कूल पास करें ' इन्दिराजी के नाक से लिसड़ता हुआ बरसते पानी में चूने चूने को था । क्या यार, क्या मुलुक है ? लगता है, अफ़सरों को होर्डिंग सफ़ाई का ठेका देने की नहीं सूझी । टेंडर होता, मंज़ूरी दी जाती, सफाई हो गयी की रिपोर्ट लगा कर पेमेंट हो जाता, फिर से नया टेंडर होता, फिर मंज़ूरी .... ! लहरें गिनने का अंतहीन सिलसिला सदैव जारी रहता, चलो देश न सही, देश का अफ़सर और ठेकेदार तो समृद्ध हो रहा होता|फिर एक से अनेक समृद्धों की जमात बढ़ती जाती । आख़िर नदियों से ही तो समुद्र बनता है । यह लोग आगे बढ़ना ही नहीं चाहते, पता नहीं क्यॊं ? यह वही जानें, मेरी तो बला से !
अंतर से मेरा चिल्लाता है, " तब से क्या मेरी बला से.. मेरी बला से अलापे जा रहे हो ? इसी मेरी बला से वाली सोच ने तो तुमको इतनी बलाओं से ढक दिया है । चढ़ा दे कहीं ब्लाग पर, मलाल तो नहीं रहेगा कि ' जनम..उदर-पोषण-उपक्रम...मैथुन..प्रजनन.. .और मृत्यु ' के अलावा भी तुम दुनिया में कहीं नहीं याद किये जाते । " मैंने हड़क दिया, ' चुप्पबे, इस समय एक शरीफ़ डाक्टर के रोल में हूँ । भले आदमी लोग सिर्फ़ अपने काम से काम रखा करते हैं, बस्स ! थोड़ा बहुत यानि ख़ाना हज़म होने भर को देश दुनिया पर चिन्ता कर लेते हैं, यही कम है क्या ? अब बाकी दुनिया क्या करती है, क्या कर रही है ? यह वो जानें, मेरी तो बला से !
" अच्छा, यह टापिकवा तो लपक ले, चल आज यही टीप दे धाँय से ! " अंतर ने क्षीण प्रतिवाद करके दूसरी तरफ़ को करवट ले ली । ठीक तो है, ब्लागर तो खोजत फिरत टपोरी टापिक टिप्पणी ! यहाँ दो मौज़ूद हैं । देखा जायेगा । क्या देखा जायेगा ? देश तो तुम्हारा पहले भी महान था, अब तो बयान भी जारी हो गया कि हम महान हो गये हैं । रोज ही नया बयान जारी होता है, हो रहा है कि 'आगे और.. और... और महान होते जाने की संभावना है । ' फिर अनुशासन पर क्या लिखोगे ? अनुशासन तो देश को महान बना चुका, अब लकीर पीटने से फायदा ? अनुशासन की ढपली बजाओगे, तो देश के महान होने से गद्दारी करोगे । और अगर अनुशासनहीनता का दामन पकड़ते हो तो अपने यहाँ की राजनीति और बेचारे बेरोज़गार राजनीतिज्ञ क्या घास खोदेंगे ? अंदर के शरीफ़ आदमी ने चेताया, ' छोड़ो भी, क्या खोदते हैं, क्या खोदेंगे ? ' यह तो वही जानें, मेरी तो बला से !
" सर, आप आगे चले जा रहे हैं," पिच्छू से मेरा अटेंडेंट बोला, " क्लिनिक तो पीछे रह गयी ।" मैंने झट से अनुशासन पर ब्रेक लगाया, और बैक में ले लिया । लौट लो यार, अपनी मंज़िल तो यहीं तक है ! अच्छा, तो चलें ? ओक्के..बॅ।य !
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कैसे कैसों को दिया है, मेरी ब्लगिया हिट करा दे ..
5 टिप्पणी:
बहुत शानदार!
अनुशासन ने सत्तर के दशक में ही देश को महान बना दिया था. अब तो महानता का हिमालय खड़ा कर चुके हैं.
सर जी की जे हो....क्लीनिक ठीक ठाक पहुँच जाया करे ...हमने जब से मेरठ में कदम रखा है अनुशासन के बारे में सोचना छोड़ दिया है...बस इतना करते है की अपने गुस्से ओर मन को अनुशासन में रखते है...भले ही कितने मोटरसाइकिल वाले हमारी गाड़ी के आगे पीछे स्क्रेच लगाये या जहाँ तहां ब्रेक मारे
ब्लॉगिंग के साईड अफेक्टस...यही तो हैं..क्लिनिक ही पीछे छूट गई. :)
अभी भी मौका है अनुशासन में आ जाईये.
--बहुत बेहतरीन..मजा आ गया.
बहुत बढ़िया ! "अनु" और "शासन" में सम्बन्ध कभी अच्छे नही रहे .दोनों का लगाव महानता को प्राप्त करता है.>>>
प्रस्थान-ए-क्लिनिक ....kya baat hai. hindi,urdu,english..kisi ko naraz nahi kiya aapne.
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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