टाइमिंग के मामले में, मुझे कमज़ोर समझा जाता रहा है , गलत समय पर टप्प से बोल देना । शायद आज फिर यह साबित होने जा रहा है । पिछली बार डा० अमित कांड के समय, मैं एम्स के हड़ताली ( ? ) डाक्टरों के पक्ष में कुछ लिख-विख रहा था... अब डाक्टर तलवार सुर्ख़ियों में हैं, तो नारको टेस्ट पर लिखने को ऊँगलियों में कई दिन से ऎंठन हो रही है । लिखूँ ?
बड़ा फ़ैशन में है यह नारको, अ हैपेनिंग थिंग । हम भारतीयों की एक विशेषता है, अंधानुकरण ! बहुधा फ़ैशन को केवल एक शब्द ' प्रचलन ' से ही परिभाषित करके फ़ारिग हो लिया जाता है । ठीक है, लेकिन प्रचलन तो प्रचलित होने के बाद ही तो उपजता होगा, यह जैसे मुर्ग़ी और अंडे के अबूझ पहेली सरीखा समीकरण है । बिना दिमाग लगाये, किसी भी अच्छी-बुरी चीज को लपक लेना, अंधानुकरण ही कहलायेगा, शायद ? इतने सारे शायद क्यों ? क्योंकि मैं कोई समाजशास्त्री नहीं हूँ, इसलिये !
नारको आख़िर है क्या ? यह केवल इस अवधारणा पर आधारित है कि एक व्यक्ति यदि कोई झूठ बोलता है तो उसमें वह अपनी कल्पनाशक्ति से ही ऎसा झूठ गढ़ने में सक्षम हो पाता है । किंतु अर्द्धचेतन अवस्था में, ऎसा संभव नहीं हो पाता ..वह केवल ज्ञात तथ्यों को ही बता पाता है। इसके लिये ट्रुथ सीरम (Truth Serum) का प्रयोग कर उसे इस अवस्था में लाया जाता है ।
और, क्या है ट्रुथ सिरम ? यह कम अवधि वाले शल्यचिकित्साओं में प्रयोग किया जाने वाला निःश्चेतक सोडियम पेंटाथाल या ऎमाइटाल सोडियम है, जो कि एक निर्धारित मात्रा में सूई से नसों के ज़रिये दी जाती है । मनुष्य इतना निःस्तेज हो जाता है कि अर्धबेहोशी में पूछे जाने वाले सवालों के मनमाने ज़वाब गढ़ने लायक ही नहीं रहता । क्या जादुई चीज है, यह ट्रुथ सिरम ?
किसने खोजा ट्रुथ सिरम ? सच बतायें, तो आधुनिक विज्ञान के अधिकांश खोजों की तरह यह भी अनायास ही हाथ में आया बटेर है । यह किसी चरणबद्ध अनुसंधान का परिणाम नहीं है । सन 1916, शहर- डेलास, प्रैक्टिशनर डा० राबर्ट अर्नेस्ट हाऒस किसी महिला को दर्द कम करने के प्रयास में स्कोपेलेमाइन दवा से मूर्छित करके प्रसव कराने के लिये जाने जाते थे । एक बार वह इस तरह से कराये गये प्रसव के उपरांत कोई घरेलू वस्तु, संभवतः स्केल खोज रहे थे । उस महिला ने बेहोशी में भी जैसे उनकी परेशानी भाँप ली हो, और उसने उस वस्तु का बिल्कुल सही ठिकाना उसी स्थिति में बता दिया । अब डाक्टर राबर्ट के चौंकने की बारी थी । उन्होंने इस कोटि की दवाओं के इस प्रकार के प्रभाव से चमत्कृत होकर इसे ट्रुथ सिरम नाम दिया, जो अबतक चला आ रहा है । 1920-30 के दशक में कुछ अदालतों ने इसको साक्ष्य के रूप में मान्यता दे तो दी, किंतु एक ही व्यक्ति पर इसके अलग अलग परिणाम देख 1950-51 में वैज्ञानिकों ने स्वयं ही इसे अनुचित करार दिया । दुनिया के अधिकांश विकसित देश इसको आज़मा कर, बहुत पहले ही छोड़ चुके हैं, कारण कि परिणामों में अस्थायित्व का होना,..यानि गैर-भरोसेमंद !
कैसे होता है यह सब ? एक ऎनेस्थिसिया एक्सपर्ट उस व्यक्ति को उसके स्वास्थ्य, वज़न एवं अन्य जाँच रिपोर्टों के आधार पर पेंटाथाल की एक निश्चित मात्रा देकर उसे अर्धमूर्छित अवस्था में ला देता है । अपराध मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि का दूसरा एक्सपर्ट उससे सरल किंतु केस से संबन्धित व दिशाग्रित प्रश्न पूछता, दोहराता रहता है, और उसके उत्तर रिकार्ड होते रहते हैं, विश्लेषण हेतु ।
सही तो है, फिर लफ़ड़ा क्या है ? एक आम हिंदुस्तानी नज़रिये से देखा जाय, तो कोई लफ़ड़ाइच नहीं । राज काज है... , कौन सिर खपाये ? मुझ जैसे अवैतनिक मुल्ले तो ख़्वामख़ाह परेशान रहा करते हैं ! यदि पढ़ना जारी रखा हो तो लफ़ड़े भी गिनवाऊँ ?
तो गिनिये ... एक - यह तो जाँच एज़ेंसियाँ भी मानती हैं कि इसे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाता, केवल यह किसी जाँच का हिस्सा भर है ! फिर, इस नाटक की वजह ? इसके परिणामों पर भरोसा इतना कि साथ में ब्रेन-मैपिंग कर इसकी सत्यता आँकी जाती है । दो - क्या यह बर्बर तरीका नहीं है ? एक अर्धमूर्छित व्यक्ति के गाल पर लगातार चाँटे पड़ रहे हों, और उससे सुझाने वाले प्रश्न पूछे जा रहे हों । सूखे ओठों से निकलती मुरझायी उदास आवाज़ों में किसी सच्चाई का अन्वेषण किया जा रहा हो । असंगत क्या, यह हास्यास्पद भी है ! एक पल को कल्पना करें - अमर कुमार का नारको टेस्ट हो रहा है, उसके गाल पर तड़ाक से एक चाँटे के साथ पूछा जाता है, " बताओ, उड़न तश्तरी का इस अपहरण में क्या हाथ है ? " मेरे उस प्रतिरोधहीन अवचेतन से सिर्फ़ इतना ही निकल पाता है कि, " अँ..अँ.. टिप्पणीसम्राट... 71 टिप. टिप्प .. ...अँ अँ..हँ आज 71 टिऽऽ..टिप्पणी... टिप्पा..णि ..जी उड़नटिप्पणी हैं वो ! " आगे फिर एक जोरदार चाँटा, " तुमने कहाँ देखा था इस उड़नतश्तरिया को ? " मेरा ज़वाब, " अँ.. कनाडा के जब्बल्पु... में.. हाँअँ ..कन्नाडा केह.. हँ.. जबलपुर मँय ! " अब माई का लाल एक्सपर्टवा अपना निष्कर्ष निकाल ले, जो निकालना हो । मैंने तो कोई झूठ नहीं बोला,सच ही कहा । सारे तथ्य तो दे ही दिये । उनके हाथ हाथी की सूँड़ आयी या दुम, यह उनकी किस्मत ! और हो गया ऎलान, जाँच असफ़ल रही..अमर कुमार से सच उगलवाना आसान नहीं ! तीन - मादक द्रव्य की सहायता से किसी के शरीर को अवश कर अपना मनोवांछित प्राप्त कर लेना अपराध माना गया है.. बलात्कार ! यदि मैं दारू पिला कर, नशे की हालत में डा० अनुराग की सारी ज़ायदाद लिखवा लेता हूँ, तो यह भी एक अपराध ही बनेगा.. धोखाधड़ी ! अब इसी तर्ज़ पर नशे की दवा से किसी के मन को अवश कर अपना सोचा हुआ सच उगलवाने की चेष्टा अपराध क्यों नहीं ? मेरा तार्किक मन यह तथ्य निगल नहीं पाता । हो सकता है, कि दिनेश जी इस पर कुछ प्रकाश डालें, मेरा तो भाई, सिर घूम रहा है ! आपने सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर ले लिये हैं, तो कोई कमाल नहीं किया... भारतीय पुलिस तो हाथी से भी उसकी सूँड़ ऎंठ कर उसका चूहा होना कबूलवा सकती है । चार - इस पूरे परिप्रेक्ष्य को देखते हुये, इसे साइकोलोज़िकल थर्ड डिग्री से अलग करके कैसे देखा जाये ? मेरे मूढ़ मन का मनन - मरोड़ तो यही चिल्ला कर कह रहा है, क्यों व कैसे ? पाँच - क्या वज़ह है कि सन 2000 से फ़ोरेंसिक-साइंस लैब, बैंगलोर द्वारा फोर इन वन ( 4 in 1 ) का यह किफ़ायती पैकेज़ दिये जाने के बाद से ही नारको टेस्ट .. नारको टेस्ट होने लगा है ? कम ख़र्च तो ठीक है.. पर बालानँशीं कहाँ है ? तेलगी से तलवार तक हम्मैं तो ना दिक्खी ! छः - छ से छोड़िये । छोड़िये भी ..पोस्टिया लंबी खिंच रही है...होना जाना , कुछ है नहीं फ़ालतू का टाइमपास । आज बहुत ब्लगिया लिये.. बाकी फिर !
श्री अशफाक उल्ला खां – मैं मुसलमान तुम काफिर ?
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इस तरह की अपनी कुर्बानियों से वतन की मिट्टी – पानी का कर्ज़ अदा करने
वाले सिरफिरे मतवालों में श्री बिस्मिल के बाद अशफ़ाक़ उल्ला खाँ का ही नाम
आता है...
15 टिप्पणी:
बिल्कुल सही कह रहे हो..होना जाना क्या है कौन जाने..मगर चाँटें खा कर आपने ऐसे जबाब दिये कि कोई आंकलन लगायेगा!! हा हा!!
अरे डाक्टर साहब, आप तो वैसे ही सच बोलते हैं। आपको नारको-फरको कराने की क्या जरूरत?!
लिखा मस्त है। :)
सर जी....नार्को का तो हमें पता था पर आपके ब्लॉग पर जो किस्म किस्म की कलाकारिया है जैसे पॉइंट के निशान वो बहुत खूब है....
बहुत जोरदार लिखा है आपने। नारको टेस्ट नरक तो है ही। आपका धाराप्रवाह लेखन शुरू से आखिर तक रोके रहा।
वैसे नारको टेस्ट तो छोटा टॉर्चर है, अगर संदिग्ध आदमी से सीधे कोई बात कबुलवानी हो तब तो उसकी और दुर्दशा होगी। हो सकता है कि नारको के बहाने कोई क्लू मिल जाए, तो नारको कराने वाला आदमी अगर सही है, तो थाने में बेमतलब लात खाने से बच जाएगा।
भई बहुत मजबूरी है, क्या करें पुलिस वाले? कुछ आप ही सुझाइये। अब हत्यारे, पुलिस वालों के रिश्तेदार तो होते नहीं हैं कि वे उन्हें सब कुछ बता देंगे, पुलिस वालों के निवेदन करने पर- कि यार बता दे नहीं तो नौकरी चली जाएगी।
सत्येन्द्र
डाक्टर अमर कुमार जब लिक्खेंगे तो ऐसा ही लिक्खेंगे। यह हम ने बहुत पहले जान लिया था।
नारको जाँचपूरी तरह से अमानवीय है। मैं ने अभी जाँच नहीं की है, पर यह मानवाधिकार के भी विरुद्ध होना चाहिए। आप ने पहल की है, चिकित्सकों को इस का सच सामने ला कर
इस के विरोध में आवाज बुलंद करनी चाहिए।
हाँ अगर दुनियाँ भर की किसी भी भाषा की ब्लागिंग में सजावट की प्रतियोगिता हो जाए तो डॉ. अमर कुमार का नम्बर पहला ही होगा। इतने आइटम कहीं नहीं मिलेंगे। ईर्ष्या हो रही है।
टे
बहुत जानकारी भरी पोस्ट है आपकी तो। हमें इससे पहले पता ही नहीं था कि नार्को को अदालत में मान्यता नहीं है।
आपने ये जो फुलते-पिचकते हुये तीर बनायें हैं वे बड़ी मार करते हैं। धांसू!
apko narko test i kya jarurat hai aap to doctor hai .rochak post hai . bahut khoob .
maine abu salem ka narco test dekha tha jo t.v. par dikhaya ja raha tha lekin kai sawaalon ke wo galat jawab bhi de raha tha..ye kaise hua?
नार्को का सच आपके जरिये से जानकर बहुत कुछ जानने का मौका मिला , धन्यवाद !
नारको के बहाने जबरदस्त पोस्ट पढने को मिली है, बधाई।
क्या बात है डाक्साब...
आपके पास जो भाषा है बहुत कमाल है...
आपका शुभेच्छू
अंगूठा छाप
...एक बात पूछूं डाक्साब?
...कहो तो पूछूं ??
bahut jaankaari bhari post.
बहुत सुंदर तथा उपयोगी पोस्ट लिखी है आपने ! बधाई
कमाल का है यह नार्को भी । और आप तो बस आप ही हैं ।
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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