जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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23 March 2008

चलो, इसी बहाने .. ..

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( आदरणीय बहनों एवं एकाध भाभियों , यह पोस्ट आप भी पढ़ सकती हैं । आज कोई ज़ेन्डर डिस्क्रिमिनेशन जैसी बात नहीं की जायेगी, और.. सुनिये ! आपलोग भी ज़ेन्डर कांशस न रहा करें । भगवान ने इतना कुछ दे दिया है, फिर भी पता नहीं क्यों, आप अपना असंतोष  खुज़लाती ही रहती हैं  ? आज के दिन..नहिं नहीं, आज शाम बाबा भी देवर का चार्ज़ लिये बैठे हैं , और आपलोग भी ना, आई.. उई करती हुई , बायें दायें छिपती छिपाती फिर रही हैं  ! मैं कुछ करूँगा नहीं, सच्ची ! कसम खिलवा लो, कूच्छ बी नईं करूँगा ... एक बार कह दिया ना, कि कुछ नहीं करूँगा, तो समझ लो कुछ  नहीं करूँगा । अरे रुको तो, जाओ नहीं, मौका अच्छा है.. अगल बगल कोई है भी नहीं , मेरी बधाईयाँ तो लेती जाओ । रुकिये , देखिये तो .. कोई आ जायेगा, ज़ल्दी से मेरी बधाई ले लीजिये, वरना नाहक आप भी डाँट खा जायेंगी, ' यह अमर कुमार की पोस्ट क्यों पढ़ी जा रही थी ? कौन है यह ? ' अगर डाँटने वाला कोई पुरुष ही हुआ, मसलन  आपके अपने पापा या चलो, ' ये मेरे फ़्रेन्ड हैं ' से विभूषित कोई  सड़ियल सा शख़्सियत ?  फिर  क्या करेंगी आप ?  कोई मोर्चा खोलने का विकल्प  नहीं है, यहाँ ! इस मोर्चे पर अगर दूसरा मोर्चा खोला तो कसम होलिकामाई की, इसी अष्टमी तक आपसे समर्पण करवा लूँगा, जैसे  अपने मानेकशा ने ज़रनल निय़ाज़ी से करवाया था ! हाँ तो, यह पोस्ट पढ़ते हुये आप पकड़ी गयीं तो दूसरे विकल्प के रूप में , आप क्या करेंगी ? क्या कहेंगी कि यह डा०अमर कुमार कौन है, और वह ' कुछ तो है... कुछ तो है.. .. ' क्या कर रहा था ? तो, भला क्या बोलेंगी आप मेरे बारे में । बोलो न, मेरे विषय में क्या बताओगी.. ... जरा मैं भी तो सुनूँ ! यही न कि, कुछ ख़ास नहीं जानती या कि एक अद्धी उमर का डाक्टर हैं,सोचा देखूँ कि,कुछ नहीं, मैं तो थोड़ा देख रही थी... "                                                            

ठहरिये ज़रा मैं भी देख लूँ, मेरा एयरटेल बज रहा है ।हाँ हल्लोः, हल्लोह ..आप भी इसी बहाने मोबाइल हो लीजिये, दर्द हो रहा होगा ! बहुत देर से बैठे हैं, कुर्सी में ।

कुर्सी  तो आपकी अपनी ही है, फिर तो थोड़ी देर को छोड़ने में कोनो  रिस्क नहिं है, इहाँ !

लेकिन.... इस फोन ने अपने पोस्टिया का तख़्तै पलट दिया ।

क्या यार !  मूड ही ख़राब कर दिया मेरा तो, साला कुत्ता कमीना ( शायद धर्मेन्द्र वाला ही तो नहीं था, खैर..) ! अब देखिये...

"कौन? " उधर से सवाल हुआ । उल्टा डिस्टर्बकर्ता डाक्टर को डाँटे !                                        

" अरे भाई आप कहाँ से बोल रहे हैं ? " पहले का ज़वाब सुना नहीं और दूसरा भी दाग   दिया ! 

अब क्या ज़वाब दूँ, मैं तुम्हारे सवाल की ऽ  ..ऽ " अपने मुँह से बोल रहे हैं, बोलिये क्या बात है ? "                                                                                              

वह आज़िज़ी से चिल्ला रहा था, " वह तो ठीक है, लेकिन बताइये आप बोल कहाँ से रहें हैं ? "                          

फिर वही ढाक के तीन पात !मैं  क्या बोलता " बोला न, अपने मुँह से ! और आप ? "                                                                                                                                

उधर उन सज़्ज़न का धैर्य जैसे चुक सा रहा था , " अरे भाई , यह कौन सा नम्बर है ? "

" वही, जो आपने दबाया होगा ! "  मैंने  स्वर को यथासंभव ठंडा कर लिया ।

वह थोड़ा नरम पड़ा , " अरे भइया , यही बता दो कि फोनवा लगा कहाँ है ? "

मैं कुछ मूड में आगया, " फोनवा तो हम अपने कनवा में लगायें हैं, आप कहाँ लगाये पड़े हो ? "

जो भी सज्जन थे, हँस ही तो पड़े, " अच्छा छोड़ा , बंद करा ई सब, हमहीं माफ़ी माँग लेईतऽ हाइ भाय  ! "

येल्लो ! उनका तो मनोरंजन हो गया और  यहाँ मेरा मूड उखड़ गया । 

एक अलग किसिम का होली संदेश देना चाहता था, टँच राबचिक्क ! बोले तो माइलस्टोन !  

और ?  और माइलस्टोन के पहले ही यह पत्थर आगया, मेरे पोस्ट को पंक्चर करने ।

बहनों और भाभियों का बैरियर  सकुशल पार हो  जाये यह सोच,  शब्द संभाल संभाल कर लपेट रहा था कि यह अपशगुन हो गया !

पता नहीं लगा कि इतनी ही देर में पंडिताइन भी, यहाँ के लिखे-टाँचे पर नज़र मार के जा चुकी हैं । मेरी आवाज़ बंद होते ही, कमरे में ग़ुलज़ार हुईं ।

एक फ़िक़रा उछला, " चिट्ठी पढ़ा पढ़ा कर तो, तुमने  हमको फुसला लिया, अब चिट्ठा   किनको पढ़वाया जा रहा है ? उनको तो छोड़े ही रहो !

अई ल्लो ! तुम्हरी तो अदा ठहरी अउर इहाँ हम बिलबिला रहे हैं, वाहव्वाः अपुन  तुमको फुसला लिये अउर तुम फुसली हुई 25 साल से जमी बैठी हो  यहीं पर ! मेरा मंतर नहीं उतरा, अब तक ?

रुकिये पहले अपना घर संभाल लूँ, आप लोग मेरी शुभकामनायें अपने घर तो लेते ही जाइये ! 

क्या पता , ऎसी शुरुआत में.. .. .. .. .. ..  कल हो ना हो !

______________________________________________________________________

ताड़ से गिरा, खज़ूर पर अटका एक पोस्ट ( बड़ा कैचिंग शीर्षक निकल आया, अनायास ! )

खैर पोस्ट अब समेटी जाती है ।

क्योंकि यह  22/ 23 की रात है

दिन भर डोलता ही रहा, शाम लोगों से मिलने और खीसें निपोरते रहने में ही ग़ुज़र गयी |

गले मिलने में तरह तरह के परफ़्यूम की महक और किसी किसी के मुँह से आती हुई शराब की भभक, दोनों ही नाक में घुसी पड़ी है, एक अद्भुत काकटेल, नहीं माकटेल, नहीं यह भी नहीं.. सुँघ्घाटेल है यह !

अबके बरस-अमरहोये देयो भाई-अमर

मेरी बधाई, शुभकामनायें धरी की धरी रह गयीं, और अपनी  होली तो .... होय ली !

हिन्दी ब्लागरी लाइफ़ की पहली होली... ऎसे व्यर्थ जायेगी ! इसी को कहते हैं,बैडलक ख़राब होना । पहले बहनों व भाभियों के लिये शब्दों का टोटा (पता नहीं किस शब्द में नारी स्वातंत्र्य को डसने वाला साँप छिपा बैठा हो ) 

फिर मोबाइल वाले भाई साहब, "  कहाँ से बोलत अहा ? " अब उनको रास्ता दिखाया ही था कि..  पंडिताइन सवार हो गयीं । जब मेरी चिट्ठी ने  ही उनको फुसला लिया, फिर.. मेरा चिट्ठा तो पता नहीं कितनों को लुढ़का देगा ! एक डिस्क्लेमर  न पेस्ट कर दूँ , यहाँ ?

मिला मिलाई.. हूहु हूहु, हूहु हूहु,  मिला मिलाई ..  हूहु हूहु, हूहु हूहु..... हूहु हूहु, हूहु हूहु

शाम की मिला मिलाई और खीसनिपोर क़वायद से कल्ले अलग दर्द कर रहे हैं , सो...

सब रँग यहीं भोगे सीखे

सब रँग यहीं देखे जी के

तबियत के आगे सब रँग ज़माने के फ़ीक़े

सखि, आज ऎसी होली खेली जी भरके

आज  आप की भी ऎसी ही ग़ुज़री है ... है ना ?

होली बधाई हो !

___________________________________________

आवश्यक सूचना : होली से संबन्धित कुछ संवेदनशील सामग्री कुछेक संकलक के पास एप्रूवल हेतु लम्बित है, सूचित किया गया है कि अस्मिता बहन, श्लील भाई, नैतिकता बुआ एवं शालीन चच्चा द्वारा NOC प्राप्त होते ही प्रेषित किया जायेगा । कृपया निट्ठल्ले पर   पर ऩज़र रखें ! 

 

 

4 टिप्पणी:

purva का कहना है

होली मुबारक हो जी। मन गई। या मना के गई?

अनूप शुक्ल का कहना है

बधाई हो हमारी तरफ़ से भी।

mamta का कहना है

जरा देर से ही सही होली मुबारक हो।

रवीन्द्र प्रभात का कहना है

चलिए इसी बहाने एक बार और होली की शुभकामनाएं स्वीकारें !

लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

आपकी टिप्पणी ?

जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

Note: only a member of this blog may post a comment.

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शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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