जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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03 May 2008

एक खुला चैलेंज !

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अजी चैलेंज़ मैं क्या खाकर दूँगा, इसको तो कोई मल्टिनेशनल का नौकर भी देख ले तो भाग खड़ा हो,जोड़तोड़ में माहिर आला दिमाग भी गश खा जायें । यहाँ उ०प्र० ( उल्टा प्रदेश नहीं यारों, उत्तर प्रदेश या चलो उल्टा प्रदेश ही रहने दो ) के हाल पर तो स्यापा करने का फ़ैशन है, लेकिन कल कानपुर आना हुआ, हर जगह बिज़ली की त्राहि त्राहि सुनी तो नज़रें बरबस बिज़ली के खंभों पर दौड़ गयीं । देखा तो लगा, सुकुल महाराज शायद सच्ची मुच्ची के फ़ुरसतिया हैं, उनको हलचल न सताती हो तो क्या ? एक ठईं फोटो खींचने वाला मोबाइल तो ले ही सकते हैं, खैर...मेरे पास भी नहीं है ( भाँजे की नज़र में चढ़ गया सो उसी को दे दिया ) ! अपने मित्र सुर्यभानु सिंह के मोबाइल से खंबे का निशाना साधा और कैमरे ने जो देखा वह सीधे गुरुदेव पैलेस के सामने के साइबर कैफ़े से ठेल रहा हूँ, अपने सुकुल गुरु के गढ़ से! हमार का कर लेहो गुरू ?

                   गुटैय्या कैंसर अस्पताल के सामनेपार्वती बागला रोड-ग्वालटोली वाला मोड़मेडिकल कालेज़ के पीछे आज़ाद नगर

चैलेंज काहे का भाई ? यह तो बानगी है, अगर कहीं कोई खराबी देखनी हो, तो कौन सा तार पकड़ोगे ? ईल्लेयो, पकड़ के बैठगये !

5 टिप्पणी:

Anonymous का कहना है

अरे आप कानपुर आकर चले गये! बहुत नाइन्साफ़ी है। बताया ही नहीं! मिलते तो अच्छा लगता!

Anonymous का कहना है

कानपुर दर्शन करके अच्छा लगा :)

Anonymous का कहना है

ये फोटू खेंचने वाला मोबाइल नहीं। वरना हम भी दिखाते तस्वीरें न जाने क्या क्या?

Anonymous का कहना है

अरे भाई यही तो कमाल है कानपूर का, ऐसे में भी तार दुन्ढ़ लें... अगर बिजली आई तो सबके यहाँ आएगी ही. :-)

Anonymous का कहना है

मोबाइल से खींचा क्या स्टैटिक नजारा है! मान गये फोटो खींचक को!

लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

आपकी टिप्पणी ?

जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

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यह अपना हिन्दी ब्लागजगत, जहाँ थोड़ा बहुत आपसी विवाद चलता ही है, बुद्धिजीवियों का वैचारिक मतभेद !

शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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