बड़ा बेहूदा शीर्षक है, न ? मुझे भी लग रहा है, पर समय के पैंतरेबाजी के आगे सभी नतमस्तक.. तो मैं भी नतमस्तक ! हालाँकि ऎसे समय लोकतंत्र के हज़्ज़ाम सबसे ज़्यादा नतमस्तक हैं !
जरा ध्यान से.. आचार संहिता जारी आहे .. गड़बड़ लिखोगे तो माफ़ीनामें पर दस्तख़त करने को हाथ भी न बचेंगे । यह कोई और नहीं.. बल्कि मेरी स्वतंत्र अभिव्यक्ति की पहरेदार पंडिताइन हैं ! थोड़ा सा दिनेश जी का लिहाज़ है, वरना गंज़ों से अधिक धर्म-निरपेक्ष, वर्ग निरपेक्ष सदियों से उपेक्षित मुझे तो कोई अन्य वर्ग न दिखता ! किसी मीडिया वाले ने ध्यान ही न दिया, इनपे !
हाँ तो बात “ तू मेरा चाँद.. मैं तेरी चाँदनी “ के श्री चँदा जी की हो रही थी ! अच्छा तो चलिये जरा आप ही बताइये, आपके शहर में कितने होंगे ? इस अनुपात से आपके जिले में इनकी संख्या कितनी होगी ? फिर तो पूरे प्रदेश में इनकी जनसंख्या का आकलन करना भी आपके लिये बहुत ही सुगम होगा । न होय तो ज्ञान दद्दा से पूछि लेयो । लो, अपना तो बन गया काम !
तो अब एक छोटी सी सहायता और,जरा यह जानकारी भी एकत्रित कर लें कि इनमें से अधिकांश का रूझान किधर है, कंघा पार्टी की तरफ़ या आईना पार्टी की तरफ़ ? यह भंग की तरंग नही है, यह मश्शकत तो हमारे मीडियाकर्मी कर तो रहे हैं । आपौ बुड्ढीजीवी कहात हो, अपने दालान बैठ के आपौ ई चुनाव सार्थक कर लेयो ।
मुला,उनके इस वर्गीकरण का खाका कुछ अपनी ही तरह का होता है । अगड़े, पिछड़े, सवर्ण, जनजाति, मुस्लिम, हिंदू , सिक्ख इत्यादि इत्यादि । इतने पर भी संतोष नहीं,तो फिर इनकी शाखायें और परिशाखाओं पर सिर खपाऊ रिपोर्ट उछाली जाती हैं । अगड़े मानी ब्राह्मण ( घर में खाने को नहीं है ) , क्षत्रिय कुलीन वर्ण , पिछड़े बोले तो .. कोनो मँहगी कार का नाम बताओ भाई, हाँ तो, उसी में घूमते यादव जी सहित कुर्मी ,पासी जैसे मलिन वर्ण । हमारी छोड़ो.. हम कायस्थ तो खैर त्रिशंकु जैसे टंगे हैं वर्ण निरपेक्ष ! काहे में हैं, आज तलक यहि पता नहिं.. कोनो कहत है, तुम तो आधे ऊई मा हो ! मतलब हम धरम से भी गये !
किंतु इस प्रकार के जाति एवं वर्णव्यस्था को लेकर चलने वाले जद्दोजहद की कोई मिसाल इस सदी में कहीं और भी है ? हमारे यहाँ तो है.. आओ देखो इनक्रेडिबल इन्डिया ! अब आप भी वक़्त की नज़ाकत पहचानो.. और जरा अपने पितरों के गोत्र और पुरखों के ठौर ठियाँ का पता लगा के रखो । अब अगले के अगले के अगले के पिछली बार यही होने वाला है । वँशावली तलाशी होगी.. फिर न कहना कि आगाह न किया था ! सरम काहे का.. हमरे मर्यादा देशोत्तम यूएसए का तो यही चलन है.. मेड इन यू.एस.ए. भाई साहब आपन झोला उठाइन और चल दिये हिन्दुस्तान दैट्स इन्डिया.. भटक रहे मालेगाँव तालेगाँव टिंडा भटिंडा .. जाने कहाँ कहाँ ! क्या कि अपना रूट्स तलाश रहे हैं !
हद्द खतम है, हमरे सुघढ़ मीडिया वाले इतने थोथी बुद्धि के कैसे निकले ? कैच इट गाय.. जस्ट बिफ़ोर एनिवन एल्स टेक्स द क्रेडिट । माफ़ करना, ऊ लोग भी अँग्रेज़िये में सोचते हैं, बोलते भी वोहि मा हैं ( धुत्त ! लालू झाँक रिया था ! ) क़ाफ़ी हाउस के बाहर आकर हिदी उचारना उनकी मज़बूरी है.. पैसा मिलेगा तो हिन्दी चनलों में ताक जाँक करने वालों की दया से !
यह इनकी लोमड़पँथी है, यदि यह आंकड़े न पैदा करें, तो हमारे स्वयंभू भारत भाग्यविधाता ऎसी नितांत अप्रासंगिक समीकरण कैसे बैठायेंगे ? लोगों के ' माइंडसेट ' में अपनी गणित कैसे आरोपित की जाये, यही इनकी मुख्य चिंता है । आख़िर वह कौन से लोकतांत्रिक सरोकार हैं, जो इनको इस मुद्दे में अपनी मथानी चलाने को बाध्य करती हैं ? उनके सरोकार किसी को लेकर नहीं हैं किंतु उनका संदेश स्पष्ट है, "अरे ओ भारतवासियों , बहुत नाइंसाफ़ी है रे, पोंगापंथी सेकुलर सरकार में !" इस मंथन से नवनीत कैसा निकलता रहा है, आप स्वयं साक्षी हैं !
जनतंत्र का चौथा स्तम्भ कितना लचर होता जा रहा है क्या किसी गवाह सबूत की वाकई ज़रूरत है ? क्या हम गँवारों को यह सब गणित पढ़ने समझने की जरूरत है ? कहां से, कैसे इस जातिगणित की शुरुआत हुई और इसे समीकरणों ,थ्योरम की हवा देकर मीडिया कहां तक ले जाकर इसका अंत करेगी ? इसके पटाक्षेप का कोई अंधा मुकाम तो होगा ही, जहां इनके अपने हित सधने पर ' इति सिद्धम ' के उदघोष की ध्वनि क्षीण होती जायेगी ।
आज यह क्या हो गया डाक्टर साहब को, कहां की लंतरानी कहां घुसेड़ रहे हैं ? इस आलेख को मीडिया पर हमला न समझा जाये, चलिये हमला ही समझिये.. पर जो मन में समाया था , वह निकाल दिया । इसके ज़ायज और नाज़ायज होने का फैसला आप करें न करें ।
सच है, क्योंकि यहां कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है, यह बानगी महज़ आपको कुरेदने की कवायद भर है। इस सिक्के का दूसरा पहलू है देश के आबादी के शिक्षा का प्रतिशत ! ज़ाहिर है शिक्षा और किरानी के नौकरी का आनुपातिक संबन्ध मैकाले के समय से ही शाश्वत चला आ रहा है ।
किंतु यहां तो मीडिया अपनी सुविधानुसार इस पहलू को फ़िल्म 'शोले' में डबलरोल का किरदार निभाने वाले सिक्के की तरह छुपाये रखना चाहती है, शायद वांछित क्लाईमेक्स की प्रतिक्षा में ।
अब शायद धुंधलका कुछ छंट रहा हो, यह उनका शग़ल है, जनमानस के सोच की दिशा बदलने का । बोले तो ? पब्लिक माइंडसेट पर फटका मारने का माफ़िक । ई साला अपुन के माइंड का स्टीयरिंग रखेला हाथ में , बहुत बड़ा ग़ेम है, बाप ! आप मुझसे सवाल करें, क्या वाकई ऎसा ही है .... तो तुम भी तो इसी को टापिक बना कर ठेले पड़े हो !
अधिकांश जन शायद भोजपुरी न पकड़ पायें, अवधी में कहते हैं, " गाये गाये तौ बियाहो हुई जात है ", आप न मानें पर यह सही है, अच्छा खासा समझदार आदमी भी " यह देश है अगड़े पिछड़े का.. " के लगातार बजते जाते बैंड पर सम्मोहित होकर पाँच-साला फंदे के सम्मुख शीश नवा देता है । अब भी संशय है तो किसी प्रोपेगंडा मशीन तक न जाकर अपने को ही ले लीजिये ..
नहीं लेते.. पर मैंने तो खुद सुना है कि लगातार 'कांटा लगा..हाय रे हाय...', 'बीड़ी जलईले ज़िगर से..' और 'झलक दिखला जा..आज्जा आज्जा आआज्जा' सुनते सुनते आप स्वयं भी विभोर हो कर गुनगुना रहे थे ,..' उंअंज्जाअंजाअंज्जाअंजाउंउंउंऊं ! '
स्टीयरिंग किसके हाथ.. हमारे या उनके ?
क्यों उस पल हमारी सारी लिखाई पढ़ाई संस्कार सरोकार मास कैज़ुअल लीव पर चली गयी ?
क्यों उस पल हमारी सारी लिखाई पढ़ाई संस्कार सरोकार मास कैज़ुअल लीव पर चली गयी ?
तो यह मीडिया के माइंडसेट स्टीयर करने के इस खेल का अंपायर बन प्रबुद्ध समाज भी लगातार ’ नो बाल या वाइड बाल ' दिये जा रहा है । सबकी निग़ाह घुड़सवार पर है..
जाकी होशियार.. घोड़ा कमजोर.. जाकी कमजोर तो घोड़ा मज़बूत ! घोड़े पर दाँव लग रहा है.. यह जीतेगा वह जीतेगा । लेकिन मीडिया वाले दादा,हमका ई तौ बताय देयो ई रेसवा काहे हुई रहा है, मकसद ? फिर तो देश के अस्सी फ़ीसदी निरक्षर भट्टाचार्यों की क्या बिसात ! बेचारे इसी में बह रहेंगे, कि 'कुछ तौ है.........झूठ थोड़े होई ? साँचै जनात है, तबहिन सबै जउन देखो तउन टी-वी मा एकै चीज देखावत हैं ' झूठ थोड़े होई ? मज़किया नाहिं हौ ! सरकार केर आय ई टीवी.. ऊप्पर अकास से आवत है ! " लो कर लो बात !
BREAKING NEWS : चुनाव परिणामों के बाद गँजों को कँघा देने का वादा कर जीतने वाले घुड़सवार ने अब इन्हें उस्तरा देने की पेशकश की ! कँघा आरक्षित !
उधर अपुन के निट्ठल्ले ने इसके लिये उस्तरे आयात किये जाने की आशंका जतायी !
12 टिप्पणी:
गंजेपन के दर्द का रचना में स्थान।
सारे गंजे मिल करें एक संघ निर्माण।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आपकी इस प्रविष्टि के लिये क्या कहूँ । मैं टिप्पणी नहीं दे पाता इन पर । बहुत वक्त लगता है मुझे इन विषयों पर कोई भावदशा निर्मित करने में, और रह गया विचार - तो पता नहीं क्यों मैं विचारशून्य हो जाता हूँ ।
हाँ, टिप्पणी के नाम पर यह कह सकता हूँ कि आपका यह भागने वाला घोड़ा (गधा) हर बा्धायें बखूबी पार कर रहा है । और गर अकेला है तो काहे की रेस !
पूरा मन से लिखे हैं और तोड़ दिए हैं की बोर्ड और मॉउस ! कुच्छौ तो नहीं छोडा इस लंतरानी महरानी में ! !
जय हो गुरुवर! आपकी लीला अपरम्पार .आपकी पोस्ट अपरम-पार .एक ठो खडयूँ यदि भिजवा देते तो ..रोज रोज के इस पाँव लांगू में आसानी हो जाती .
जय हो महाराज ! बेहूदा कहाँ बिलकुल सटीक शीर्षक है.
ठीक ही लिखा है, पहले कंघा आरक्षण फिर उस्तरा और फिर लकड़ी.
कर दी ना बेचारे कंघे की इन्सल्ट। कंघा सब से ज्यादा गंजे की जेब में सम्मान पाता है। हमें ही देख लो। हमेशा कंघा रखते हैं जेब में (सर खुजाने को, उंगलियाँ भी हैं, पर कंघे पर नाखून न आते हैं और न लगातार बढ़ते रहते हैं)
फिर दो चार बाल जो बच गए हैं उन्हें संभालना जरूरी है। इस बात को इकलौती संतान के माता पिता से अधिक कोई नहीं जान सकता।
हमारे ससुर जी की कंघी कभी छूट जाए तो सब से पहले मुझे तलाश करते है, जानते हैं वहाँ जरूर मिल जाएगी। मैं उन से पूछता हूँ कि आप कैसे भूल जाते हैं? आप के बाल तो मेरे बालों के दशांश भी नहीं हैं।
आप को बहुत साधुवाद! कम से कम कंघी के बहाने ही सही याद तो किया।
तू मेरा चाँद...मैं तेरी चाँदनी के इस अनूठे अंदाज़े-बयां पर हँसे जा रहा हूँ..
आपकी लेखनी को नमन डाक्टर साब
फिल्म के टाईटल ढकेलने को मन फरफरा रहा है - टाईटल होना चाहिये - कहानी कंघे की....आखरी कंघा.....कंघे भरी मांग......मैं कंघा तेरे बालों का.......कंघे की कसम.....कंघा बना सुहागन........अंधेरी रात में कंघा तेरे हाथ में :)
just fun......>
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : देख तेरे संसार की हालत, क्या हो गई भगवान,कितना बदल गया इन्सान के साथ आपकी पोस्ट की चर्चा .
जाकी होशियार.. घोड़ा कमजोर.. जाकी कमजोर तो घोड़ा मज़बूत !लफडा इच यही है
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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