कहानियाँ बहुत समय पहले ही होती थीं, आज़ का सच कौन सुनना चाहता है ? तो, बहुत समय पहले की बात है , एक राजा थे और एक उनका मुँहलगा नाई ! नाई उस्तरे का धनी किंतु बुद्धि का भोथड़ा था , पर बनता होशियार था । हर जगह अपनी टाँग घुसेरने को तत्पर ! उसके मन में आया कि यह काजू मेवे खाने वाला राजा भला हगता क्या होगा ? जरा किसी दिन देखा जाये , कैसे भला ? मुश्किल है । कोई मुश्किल नहीं, नाऊन ने सुझाया । उनको सुबह टहलाने व खुली हवा में मालिश करने ले ही जाते हो, एक दिन ज़ुलाब दे दो । इसमें तो अच्छे अच्छे ढीले हो जाते हैं, क्या राजा क्या प्रजा ? बस असलियत देख लेना, और सुना है कि उनके दो सींग भी हैं, कनज़ेनिटल एनामेली ! पगड़ी में छुपाये रहते हैं, लगे हाथ यह भी देख लेना तो मैं रानी जी से कुछ ईनाम वगैरह झटक लाऊँगी । बहुत अपने को बनती हैं ।
सो अगली सुबह उनको नसवार में मिला कर ज़ुलाब सुँघा दिया । फेंट नहीं रहा हूँ हलचल यह तो अपने देश के प्राचीन फार्मा वालों के स्वर्णकाल का कमाल था । मुश्किल से दो मील गये होंगे कि गुड़गुड़ गुड़गुड़ होने लगी । राजा असहज हो चलने लगे, बोले बम्बक आज वापस हो लिया जाये । बम्बक नाम था नाई का, मगन हो गया कि लगता है तीर सही निशाने पर जा रहा है । वह उनको बहटियाने लगा, हज़ूर ये..तो हज़ूर वो । कोयल का संगीत, शीतल बयार, झरझर झरना, मनोरम लालिमा जैसी कवियों की भाषा बोलने लगा । राजा हो गये बेचैन । अंदर से गुड़गुड़ गुड़गुड़ जोर मारने लगा, यह गुड़गुड़ तो समदर्शी है, उसके लिये सब बराबर, क्या राजा और क्या प्रजा ?
गुड़गुड़ की आवाज़ भला कभी दबायी जा सकी है ? आश्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्शश्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्शश्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्द्फ़ फ़ स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स़्अ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़व्व्व्व्व्व्व्व्व्व्व्व्वद्द्व्च्च्च्च्च्च्व००० नहीं पढ़ पा रहे हैं ? कोई बात नहीं ! ऎसा पढ़े लिखों के साथ अक्सर हो जाता है । अनायास छोटी, मेरी काकर स्पेनियल बिच आकर लाड़ से इस कीबोर्ड पर बैठ गयी, और यह अनोखी स्वरलिपि तैयार हो गयी । चलिये, आप भी इसके साक्षी बन कृतार्थ हो लें, दि फ़र्स्ट कंट्रिब्यूशन आफ़ ए बीस्ट इन हिंदी ब्लागिंग ! एक और शोध प्रबंध का मसाला, क्या यह वाईकिपीडिया को भेज दूँ ? चौपाल पर चल रहे किस्से कहानियों में तो ऎसे इंटरवल आते ही रहते हैं, यह शायद पहला है, ब्लागर पर ! नाहर जी, क्या बोलते आप ? है ना !
तो, गुड़गुड़ गुड़गुड़ की गुड़गुड़ी पेट में बजाते हुये राजा साहब तिलमिला कर खेतों की तरफ़ भागे, और झट एक पेड़ की आड़ में बैठ गये चूड़ीदार उतारते उतारते भी खराब हो ही गयी । निवृत्त हो चैन की साँस लेते हुये कमर में अपनी पगड़ी लपेटे हुये लौटे । बम्बक नाऊ को जो देखना था वह, और जो न देखना था वह भी, यानि सब कुछ दिख गया । अब नउये के हाज़में की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी । सो, बात इधर उधर फैलने लगी, गुप्तचरों ने आकर सूचना दी कि राज्य की प्रजा हज़ूर माई बाप की खिल्ली उड़ा रही है । क्या कहती है, प्रजा ? राजा ने व्यग्र हो कर पूछा । क्या बोलते वह, गुप्तचर मुँह छिपा कर हँसी रोकने में असमर्थ हो रो पड़े । क्या है ?
क्या है भाई, बोलोगे भी ? अनिष्ट की आशंका से यह राजा लोग बहुत जल्दी सहम जाते हैं । हज़ूर जान बख़्स दी जाये, प्रजा में फुसफुसाहट है कि आपके कपड़े खराब हो गये थे, और यह भी कि आपने अपनी पगड़ी में दो सींग छिपा रखे हैं । यह आकृति दोष राज्य की खुशहाली को ग्रहण लगा सकती है । तेल, आटा, अनाज़ों का भाव पहले ही आसमान छू रहा है । बहुत असंतोष पनप रहा है, उनमें । कुछ कीजिये हज़ूर ।
यह बात , बमक उठे राजा ! बम्बक को तुरंत पकड़ लाओ और फौरन खाल खींच कर उसकी स्त्री के पास भिजवा दो । मेरा इतना घोर अपमान,... हाँफने लगे, " और इसके बाद पीटते हुये उसके स्त्री को राज्य से बाहर खदेड़ दो, मतलब LOC के उस पार, फौरन से पेश्तर ! " यही कहा है कि बड़कन की दोस्ती, जी का जंजाल ! न जाने कितने जन ऎसी दोस्ती में जान गँवा चुके हैं, ख़ल्लास ! नउआ जो कि सयाना माना जाता है, पंडित की लूट में भी अपना हक रखवा लेने की हैसियत बना ली है, सत्ता के नज़दीक आकर गच्चा खा ही गया । बेचारा बम्बट, खाल खींची गयी । नाऊन खदेड़ी गयी । किसी अवसरवादी ने खाल का सौदा कर एक ढोलकिये को बेच दिया । फिर ?
फिर उस खाल को तबले पर मढ़ कर ऊँचे दामो पर बेच दिया गया । इस तबले से बड़े ही खरे बोल फूटते थे । तबले की शोहरत होगयी। राजा को भी सुनने की तलब लगी । महफ़िल सजी, तबले कसे गये, धुँधू ध्धा, धुँधू ध्धा, धँमक्क धिन ध्धा, धँऊह.. हँउ धँऊह, धुँधू ध्धा ।
और फिर तबले ने अपना रंग दिखाना शुरु किया ।
एक बोला, राजा के दो सिंग दो सिंग..हग्ग दिहिन दो सिंग दो सिंग
दूसरे ने संगत दी, किंम्म कहाआ किंम्म क्कहा हुँन्न क्कहा किंम्म कहा
पहले से ज़वाब आया, बंम्बक्क हज़्ज़ाम्म बंम्बक्क हज़्ज़ाम्म हुँअः बंम्बक्क हज़्ज़ाम्म
इतने में दूसरे का ताल बहक गया, ऊँहुँ ब्लागर तम्माम ब्लागर तम्माम
पहले ने आगाह किया, हुँऎंअ हुँः, त्ताल्ल संभाल्ल दो सिंग दो सिंग
दूसरा जिदिया गया, हाँअः ब्ल्लाग्गर त्तम्माम क्कहाः ब्ल्लाग्गर त्तम्माम
भाई कोई बुरा मत मानना, भले ही खाल खींच ली जाये, बात तो हमारे पेट में भी कहाँ पचती है ?
दूसरा किस्सा कल देखना, मित्रों । और भी काम हैं दुनिया में....ब्लागिंग के सिवा
0 टिप्पणी:
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
Note: only a member of this blog may post a comment.