कैसा लगा बंम्बक नाऊ का किस्सा, कुछ ख़ास नहीं, बचकाना, मज़ेदार या कुछ और ?
वैसे भी यह पोस्ट गलत टाइम पर रिलीज़ हो गयी । हमरे बिलागपुरा में टेंशन हुयी गयी, कुछ जन बौरिया के गाली गुफ़्ता पर उतर आये, मरद मेहरिया सबै चिल्लाहट मचा दिये, सवा सोलह आने अराजकता के लेबल लायक । सब डिस्टर्ब होय गया । अभी तो ग़मी छायी है, बड़के मूड़ी जोड़ कर मंत्रणा कर रहे हैं, तमाशबीन मूड़ी पटक रहे हैं । पता नहीं इनको इस नऊये से का दुश्मनी रही ? हमको लगता है कि यह सुनियोजित दंगा, हमरे पोस्ट को फ़्लाप करने के लिये ही किया गवा है । खैर, जितना भी कोशिश करो.. नऊआ अमर है, मरेगा नहीं !
वैसे सच बताऊँ तो, मुझको भी लग रहा था कि यह कुछ जमेगा नहीं , निहायत गैर बुद्धिजीवी किसिम का किस्सा ! आपने कहा और मैंने आपके कहे का पालन ही तो किया । लेकिन.... ? आपमें से किसी को पिछले किस्से में ऎसा तो नहीं लगा कि नऊआ यह साबित कर रहा हो कि शासक के निरंकुशता के धमक को कितना भी दबा लिया जाय, किंतु इसकी गूँज किसी न किसी रूप में सुनायी ही देती है ? न भी लगा हो तो आश्चर्य नहीं, दुनिया की रीत एक ऎसा ज़ुमला है, जो हर ज़्यादती को अपने में समा लेता है, ए ब्लैक होल !
खैर, छोड़िये भी, अगर ब्लागर ज़्यादा दिमाग लगायेगा तो हो चुकी ब्लागिंग ! लगे हाथ दूसरा नया वाला किस्सा भी झेल लीजिये, फिर न कहुँगा कि आओ मेरी लंतरानी पढ़ो ।
एक रहें राजा... रियासत लोकेशन जिला नांदेड़, मौजा- मज़रे दू टीशन आगे, थाना लगता था- हमरी भैंस ! उनका एक निजी नाऊ था । ई राजा लोगन का तो हर चीजे परसनल होता है । नाऊ, पुरोहित.. बहुत लंबी लिस्ट है भाई । बस, इतना ही जान लीजिये कि किसी की भी बहू-बेटी,को समझते अपनी ही ज़ागीर । पसंद आयी, उठवा लिया । अब आपतो सब जानते ही हैं, ज़्यादा क्या बतायें ? खैर.. छोड़िये, हमलोग भले आदमी हैं, किसी के चरित्र से क्या लेना देना ? वैसे भी ब्लागर आज कल इसी सब चलित्तर से गुलज़ार है ।
सो, नाऊ राजा का अपना खास निजी था । रोज सुबह पहुँच जाता और राजा की दाढ़ी छीलछाल के, चम्पी वम्पी करके उनका चेहरा चमका देता था । नाऊ भला चुप रह सकता है, पूरे समय बकर बकर...बकर बकर । राजा को भी मौज आती थी, उनकी ऎंठू फारमल जिन्दगानी में एक यही था, जिससे वह रामायण से लेकर रमेसरिया राँड़ तक की बातें खुल कर किया करते । रमेसरिया के गदरायेपन का रस राजा के कानों में टपकाते हुये , उसकी आँखें इधर उधर नाचा करतीं । शायद राजकुमारी की एक झलक दिख जाये ? वह मन को समझाया करता, औकात में रह ! लेकिन उसका दिल डपट देता, काहे की औकात ? राजा साहेब रमेसरिया पर उतर सकते हैं, तो हम काहे नहीं राजकुमारी तक चढ़ सकते ? जिसका दिल जहाँ आजाये, कोई रोक है ? इसमें तो, मुला अपने ब्रह्मा विष्णु महेश भी रपट चुके हैं । और मेरी नियत में कौनो खोट थोड़े है, हम तो राजकुमारी को सिरिफ़ एक बार नज़दीक से छू छा कर, उनकी खसबू लेकर देखना चाहते हैं कि आखिर काहे की बनी है, उनकी उज्जर झकाझक्क काया ? बेचारा इसी उधेड़ बुन में लगा रहता, मन ही मन उसको दिन में कई बार निर्वस्त्र करके देखा करता । अरे चलो, आगे बढ़ो आगे बढ़ते रहो !
ख़ामोश नऊआ ( नाम गुप्त रखने की शर्त है, उसकी ), तो नऊआ ख़ामोशी से अपना काम कर रहा था । राजा ने तिरछे होकर गैस निकाली और गरदन पर खुज़ली करते हुये बोले, "आज क्यों बड़ा चुप चुप है, कुछ बोल नहीं रहा ?" नाऊ एकदम से अपने फार्म में आ गया, " कुछ नहीं सरकार, हमरे तो गँवारू मन में यही चल रहा था कि देखो भगवान भी कितनी नाइंसाफ़ी किये है । हमसे फँसती सब की है, हमरे बिना कुछ शुभ हो ही नहीं सकता , फिर भी दुत्तकारे जाते हैं ।" राजा ने हुँकारी भरी, तो नऊये का हौसला बढ़ा, "अब देखिये हुज़ूर, कि दुनिया आपके आगे सिर उठाये तो सिर कलम कर दिया जाये, लेकिन आप हमरे सामने रोज़ ही मूड़ी झुकाते हैं । जिनको देख के लोगन की हवा गुम हो जाती है, अकड़ ढीली हो जाती है, उनके गरदन पर हमारा उस्तरा चला करता है । है कि नहीं हुज़ूर ? आपके मोंछ की एक बाल के लिये सिपाही अपनी जान दे दें, अब भला मोंछ और मोंछन की लढ़ाई में आपसे कोऊ आज तलक जीत सका है ? " सो तो है," राजा मगन हुये ।
"लेकिन हुज़ूर, अब इहाँ कौन देख रहा है कि ई साला नऊआ आपके मोंछन के एक एक बाल को खींच खींच, उनपर कैंची चला रहा है ? इहाँ मोंछन को लेकर जंग छिड़ी है, और हम आपके मोंछ रोज़ ही कतरा करते हैं !" अब राजा असहज हुये, यह बेलगाम नाऊ आगे कुछ और न बोल दे । उन्होंने उसके बकबक पर ब्रेक लगायी, "हाँ हाँ ठीक है, मेरा मन खुश होता भया, बोल क्या ईनाम चाहिये ? " अब नाऊ जी सतर्क हुये, सही मौका है।
लहरा कर प्रतिवाद किया, "अरे नहीं हुज़ूर, ईनाम ऊनाम की कोई बात ही नहीं है, हम तो ऎसे ही कह दिये मन की बात ।" साले का मुँह तो बन्द करना ही पड़ेगा, गरज़े राजा "बोल क्या ईनाम चाहिये, अपने मुँह से बोल लेकिन जो जो यहाँ अभी बोला है, ख़बरदार जो बाहर जाकर किसी से बोला ।" रंग में आगये नाऊ महाराज, " माई बाप, हमने ईनाम ऊनाम लायक तो कोनो काम नहीं किया, हम तो एकही बात बोले कि आपकी मोंछ पर हमारी कैंची...." राजा दहाड़ने लगे, ( बताया था न कि इन बड़कन के मिज़ाज़ का कोई भरोसा नहीं होता ) , " तू अपना बख़्सीश ले और चलता बन ।" नाऊ सयाने तो मन में झूम उठे, थोड़ा और गरम हों लें तो हम चोट करें । राजकुमारी से एक रात अकेले रहने की इज़ाज़त तो लेकर रहेंगे ।" राजा अब रंभाने लगे, "अरे बोल दे भाई, हाथी लेगा, घोड़ा लेगा, गाँव ज़ागीर चाहिये तो वह भी बोल, लेकिन अपना मुँह बन्द रखना ।" श्रीमान नाऊ ने अब अपना बैटिंग आर्डर बदल दिया,"हुज़ूर ई सब तो बड़े मनई को शोभा देता है, हाथी...ज़ागीर हमसे कहाँ संभलेगा ? "
हुज़्ज़त बढ़ती गयी, अंत में नाऊ श्री ने भूमिका बनायी, "सरकार चीज बस्त लेकर क्या करेंगे ? हम गरीब के बात से आपका मन खुश हुआ तो आप भी हमारा मन खुश कर दीजिये । हमको खुश करके अगर आपको खुश होना ही है तो बस हमको खुश कर दीजिये, चाहे जैसे... हम आगे कुछ नहीं बोलेंगे । हमको तो सिरिफ़ खुश होने से मतलब है ।" राजा किचकिचा गये, "अबे खुशखुश् खुशखुश किये जा रहा है, कुछ मुँह भी खोलेगा कि लगाऊँ दो जूते ?" नाऊ अब मन ही मन मुस्काया, थोड़ा और पगला जायें, तब तो हम कबूलवा ही लेंगे...जो हम चाहते हैं । मज़बूरी सब मंज़ूर करा देती है । वह मिमिया कर बोला, "हज़ूर चाहे दो जूते लगायें चाहे दो लाख ? हम उज़ुर ( उज़्र ) नहीं करेंगे । हमको तो बस खुश होने से मतलब है, ताकि हम भी कह सकें कि हम जिस मोंछ को जी जान से इतना तराशे भये हैं, उस मोंछ की शान में हुज़ूर ने बट्टा नहीं लगने दिया ।"
"यह तो बज़्ज़र हरामी है । मुँह भी नहीं खोल रहा है और इतने देर से मेरा मोंछ खींचे जा रहा है कि बस, खुश्श कर दो .. कुछ लेंगे नहीं !" राजा को अब गश आने लगा , हताशा में जो कुछ उनके मुखारबिन्द से झर रहा था, वह यहाँ ब्लागित किया जाना संभव नहीं है ( यहाँ से दो पेज़ बाँयें जा कर धाक गली 47 के क्रम संख्या 1857 पर इन का ज़ायज़ा लिया जा सकता है, कुत्तों से सावधान का बोर्ड घुँधला गया है, अपना ख्याल रखें )
चमगोईंयाँ की आहट पाकर मंत्री जी भी आगये, तुरंत माज़रा समझ गये । मंत्री जी ने आन बिहाफ़ आफ़ राजा साहब नऊये से एक दिन की मोहलत माँग कर उसे विदा किया । समेट रहा हूँ.. दो घड़ी बाद लौट कर, गुप्तचरों से प्राप्त जानकारी का निष्कर्ष राजा को रटवा दिया कि बस आप यही बोलना । फिर देखियेगा कि नाऊश्री कैसे नहीं खुश होते हैं ? राजा को संशय तो था किंतु लाचार थे , एक बार यही सही !
अगले दिन सज वज के नाऊश्री पधारे, सबको मात दे देने की अदा से सलाम किया । राजा ने देखते ही उनको एक ज़रूरी बात कहने को अपने पास बुलाया, और उसके कान में कुछ कहा । नाऊ एकदम से उछल पड़ा, हर्ष से नाच ही तो पड़ा," हज़ूर, आपने तो तबियत खुश कर दी । अरे सरकार आप नहीं समझेंगे कि हमने इसमें कितना दिमाग लगाया था । सरकार अगर हम कुछ देने लायक होते तो हम आप ही को कुछ इकराम दे देते । अब चलने दीजिये हज़ूर, एक बार हम अपनी आँख से जी भर के तो देख लें । तबियत खुश हो गयी , सरकार !"
राजा ने डपट कर पूछा,"अबे इतने कशीदे मत पढ़, सीधे सीधे बता कि तू खुश तो हुआ नऊये ?"
नऊआ वहीं कलाबाजी खा गया, "अरे माई बाप, भला कौन नहीं खुश होगा । यह तो ऎसी चीज़ है की इस दुनिया का कौन नहीं खुश होगा ? हम बहुत खुश हैं सरकार, बहुतै खुश !"
अब बारी राजा साहब की थी । वह चारों ओर गरदन घुमा कर दरबार का ज़ायज़ा लेते हुये , सगर्व बोले, " तो नऊये, तू खुश हुआ यानि कि हमारा देना पावना बरोबर !" नऊआ अब सहमा, फँस गये गुरु, " जी ऎसा ही समझा जाये, सरकार ।" और चलने को हुआ, कि राजा ने चुटकी ली," मतलब तुम्हें ऎसे ही खुशी मिला करे तो किसी की मूँछ पर लपकोगे तो नहीं ? " नऊये ने पीछा छुड़ाया, "किसी की मूँछ क्या, अपनी मूँछ का भी ख़्याल मन से निकाल देंगे ।" उसने पूरे दरबार को जै राम जी की बोली, और सरपट चलता बना !
हमसे भूल हो गयी ; वह क्या कि नऊआ की ख़ुशी में मैं भी बह गया । आप सब भी सोच रहे होंगे कि यह कोई आर्ट फ़िल्म की स्क्रिप्ट जैसे बीच में ही दि ऎन्ड कैसे हो गया ? गुप्तचरों ने सूचना क्या दी थी ? नउआ हर्षाया क्यों ?
दरअसल गुप्तचरों के अनुसार नाऊश्री एक ब्लाग लिखते थे ' तेरी कहानी - मेरे कैंचीं उस्तरे की ज़ुबानी' ' यह ब्लाग उनके दुश्मनों से निपटने के काम आता था । उनके उस्तरे के धार की बड़ी धाक थी । कैंचीं उस्तरे के बीच प्रतीकात्मक लड़ाई भी हुआ करती थी । लिहाज़ा यहाँ कोई आता जाता नहीं था । नाऊश्री यहाँ स्वयं स्खलित होकर संतुष्ट हो लेते थे, बस ! वह नोटिस न लिये जाने से भी परेशान रहा करते थे कि राजा ने उनके कान में भर दिया कि वहाँ टिप्पणी आयी है, व रातोंरात हिट संख्या ढाईगुनी हो गयी है । समझा तो यह भी जाता है कि इतनी सघन आवाजाही से स्टैटकाउंटर भी पनाह माँग गया । अब इससे कौन खुश नहीं होगा ? क्या आप खुश न होते ? नऊआ खुश हो रहा है, तो क्या बेज़ा है ? मुस्कुराइये और आप भी इनकी खुशी में बह लीजिये । चलता हूँ, नमस्कार !
2 टिप्पणी:
सही हो गया. अब सही खुल रहा है आपका ब्लॉग और आराम से पढ़ पा रहे हैं. आपने हमारी गुहार सुनी, आभार करता हूँ.
वाह जी वाह.
आनंद की चरम सीमा पर ले गए आपतो.
क्या धारदार और कांटेदार व्यंग्य का उस्तरा मारा है.
मान गए उस्ताद जी.
भाई मज़ा आगया.
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
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इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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