खैर मैं भी नाराज हूँ, आपसे तो नहीं … पर, किस किस से नहीं हूँ, यह तो पूछि लेयो भ्राता ? जब हमरे शिवकुमार भईय्या श्रीयुत, दुर्योधन ( Last Name, Optional रहा वोहि युग में ) को हीरो बनाय रहे हैं, तो इस ब्लागर सभा में धृतराष्ट्रन की पैठ तो होबे करेगी । कल सुबह देबाशीष पैदा लेने वाले हैं, सो ब्लागस्पाट, वर्डप्रेस वगैरह को दुई घंटा से निरंतर अगोरे बैठे रहें, कि कोई एक्सक्लूसिव बाइट मिल जाय । जम्हुँआई लेते लेते, कुछेक लोगन को टिप्पणोपकृत करे को टहलने निकले, हौसला लेना अउर देना, कितना ज़रूरी है.. यह आपसे अच्छा भला कउन जानता है, लेकिन भाई एक जगह पर तो होश ही उड़ गये.. कौउनो घोश्त-बस्तर के दुआरे बड़ी हसरत से आरज़ू…. ज़ुस्तज़ू … अउर भी कई तरह तरह के ’ज़ू ’ लेकर पहुँचे, कि मनावेंगे, बड़े रिसियाये हुये कई दिनों से तहमद की गाँठ खोल-कस रहें हैं । किंतु भ्राता, हमरे दिमाग में तो 11 सितम्बर हुई गवा, सच्ची बताय रहें हैं भाय !
झूठ नहीं, अब आपै देख लेयो.. सो भाई, हमतो अपनी आधी अधूरी टिप्पणी लइके भागि आये, ज़ल्दबाज़ी में चिट्ठाजगत पर जो टाप नम्बर वाला शीर्षक रहा, वही समेट के सीधे यहीं साँस लिया । ई चिट्ठाजगत वाले आपै का शीर्षक ऊप्पर रखते हैं, कि हमला होय.. तो जाय देयो इन्हीं का शीर्षक । एक दुई दिन में फिर कोई शीर्षक लेकर उतरेगी ’ उड़न तश्तरी ’, जरा ध्यान रखा करो इन बातों का !जो हुआ सो हुआ,ब्लागर एकता ज़िन्दाबाद..’टिप्पणी हमारी – हेडिंग तुम्हारे’ बिल्कुल हिट पोस्ट का जुगाड़ है, गुरु अरे वही.. समीर भाई !
अथ आरंभ भूत – प्रेत – बेताल – अगिया बेताल विनाशक टिप्पणी ( सभी लोग अपनी अपनी मुट्ठी खोल लीजिये.. )
इस मंगलमूरत को प्रनाम किःजीएऽए
शिरिमान ’ पता नहीं क्या जी ’ सादर छिह्हः अभिनंदन
क्या बवाल फैला रखा है, भई आप लोगो ने ?
आप एक मिशन पर बिज़ी हैं, इसलिये माफ़ी चाहूँगा, पर..
दुनिया में हज़ारहाँ काम है, एक दूसरे के लिंग ढूँढने के सिवा...
आप स्वयं विचार करो कि आप हिन्दी ब्लागिंग को कुछ् दे भी रहे हो.. या केवल विध्वंस ( Sabotage ) करने के इरादे से बेवज़ह जूझे पड़े हो । यदि आपके लिंग सत्यापन करवाने की माँग अब तक नहीं उठायी गयी है, तो आप दूसरे के जम्फर में झाँकने पर क्यों आमदा हो ? जिस सनसनी-परक ख़ुज़ली से मीडिया परेशान है, वह वहीं तक रहने दो भाई या बहन मेरे ! यदि ब्लाग पर दिया गया आलेख दमदार है, तो क्या फ़रक पड़ता है कि लिक्खाड़ नर है या मादा, बुड्ढा है ज़वान, नवा है कि घिसा माल है ? हद है भई , यह क्या बवाल है ? चाँय.. चाँय.. चाँय.. चाँय.. महीना बिता कर आये हो, अपनी बिसरायी गदरायी ज़ोरू के पास, चैन से रहो ! ब्लागिंग की बुद्धि किसी नसीब वाले को ही मिलती है…. उसमें भी, ये नहीं वो ?
मैं अमरकुमार अपने प्रोफ़ाइल पर किस जीवित या मृत व्यक्ति की फोटो टाँगे पड़ा हूँ, इससे मेरी सोच या लेखन में क्या अंतर पड़ता है ? अब किस किस की सूँघते फिरें कि यह नर हैं या मादा, और इनकी तहमद खींच कर या चीरहरण करके किस तरह ब्रेकिंग न्यूज़ बनाया जाये ? क्या बक़वास है, और यह किस तरह की चिट्ठाकारिता है, और इसका ब्लागमैटर से क्या ताल्लुक है ? कोई आपके विचारों के उलट लिखता है.. तो उसका ज़वाब अपने तर्क से दो, जनमत को अपनी तरफ़ खींचो या उसके लत्ते नोचने लग पड़ोगे ? यह तो कतिपय विद्वानों के हिसाब से श्वानवृत्ति है, काहे के प्रेत हो स्पष्ट तो कर दो ! बोलो, हम इसी पितृपक्ष में ब्लागर पर प्रेत-बाधा नाशक अनुष्ठान करवा देंगे, भटकने से मुक्ति पा जाओगे और ब्लागर को भी मुक्त करोगे !
छिःह, घिन आ रही है.. ऎसे ब्लाग पर और घटिया विवेचनात्मक आलेख पर टिप्पणी देने में भी !
अब मैं यहाँ कभी टिपियाने से तो रहा.. साथ ही यहाँ के टिप्पणी कालम में दिखने वाले हर सज्जन और सजनी के सहभागिता निभाने वाले का डब्बा गोल !
अब ये पूछिये कि मैं यहाँ कर क्या रहा हूँ ? आपको अपने फ़ीडरीडर से हटाने गया था तो कौतूहलवश यहाँ की सड़ी बज़बज़ाती सोच को अलविदा कहने आ गया था । देखा कि द्विवेदी जी भी आपकी चोखेरबाली हैं । मेरे खिचड़ी-भोजी ज्ञानदत्त जी के इर्द-गिर्द ऎसा ताना बाना बुना कि एक टीम अन्वेषण में जुटी पड़ी है.. कि ज्ञानदत्त ही प्रेतावतार हैं !
कापुरुषों को युगपुरुष में शुमार करने के पाप का यही अंज़ाम हर किसी के साथ हो सकता है । क्या वाहियात बात है, पोस्ट लिखने वाले को अपना लिंग टटोलवाना पड़ेगा, ऎसा प्राविधान बनाने की सनक का क्या अंत होगा, यह तो सोचो ? क्यों चिराँधबाज़ी फैलाये पड़े हो यार ? यारा ?
यह भी पूछोगे कि मैं क्यों परेशान हूँ.. क्योंकि रख़्शंदा को एक मानसपुत्री के रूप में देखता हूँ, और उसके वज़ूद को भौतिक रूप से सत्यापित कर चुका हूँ , इसलिये ! मज़हब के झमेलों की टुच्चई मुझे नहीं भाती, इसलिये ! उसके समकक्ष के सभी समलिंगी या विपरीतलिंगी भी मेरी इस फ़ेहरिश्त में शामिल हैं, इसलिये !
आपको एक नया होमवर्क दिये जा रहा हूँ, अब आप सिर धुनिये कि यह सत्यापन कब कैसे और क्यों हुआ, पर पहले अपना चश्मा साफ़ कर लीजियेगा, ब्लड सुगर वगैरह करवा लीजियेगा । ईश्वर आपको किंचित बुद्धि दे, जो वेबपेज़ों और दूसरे की मेहनत से तैय्यार किये अध्ययन को टीप लेने मात्र से नहीं मिला करती ।
शुभाकांक्षी - आप की पसंदीदा गाली ( जो भी आपके श्रीमुख से उच्चरित हो रही हो..कोई वांदा नहीं )
ऎई सुनो… सुनो तो ? जरा मेरा भी लिंग बताते जाओ, मेरा भी एक ब्लाग है ! बताओ ना, ऊँऊँ
बयान इकबालिया – टिप्पणी कुछ कसैली थी न ? मुझे भी लग रहा था .. किसी ने बताया ही नहीं ? तभी तो मैं ’ न उधो का लेना.. न माधो का देना ’ टाइप ज़ेन्टलमैन ब्लागर समीर लाल जी के चिट्ठाचर्चा का शीर्षक ही उठा लाया.. और उसी की टिकुली साट दी यहाँ… इससे कुछ तो डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी..मिलबे करेगा कि नहीं ? हम हैं पीर.. अनूप बीर… समीर भाई फत्ते !
22 टिप्पणी:
भाई
हम भी यह शीर्षक कहीं से उठाये ही थे, आप उठाया सामान उठा कर ले गये..हा हा!!! :) हमें का परेशानी!!!
बाकी मसला, चुप्पे चाप देख रहे हैं. आप तो जानते ही हो...सब सुन रहे हैं मगर!!
आपकी लेखनी की बलि जाऊं -आप मुझसे तो निस्चिन्तै रहें -अभी तक मैं उस लिंग निर्धारण विवाद तक नहीं गया ,लेकिन जाने का कुछ कुछ मन हो रहा था तैसै आपका यह खबरिया (खबर्दारैया ) चैनेल खुल गवा .विस्तृत विवेचना अपने स्टाईल में आपने कर ही दी है -वैसे भी भारत में लैंगिक निदान कानूनन अपराध है .पर हो सकता है कानूनविद दिनेश जी मामले को संभाल लें -वे क्राईसिस प्रबंध में लगे हुए हैं !ज्ञान जी का तो कोई भरोसा नहीं अब वे तटस्थ होने वाले होंगे !उनका सहज बोध तीक्ष्ण है -ऐसी स्थितियों में वे अफसरी -तुरीयावस्था में आते देखे गए हैं .समीर जी भी देश समाज से ऊपर उठ चुके हैं वे भी कन्नी काट जायेंगे -आप ही आँखे टिकी थी तो आप अवतरित भये !और किसी में ऐसा दमखम कहाँ !
आज सुबह आपके बानगी लेखन का आस्वादन किया -देखिये दिन कैसा बीतता है ?
हमें यही कहना है कि घोस्ट बस्टर’बस्ट’ हो रहे हैं। आप उनका जम्फ़र काहे खोल रहे हैं? वैसे भी एक जगह उनका मन लग नहीं पाता। अभी अभय तिवारी की इजरायल वाली विवेचना पूरी नहीं हुयी कि ये नर-नारी ब्लागर ने दबोच लिया उनको। अब फ़िर किसी और में लग जायेंगे। कित्ते तो काम हैं उनको। आप डिस्टर्ब न करो जी उनको। लगे रहन दो।
सही कहा आपने। ब्लॉग पर लेख से संबंध बनाना चाहिए, न कि लेखक से।
main yah soch raha hoon ki apni profile me sex change kar aish ji ka photoo laga doon,hit ki tadaad badh jaayegi
लिंग निर्धारण वाली बात तो हमें भी कछु समझ नहीं आ रही... खेल-कूद की तरह परिक्षण करवाना पड़ेगा लगता है... घोस्ट जी को इंचार्ज बनाया जा सकता है :-)
बाकी हमें का फर्क पड़ता है, किसी लिंग से लेख आए...
गुरुवर नत मस्तक हूँ.....शाष्टांग प्रणाम स्वीकार करे ......हम तो सोच रहे है की हमसे भारी गलती हो गई जो इ लेख हमारी नजर में दुई बजे पड़ा......खरा खरा ओर सटीक लिखा है......बस एक गलती कर गये हो.....इसे नीले रंग में ना लेकर ...काले रंग में ले लो...कई बार पढ़ना पड़ेगा.......एक बार ओर नत मस्तक.......
aage aage dekhiye blog jagat men hota hai kya?
अमर भाई !
इस गड़बड़झाला नगरी में अधिकतर लोगों का दुःख यह रहता है कि दूसरा ब्लागर मुझसे अच्छा क्यों लिख रहा है और कैसे लिख रहा है ! अच्छे लेखों को ध्यान से पढ़ कर लिखने वाले कमेंट्स बहुत कम देखे हैं यहाँ ! और अच्छे लेख की तारीफ़ तो बिरले ही करते है यहाँ ! रख्शंदा में बला की लेखन क्षमता है अमर भाई ! जिस तरह आपने उस लडकी को जाकर हौसला अफजाई की, बड़ा अच्छा लगा है ! इस तरह एक आदर्श कायम करेंगे आप उन लोगों के लिए, जो नाइंसाफी देख कर मुहं फेर कर चल देते हैं ! अगर ब्लाग लेखन का उद्देश्य लोगों से पूछा जाए तो शायद ही कोई जवाब दे पाये कि नवोदितों कि हौसला अफजाई अधिक आवश्यक है न कि लिक्खाडों कि तारीफ़ में कसीदे पढ़े जायें !
कुछ लोग बेतुके और असंगत प्रश्न पूछ कर बहस छेड़ने का प्रयत्न करते है जिससे उनका अपना नाम हाई लाइट हो... कुछ प्रकाश डालिए ऐसे लोगों के इलाज़ पर भी डाक्टर साहेब !
सादर !
" क्या वाहियात बात है, पोस्ट लिखने वाले को अपना लिंग टटोलवाना पड़ेगा, ऎसा प्राविधान बनाने की सनक का क्या अंत होगा, यह तो सोचो ? क्यों चिराँधबाज़ी फैलाये पड़े हो यार ? यारा?"
लगता है, डा. अमर, कि कलियुग आ चुका है!!
सस्नेह
शास्त्री
गुरुदेव तबियत चकाचक हो गई यहाँ आके ! टेक्स्ट तो अभी कई
बार पढ़ना पडेगा ! और जो मुद्दे आपने बताये हैं , वो मैं भी तलाश पर आज निकलता हूँ तब बताउंगा ! पता नही यहाँ भी आपके रहते भी क्या क्या होता रहता है ? वो तो आप थोड़ी सी ऊंट और ऊण्टनियो को नकेल डाल कर रखते हो ! नही तो पता नही क्या क्या हो जाए यहाँ पर ? :)
aasha haen maere kartvya mae koi kammi nahin paaee hogee
आप की इस पोस्ट की इतनी चर्चा है। पर तलाश कर कर मिली वह भी एक टिप्पणी से प्रोफाइल और वहां से ब्लाग पर आ कर। इतनी चौड़ी है कि मेरे कम्प्यूटर फ्रेम में नहीं आ रही है। हर लाइन पर दाएँ बाएँ जाना पड़ रहा है। फिर अक्षऱ इतने छोटे कि पढ़ने को चश्मे के ऊपर आतिशी शीशा चाहिए। वह हमारे दफ्तर और घर में नहीं। आपने पोस्ट पढ़ने के लिए पूरा तिलिस्म फैलाया हुआ है। कुछ भी न समझ आने पर कापी कर के नोटपेड पर पेस्ट कर पढ़ी है।
आप का दिया विशेषण स्वीकार है। आखिर सच्चाई का साथ देने पर मिला है। भारत रत्न की तरह सहेज कर रखूंगा।
आप के लेखन का जवाब नहीं, यह लोहा तो बहुत पहले ही माना हुआ है। यह भी कि कलम सही वक्त पर सही जगह मार करती है।
पर अब तो बता दें मैं गुस्सा कब हुआ?
अउर भी कई तरह तरह के ’ज़ू ’ लेकर पहुँचे, कि मनावेंगे, बड़े रिसियाये हुये कई दिनों से तहमद की गाँठ खोल-कस रहें हैं ।
तहमद शब्द का इस्तेमाल धर्मनिरपेक्षता को सुदृढ़ करने के लिए किए हैं का? या फिर धोतिका पहनने से कट्टरपंथी कहाए जाने का ख़तरा है? दुरजोधन जी को हीरो बनने का मौका सभी लोग दिए रहे. का पितामह अऊर का ध्रितराष्ट्र. कोई भी पल्ला झाड़ सकत है नाही....
हम हीरो साबित (आ फिर साबुत) का करेंगे? हमरी कौन औकात?
गुरु जी यह आप का ही बेटा लगता हे, वेसे पुत के पाव पालने मे ही दिख जाते हे....
गुरु जी यह सब आज कल कया हो रहा हे? क्या हम कही भी आपिस मे मिल कर प्यार से रह नही सकते, क्यो एक दुसरे से चिढते हे, क्यो एक दुसरे को...... राम राम आप का लेख पढ कर लगा कि ओर भी मेरी तरह से सोचते हे, धन्यवाद एक अच्छे लेख के लिये
देर से आई हूँ ..पर आजकल जिधर देखो घोस्ट -घोस्ट काहे चिल्लाते हैं लोग-बाग .. और आप भी अमर जी इस भुत के पीछे ही पड़ गए ..छोडिये भी जिसकी ख़ुद की पहचान नही वह दूसरों की पहचान क्या सत्यापित करे
इस मुद्दे पर आपने वाकई बहुत अच्छा लिखा है, आपका अंदाज़ बहुत पसंद आया.
और ये टिपण्णी की जगह पर लगा शेर भी. हार्दिक बधाई
नमस्ते amar जी, तबियत ठीक नही है, आपके ब्लॉग पर आई तो हूँ, पर पूरी पोस्ट नही पढ़ सकी...पढ़कर ही कमेन्ट दूंगी..फिलहाल मेरा सलाम कबूल करें..अपना ख्याल रखियेगा ...
आज आपका लेख पढ़ा...ये नही कहूँगी की आपका एहतराम मेरी नज़रों में और भी बढ़ गया क्योंकि पता नही क्यों, पहली बार जब आप मेरे ब्लॉग पर आए थे...उसी टाइम जो कमेन्ट आपने दी थी, उसके लफ्ज़ लफ्ज़ ने मुझे बताया था की ये किसी आम ब्लोगेर की फोर्मल कमेन्ट नही है...और फिर धीरे धीरे पता नही कब मैंने आपको अपना मान लिया...पता ही नही चला...सब कहते हैं मुझे इंसानों की समझ नही है...लेकिन कई बार वक्त ने मुझे समझाया है की दिल जिसको अपना कह दे, वो सचमुच अपना होता है...चाहे वो आपके साथ हो या आपसे बहुत दूर, चाहे आप उस से मिले हों या नही, दिल के रिश्तों को फासलों से क्या लेना देना...पता है, आज आपको क्या कहने का मन करता है? लेकिन पहले वादा कीजिये, हँसेंगे नही....पापा ...कह सकती हूँ ना...आप मेरे पापा जैसे हैं...तभी तो जो मैं नही कह पायी..वो आपने कह दिया...वैसे सच कहूँ, मेरी वजह से उस इंसान ने आपके बारे जिस लैंग्वेज में लिखा है...मैं क्या कहूँ...बस दुःख ये हुआ की इसकी वजह मैं थी...
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बेटियों का बाप होना बड़ा दुःखद माना जाता है, इस मुल्क में !
पर चल मैंने तेरी ग़ुज़ारिश तहेदिल से मंज़ूर की ! पापा कह ले, पूछती क्यों है ?
मेरा तो फ़ायदा ही फ़ायदा है, बिना टका ख़र्च किये पढ़ी-लिखी लंबी तड़ंगी बेटी मिल गयी ! कुछ सोच-वोच भी लेती है, लिखने का शऊर भी है । यही क्या कम है ?
पिन्न पिन्न मत किया कर, और ख़ुश रहा कर !
अरे, आज तो डाटर्स डे भी है ! मुबारक़ हो !
Thanks...papa thank u so much...I love u...
आपको ईद और नवरात्रि की बहुत बहुत मुबारकबाद
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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