जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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21 July 2008

शिव को कैसे मनाऊँ रे….शिव मानत नाहिं ऽ

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शिव को कैसे मनाऊँ रे शिव मानत नाहिं … शाल दुसाला शिव लेतो नाहीं है, बाघचर्म कहाँ पाऊँ रे शिव मानत नाहीं । मेवा मिठाई शिव भावत नाहीं है, भाँग धतूरा कहाँ पाऊँ रे शिव मानत नाहीं ….आह ! बचपन में सुनी हुई मिथिला-वैशाली के ’नचारी ’ लोकगीत की यह पंक्तियाँ आज भी कान में गूँजा करती हैं । भोले शिव..  औघड़ शिव…  दानी शिव… आशुतोष शिव… क्रोधी  शिव…  महानुरागी शिव… नेपथ्य से श्रीराम की लीलाओं को संचालित करते शिव

हलाहल पान करते शिव.. प्रियतमा विरह से दग्ध तांडव करते शिव.. .. आह ! अनोखे हैं हमारे शिव – आज है श्रावण मास का प्रथम सोमवार..  पंडिताइन का व्रत..  मेरे जैसा औघढ़ पाकर कुपित होती है..  फिर भी क्यों छोड़े अपना शिव ? शिव पर इनका इतराना देखो तो आप भूल ही जाओगे..  जल चढ़ाने को मंदिर को लपकते श्रद्धालु , उत्साह उछाह.. आस्था विश्वास.. वर और वरदान के प्रतीक भोले शिव…  देते पहले हैं, सोचते बाद में शिव !

                                       हमारे शिव भोले शिव -अमर एवं रूबी शिवार्पित 21 जुलाई 2008

         हर हर महादेव शिव शंभु त्रिपुरारीॐ नमः शिवाय

अब ऎसे औघड़दानी को हम क्या चढ़ा सकते हैं, सभी में तो..  शिव मानत नाहीं ! आज एक पोस्ट ही चढ़ा देते हैं, किंवा चिहुँक कर इसी से मान जायें

                                            श्रीरुद्राष्टकम

                          ani_leaf         ॐ        ani_leaf

नमामी शमीशान् निर्वार्णरूप्ं । विभुं व्यापक्ं ब्रह्म् वेद स्वरूप्ं ।

निज्ं निर्गुण्ं निर्विकल्प्ं निरीह्ं । चिदाकाशमाकाशवास् भजेऽह्ं ॥१॥

निराकारमोङ्कारमूल्ं तुरीय्ं । गिराज्ञान् गोतीतमीश्ं गिरीश ।

कराल्ं महाकाल् काल्ं कृपाल्ं । गुणागार स्ंसारपार्ं नतोऽह्ं ॥२॥

तुषाराद्रि स्ंकाशगौर्ं गभीर्ं । मनोभूत् कोटि प्रभाश्री शरीर्ं ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारूग्ंगा । लसद्भाल् बालेन्दु कण्ठे भुज्ंगा ॥३॥

चलत्कुण्डल्ं भ्रुसुनेत्र्ं विशाल्ं । प्रसन्नानन्ं नीलकण्ठं दयाल्ं ।

मृगाधीश् चर्माम्बर्ं मुण्डमाल्ं । प्रिय्ं श्ंकर्ं सर्वनाथ्ं भजामि ॥४॥

प्रचण्ड्ं प्रकृष्ट्ं प्रगल्भ्ं परेश्ं । अखण्ड्ं अज्ं भानुकोटि प्रकाशम् ।

त्रय्ःशूलनिर्मूलन्ं शुलपाणिं । भजेऽह्ं भवानीपतिं भावगम्य्ं ॥५॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनान्ंद् दाता त्रिपुरारि ।

चिदान्ंद - सदोह मोहापहारी।प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथहारी ॥६॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्द । भजतीह लोके परे वा नराणां ।

न तावत्सुख्ं शान्ति सन्ताप नाश्ं । प्रसीद् प्रभो सर्व भूताधिवास्ं ॥७॥

न जानामि योग जप्ं नैव पूजां। नतोऽह्ं सदा सर्वदा श्ंभु तुभ्यं ।

जरा जन्म दुःखौघतातप्य मान्ं।प्रभो पाहि आपन्नमामीश श्ंभो।रुद्राष्टकमिद्ं प्रोक्त्ं विप्रेण् हरतोषये।ये पठन्ति तेषां शम्भुःप्रसीदति ॥८॥

                                                        इति श्री गोस्वामी तुलसीदास कृत्ं श्री रुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

सो, मित्रों मेरे पास जो श्रद्धा-सुमन हैं, वह इस पोस्ट के रूप में त्रिपुरांतकारी भोलेनाथ को चढ़ा दिया । आप साक्षी हैं, कैलाशपति आपको सुख-शांति दें ।

7 टिप्पणी:

Anonymous का कहना है

हम समझे कि मेरे अनुज शिव कुमार मिश्र के साथ कुछ लफड़ा हो गया सो भागते चले आये कि सुलह सुलाट करा दें मेरे छोटू की...मगर यहाँ तो मसला दूसरा है...

जय हो बम बम भोले.

Anonymous का कहना है

डागदर बाबू
हम समझें आप हमारे शिव बंधू कलकत्ता वाले की बात कर रहे हैं...ब्लॉग खोल के पढ़ा तो समझे की आप तो सचमुच वाले शिव की चर्चा में व्यस्त हैं...हम आप के द्वारा प्रस्तुत गोस्वामी जी का लिखा श्रीरुद्राष्टकम पढ़ें तो हैं लेकिन समझे कितना ये नहीं कह सकते...हो सकता है पढने मात्र से ही हमारा थोड़ा बहुत कल्याण हो जाए...
नीरज

Anonymous का कहना है

अरे डाक्टर बाबु ! मसखरी करने के लिए भोले बाबा ही मिले थे । धार्मिक भावनाओ का कुछ तो ख्याल रखा करे ।

Anonymous का कहना है

श्री गोस्वामी तुलसीदास कृत्ं श्री रुद्राष्टकं मुझे अत्यँत प्रिय है और स ~ स्वर पाठ करना अच्छा लगता है - आपके सँग हम भी भोलेनाथ को प्रणाम कर लेते हैँ -
आशा है, भाबी जी का व्रत अच्छा रहा -
-लावण्या

Anonymous का कहना है

जय हो भोले बाबा की .......अपना मेल id सरका दे जरा ..... anuragarya@yahoo.कॉम पर

Anonymous का कहना है

shlok ko chhodkar poora lekh padh gaye....bam bam bhole.

Anonymous का कहना है

वाह मज़ा आगया सुबह सुबह ! इतनी सुंदर पोस्ट, महा सुंदर पर लिखने के लिए, आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

आपकी टिप्पणी ?

जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

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यह अपना हिन्दी ब्लागजगत, जहाँ थोड़ा बहुत आपसी विवाद चलता ही है, बुद्धिजीवियों का वैचारिक मतभेद !

शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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