कुछ दुआ सलाम हो जाये । वैसे मेरा तो, राम राम कर के आज़ का दिन बीत गया , किसी ने मुझे अप्रैल फूल बनाने की कोशिश नहीं की । थैंक गाड ( इसमें बेचारे अपने रामजी को तक़लीफ़ देने का औचित्य ? ) हाँ, तो थैंक गाड ! आज़ बच गया, इसकी कई वज़हें हो सकती हैं 1. यह कि, मैं पहले से ही रेडीमेड फूल लगता होऊँ और भाई लोगों ने सोचा हो कि इस पर समय बर्बाद करने में कोई लाभ नहीं । 2. दूसरे यह कि मेरी गिनती शायद बुज़ुर्गों में होने लगी हो, इससे अच्छा किसी नये रंगबाज़ को पकड़ें तो तू-तू , मैं-मैं का मज़ा भी आये , सो बंधुगण आगे बढ़ लिये होंगे । 3. नये आइडिया का अकाल पड़ा हो शायद, क्योंकि अब तक नयी पीढ़ी भी मेरे गढ़े हुये पुराने टोटकों से ही काम चला रही है 4. या कि लोगों का इन चोंचलों से मोहभंग हो रहा हो । यदि ऎसा हो रहा हो, तो ठीक है , देर आयद, दुरुस्त आयद ! मैंने भी विगत कई वर्षों से यह नाटक छोड़ रखा है । भला पूछिये , क्यों ? तो मेरा प्रतिप्रश्न होगा आख़िर इसको मनाने की पृष्ठभूमि क्या है ? यह कोई स्वदेशी रिवाज़ तो है नहीं कि हम इसको होली दिवाली की तरह काँख-कराह कर मनाने को मज़बूर हों । खैर छोड़िये, बात आगे न बढ़ाते हुये केवल एक उद्धरण दूँगा, जो बिना किसी काट छाँट के यहाँ कापी पेस्ट कर रहा हूँ । यदि याद रहा तो आप भी अगले वर्ष ध्यान रखियेगा , इस वर्ष जो किया, सो किया ।
There are several explanations for the origin of April Fools' Day, but here is the most plausible one. April 1st was once New Year's Day in France. In 1582, Pope Gregory declared the adoption of his Gregorian calendar to replace the Julian calendar and New Year's Day was officially changed to January 1st. It took awhile for everyone in France to hear the news of this major change and others obstinately refused to accept the new calendar, so a lot of people continued to celebrate New Year's Day on the first of April – earning them the name April fools. The April fools were subjected to ridicule and practical jokes and the tradition was born. The butts of these pranks were first called poisson d'avril or April fish because a young naive fish is easily caught. A common practice was to hook a paper fish on the back of someone as a joke. This evolved over time and a custom of prank-playing continues on the first day of April.
कालांतर में अंगेज़ों ने भी इसे अपना ही लिया क्योंकि वह किसी भी हालत में फ़्रांसीसियों से पतला नहीं मूतना चाते थे । और फिर क्या था, जँह जँह पाँव पड़े लाट-बहादुर के, तँह तँह कँटाधार ! कँटिया हम भी लीले तो सही, अब उगलते नहीं बन रहा है अक्खी इंडिया से ! आख़िर प्रगतिशील होने का होलोग्राम है, यह सब ! आप यह पोस्ट पढ़ना यहीं बंद कर सकते हैं, क्योंकि अंग्रेज़ी नववर्ष पर भी मैंने ऎसा ही कुछ अपरंपरागत लिख मारा था जो पसंद नहीं किया गया रहा होगा ।
खैर जो भी हो... इस विषय पर कुछ लिखूँ या न लिखूँ, कैसे अपनी बात रखूँ कि एक पोस्ट आज़ की तारीख़ में देने की रस्म निभ जाये । इसी सोच विचार में कोरल ड्रा 14 पर खिलवाड़ कर रहा था कि एक प्रेम संदेश बन गया । बिना अतिरिक्त प्रयास के, शायद अंतर्मन से फूट पड़ा हो ।
बाकी सब राज़ी-ख़ुशी समझना .. और फ़ालतू लिखा पढ़ा माफ़ करना । चलो मुझे माफ़ न करो किंतु उनको कैसे माफ़ करोगे , जो जनवरी, फरवरी ...... जून, जुलाई यानि की साल के हर महीने, हर सीज़न , हर मौके बेमौके एक दूसरे को बेवकूफ़ बनाते ही रहते हैं । इस में हम आप सभी शामिल हैं । बिना दूसरे को फ़ूलिश माने, बिना उनसे पैंतरेबाजी किये, बिना अपने ज़्यादा बुद्धिमान होने का दंभ दिखाये , अब किसी का गुज़ारा नहीं चलता । लोग ऎसा कहते पाये जाते हैं । नेतागण तो हर भाषण में एक हिप्नोटाइजिंग अप्रैल फ़ूल पूरी पब्लिक को बना जाते हैं । सो, एवरीडे इज़ फूल्सडे , अब वह चाहे अक्टूबर हो या मई ! खैर...छोड़िये भी, बस आपकी दुआ से सब ठीकठाक है । नमस्कार !
0 टिप्पणी:
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
Note: only a member of this blog may post a comment.