जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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25 May 2008

राजा और नऊआ का किस्सा

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समीर भाई की फ़रमाइश हुई है कि यह किस्सा क्यों दबा गये ? समीर भाई मेरे  बचपन  के साथी एवं सहयोगी भी हैं । सो आपके आगे आना  पड़ा । मौज का मसाला तो मौज में ही लिखेंगे न, दद्दू ? आप तो हेलिकाप्टर पर उड़ रहे हो और मुझ पर  धुर देहाती किस्से का सवाल ठोक दिया । मेरे लड़कईं की यहसब  बातें अब कौन पढ़ेगा , सैलून पार्लर के ज़माने में राजा अउर नउआ ? देख लो भाई, अगर चार ठईं पाठक भी न जुटे तो मुझको क्लेष पहुँचाने के भागीदार बनोगे । अपने को व्यक्त करते रहने की अपनी आदत तो है, किंतु इतना भी ठेलास नहीं सताता कि जुटे रहें, कंम्प्यूटरवा भी कल्ला कर बोले , '' भईय्या, अब अपना रिस्टार्ट ले लो !  ''  वैसे कुछ खलबली तो मेरे अंदर भी मचनी शुरु हो गयी है, पाठक न आवें तो क्या लिखना छोड़ दें ?  जब फ़ुरसतिया हमार कोउ  का करिहे का ताल ठोक हिट हो रहे हैं । पाठक संख्या तराज़ू पर तौले जा रहे हैं, तो मुझ जैसे पसंगे  को ऎसी टुच्ची परवाह नहीं करनी चाहिये, इन पाठकों की ! कोशिश करते हैं।

आज करे सो काल्ह कर

काल्ह करे सो परसों

सब ब्लागर आगे जाय रहें

तुम बोवत रह गये सरसों

तो समीर भाई ने ताव दिलाया कि राजा नउआ का किस्सा भी सुना डालो।  यह उनके फ़रमाइश  करने का निराला अंदाज़ है, उकसा कर कुछ भी ले लेने की अदा । वारी जाऊँ समीर भईया , मेरी अंटी में दबा माल निकलवाय ले रहे हो । नमक से नमक खाय चाहत हो !

आप सब पढ़ रहे हो ना ! तो आप गवाह हो वरना मुझे इतनी जल्दी नहीं थी । अब बताइये कि इतनी उदार हृदय  विशाल काया एक क्षुद्र प्राणी से कुछ माँग रहा है, वह भी एक पोस्ट ! फिर कोई टाल कैसे सकता है ? मैं दानी राजा उशीनर तो नहीं, न ही हर्षवर्धन हूँ । अलबत्ता दधिची में मुझे  गिना जा सकता हैं । माँस नहीं तो हड्डियाँ दे ही सकता हूँ, हड्डी  लटकाये  फिरना भी कोई बुद्धिमानी है ? बाई दि वे,  प्रिय  विज्ञजनों , मेरा यह कौतूहल शांत करें कि उनको अपने जाँघ का माँस क्यों देना पड़ा, क्या तब गोश्त नहीं बिका करता था ?

शोधार्थी जरा इस विषय पर ध्यान दें । हाँ तो, समीर भाई कौन सी कहानी सुनेंगे, नई वाली या फिर पुरानी वाली, या कि दोनों ? यह टंटा आज ही ख़त्म हो जाये, दोनों ही सुनाये देता हूँ ।हुँकारी भले  न भेजो लेकिन कोई सोयेगा तो नहीं ? अगर नींद आये तो .....  ....  ....  प्रमोद,  प्रत्यक्षा, बोधित्सव, यशवंत वगैरह के ब्लाग पर घूमफिर आओ, शायद आँखें खुल जायें । और  यह भी सुनते आना कि  दीपकबाबू का कहिन ?

लो फिर सुनो, पुराना वाला किस्सा..

 भाई माफ़ करना, पंडिताइन पंगा कर रही हैं, अब उठ् भी लो । जाकर चार पैसे कमा कर लाओ, शाम के सात बज रहे हैं ! बस अभी लौट कर सुनाता हूँ, बाकी का हवाल !  इसको लटकाऊँगा नहीं, बदनसीब शाह हनुमानुद्दीन की तरह...यह वादा रहा । नमस्कार !

4 टिप्पणी:

Anonymous का कहना है

आज तो बिलाग का नाम सारथक कर दिए दद्दू।
यूँ ही निठल्ला,
सुड़के चाय,
करै कुल्ला।

Anonymous का कहना है

किस्सा कब सुनाओगे?

Anonymous का कहना है

अरे भइया ई बैधानिक चेतावनी पढ़कर पहले कन्फिरम कर लिए...सोचने लगे हम कौन से जीवी हैं...पता चला उदरजीवी...एही वास्ते पढ़ गए पूरी पोस्ट. ओइसे एक बात कहिये...दोनों का न सुनकर राजा वाला सुना दिए होते...नऊआ वाला शाम को लौटने के बाद सुनाते..

और एक बात...संजीदा, गंभीर, छायावादी टाइप हृदयाघात से गिरेगा तो एक डॉक्टर के ही ब्लॉग पर गिरेगा...ई वास्ते ऐसे लोगों का चिंता करे के नाही...:-)

Anonymous का कहना है

@ मिले, श्री शिवकुमार जी को
श्रीमान मिसिर महाराज, पाँय लागी
उदरजीवी इहाँ काहे आवेगा ?
बेचारा बच्चा जियाने की जुगाड़ में ही बुढ़ा जाता है । मन बहलाने और थकान उतारने को उसके पास एक ही जरिया है, पत्नी मर्दन !


आप तो छद्म उदरजीवी बने भये हो,
काहे उनमें अपना नाम दर्ज़ कराने पर उतारू हो, हम जानते नहीं क्या ?

लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

आपकी टिप्पणी ?

जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

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शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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