तलाश है , एक साफ़ सुथरे दिमाग की
इस श्रृंखला की पहली कड़ी में, एक प्रसंग और एक प्रश्न उपस्थित है । निराकरण आप करें ।
एक रेलवे टिकट कलेक्टर महोदय 3rd वातानुकूलित कूपे में दाखिल हुए । 6 लड़कियों का जत्था विराजमान था । " टिकट ? ", अपना प्रश्न दागा । आँखें नीची पर कनखियाँ सक्रिय, देखा एक तो झीनी नाइटी में, दूसरी टू पीस नाइट सूट में, तीसरी शार्ट स्कर्ट में, चौथी हाट पैन्ट में सामने खड़ी हैं । टिकट किसी के पास भी नहीं ! अपने विवेकानुसार फ़ाईन ठोंका ।
शार्ट स्कर्ट - 200 रुपये
हाट पैन्ट - 150 रुपये
टू पीस नाइट सूट - 100 रुपये
अंग-प्रत्यंग झलकाती झीनी नाइटी - 50 रुपये मात्र
तभी बाकी बची दो लड़कियाँ टायलेट से लौटती नज़र आयीं । " टिकट ? ", उन दोनों ने उनको जो भी दिखाया हो वह यहाँ बताना न्यायसंगत न होगा । बहरहाल, दोनों ही बिना किसी अर्थदंड लिये छोड़ दी गयीं । क्यों ? यह तो आप बतायें ।
1 टिप्पणी:
महाशय, उन दोनों लडकियों के पास टिकट था!!!
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
Note: only a member of this blog may post a comment.