जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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23 March 2008

अथ श्री काकचरितम - 2

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काकवचनम - प्रथम प्रश्नः

                                            कागा हमरे मँडेरे-अमर

यथा प्रथमदण्डे पूर्वपार्श्वे ' अय   अय शब्दम

रटति काकस्तदा पौरुषलाभवार्ता कथयति ॥ १ ॥

प्रातःकाल एक घड़ी दिन चढ़ने पर यदि कौव्वा पूर्वापार्श्व भाग में ' अय अय ' शब्द करे तो उस रोज़ घर में सुख होगा ।                   

जारी है .. ..

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जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

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इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

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