ऎसे प्रश्न जीवन में सबके साथ आते हैं ? एक असंमजस सदैव खड़ा चिढ़ाता है, यह ठीक है या वह ?
क्या करें, यह कौन बताये ?
अर्जुन तो क्या अभिमन्यु हैं हम
गीता का उपदेश कौन सुनाये
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जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..
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दिनाँक Monday, April 07, 2008 | 0 टिप्पणी | कुछ ख़ास मौकों पर
ऎसे प्रश्न जीवन में सबके साथ आते हैं ? एक असंमजस सदैव खड़ा चिढ़ाता है, यह ठीक है या वह ?
क्या करें, यह कौन बताये ?
अर्जुन तो क्या अभिमन्यु हैं हम
गीता का उपदेश कौन सुनाये
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हिन्दीकरण © डा० अमर कुमार
August 2009
0 टिप्पणी:
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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