हेरा-फेरी ठोंकि के एकु पोस्टिया तौ लिया बनाय, पाठक आपहू बाँचि कै शीर्षक दियो बताय । दो दिन से वाकई निट्ठल्ले से माहौल से दो-चार हो रहा हूँ, वज़ह— अनवरत वर्षा ! बादल देख कर किसका मनमयूर न नाचता होगा, केवल हाइड्रोफोबिया का मरीज़ एक अपवाद है । लेकिन जब नाच नाच कर मनमयूर थक जाये, और भीगे पंख सुखाने को कोई ठौर न मिल न रहा हो, तो मनमयूर का सारा उल्लास हवा हो जाता है । दूसरे अपवाद फ़ुरसतिया गुरु दिख रहे हैं । बरसात पर बड़ी मस्त काव्य-पोस्ट ठोकी है । लेकिन हमारे जैसे दिहाड़ी पर मज़ूरी करने वाले से पूछो, महीने का पहला हफ़्ता…, पाँच – छः जन की सैलरी ( चलो, वेतन ही सही, आगे बढ़ें ? ) निकालनी है, ऎसे में मरीज़ों का आनाजाना ठप्प है, सो अलग ….
कल दोपहर को क्लिनिक से लौटते हुये ऊबा हुआ सा लौट रहा था, पेट्रोल की पोज़ीशन देखने की हिम्मत जुटाते जुटाते फिर टाल ही गया । आज छुट्टी है, कल रात से लगातार झिर्र-झिर्र लगी है । आज सुबह बरसात का मज़ा लेने के शगुन करने भर को दूर हाई-वे पर यादव के होटल तक जा उसकी प्रसिद्ध पकौड़ी खाने निकल गया । लौटने में पेट्रोल-मीटर की सूई पर निगाह गयी और यादवजी की पकौड़ी गले में आकर जैसे अटकने लगी ।
तेल अगर ऎसे ही हमारा तेल निकालता रहेगा.. तो कैसे चलेगा ? शायद ऎसे
आख़िर फ़िज़िक्स ( भौतिकी ) में पढ़ी हुई हार्स-पावर की महिमा दिखने लगी । घोड़े जी को लोग भुला बैठे, अब बुला रहे हैं । कुछ तो है.. जो कि ! वैज्ञानिक लोग बैलशक्ति, भैंसशक्ति या गदहाशक्ति को एक किनारे कर अश्व-शक्ति पर टिक गये । अब देखो, घोड़ा होता तो पेट्रोल की ज़रूरत ही कहाँ पड़ती ? अधिक से अधिक हर जगह पर घास-डिपो ही तो होते, घास की खपत इतनी बढ़ जाती कि हमारे लिये चरने को घास ही न बचती । घोड़े की सवारी की सवारी और लीद से बायोगैस बना कर रसोई गैस सिलिंडर के लिये लाइन न लगाना पड़ता । सो…मित्रों, अश्वम शरणम गच्छामि ॥
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अब देखिये जरा, इस लड़की बेचारी को याद दिलाया जा रहा है कि गाड़ी वालों से पैसा क्यों माँग रही हो ? बेचारे कार वाले खुद ही मँगते हो रहे हैं ! तेल बेचने वालों की इतनी क़दर बढ़ गयी है, कि फ़ारसी पढ़ना भी अब कोई ज़रूरी न रह गया । कोई जन इ्नका विकल्प दोपहिया को न बताने लगना ।
दोपहिया वालों को भी तो अब यह रास्ता अख़्तियार करना पड़ेगा…
अब आप भी जाकर प्रैक्टिस करो, आगे काम आयेगा । और मुझे भी चलने दो…यह निट्ठल्ला चिंतन तो इस समय जैसे दिमाग उड़ाये दे रहा है । बाहर बारिश भी रुक गयी है, देखूँ जरा शहर में अमन-चैन है तो ? यदि इंन्दौर में नहीं रहते तो..आप भी अपने शहर का हाल लिख भेजना ।
चलो इस पर स्यापा करने को ज़िन्दगी पड़ी है, अभी तो एक शीर्षक सुझाओ
8 टिप्पणी:
गुरु जी इसके लिए तो आज तक वालो या इंडिया टीवी वालो की राय लेनी पड़ेगी....कोई सनसनीखेज शीर्षक वही दे पायेंगे,पेट्रोल तो हमने भी दोपहर भरवाया था पर आप.....गुरूजी...आपका निठल्ला चिंतन....सनसनीखेज है.....हम असमर्थ है शीर्षक देने में ...
aapke blog ka link dene me pata nahi kyu problem ho rahi hai....mere blog par .fir try kata hun.
chitr bade rochak hai . ane vala samay shayad esa hi ho .
पप्पू Can't Walk साला
:)
धांसू है। बेशीर्षकै मजेदार है। :)
इस प्यार को क्या नाम दूँ ?? ये शीर्षक दे कर देखे , ब्लोग्वानी मे टॉप पर दीखेगा !!!! चिंतन और शीर्षक का मेल हो ये कोई जरुरी नहीं हैं और निठल्ला चिंतन हो तो बिल्कुल नहीं
दुनिया रंग रंगीली कैसा रहेगा?
निराली दुनिया शीर्षक कैसा रहेगा।
सतरंगी दुनिया...तस्वीरें देख कर बस यही निकल गया , बहुत सुंदर...
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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