बात तो भाई, एकदम्मै सही है. ! हाँ तो, शुरु किया जाय ? एक महीने का अंतराल होने को है.. और महीने में एक पोस्ट देने का वायदा भी है । मौका और मोहाल दोनों ही माक़ूल हैं सो, इस नामाक़ूल की कलम चले ? पहले यह तो पूछो, कि गायब ही क्यों था ? गायब होंय भूत प्रेत बैताल के दुश्मन, हम तो वइसे ही अपना नया शौक में उलझ गये थे । देखि लेयो ईहाँ, एच०टी०ऎम०एल० की एचटीमेंएल कर रहे थे, इस सइटिया का कोड सँवार बिगाड़ि रहे थे, अउर अब ख़ाज़ खुज़ाने आयें हैं, कोई ऎतराज़ ? मेरे काबिलतरीन दोस्त श्रीयुत दिनेश राय द्विवेदी जी, पहले ही फ़रमा भये हैं कि सबहिं फुलन्तरू हँईयन लौट के अईहें, भागि नाय सकत कोऊ, ईहाँ तै ? वइसे ऎसी दलीलन को ओवर-रूल करै को वन हण्ड्रेड वन रीज़न्स हैं, अपने पास ! काहे कि अइसे छुट्टा- बेलगाम सुहाग से तो रँड़ापा ही भला ! बात में असल ये है, कि हम आहत हुई गये थे, अउर हैं !
आहत होना तो ख़ैर ब्लागर-कुलरीति ही है । लेकिन पगलवा गुट बोला कि ई कउनो ख़ास रीज़न नहीं, कुछ सालिड बताओ । काहे कि इत्तै वाद-विवाद हुई गये, लोग गरियाइन.. मारिन.. चप्पल ज़ूता घसीटिन… बल्कि हियाँ तो पतलून-जम्फर तक उतरवा के घुमावा गवा है, लेकिन अपमानित नहीं किया कब्बौ कि हम आहत हो जायें। हम बिरझ गये, ठीक है भईय्या, तौन अब आप जाके देश का नेतृत्व संभाल लेयो, ब्लागिंग का तो अनुभव ही पर्याप्त है तुम्हरे लिये ! मज़ाक नहीं भाय, अच्छा लेयो ई नाड़ा पकरो… “ देश का नेता कैसा हो.. हिन्दी ब्लागर जैसा हो ! ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद… चिरकुट अँधरा ज़िन्दाबाद ! अँधेरा तुम्हारे अंदर है.. बाहर तो उज़ाला है ! लेयो, अउर लेहो ? हम्मैं कउनो फ़िकिर नाहीं, ’ राजा नहीं फ़कीर ’ नारा वर्कशाप में काम किहा है ! यह तुलना ऎंवेंईं वाली नहीं बल्कि सच्ची की है, नेता ब्लागर और गैंडा के तुलनात्मक अध्ययन पर ज्ञानदत्त पांडेय जी ’ मानसिक हलचल फेम वाले ’ एक चार्ट भेजने वाले हैं, देखते रहिये [ यह स्पेस ] … गैंडा तो लीद करने को बैक गीयर में चलता है, सो उसको अलग किये दे रहे हैं, अभी तो ब्लागिंग में अपार अन्यान्य संभावनायें अन्वेषित होने को हैं । गैंडत्व अभी दूर की कौड़ी है, मित्र श्री !
सो, हम सीनाठोंक आहत रहे अउर हैं। टंकी रिपेयरिंग अभी पूरी नहीं हुई है, वरना डिक्लेयर कर जाते । फिर यह भी सच है कि, 100 टुटपुँजिया पोस्ट के बूते टंकीरोहण करना समझदारी भी नहीं, वह भी ऎसे हालात में जबकि आप अपने नेटवर्किंग पर भी भरोसा नहीं कर सकते, यहाँ कई तो आया राम - गया राम भी होंगे, कहाँ नहीं हैं ? तो, हम एक बार फिर दोहरा रहे हैं,कि .अँ, कि ..ऊँ, कि हम आहत थे और आहत हैं ! आहत था…बोले तो…
मेरे एक सहकच्छामित्र ( एक नया शब्द, नोट करें अब लंगोटिया यार नहीं चलेगा । लंगोट पुराना और बासी माल है, हर गाँव पुरवे में रूपा की ही ठेलमठाल है। और यार, अरे यार तो यवन संबोधन है, मेरे यार ! भारत में यदि रहना होगा, सहकच्छामित्र कहना होगा )
तो यह सहकच्छामित्र श्रीमान एक दिवस हमरे कनें टहल लिये, ’मुन्ने ’ यानि कि मोहम्मद अज़हर खाँ मंथर चाल से प्रगट हुये, साहित्यानुरागी हैं ! सो, कभी कदार साहित्य चरने की गरज़ से भटक आते हैं । मित्र को आलोचक का दर्ज़ा देकर रखो, तो बड़प्पन कहलाता है । बट ही इज़ अ नाइस ज़ेन्टलमैन, अ बिट डिफ़ेरेन्ट फ़्राम शिवकुमार ! हज़ कर आये हैं, सो हाज़ी हैं.. पर ज़ेहादी नहीं हैं । चा – पानी की पूछ-ताछ दिल से हुयी और वह जुगा़ड़ पक्का देख आश्वस्त हो लिये, फिर बोले, ” और सुनाओ,, कुछ नया लिखा –ऊखा, या वही इन्टरनेट पर लिख रहे हो ? कुछ लिख रहे थे, ना ? और वह“ भउजी दर्शन को प्यासी अँखियाँ इधर उधर दौड़ा कर मेरे कंम्प्यूटर चेयर पर क़ाबिज़ हो लिये । सफ़ारी मिनिमाइज़्ड मोड में थे, एक चटका माउस का और चिट्ठाजगत का पन्ना स्क्रीन में से दीदे फाड़ फाड़ खाँ साहब को घूरने लगा । अज़हर मियाँ कौतूहल से आगे को झुक ज़ायज़ा लेने लगे, फिर अपने स्वभाव के विरूद्ध बिफ़र पड़े, “ अमाँ डाक्टर, यह क्या भँड़ैती है, तुम यही सब कर रहे हो ? तुम्हें और कोई चूतियापा नहीं मिला दुनिया में, फ़ालतू का टाइम-वेस्ट ? वह तो बेटा आज रंगे हाथ पकड़ लिया, तुम अपने लिटरेचर को क्या दे रहे हो, यह तो सोचो ? “ वह मेरे इतने अज़ीज़ हैं, इसलिये तारीफ़ न भी करते पर ऎसी असहमति भी क्या ? लिहाज़ा हिन्दी ब्लागिंग की ख़ातिर कुछ तो आहत होना ही पड़ा ! ईद के बाद मेरी क्लास फिर ली जायेगी, यह मुझे पता है । आहत हूँ… बोले तो.. .
लगभग इसी दौरान एक जी रूपी पुच्छल तारे का उदय हुआ । उनकी बेदुम बेसिर-पैर की जिन लोगों ने पढ़ी हो, वह मेरा विषय नहीं है, आप स्वयं ही बहुत कुछ जानते हैं । यदि ठीक से मौज़ लिये की मौज़ाँ ही मौज़ाँ लिये होंगे तो ’ ये अंदर की बात है ’ का मर्म समझाने की आवश्यकता ही नहीं ! किन्तु मेरा केस कुछ डिफ़ेरेन्ट है… वर्ज़नाओं को तोड़ना और गलत का विरोध करना मेरा स्वभावगत दोष है, बस यूँ समझें कि जन्मजात मैन्यूफ़ैक्चरिंग डिफ़ेक्ट ! अब जो करना हो, करलो ! लेकिन गौर किया जाय कि मुझे तो इनका फोटो लगा कर संबोधित करना पड़ रहा है । धन्य हैं, जय हो.. इत्यादि इत्यादि इनके लिये, क्योंकि इन ज्ञानी जी के हलचल पैदा करके अपने को अमर कर लेने की सनक ने कुछ अधिक ही आहत किया, अब्भी अब्भी तो बताया था कि गैंडत्व अभी दूर की कौड़ी है ! क्योंकि यह तो मेरे पिछवाड़े की गली ही के निकले । धन्यवाद श्रीमती पुष्पा पांडेय, जिन्होंने अपने पद एवं तंत्र का उपयोग कर इनके नाम-पते को कालर पकड़ सामने ला खड़ा किया । कौन हैं, यह… जान कर हैरत होगी.. विचित्र किन्तु सत्य ? सच बड़ा ज़ालिम हुआ करता है, इस दुनिया में किसिम किसिम के लोग हैं । प्रणाम जी, एक दिन अचानक धमकूँगा, चाय पीने, दोहरा व्यक्तित्व या ’ स्प्लिट पर्सनालिटी ’ बड़ी कुत्ती चीज है, एक लाइलाज़ मनोरोग ! मुझे तरस आ रहा है, इन पर ! हलचल जो न करवा दे… इस वर्चुअल दुनिया में ! एक वर्चुअल चरित्र गढ़ने की फ़ैंटेसी बड़ी रोमांचक हो सकती है, इन जी के लिये .. पर इसके दुष्परिणाम बड़े भयावह हुआ करते हैं । सुना है, अवध के कोई नवाब ज़नाना कपड़े पहन के रंगरेलियाँ मनाया करते थे, नतीज़ा यह हुआ कि वतन गया फ़िरंगियों के पास ! आपको इतिहास से एलर्ज़ी है, क्योंकि यह आपको डराता है ! मुझे ऎसा कोई डर नहीं है ।
मुझे तो एक मुहिम मिला था, वह पूरा हुआ समझो । इस बेगैरती में शायद न भी पड़ता किन्तु मुझे एक वक़्त की रोटी देने वाली पंडिताइन गश खा खा कर बेहाल थीं । इसको सामने लाओ.. देखें तो कि यह 75 किलो का औसत भारतीय कौन है ? कुछ पता तो चले कि यह नर हैं कि मादा… हिज़ड़ा कहीं का ! जरा देखो तो कैसे लिखा है… और अपनी लम्बाई बताने में हीन भावना से ग्रसित हो झूठ लिख गया है, सात पुश्तों का ज़नख़ा ! ओह्हः, इन स्त्रियों का क्वथनांक, ज़्वलनांक इतना कम क्यों हुआ करता है, रे विधाता ? पर एक बात ज़रूर है, तू चीज बड़ी है, मस्त मस्त ! |
अपने डाक्टर अनुराग जी चिट्ठाचर्चा पर टिप्पणी लिखते पाये गये, कि अब पोस्ट चढ़ाने से पहले सोचना पड़ता है । बस यही बात तुमको औरों से अलग करती है, अनुराग । तुम चमड़ी के उस पार देखने लगते हो ! जहाँ ठेलो-गुहार चल रही हो, तो ठेलने के उस पार मत देखो । लोग शौचते हैं, और तुम सोचते हो ! भला ब्लागिंग के लिये भी कोई सोचता है ? मेरे लिये यह नयी जानकारी है ।
देखो मुझे, बिना सोचे लिख रहा हूँ कि नहीं ? इसमें भी धुरंधरों को ज़लेबी इमरती दिख जाती है, तो मेरा अहोभाग्य ! भाषा पर कोई रोक टोक न लगा कर, खुद को.. खुद ही.. अपने अंदर की खुदखुद को परोसता हूँ, वह भी खुद्दारी के साथ खुद बन के ! इतना ही तो ?
भाई कुश सांप्रदायिक भाई गिरी से परीसान हैं, किंवा उन्होंने मेरी टिप्पणी पर ध्यान न दिया.. भाई यह फ़साद वहीं ख़त्म होगा, जहाँ से शुरु किया गया था । अब यदि मुसलमानों में पाकिस्तान ही ढूँढ़ा जाता रहा, तो उनको भारतीय बनने देने की राह का रोड़ा कौन है ?
एक पोस्ट चढ़ाने का घणा ताव तो मुझे उसी दिन से था, जब अपने ताऊ की कविता पढ़ी । मैं भी लिक्खूँगा कविता… पर भाया मेरे, पूरे तीन दिन बरबाद हो गये, कविता निकल के ना दी ! कमरे में अँधेरा करके महसूस करने की कोशिश की, महसूस हुआ मच्छरों का दंश ! आकाश को निहारा किया.. मिला कऊव्वे की बीट ! तलईय्या किनारे बैठा.. दिखा तैरता सिवार ! सुंदरियों को निहारा.. तो सुना ’ नमस्ते अंकल ’ ! आम आदमी के दर्द को टटोला… और कविता हवा हो गयी ! 27 सितम्बर की डेडलाइन सिर पर, स्वपनिल जी से कविता उधार माँगने गया । बेचारे गदगद हो गये… हैरत से पूछा, नेट पर दिक्खेगा ? तो लीजिये यह ताज़ा माल.. कल रात ही इसका प्रसव हुआ है, और वह सस्वर प्रसवपीड़ा से सड़क पर ही चीत्कारने लगे । दईय्या रे, मैं भाग खड़ा हुआ, ज़ूते पड़ जाते !
एक टूटी फूटी कविता हाथ लगी, इसी से काम चलाइये..
ब्लागरों के इस ज़मात में |
अरे, कितनी देर से क्या लिखे डाल रहे हो ? यह पंडिताइन हैं कि विक्रम की बैताल ? ( इनको सहकच्छाधर्मिणी कहें, तो चलेगा ? )बस फ़िनिशिंग मार दूँ । समझती नहीं है, मासिक स्राव पर भी रोक है, क्या ? कुल निष्कर्ष ई बा मरदे जी कि हम्मैं अपने सुहाग की कोनौ चिन्ता नाहीं, जेहिका होखे ऊ करै । हिंयाँ त भतरा के लइनिया लागल हौ, मोहब्बत चाही.. त तुहौ मोहब्बतै देबा नू ? वरना हम तो भाई हमहिं हैं, अउर हमने कसम खा रखी है कि… हम न सुधरेंगे । आप टिप्पणी न करने लिये स्वतंत्र हैं, कोई वांदा नहीं ! टिप्पणी-ऊप्पणी राय विचार कर दीजियेगा कि इसका बी.आर.पी. केतना बढ़ाना है ! बोलिये, जय हिन्द और सरकिये अगले पन्ने पर !
15 टिप्पणी:
बेधड़क लेखन तो यही होता है डा. साहब.. हम तो हर धर्म की इज़्ज़त करना जानते है जी.. और करते भी है.. बस जो भारत के खिलाफ बोले वो हिंदू या मुस्लिम हमारी नज़र में कुछ और ही है...
बाकी आप की स्टाइल के तो हम कूलर है ही.. दिल खोलके टिप्पणी कर रहे है... जिसको जो समझना है समझ ले..
हम त ई सोचत रहे कि राऊर का नम्वां नर रजोनिवृत्ति में लिखि उठा बा ,एकदिनवा शुकुलौ महराज ऐसै आयं बायं बोलत रहैन-आप राउर त डाक्टरौ बानी ...इ त रजोनिवृत्ति क दिन बा अब -तब कहाँ ससुरा ई मासिक स्राव टपकता बा ...ज़रा तईं दुसरे कौनो डाक्टरौ से आपण जांच करावें .
बाकी त जवन ई टपकैले बाटेंन एकर देख का गत होथ.हम तो भइया खिसके यहाँ से .....
माह में एक बार बहुत कम है। कम से कम साप्ताहिक तो आप हो ही सकते हैं।
आप के साथ माहवारी शब्द ठीक नहीं है। हफ्तेवारी चलेगा।
आप पहले ही बहुत सोचे-सुचाए बैठे हैं, तो अब सोच काहे का। बिना सोचे ठेल सकते हैं। उस का भी इंतजार रहेगा।
आज जितना भी लिखा है सटीक लिखा है। इस की ब्लागजगत को हफ्तेवार जरूरत है। टूटफूट मरम्मत के लिए ही सही।
पाक्षिक भी चलेग॥
अरे जब से गुरु बनाया आप तो वनबास मे ही चलेगे,धनुस सीखने सीखाने, ओर आये तो आते ही इतनी बढी पोस्ट अरे बाबा ऊपर से पढते पढते नीचे आओ तो ऊपर का भुल जाओ, ओर फ़िर से ऊपर का पढॊ तो नीचे का भुल जाओ, लेकिन कविता मे आप कॊ जेसी भी हो वेसी ही है मजा आ गया
धन्यवाद
डागदर साहब पता नहीं मुझे यहां बीच में बोलने का हक्क है कि नहीं लेकिन फ़िर भी बोल रहे हैं। ये तो नहीं समझ में आया कि आप क्युं आहत है(कान्ट रीड बिट्वीन द लाइन्स्…:)) लेकिन आप की पोस्ट पढ़ कर मजा बहुत आया। लगा जैसे किसी और ही दुनिया में पहुंच गये है। ऐसी भाषा बम्बई में कभी नहीं सुनी और आप के इजात किए नये शब्द …।:) हमें पूरा यकीन है कि ये हिन्दी की असली सेवा है ऐसे नये नये शब्द। साधूवाद
One more thing, your technical expertise is commendable. I have always enjoyed the animations on your blog. Even in today's post that penguine and cartoons are excellent. I wonder how do you make these cartoons and from where you get those animations
@ anitakumar
.
Thank You anita,
I would take this liberty to call you by your maiden name only,
as Anita happens to be shared by my younger sister, too . She
is another anita in this world !
The technical knowledge you have commended of, is solely by
virtue of persistence and self learning. Expertise ? NO, there are
lot of things remaining to be learned ! The intricacies of graphics
have always puzzled my inquisitive mind. I confess that still it is
in crude form, which I learned through observing my daughter's
expertise, presently Final year M.Sc. student at Mumbai University
( Nari Shiksha Niketan ) I have acknowledged it in my earlier posts.
Thanks .
Good wishes for now and always.
amar
सर, आपका ब्लौग पढने में बहुत परेशानी होती है.. एक तो इटालिक फौंट और उस पर भी बहुत छोटा.. सच कहूं तो कई बार पूरा पढने का मन होते हुये भी आधा ही पढकर भाग लेता हूं..
कृपया इसे ठीक कर लें.. :)
देख लिये पढ़ लिये। कल आज और कल भी पढ़ा जायेगा। सहकच्छामित्र का पेटेंट दे दिया गया है आपको। बाकी आहत होने का प्रस्ताव/अनुरोध नामंजूरक किया जाता है। इत्ती देर में आहत होने की अनुमति नहीं है। आहत टाइमवार्ड हो गया। घोस्टबस्टर के इत्ते प्रचार की आवश्यकता की जांच के लिये कमेटी बैठा दी गयी है।
@ प्रशान्त
प्रिय प्रशान्त,मेरे कूचे का कचरा पढ़ने का प्रयास करने का धन्यवाद !
अपने लिखे को मैंने स्वयं ही कभी पूरा न पढ़ा होगा !
तुमने प्रयास तो किया, कोशिश करने वाले की हार नहीं
होती, करते रहो !
वैसे सफ़ारी डाउनलोड करके उसमें पढ़ने का प्रयास करो,
यदि न पढ़ पाओ, तो एप्पल कारपोरेशन ही तुम्हारे नाम
करवा दूँगा । इसका उत्तर अवश्य ही देना कि काम बना
या बिगड़ा !
अमाँ इ्टैलिक्स से तो घोस्टबस्टर को एलर्ज़ी है, दूसरे
महापुरुष ज्ञानदत्त जी हैं यह तीसरे तुम कहाँ चक्कर में
पड़ गये ? भाई मेरे, मैं टेढ़ा ही पैदा हुआ था और होश
संभालने पर पाया कि दुनिया ही टेढ़ों की है, सो फ़ान्ट
भी टेढ़ा ही सही ! बाई द वे, सोनिया के चुनावक्षेत्र से हूँ,
यह जताने के लिये भी तो ईटैलिक्स अपनाना पड़ेगा ।
मैंने तो अपने पोस्ट में ही स्पष्ट कर दिया था कि हम न
सुधरेंगे .. अब आप सुधार सको तो सुधार लो । हा हा हा
सस्नेह - अमर
धन्य भाग हमारे जो आपके ब्लॉग पर पधारे! व्यंग्य के मज़े और सच की तल्खी तो मिले ही, भूतमारकर जी के हाथ की चाय की संभावना भी दिखने लगी और एज अ बोनस "सह्कच्छामित्र" जैसे ताजातरीन शब्दों के जन्मसाक्षी बनने का सौभाग्य भी मिला. अरे हमारे देश के बालक हैं उन्हें हाथ पकड़कर सच की राह पर चलाने वाले काकाओं (याद हैं केशव कविराय?) की ज़रूरत है. क्षमा बडन को चाहिए छोटन को उत्पात! हाँ द्विवेदीजी की बात से सहमत हूँ माहवारी से हफ्तेबाज़ी बेहतर है.
कबीर वाला कार्टून तो बहुत ही बेहतर है, किसके द्वारा बनाया गया है ये?
गुरुवार एक बार फ़िर मुआफी ...दो दिन से छुट्टी पे था ओर आपने तभी पोस्ट ठेल दी ....मोबाइल से ब्लोग्वानी दीखता है ओर आपसे शायद उन्हें ज्यादा मोहब्बत है की आपको दिखाते नही.....कुछ शब्द ऐसे है की पूछिए मत ...जैसे की
सहकच्छामित्र श्रीमान
लिहाज़ा हिन्दी ब्लागिंग की ख़ातिर कुछ तो आहत होना ही पड़ा !
जन्मजात मैन्यूफ़ैक्चरिंग डिफ़ेक्ट !
आह .....हिन्दी ब्लोगिंग की यही खासियत है......वो क्या कहते है बड़ा बड़ा....अभिव्यक्ति का साधन ....खैर आप खरी खरी कहने वाले है हमको मालूम था आज आपने ....फ़िर उसे कायम रखा है....पर मुझे लगता है बहुत सारे पाठक आपको पढने से वंचित रह जाते है .....इसलिए मैथिलि जी से बात करके ब्लोग्वानी की स्टेम्प भी लगवा ले .....
aap to ghost jee ke pichhe hi pad gaye gurudev.."aate-aate aayega unko khyal jate jate bekhyali jayegi" :-)
Dr sahab aapne mujhe galat samjha maine bhi naksalwad ke liye shichhit samaj ki kamiyon ko hi dosi thahraya hai.na ki auron ki tarah pani pi kar unhe galiya rasid ki hai ..baki aspastikaran agli post me deti hun.
LOVELY
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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