जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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06 September 2008

शब्दों की तलाश में निकली एक प्राणहीन पोस्ट

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कुछेक अहसास को आप शब्दों में बाँध नहीं सकते । लगता है, बहुत कुछ ऎसा ही अभी सारे देश और पूरे विश्व में देखा गया है । इसकी आप भर्त्सना कर लें, निंदा करें, बहसियायें, गरियायें.. फिर भी इस तरह के वतनी शर्मिन्दगी को लफ़्ज़ों मे कैद न कर पाने की छटपटाहट जस की तस बनी रहती है । किसी उपयुक्त शब्द को तलाशने आप कंदराओं में क्या जा पायेंगे, क्योंकि आपका तपोबल तो बलात्कार ( चलो भाई, मानसिक ही सही ) करते रहने और अपने साथ अनेक ( आर्थिक स्तर के ) बलात्कार होने देने में ही चुक गया है । ध्यान रहे, कि यहाँ  मैं नैतिकता का कोई  प्रश्न ही नहीं उठा रहा । मुझे उठाना भी न चाहिये, क्योंकि अनैतिकता की थाली में खाते रहने वाले कराह भले लें, पर गरजा नहीं करते । यह तो.. ऎंवेंई उबाल है, संभवतः कल तक ठंडा भी हो जाय । एक ई-मेल ने कुछ कुरेद दिया, सो आप मित्रों के सामने बिलबिला पड़ा । नैतिकता की कस्तूरी की खोज में भागा करता था, ज़नाब फ़लाँ-ढिंकाँ ने फ़रमाया …  इसको कहाँ ढूँढ़े रे बंदे.. शाम  को बुलाया है कि मेरे भीतर से ही बरामद करके दिखा देंगे । अब देखिये.. क्या होता है ?  अगर कल को यहीं ब्लागर पर ’ निट्ठल्ला टाइप ’ पोस्ट लिखते पाया जाऊँ, तो समझो नैतिकी ब्रांड कस्तूरी बरामद होने से रह गयी । अपनी जगह पर है तो, सवा सोलह आने , पर मैं भी तो आप सब की तरह बाल बच्चे वाला आदमी हूँ .. सुना है कस्तूरी के लिये उस्तरा चलने का दर्द झेलना पड़ता है.. माफ़ करना बंधु, यह तो मुझसे न होगा ! अरे भाई, को घर फूँके आपना.. !

प्राणहीन देश  या शब्दहीन पोस्ट --- क्लिक करें असलियत देखें

इस चित्र /कार्टून ने भाई बवाल काट रखा है । पूरे देश का कार्टून बना रखा है, तब भी चैन न मिला तो नीरज गुप्ता जी से कह सुन कर मेरे मेल-इनबाक्स में प्रगट हो गये… और मैं उलझ गया । पंडिताइन की सोहबत अभी तक तो ठीकठाक है, सो प्यार से गोहरा कर बोली.. “  बहुत दिनों के बाद समय से घर आये हो, आओ आराम कर लो ।“ कोई ज़वाब न पाकर दौड़ी आयीं कि क्या हो रहा है ? कुछ संतोष से बोलीं… पोस्ट लिख रहे हो.. अच्छा लिखो लिखो । उनको बड़ा कष्ट था कि लोग रोज एक पोस्ट पेलते हैं, और मैं महीने से नहीं लिख रहा । वह कुछ और ही समझ कर, सांत्वना देतीं, “ अरे तुमको समझने वाले कितने लोग ही हैं, यहाँ, जो टिप्पणी दें । मेरे लिये लिखो, मैं तो पढ़ती हूँ !”  अरे भाई, परेशान कर दिया था.. उनका नारी तत्व ( श्श्शः कोई है तो नहीं ? ) बोल पड़ा करता, “ ये क्या हो रहा है, आज फिर टिप्पणियाँ बाँटीं जा रही हैं ? “ मैं विहँस पड़ता हूँ ( अब क्या ज़वाब दूँ, मैं… तुम्हारे सवाल की ) मौका है, अपने को आफ़ताब बना ले यार अमर कुमार, “ अरे पंडिताइन छोड़ो भी, दान देने वाले प्रतिदान की परवाह नहीं करते “

ओह्हः लगता है कि विषयांतर हो रहा है ? यही तकलीफ़ है, मुझे ब्लागिंग में.. बेलगाम छुट्टा लेखन पर उतारू हो जाता हूँ । और, मज़बूरी है, संपादक का भेजा फ़र्मा नहीं कि लेख चढ़ा कर भेज दो, मारकेटिंग विभाग का ऎतराज़ नहीं कि प्रसार संख्या कम हो जायेगी, पाठक की परवाह नहीं कि आहत हो जायेगा । बड़े धोखे हैं, ब्लागिंग  की राह में.. अमर बाबा जरा संभलना । तो, मित्रों ( जलकुकड़े मित्रों ) आप लोग ई-मेल प्रेषक को धन्यवाद दो कि ना ना करते पोस्ट हम ये लिख बैठे ! देश को कार्टून कोना बनाते नेता जी ( लेता जी, चलेगा ? ) पर एक चटका लगाओ.. और बायस्कोप देखो,  बस वोट मत फेंक देना ! यह नोट शोट भी रहने दो.. बस मेरी जान छोड़ो और मुझे चलने दो । सत श्री अकाल !  राम राम हरे हरे

भूल सुधारअपने आपसे.. मैं राजनीति पर लिखने से परहेज़ किया करता हूँ, अपने बाबा की पीठ पर सन 42 में पड़े बेंत के निशान याद आ जाते हैं। यह आलेख मलाई काटते क्रीमी अवसरवादियों के लिये अरण्य रूदन से अधिक कुछ नहीं !  इससे पहले एक गलती आज ही दोपहर में हो चुकी थी । अपनी क्लिनिक में 12” x 8” का एक डिस्प्ले बरसों से ( 1989 से – किस्सा ए पृष्ठभूमि फिर कभी.. ) लगा रखा है । परामर्श अधिकार सुरक्षित साथ ही रोगी कृपया अपने को नेता, पत्रकार या अफ़सर के रूप में प्रस्तुत न करें , आलोचनायें हुईं, हमहू कहा चाहे माड्डाले जाई, बोर्डवा न हटिहे ! सो, इसका निर्वाह हो रहा है । आज एक सज्जन आये, संयोगवश गुप्ता जी ही थे, कुल मिला कर यह साबित पाया गया कि वह डायबिटीज़ के सताये हुये हैं । दवा अपनी जगह पर.. पर थोड़ी काउंसलिंग आवश्यक हुआ करती है, इनके लिये । सो, पूछा , क्या करते हैं.. जी कोई ख़ास  नहीं, दुकान भाई देखते हैं, मैं पालिटिक्स करता हूँ । शकल से तो दलाल लगते थे, और अकल से भी .. पूछ बैठे कि रात में ज़्यादा नहीं, बस 60-70 एम.एल. इन्ज़्वाय चल सकता है, कोई नुकसान तो नहीं.. इसमें सुगर तो नहीं है ना ? बड़ी मुसीबत है, भाई .. कइसे समझायें । मैंने प्रयास किया देखिये त्रिलोकी जी, डायबिटीज़ से आज तक एक भी व्यक्ति नहीं मरा, फिर भी नियंत्रण ज़रूरी है.. क्योंकि यह अन्य तत्वों को उकसाने का मौका ढूँढ़ती है, यूँ समझिये कि… समझिये कि आपके शरीर के सिस्टम में ममता बनर्जी है !  हा हा हा.. सहसा वह एकदम सीरियस हो गये.. बात लग गयी डाक्टर साहब, शुरु में ही कंट्रोल कर लें, नहीं तो बवाले-बवाल है ! जाते जाते एक पुस्तिका भेंट में ( बल्कि सप्रेम भेंट में ) दे गये.. मज़हब ही सिखाता आपस में बैर रखना , आगे थोड़े महीन टाइप में ’ सिवा सनातन धर्म के ’ । घर लौटा तो देखा यह ई-मेल !  तबियत मेरी भन्ना गयी और झेला आपको दिया ।

एक निट्ठल्ला सवाल – इससे पहले कि कबाड़खाना वाले निट्ठ्ल्ला-चिंतन का छोड़ा हुआ कबाड़ बटोर ले जाते, मैं भी कुन्नु सिंह को साथ लेकर लपक पड़ा, कुछ बीन लाया जाय.. पकड़े जायें कुन्नु, मुसीबत में हमारे ताऊ की मदद ना करी । कुछ खास हाथ नहीं लगा सिवाय इस सवाल के.. “ यदि आपने रूपा की अंडरवियर पहन रखी है.. तो भला आपकी रूपा ने क्या पहना है ? “ यह भी कोई भला आदमी पूछता है, इससे क्या मतलब ?

आज से ब्लागिंग बन्द - तो अब हम भी फाइनली चल ही दें, पंडिताइन ( मेरी रूपा ) प्रगट होती भयी हैं, “ आज क्या पूरी रामायण ही लिखी जायेगी ? खाना वाना खाओगे कि नहीं ? “ मैंने कनखियों से उनके चेहरे का बदलता रंग देख फटाक से फ़ुरसतिया दाँव फेंका “  अरे यार, इतने सालों से तो गुलामी कर रहा हूँ, कुछ तो कंसीडर किया करो “ यह दाँव फ़ुरसतिया युग का होगा, फौरन ख़ारिज़ हो गया, “ कंसीडर कर लूँ, ताकि तुम जो है, आज़ादी के ख़्वाब देखने लगो ? “ अब देख ले भाया, इतनी देर में ही इनकी सोहबत बिगड़ कइसे गयी, कंम्प्यूटर पर तो मेरा कब्ज़ा था । आज ही से ब्लागिंग बन्द !

चिट्ठाजगत

11 टिप्पणी:

Anonymous का कहना है

dr sahib
aap ne text copy disable kar rakha varna kuch lines jarur copy karke wah wah kehtee
ek line vaakii kamal ki hee
anetiktaa ki thali waali line .

Gyan Dutt Pandey का कहना है

पंडिताइन ... प्यार से गोहरा कर बोली.. “ बहुत दिनों के बाद समय से घर आये हो, आओ आराम कर लो ।“
ये क्या, घर अमूमन लेट आते हैं?! बहुत शरीफ पण्डिताइन हैं आपके भाग्य में! इतनी सुशीला, और फिर भी आप कबीर छाप उलटबांसी छांटे जाते हैं?! वैरी बैड!

Gyan Dutt Pandey का कहना है

औरआपके ब्लॉग की फीड सप्लाई नहीं होती, कुछ ठीक करायें!

डॉ .अनुराग का कहना है

गुरुवर रविवार को अपनी छुट्टी के कारण आप तक देर से पहुँचा हूँ...ओर आपकी इस चिंता से ख़ुद चिंतित हो गया हूँ..... फिलहाल कुछ कहने सुनने कि स्थिति में नही हूँ....एक पेपर प्रिंट होने ऑर्डर दे दिया है....उसका मजमून पढ़ ले ......

"परामर्श अधिकार सुरक्षित....... साथ ही रोगी कृपया अपने को नेता, पत्रकार या अफ़सर के रूप में प्रस्तुत न करें" ,
धन्यवाद सहित......

ताऊ रामपुरिया का कहना है

gurudev pranam,
bade dino baad likhaa , par ek ek vaakya paDhane yogya hai !
"aapake sharir ke system me mamata banerjii hai"

aapakii usii chir-parichit shaily me , majaa aagaya ! aapake comment box me baahar se hindii me likh kar laaye the wo paste nahii karane diyaa !pataa nahii dusare logo ne kaise kiyaa hogaa ? khair ..
yahaa hindii me kaise likh sakate haiN ? please mujhe bataiyegaa !
pranam !

L.Goswami का कहना है

सब पोस्ट लिखे आप टिप्पणी ही लिखिए फ़िर भी आप भारी पड़ेंगे ..आपका अंदाज सबसे अलग है,

Satish Saxena का कहना है

सारी इम्पार्टेंट वाह वाही ले जाते हो यार ! अब हम क्या कहें सिवाय धुआं निकालने के !

राज भाटिय़ा का कहना है

अमर जी हम ने आप को गुरु माना तो आप तो भाई नेट पर दिखना ही बन्द हो गये,
धन्यवाद

भारतीय नागरिक - Indian Citizen का कहना है

ab kya likhoon kuchh to chhod diya kiijiye

pallavi trivedi का कहना है

आपका छुट्टा लेखन ही आपकी खासियत है...इसलिए विषयांतर की फ़िक्र मत कीजिये आप! बस ऐसे ही लिखते रहिये!और " आज से ब्लोगिंग बंद...?" ये क्या बात हुई....?

Abhishek Ojha का कहना है

धन्यवाद डॉक्टर साहब, आप जानते ही हैं किस बात के लिए... हम तो कब से रीडर में जोड़े बैठे हैं पर पिछली बार जब ये पोस्ट पढा था उस समय ये टिपण्णी वाला डब्बा मिला ही नहीं था. बस ईमेल पता दिखा था... और हम आलसी लोग ईमेल पर क्या टिपण्णी करेंगे !

लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

आपकी टिप्पणी ?

जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

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शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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