…. यह ख़्याल आता है कि, ब्लागिंग में मुआ ब्लागर आख़िर करता क्या है ... क्या केवल यही तो नहीं, कि " रमैया तोर दुल्हिन लूटै बजार " ?
शायद ऎसा नहीं ही होगा.. काहे कि सदियन पाछै कबीरौ पलटि के ठोकिं गये रहें,
" हम तुम तुम हम और न कोई । तुमहि पुरुष हम ही तोर जोई ॥ "
ब्लागर के जोई का कोई सगा सम्बन्धी क्यों न हो ? सो, ब्लागस्पाट की मेहरारू और पाठकों की भौजाई बने बिना ब्लागिंग करना दिनों दिन जैसे दुष्कर होता जा रहा है.. ( छिमा करो, माता ! )
जौन मज़बूरी में भौजाई बने हो.. तौनै मा ननद जी की गारी भी सुनो । वर्ड-वेरीफ़िकेशन का नेग माफ़ करवा लेने से ही काम न चलेगा .. बस जरा, आती हुई टिप्पणियों पर निगाह रखो ।
क्या पता, कोई गरियाने की आड़ में कहीं सच ही न उगल रहा हो ? गरियाओ.. नेता को... अभिनेता को .. सराहो सतयुग को.. त्रेता को.. अर्थात, कुल ज़मा अर्क-ए-ब्लागिंग यह है,
कि " हे तात तुस्सीं सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयान्न .. चँगी चँगी मिठियाँ गल्लाँ कीत्ता कर ! " मेरी भाषा ही गड़बड़ है क्या, दिल ने धिक्कारा, " ई का लिख रहा है, बे ? " दिमाग ने ऊपरी मँज़िल से अलग दहाड़ लगायी, " जितना कहना था कह दिया, अब इससे आगे एक भी लैन नहिं लिखने का ! " ठीक है, श्री व्यवहारिकता जी.. इतने ही पर छोड़ देते हैं.. सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयान्न ! अर्थात हे पशु, पुच्छविहीना .. तुम सच ही बोलो , और प्रिय ही बोलो ! अब इससे आगे एक लफ़्ज़ भी निकालने की कौनो ज़रूरत नाहीं है !
तो, फिर यहीं छोड़ते हैं.. आगे की लाइनें आज रहने देता हूँ, कि
सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम
सत्य बोलो प्रिय बोलो । अप्रिय सत्य ( काने को काना ) मत बोलो ।
प्रियं च नानृतं ब्रूयादेव धर्म सनातनः ॥
पर, ऎसा ठकुरसुहाती प्रिय भी न बोलो, जिससे धर्म की हानि हो !
अधूरी जानकारी और अधूरे उद्धरण बड़ा सुख देते हैं ! नो हाय हाय.. एन्ड आफ कोर्स नो चिक चिक !
तब्भीऽऽ… ऊपर वाला डाँट रहा था, कि दूसरी लैन मत पकड़ना, अवश्य ही यह कोई स्पैम है !
लो, स्थूलकाया मधु्रवाणी आपकी भौज़ी यानि पंडिताइन प्रकट हो कर, बरजती हैं, “ तुम भीऽऽ.. ना, क्या सुबह सुबह इस मुई को लेकर बैठ गये ? “ मैं विहँस पड़ा, ’ कुछ नहीं.. भाई, जरा मैं भी दो लाइना मार दूँ, यहाँ तो नित नये अनुभव हो रहे हैं ! " फिर तो उधर से सीधा एक लिट्टाई हमला, “ तो .. तुम अनुभव की कँघी पर लपकते रहो.. जब तक यह हाथ आयेगी, तुम खुद ही गँज़े हो चुके होगे ? " मुझे तो आज तक सैन्डिल भी नसीब न हुई, और यह मुझे ज़ूते का भय दिखा रहीं हैं ! भला आपही बताइये.. शब्दबाणों से कभी कोई गँज़ा हुआ है, क्या ? मैं तो आलरेडी पहले से ही सेमीगँज़ा हूँ ! शायद इसीलिये, कभी कभी मेरे दिल में...
13 टिप्पणी:
कभी-कभी मेरे भी दिल मे खयाल आता है,
के ब्लागिंग और कमेण्ट्स बने है इक दूजे के लिये।
वाह लवली जी क्या लिखा है आपने.. बहुत ही उत्तम
कुश बाज आइये ऐसी हरकतों से ..वरना सब पत्रकार लोग मिलकर आपकी पिटाई कर देंगे.
कोई गरियाने की आड़ में कहीं सच ही न उगल रहा हो ? गरियाओ.. नेता को... अभिनेता को .. सराहो सतयुग को.. त्रेता को.. अर्थात, कुल ज़मा अर्क-ए-ब्लागिंग यह है,
बहुत जबरदस्त गुरुदेव आज तो ...वाकई आज तो मौसम को भी नही छोडा आपने.
रामराम
फोन पर बात करते वक्त जो कलम यूं ही कागज़ पर चलती है कुछ-कुछ ऐसा ही है आम ब्लॉगर का काम.
मेहरारू, भौजाई और ननद. का गजब रिश्ता निकाले हैं महाराज !
वाह ...मजेदार :) :)
काने को काना मत कहियो न जायेगो रूठ,
धीरे धीरे पूछियो कैसे गई है फूट.
झकास ठेले हो गुरुवर ...ऐसा लगता है अब आप भी जिल्दों वाली एक किताब छपवा ही ले ...आखिर अगली पीड़ी पे भी आपका कुछ फर्ज बनता है की नाही [img]http://www.smileyxtra.co.uk/images/smxtra.png[/img]
जिन्दगी तेरी जुल्फों की घनी छाव मे गुजरने पाती
तो शायद ब्लॉग्गिंग हो भी सकती थी
मगर ये हो ना सका और अब ये आलम हैं
तू नहीं तेरी टिप्पणी भी नहीं
गुजर रही हैं ब्लोगिंग कुछ इस तरह
जैसे इसे किसी अग्रीगाटर की जरुरत भी नहीं
पंडिताइन भाभी को प्रणाम पहुचाया जाये कायस्थ हूँ सो पंडिताइन भाभी बहुत हैं और भी
ब्लागिंग में मुआ ब्लॉगर क्या करेगा? उसके करने के लिए टिप्पणी है. वही कर रहा है.
अपुन ने तो एक घंटा की झक मारके लिस्ट में नाम देखा और फिर मत का दान कर दिया। जो होगा, देखा जाएगा।
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सावधान हो जाइये
कार्ल फ्रेडरिक गॉस
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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