देख भाया, मेरी गलती नहीं हैं । आजकल हाल है कि, ’ जाते थे जापान .. पहुँच गये चीन समझ लेना ’ तो पढ़ा ही होगा । अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल एक मिन्नी सी, सौम्य.. लजायी हुई पोस्ट देकर अपने जीवित होने की गवाही देनी पड़ी । बताइये भला.. मेरी एक चिरसँचित इच्छा पूरी हुई, दादा विनायक सेन रिहा हुये, और मैं ब्लागर होकर भी अपनी खुशी की चीख-पुकार खुल कर न मचा सका । बिजली की आवाज़ाही, अफ़सरों का विदाई और स्वागत समारोह एटसेट्रा करीने से एक पोस्ट भी न लिखने दे रहा है !कुश जी, अब तुम न कह देना, कि पहले ही कौन सा करीने से लिखा करते थे । मुझे यूँ छेड़ा ना करो, मैं ठहरा रिटायर्ड नम्बर !
भूमिका इस करके बन रही है कि, आज बड़ी जोर की ठेलास लगी है.. और बुढ़ाई हुई बिजली नयी माशूका की तरियों कब दगा दे जाये कि अपुन कोई रिक्स लेने का नहीं ! लिहाज़ा, आज अपनी एक पुरानी वाली को ही ठेल-ठाल कर सँतोष किये लेते हैं,का करें ?
अप्रैल 2008, एक नया राष्ट्रीय मुद्दा उठा रहा, कि युवराज राहुल विदेशी साबुन से नहाते हैं : और समय का फेर देखो कि पट्ठा खुदै धूल फ़ाँक के सबैका धूल चटाय दिहिस । हमरी हिरोईन तिलक तलवार तराज़ू के तिपहिये पर दिल्ली कूच करते करते रह गयीं !
पहले तो यह बतायें कि इस पोस्ट का उचित शीर्षक क्या होना चाहिये था , नंगे सच की माया या माया का नंगा सच ? जो भी हो, आपके दिये शीर्षक में एकठो नंगा अवश्य होना चाहिये, वरना आपको भी मज़ा नहीं आयेगा ! वैसे राजनीति पर कुछ कहने से मैं बचता हूँ । एक बार संविद वाले चौधरी के बहकावे में, मै ' अंग्रेज़ी हटाओ ' में कूद पड़ा था, अज़ब थ्रिल था, काले से साइनबोर्ड पोतने का ! लेकिन इस बात पर, मेरे बाबा ने अपने इस चहेते पोते को धुन दिया था, पूरे समय उनके मुँह से इतना ही निकलता था, "भले खानदान के लड़के का बेट्चो ( किसी विशेष संबोधन का संक्षिप्त उच्चारण, जो तब मुझे मालूम भी न था ) पालिटिक्स से क्या मतलब ? " यह दूसरी बार पिटने का सौभाग्य था, पहली बार तो अपने नाम के पीछे लगे श्रीवास्तव जी से पिंड छुड़ाने पर ( वह कहानी, फिर कभी ) तोड़ा गया था । खैर....
आज़ तो सुबह से माथा सनसना रहा है, लगा कि बिना एक पोस्ट ठेले काम नहीं चलेगा, सो ज़ल्दी से फ़ारिग हो कर ( अपने काम से ) यहाँ पहुँच गया.. पोस्ट लिखने । पीछा करते हुये पंडिताइन भी आ धमकीं, हाथ में छाछ का एक बड़ा गिलास ( मेरी दोपहर की खोराकी का लँच ! ) ,तनिक व्यंग से मुस्कुराईं, " फिर यहाँऽ ऽ , जहाँ कोई आता जाता नहीं ? " इनका मतबल शायद पाठक सँख्या से ही रहा होगा । बेइज़्ज़त कर लो भाई, अब क्या ज़वाब दूँ मैं तुम्हारे सवाल का ? अब थोड़ी थोड़ी ब्लागर बेशर्मी मुझमें भी आती जारही है, पाठकों का अकाल है, तो हुआ करे ! ज़ब भगवान ने ब्लागर पैदा किया है, तो पाठक भी वही देगा , तुमसे मतलब ? आज़ तो लिख ही लेने दो कि..
सुश्री मायावती, नेहरू गाँधी के बाथरूम में साबुन निहारती मिलीं, किस हाल में मिली होंगी यह न पूछो ! कभी कभी यह पंडिताइन बहुत तल्ख़ हो जाती हैं,' जूता खाओगे, पागल आदमी !' और यहाँ से टल लीं । मुझको राहुल बेटवा या मायावती बहन से क्या लेना देना, लेकिन यह लोकतंत्र का तीसरा खंबा मायावती की मायावी माया में टेढ़ा हुआ जा रहा है, इसको थोड़ा अपनी औकात भर टेक तो लूँ, तुम जाओ अपना काम करो ।
मुझसे यानि एक आम आदमी से क्या मतलब, कि राहुल अपने घर में इंपीरियल लेदर से नहाते हैं या रेहू मट्टी से ? चलो हटाओ, बात ख़त्म करो, हमको इसी से क्या मतलब कि वह नहाते भी हैं या नहीं ? हुँह, खुशबूदार साबुन बनाम लोकतंत्र ! लोकतंत्र ? मुझे तो लोकतंत्र का मुरब्बा देख , वैसे भी मितली आती है, किंन्तु ... !
सुश्री मायावती का सार्वज़निक बयान कि " यह राजकुमार, दिल्ली लौटकर ख़सबूदार ( मायावती उच्चारण !! ) साबुन से नहाता है ।" मेरी सहज़ बुद्धि तो यही कहती है, बिना राहुल के बाथरूम तक गये , ई सबुनवा की ख़सबू उनको कहाँ नसीब होय गयी ? अच्छा चलो, कम से कम उहौ तो राहुल से सीख लें कि दिन भर राजनीति के कीचड़ में लोटने के बाद, कउनो मनई खसबू से मन ताज़ा करत है, तो पब्लिकिया का ई सब बतावे से फ़ायदा ? दलितन का तुमहू पटियाये लिहो, तो वहू कोसिस कर रहें हैं ! दलित कउन अहिं, हम तो आज़ तलक नही जाना । अगर उई इनके खोज मा घरै-घर डोल रहे है, तौ का बेज़ा है ?
माफ़ करना बहिन जी, चुनाव के बूचड़खाने में दलित तो वह खँस्सीं है, वह पाठा है, कि जो मौके पर गिरा ले जाय, उसी की चाँदी ! दोनों लोग बराबर से पत्ती, घास दिखाये रहो । जिसका ज़्यादा सब्ज़ होगा, ई दलित कैटेगरी का वोट तो उधर ही लपकेगा । ई साबुन-तेल तो आप अपने लिये सहेज कर रखो, आगे काम आयेगा । अब आप जानो कि न जानि काहे.. चुनाव पर्व के नहान के फलादेश पर बज्रपात कईसे हुई गवा .. रामा रामा ग़ज़ब हुई गवा .. चोप्प, मैं कहता कहती हूँ चौप्प ! चुप हो जाओ, चुप्पै से !
लो भाई, चुपाये गये.. अब तो राम का नाम लेना भी गुनाह हो गया । लोग सँदिग्ध निगाह से घूरते हैं, कि अडवाणी से अब भी सबक नहीं ले रहे.. राम का नाम बदनाम करके ऊहौ कुँकुँआत फिर रहे हैं, फिर तो कोई रावणै इनका भला करी..
करै दो यार, भलाई के नाम पर कोई तो कुछ करे, भले ही वह प्रजापालक रावण होय ! सीताहरण तो अबहूँ होबै करी .. जस नेता रहियें तौ सीताहरण होबै करी.. चुनविया का हुईहै अगन परिच्छा तौ धमक हुईबे करी…
एक कुँवारी-एक कुँवारा ! बेकार में, काहे को खुल्लमखुल्ला तकरार करती हो ? भले मोस्ट हैंडसम के गालों के गड्ढे में आप डूब उतरा रही हो, लेकिन पब्लिकिया को बख़्स दो । सीधे मतलब की बात पर आओ, हम यानि पब्लिक मदद को हाज़िर हैं । अब दुनिया भर का ई साबुन - तौलिया वाला… टिराँस्फ़र पोस्टिंग की नँगी माया .. काहे ?
सोनिया बुआ, उधर अलग बड़बड़ा रही हैं, " मेरा लउँडा होआ बैडनेम, नैस्सीबन तिरे लीये...ऽ ..ऽ
19 टिप्पणी:
" मेरा लउँडा होआ बैडनेम, नैस्सीबन तिरे लीये...ऽ ..ऽ- अब भी?
सही ठेलन पिपासा का समाधान किए हो..महाराज!!
इस ठेलास के क्या कहने । फणीश्वरनाथ रेणूजी के शब्दों में कहूँ तो - बाजिब बात।
विदेशी साबुन से नहाने की बात ही कुछ और है। लेकिन हम तो कहते हैं-लाइफ़वाय है जहां ,तन्दुरस्ती है वहां।
हम तो काली मिट्टी से नहाते रहे। हमें पता नहीं इस का भी क्रेज है। लोग मडबाथ कहत हैं इसे।
वाह जी आज आई कई दिनों बाद असली और खांटी पोस्ट.
रामराम.
sahi thele hain aap, jab saabun ka jikr hona tha to kam se kam nanga shabd to banta thi tha thelna...
टाईमखोटीकार के बदले टाईमखराकार कर लीजिए!
ख शब्द से मोह हो तो खाटखड़ीकार कर लें :-)
लोग भी न जाने किस किस के गुसलखाने में झाँका करते हैं :)
कुश जी, अब तुम न कह देना, कि पहले ही कौन सा करीने से लिखा करते थे ।आपने हमारे नाम के आगे जी कैसे लगा लिया जी ?
दुसरो के लिए तो आप कोष्टक में वैकल्पिक जी देते है और हमारे नाम के साथ खुल्लम खुल्ला.. खुदा खैर करे..
वईसे.. बाबा के अंडरवियर बनियान के बारे में आंटी का क्या कहना है.. ?
देश का भला रावण करे या राम सानु की फर्क पैंदा है.. अपने जीते जी तो जैसन है ई देश वैसन ही रहेगा.. चुप्पे बैठे है, चुपाये रहेंगे..
साबुन का ब्रान्ड पता चले तो बताइएगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ख़सबूदार साबुन :) और मुलायन सिंह आज तक महिला को मैला ही कहते रह गए :)
वाह ! वाह ! वाह !
एकदम करारा....
आनंद आ गया...लाजवाब...
लहजे ने मुग्ध कर दिया....
क्या-क्या लिख दिया आपने । हम पढ़ भी गये ।
आनंद दायक पोस्ट. आभार..
शीर्षक सुझाव -बाथरूम मे सब नंगे(हमे छोडकर)
नंगे सच की माया या माया का नंगा सच ?
नंगी माया का सच ! इहौ त ठीकै जनात बा ! बाकी यहिं दाएं त जबरदस्त तोडे हय डागदर !
इस नहाने की बात पे सोचता हूँ अब एक पोस्ट हम भी लिखें...साबुन की बात तो क्या इधर तो एक बाल्टी पानी विलासिता की श्रेणी में आ जाये..
लेख तो गुरु आप बढिया ठेलिन दिह्यो .........हमहूँ खोपडी खोपडी खुजलाई मरे शीर्षक के चक्कर माँ . इहाऊ नंगई है आपकी . हम्माम माँ सबई नंगे एक दूसरे की नंगई देखैन दिखावायीं , खसबू सून्घयीं , और आप निठल्ला के चक्कर माँ सब निठल्ले शीर्षक तलासते फिरैं .
तबौ ....
साबुन तेल न कंघा , हाथी फ़िरयि नंगा .
या
नंगा नन्घिन पंगा .
इधर उधर ताक-झांक करना गलत बात है...
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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