बुश आजुकाल फिर से बौराये भये हैं, पता नहीं उन पर कौन सी खुज़ली सवार होय गयी है ? डा० आर्या बतावें तो बता दें, चमड़ी की परख रखते हैं, वरना हम तो सीधी बात जानते हैं कि वह अपने जाते हुये राज का डर इस नवी किसिम के ख़ाज़ से छुपा रहे हैं । हमारी किताबें तो इसको कन्वर्ज़न रियेक्शन के नाम से पुकारती है । हुच्च हुच्च कर बता रहे हैं कि देखो दुनिया वालों, जिस भारतवर्ष की आबादी दुई बेर खाती थी और अब उसी की आधी आबादी दुई बेर खाने के जुगाड़ में हलाकान है, उसी नवे खलनायक हिंन्डियाः ( भारत ) के नालायकी से पूरी दुनिया में अनाज का टोटा पड़ा है ।
ओऎ बुश, तू अपनी बगलें खुजा । हमें काहे दिखा रहा है ? हमारे यहाँ का तो बच्चा बच्चा जानता है कि ' जो मज़ा ख़ाज़ में है, वह राज में नहीं ! ' इसलिये तुझे माफ़ करते हैं । तू चुपचाप अपना ख़ाज़सुख भोग । ऒऎ अमेरिकन झंखाड़, हम्मैं तो तू मुंडेरी पर बैठा बंदर लाग्गे है । बाँयें हाथ में रोट्टी दाब के अटारी से हम्मैं घुड़क रहा है । तेरे पीठ की ख़ाज़ तो हमैं जैसे दिक्ख ना रही ? अच्छा चल भई, मान ही लेते हैं कि ये हिंन्डियाः वाले बहुत दुष्ट हैं, सारा अनाज इकट्ठा करके वा में आग लगा दी , पण तेरे को क्या ? तेरे यहाँ तो सूअर भी मक्का खा खाके मोटा हो रहा है, फिर तू तो उसको भी काट के खा जावेगा । फिर तेरे को क्या ? अमेरिकन तो पेट भरने के वास्ते कुछ भी ठूँस लेता है, पर अनाजाश्रित तो हमारी आबादी ठहरी
तू काहे परेसान है ? क़ाज़ी के रोल में तो यार, तू फ़्लाप होगया, अब किसने तेरे को मौला बना दिया ? कौन तेरे से रोट्टी माँगने जा रिया है ? शायद यही तेरी तक़लीफ़ है ? बोल तो, भेजूँ ओरिज़िनल हिंन्डियःन चाँदसी वालों को ? तेरा बवासीर तो अब हमैं तक़लीफ़ देने लग पड़ा है, मान भी जा ऒऎ नासमझ, एक टीके में जड़ से खत्त्म ! नहीं मंज़ूर, तो चुप्प करके बैठ । किसने कहा था, तेरे से चौधरी बनणे को ? चौधराहट भी तेरे को सूट करती ना दिक्खै । तू तो किसी का नन्हा सा भी ठेंगा देखते ही उछलने लग पड़ता है । अब भई, इतना तो झेल ही लिया कर, काहे परेसान है ?
नाज़ियों की उलटखोपड़ी के चलते, तेरे को इतनी बेहतरीन खोपड़ियाँ मिल गयीं कि भगोड़ों लुटेरों का बेनाम मुलुक, अमेरिका कहलाने लगा । फिर हमारे हिंन्डियःन दिमागदारों के तड़के-रेसिपी ने तेरी मार्केट वल्यू कुछ ज़्यादा ही बढ़ा दी । और अब तेरी भी खोपड़ी नाज़ी तर्ज़ पर नाचती नाचती उलट रही दिक्खै है । चल भई हम तेरी बकवास गाँधी बाबा के नाम पर सह लेते हैं । पण एक शर्त है, तू दुनिया के सामने सिर्फ़ एक, बस सिर्फ़ एक पीस कच्ची घानी का ओरिज़िनल अमेरिकन रक्ख दे ! ईब्ब, इतणा गुमान भी ठीक नहीं, भाई ! ' मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना '
ऒऎ झंखाड़ कहीं के, खों खों करता दुनिया भर में अपनी गाल बजाता हुआ, अपनी चौधराहट की ऎसी तैसी क्यों करवा रहा है ? हर बार उछल कूद मचा कर फिस्स हो जाता है, भकुये ! अच्छा चल, यही बता दे कि हमारे भुक्खड़ भारत ने तो बिना तेरी मदद और धमकी को ठेंगा दिखा कर तीन तीन ज़ंग जीती है । तेरे पिट्ठुओं को छक कर पानी पिलाया है । अब तू अपनी बता, आज तलक कौन सी ज़ंग तैने जीती है ? वियतनाम से शुरु कर और सिर झुका कर अपनी जीत के निशान ढूँढ़ता हुआ हम अनाजखोरों की गली तक आकर तो दिखा ! छड्डयार, होगा तू अपने मुँह मियाँमिट्ठू का महाशक्ति ? ताकत मशीनी मक्कारी के तामझाम में नहीं, इंसानों के बाजूओं में और हौसले में होती है, बे ! तेरे सिपाही तो मोर्चे पर भी दिल को बहलाने को लौंडिया माँगते हैं, तेरी आतुर बालायें भी देशसेवा के नाम पर लाल-सफ़ेद-नीली सितारा पट्टी की स्कर्ट उतारने फ़ौरन हाज़िर हो जाती हैं । क्यों मुँह खुलवाता है, निट्ठल्ला बैठा हूँ, तो क्या ? सोचता हूँ कि तेरे रंगरूटों का सारी ताकत यूनिफ़ार्म के पैंटों में ही भरी पड़ी है, बुरा मत मान भई ( बुरा मान भी जायेगा तो के कर लैग्गा ? ) तेरे रंगरूट अपना सारा ज़ौहर तो औरतों, बच्चों और बुड्ढों पर ही तो दिखाते हैं ! डरपोक कहीं का !
मानसून मेरे यहाँ अभी भले न आया हो, लेकिन अमेरिका में साइरन बजने लग पड़ा कि मुंबई के सड़कों के मेनहोल से ज़िन्दा बचकर भाग आओ, छिः ! चूहे का दिल भी इससे जियादा मज़बूत होता होगा । अपनी प्लेट के पुडिंग को छोड़, परायी रूखरी देख देख काहे परेसान है, भाई ?
2 टिप्पणी:
बुशजी बुरा नहीं मानेंगे काहे से कि इसे पढ़ ही न पायेंगे।
@ अनूप जी
अरे भईय्यू,
बिल्कुल खांटी पोस्ट है, और अपना काम कर चुकी है ! ब्लागस्पाट के
निगरानी होती है, ऎसा मेरे एक भारतीय अमेरिकी मित्र ने जनवरी में इशारा दिया था ।
और मैंने परख भी लिया । पर सनसनी फैलाना अपना काम नहीं है । निशाख़ातिर रहो कि ब्लागर पर
हिंदी में लिखने वाले भले भूले भटके यहाँ आयें लेकिन पढ़ने वालों में शायद आप दूसरे व्यक्ति ही होंगे । इससे पहले ही यह पढ़ी जा चुकी होगी । माई कसम !
हाथ कंगन को परखने के लिये आप ठेठ अवधी में एक मेल president@whitehouse.gov पर पठाय के देख लो, ज़वाब आता है कि नहीं ? तुम्हार कोऊ का कर लेहे !
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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