आज अभी चँद मिनटों पहले एक पोस्ट पढ़ी.. निठल्ले , सठेल्ले और ............ठल्ले :)
उब दिनों एक गाना सुना करता था, उसे अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ भी लिया ( अभी ईस्वामी की टिप्पणी के बाद यह अँश जोड़ा है.. धन्यवाद स्वामी ! )
तो एक गाना सुना करता था.. " जिन्दगी की रेल कोई पास फेल.. अनाड़ी है कोई खिलाड़ी है कोई " बस इसी को पकड़ लिया, " रेल जब हुईहै, तौनि डब्बवा भी हुईबे करि... डब्बवा मा जब हुईहैं जगह तो सवारिन केरि लदबे करी… , सवारिन केरि लदबे करीऽऽ भईया सवारिन केरि लदबे करीऽऽ "
बस इसी को पकड़ लिया, इसके दर्शन को आत्मसात कर लिया.. लगे हुये डिब्बों को परखा, फ़र्स्ट किलास.. सेकेन्ड किलास, जनता, पैसेन्ज़र, बाटिकट सवारी, बेटिकट सवारी, इस भीड़ में धँसे ज़ेबकतरे, डिब्बे के हाकिम भ्रष्ट टी. टी. वगैरह वगैरह !
बस हर डिब्बे के माहौल को बारी बारी से अपने जीवन का हिस्सा देता हूँ, अउर कौन ससुर ईहाँ से कछु ले जाय का है, यहीं जियो और यहीं छोड़ जाओ ।
आज तक कोई सवारी अपनी यात्रा खत्म होने के बाद… .. डिब्बवा खींच के अपने साथ न ले जा सका है । जउन लेय गवा होय तो बताओ !
तो पार्टनर अपनी चाट में अकड़ लचक बकैत विनम्र भदेस अभिजात्य सबै मसाला की गुँज़ाइश रहती है ! फ़ारसी पढ़वावा चाहोगे तो पढ़ देंगे.. और तेल बिकवाना चाहोगे तो वहू बेच देंगे ।
लेकिन ये न होगा कि अमर कुमार जब डाक्टर साहब बन कर जियें तो ब्लागर प्रेमी अमर कुमार उनका सतावै और जब डाक्टर जी को जीना न चाहें, तो डाक्टर साहब ज़बरई अमर कुमार में प्रविष्ट हो जायें ! इसी तरह अमर कुमार अपने को जीवित रख पायेंगे ! कुछ लोगों को देखता हूँ, वह अपने पद या अफ़सरी को इस तरह आत्मसात कर लेते हैं, कि यही अफ़सरी उनके अपने ही स्व को उभरने ही नहीं देती , फिर वह दूसरों को मस्त देख बिलबिलाते हैं ।
जीवन में वेदाँत और वेद प्रकाश कम्बोज दोनों आवश्यक है, कुछ भी त्याज्य नहीं है ! ज़रूरत उसके एक निश्चित मिकदार को समाहित करने भर की हुआ करती है । अउर आपन पोस्ट हम निट्ठल्लन को डेडिकेट न किया करो, ग़र दिमाग ख़राब हो जाय तो फिर न कहना कि... बईला गवा है, बईलान है !
लेकिन आपौ जउन है कि तौन एकु राबचिक फँडे का अँडा लाके इहाँ झक्कास राखि दिहौ …वा वा वाऽ वाह ! बड़ा सक्रिय चिंतन बड़े निष्क्रीय निर्विकार भाव से प्रस्तुत किया भाई !
मुला हँइच के दिहौ ब्लागरन का !
मेरी यह पोस्ट एक तरह से आपकी पोस्ट पर टिप्पणी है !
अगर अबहूँ समझ मा नाहिं आवा तो, ई सुनि लेयो..
20 टिप्पणी:
टीपणी सुंदर है। वाकई व्यावहारिक जीवन और सिद्धान्त दोनों आवश्यक हैं।
बहुत सुंदर. शुभकामनाएं.
रामराम.
गुरू जी यह फ़ंदा क्यो लगा रखा है, हम तो वेसे ही आप के प्यार मै फ़ंसे हुये है, जितना समझ मै आया बहुत अच्छा लगा, वेसे मेने बहुत कम ड्रा देखे है जिन मै आप की तरह दिल हो भावनाये हो.
राम राम जी की
एसन फंदा न अटकवाओ महाराज-डर जाते हैं.
@ Sameer Bhai & Raj Bhatia
यही तो मेरी बिडम्बना है, भाई जी.. मैंने तो फँदा लगाया कि कोई फँसे.. अउर आप जैसे लोग भी डर जायें तो, तोऽऽ तो.. बस समझ जाओ ।
आपके रहते हम काहे डरें..बस, लिखभर दिये हैं ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये..याने रिकार्डिंग के लिए.
मोहक्माये मछ्लियान में दाखिले के पहले ये फंदे बनाने सिखाये गए थे -इन्हें भूलता जा रहा था मगर कृतग्य हूँ आज फिर से आप के सौजन्य/सानिध्य ने इनकी गांठों की याद ताजा कर दी -आभार !
लगता हूँ फिर से मछलियों के पीछे -एकाध फंस ही जायं शायद ....
गाना गलत याद है आपको! :)
ज़िंदगी है खेल
कोई पास कोई फ़ेल
खिलाडी है कोई
अनाडी है कोई
http://www.youtube.com/watch?v=1Jfmk__l0oo
इसको समझने के लिए तो मटिरियल खंगालना पड़ेगा..
पढ़ लिया और अब सर खुजा रहा हूँ।
समझ में नहीं आता आप डाक्टरी कब करते हैं और ब्लॉगिंग कब करते हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
तबियत थोडी ढीली है गुरुवर....फंदा जालिम लगता है....इधर आपने कुछ खंगालने को भी दिया है..कल फिर से एक तगडी चाय पी के आता हूँ....
test
jeevan mein vedant aur ............
aapki lekhni kaafi kuch kahti hai
fanda bhi laga diya hai ............
डाक्टर साहब,
पढ़ तो हम लिए बाकि सब सिर के उपरे से चला गया नू, बात का है हम नहीं समझे हैं, लेकिन इ जरूर समझ गए है की आप समझ गए है की हम नहीं समझे हैं, आप इसी लिए फंदा लगा दिए का, जो जो नहीं समझे उ वोही फंदा में लटक जावे....
हा हा हा
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शुक्रिया के साथ . . . .
---मुफलिस---
डाक्टर साहब !
पहली बार ऐसा हुआ है की पोस्ट न पढ़ कर फंदा समझने की कोशिश में लगा रहा ! काफी देर बाद अपने पर ही हंसी आयी की मैं भूल गया था की डॉ अमर कुमार से मुखातिब हूँ !
आदाब भाईजान
fromrajkumar singh rajsinhasan@gmail.com
toc4Blog@gmail.com
dateMon, Jul 13, 2009 at 6:32 AM
subjectजिन्दगी की रेल
mailed-bygmail.com
hide details Jul 13 Reply
गुरुदेव ,
तीन बार आपके बक्से में लम्बी ठेल डालने की कोशिश की . बिलाई जाती रही . अंगरेजी में टेस्ट छापा , छाप उठा . अब आपकी शान में रोमन छापने की जुर्रत ? हम करेंगे ? हार कर सीधे ईमेल ठेल रहें हैं . कृपा कर यथास्थान बक्से में ठेलने का कष्ट आपही करें . तकनीक में लगता है हमहीं कहीं कम पड़ रहें हैं . पिटारा के टूल से गूगल इंडिक में लिख कापी पेस्ट बक्से में डाल पोस्ट करने में मामला गायब होता रहा. तकनीक में खराबी हो तो आप सुलझाएं क्योंकि औरन के साथ तो दिक्कत नहीं आय रही .फिर भी देरी के लिए माफी की अरदास दर्ज हो .बहरहाल मुद्दे पर .
गुरूजी आप काय चिकित्सक हैं तो मनइ चीन्है माँ हमहूँ अपने कों कुछ लगाते , आप के ही जैसे हैं. अक्सर हमारी डैगोनोसिस सही रही है .आपके बईलाने की दूर दूर तक हम तो गुन्जाईस नहीं पाते .और हमार डेदिकेसन तो गुरु दाक्सिना होय. पायेंगे तो देंगे भी . पहले भी 'बवाल ' और ' ताऊ ' कों अर्पित कर चुके हैं . हमारी जानकारी माँ उ दुइनौ भी ठीकै ठाक चल रहें हैं . आपहु भी मत घबराओ .औ जितना काम आप कर रहे हो ( एक ने पूछ ही डाला कि डाक्टरी कब होती है :) ...) उसके एवज मे ऐसी सौ पचास दक्षिना कमै पड़ेगी .त अब बिना चूं चपड़ स्वीकार लेऊ .
आपकी पोस्ट से काफी ज्ञान मिला और हम भी चैतन्य होते भये .दूई चार ठेल्लन के आघात से अब तो हम बिलबिलाने से रहें .उहौ दूई चार ताली पीट पाट अपड़ा कपडा उतार हार थक अपने ठिकाने से गरियाय ओरियाय अपने ' ठेल्लाई ' में बिजी हैं . हम भी निश्चिंत.
अब आप वाला हिसाब हमहूँ अपनाते हैं .संभ्रांत से भदेस , वेदांत से वेद प्रकाश काम्बोज तो क्या इब्ने सफी , प्यारेलाल आवारा , एम् राम और दी श्यामा तक जैसन जैसी श्रद्घा तैसन न्योछावर . जैसे काठे क भवानी वैसने मकरा क अच्छत . अब आपै कि तरह चाहे कोई फारसी पढ़वाई लै चाहे तेल बेच्वाई ले .सब पे उतारू . हम भी लचक मचक सब हथियार सहेज लेते हैं .अब चल बिचल बिच्लित होयिं हमारे दुश्मन .फ़ूल को फ़ूल अ शूल को शूल .अब जिसे आना हो आये भिडे वही डैम फूल .
हमरी खातिर टिप्पणी के बदले पूरी पोस्तै ठेल दिए ' निठल्ला श्रेष्ठ ' , हम तो गदगदाए बिचर रहें हैं . अब डरने की बारी हमार . कतऊँ बैलाइ न जायं . :):)
हिम्मत बढाते रहें जिन्दगी की रेल में आप इंजन तो गार्ड बन हम भी झंडी फंदी ( आपकी वाली ) हिलाते पाए जायेंगे .
जय हिंद .
@ श्री राज जी ’ तड़के वाला '
लँबी का डेराइत नाहिं, मुला घणी टिप्पणी किहौ है, भाई । हमका त बख़्सो, ऎतना न चाहि इज़्ज़त अफ़ज़ाई !
प्रियवर क्या हम मित्रवत नहीं रह सकते, ई गुरु-चेला सम्बन्ध बड़ा बवाली रिश्ता है । सबै के अँटी मा बाँटे बरै कछु सुरती चूना आय, कबौ हम ठोंकि डारि.. कबौ आपौ से मीजवा ठोकवा लेब, सब बरोबर ! सगर दुनिया घूमि डारा, हमार गँवईं प्रेम ससुर नाहिं बिसरत है, का करी ? जस हन.. तस झेलो, झेले के पड़बै करि !
वाह वाह क्या रेलम पेल ठेली है । आभार
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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