सुपर स्वामी की " मैं कहता हूँ डा. साहब कि सुधर जाओ," जैसी चेतावनी, भाई विवेक सिंह जी द्वारा पोस्ट की लम्बाई चौड़ाई पर सार्थक मीमांसा और चिट्ठाचर्चा पर थोड़ी मस्ती थोड़ा ढिशूम से प्रेरित हो शाम से आत्म-अवलोकन चल रहा है, कि ब्लागिंग नामक चिड़िया को किस पेड़ की डाल पर आसरा दूँ.. "पेट में बात ज़ुबाँ पर ताला " या फिर.." नहीं कोई माल, पर बज रहे गाल "
आज तो पंडिताइन भी मदद को न आयीं,' खु़द ही गड्ढा खोदा.. ख़ुद ही भुगतो !' यह हैं मेरी सच्ची सहधर्मिणी
और अंत में मिला एक तुच्छ ज्ञान, कि.... रखो एक लम्हा मौन
सो, मन में चल रहा है, कि..
अगर आप चाहते एक लम्हा मौन
तो बन्द करिये तेल का व्यापार
छोड़िये यह तेज रफ़्तार इन्टरनेट
और बन्द करिये चन्द्र-अभियान
तोड़िये यह स्टाक मार्केट
बुझाइये तमाम रंगीन बत्तियाँ
डिलीट कर दें सारे इन्स्टेंट मैसेज़
उतारिये पटरियों से लाइट रेल ट्रांज़िट
अगर आपको चाहिये एक लम्हा मौन
तो सुर्ख़ियों से सिंगुर को नीचे उतारिये
वापस कीजिये ज़मीनों पर खोयी फसल
और भूलिये व्हाइटहाउस में प्लेब्याय
अगर आप चाहते एक लम्हा मौन
मौन रहिये हर निःशब्द हाहाकार पर
खास तौर पर फ़िफ़्टीन अगस्त के दिन
यदि अपराधबोध सताने ही लगे
अगर आपको चाहिये एक लम्हा मौन
तो आप उस लम्हें को जी रहे हैं
क्योंकि यही है वह लम्हा
इस कविता के शुरु होने के पहले
© डा. अमर कुमार
13 टिप्पणी:
ऐसा सुधरे कि धासूं कवित्त रच गये डाग्टर साहेब!! :)
यह है एक साँस में पढ़ जाने वाली पोस्ट ! बधाई और शुक्रिया भी !
लो जी, अपना मौन तोड़ दिया और टिपिया दिये, अब जब तोड़ ही दिया तो चिल्ला देते हैं कि हमें नही चाहिये ऐसा मौन, सभी हो गये मौन तो फिर हमें पूछेगा कौन।
तलाशने पर भी
मिलेगा नहीं
मौन नहीं है कहीं
नासतो विद्यते भावः
शब्द ब्रह्म है
आज मौन बहुत मुखर हो उठा है ! बहुत शुभकामनाएं !
@ भाई समीर लाल जी तो आप भारत में हैं ?
फ़्लाइट पकड़ी इंडिया की..और उतर पड़े भारत मैं !
टिप्पणी-सहित आपका स्वागत है, मित्र
@तरूण जी, मैं जितना आपको जान पाया हूँ,
आप बहुत ही सटीक चीज हो, बस अपने टेम्पलेट का राज बता दे ठाकुर
मैं तीन दिनों से कोड के साथ शीर्षासन कर रिया हूँ
और...यह सुधरना भी, भला कोई सुधरना है ?
पढ़ गये एक साँस में.. फिर साँस भी न ली और दे दी बधाई !
मेरे दिमाग का निट्ठल्ला चरित्र तो इस पोस्ट को कहीं और लिये जा रहा था
अगर आपको चाहिये एक लम्हा मौन
सह जाइये एक दूसरे थूक में लिसड़ती
यह सहज मातृभाषासेवी ब्लागिंग और
मचाइये फ़र्ज़ी इन्टेलेक्चुअल हलचल
अगर आपको चाहिये एक लम्हा मौन
दबाइये BPL कार्ड रखने वालों का दर्द
समृद्ध करिये अपनी अंटशंटात्मक सोच
और लिखते रहें सुबुकसुबुकवादी पोस्ट
@आदरणीय पंडित दिनेशराय द्विवेदी जी
कल के मेरे आत्म-अवलोकन में आपकी टिप्पणी ने एक नया आयाम दे दिया
अब जरा मेरा समाधान और कर दें...
शब्द ब्रह्म है, तो शब्दों की जुगाली क्या है ?
साहित्य यदि समाज का दर्पण है, तो ब्लागिंग काहे का आइना है ?
@ मेरे रमपुरिया ताऊ
आपका मेल देखा, जानकर खुशी हुई कि, आप भी स्वामी-आहत श्रेणी में हैं
यह तो आपका सौभाग्य है, कि आपके तुच्छ ब्लाग पर वह पधारे
और एक अति तुच्छ टिप्पणी से आपको नवाज़ा, क्या बात है
अब आप उनको अपने ब्लागिंग का सहारा बना ही लीजिये,
आइंदा अपनी पोस्ट आरंभ करने से पहले, प्रेम से भजिये, हम सेवक तुम स्वामी...टिंग-ढिटिंग !
डाक साब, सरकारी अस्पताल में जिस तेजी से मरीजों को निपटाया जाता है, बिलकुल उसी तेजी से (आनुपातिक रूप में)एक पोस्ट इतनी जल्दी धांस दी.टेस मैच के पिलअर ने टोनटी-टोनटी में सेन्चुरी मार दी.
चाहते तो हम भी हैं एक लम्हा मौन...आपके सुझाव बड़े काम के है लेकिन उन्हें इम्प्लीमेंट करना आसान नहीं लगता. बहुत कठिन है डगर मौन की !
क्या बात है सब कुछ मॊन मॊन सा है. लेख भी बहुत ही छोटा सा है ? पढना शुरु नही किया कि खत्म हो गया, अमर जी आप का लेख तो ५, ६ किस्तो मे पढते थे, ओर आज आधी किस्त?
लेकिन बहुत ही सुन्दर लगा.
धन्यवाद
ati sundar ji
वास्तव में मौन सारे दुखों की दवा है। पर यह ऐसी दवा है, जिसे हजम कर पाना टेढी खीर है।
aaj andaaz wakai badla badla hai....lekin khoob hai. aapka ek lamha maun bahut pasand aaya.ye maun to bahut kuch cheekh cheekh kar kah gaya....
देर लगी आने में गुरुवर...वैसे आप बिगडे हुए ही अच्छे हो......
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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