इन सजीले नौज़वान बहादुरों ( ? ) को देखिये..
देख कर चौंक गये, कि अपनी ज़ाँबाज़ मीडिया ने इनको कवर तक न किया..
क्या हमारा ज़ाँबाज़ मीडिया चुप बैठा है.? नहीं नहीं, वह बेचारे चुप नहीं,
बल्कि दहशत फैलाने और कुर्सी दौड़ समीक्षा में डूबे हैं,इसलिये वह कर भी नहीं सकते !
क्या भारत सचमुच सँपेरों का देश है ? साँप के गुजर जाने पर लकीर पीटने की शालीन परंपरा से जीवंत एक सभ्यता..
कभी कभार साँप नेवले की गुत्थमगुत्था भी देखने को मिल जाती है, पर लकीर पीटने और साँप किधर से आया था,
और दँश कितना गहरा है.. इससे फ़ुरसत मिले तो अगल बगल भी देखें !
आस्तीन के साँपों का कहना ही क्या , उनकी खामोश सुरसुराहट से बेखबर हम अनज़ाने इनकी रखवाली कर रहे हैं !
कुछेक भ्रुकुटियाँ संकुचित हो रही होंगी.. आज डाक्टर को क्या हो गया है ?
सचमुछ मुझे कुछ हो गया है, उपचार तो दूर डायग्नोसिस कैसे हो पायेगी, यही पता नहीं..
क्योंकि यह तस्वीरें, झेलम तट पर कल से शुरु किये गये पाकिस्तान के सैन्य अभ्यासों के हैं...
इधर हम मैडम राइस को कस्टर्ड परोसने में मगन हैं... क्यूँ भई ?
क्योंकि हम अमेरिका का पेटेन्टेड बर्गर-पिज़्ज़ा तो कम से कम खाते ही हैं, उनकी ही कृपा से आज हर भारतवासी के तन पर वस्त्र है..
सो, अपना तन मन धन ओबामा को समर्पित करने वालों मित्रों,
क्या हम इतने नैनसुख हैं, कि उसके चमड़ी के रंग को देख देख कर ही निहाल हुये जा रहे हैं ?
भारत के साथ न्यूक्लियर डील का यह विरोधी, आज आपका हीरो है !
कश्मीर को सदैव अंतर्राष्ट्रीय मसला मानने वाले ओबामा के एक स्माइल पर यहाँ का प्रबुद्ध वर्ग लहालोट हुआ जाता है !
कयास लगाते रहने और अंटी टटोलते रहने वाले गुरुजनों के नैन उस समय मुँद जाते हैं,
जब हम भूलते हैं कि अफ़गानिस्तान में लड़ रहे अमेरिकी सिपाहियों ( ? ) का रसद - पानी डिपो कराची में ही है,
किसी युद्ध की स्थिति में राइस उसकी सलामती के लिये परेशान हैं, शांति सद्भाव यात्रा तो अमेरिकी दिखावा है ।
हममें से कईयों से अच्छे तो आदिपुरुष स्वामी जी हैं, जो बेलाग बयान करने का साहस रखते हैं, कि..
अपना घर बरबाद कर, लोगों की क्षीण स्मृति पर संतोष करने वाले,
27 नवम्बर के आँसू सूखने से पहले ही धड़ाधड़ टिप्पणी की चाह से आप्लावित आलेख..
और स्वतः ही अमन-चैन कायम होने के आशावादियों को खैबर दर्रे पर चल रही सरगर्मी न दिख रही हो,
किन्तु चीन से 1962 में मुग़ालते में मार खाने वाले भारत के दर्द को मैंने देखा है..
हालाँकि उस समय मेरी आयु मात्र दस वर्ष थी, किन्तु मैं ऎसे हादसे और भी बहुत कुछ न भूल पाने के लिये अभिशप्त हूँ !
अच्छा चलो, खाली पीली बोम मारना बाद में जारी रखेंगे..... पहले चित्र परिचय तो हो जाये
क्या यह भड़काऊ पोस्ट है ? नहीं, मेरा मानना है कि यह ' द रीयल इन्डियन स्टोरी ' है ! पर, यदि आप भड़क उठते हैं, तो यह भारत माता का सौभाग्य होगा..
वरना गरियाने के लिये.. ताऊ के 'अ' हटा कर कउनो-च्यूतिआनंदन हैं, न ?
वरना अपुन के पास ' होईहैं वहि, जो राम रचि राखा ' का संबल है, न ?
वरना ' हानि लाभ जीवन मरण .. ' के उत्तरदायी अपुन के विधाता हैं, न ?
वरना यथा यथा हि धर्मस्य का परित्राण करने वाले गेरुआधारी ठाकरे हैं, ना ?
वरना राम और रोटी को एक सूत्र में बाँधने वाले अडवानी हैं, ना ?
वरना अपनी सोनिया के मनमोहन हैं, न ?
इस पोस्ट में यदि कुछ अनेपक्षित हो, तो भड़किये नहीं.. अलबत्ता तड़कने की होती है.. !
16 टिप्पणी:
सैन्य अभ्यास की खबर और उस के चित्रों से आप ने चौका ही नहीं दिया है। अमरीका की कलई भी खोल दी है। अमरीका वही करता है जो उस के सामरिक और आर्थिक हितों के लिए महत्वपूर्ण है। उस से तरफदारी की उम्मीद करना बेकार है। हाँ उस का इस्तेमाल करना हमारे शासक सीख सकें तो बेहतर है।
जी हाँ
"स्वामीजी ने " एक बार पहले भी सावधान किया था कि,
" ना तेरी दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी अच्छी"
भारत के लोग क्या चाहते हैँ ?
और क्या होगा ये भी देखिये!
आगे क्या होता है ??
स स्नेह,
- लावण्या
भाई अमेरिका को अब चाहिये पेसा ?? लेकिन कहा अपनी दुकान खोले ? अब हमे आपस मे लडवा कर दोनो को हत्यार बेचेगां, ओर अपनी दुकान दारी चलायेगा,ओर इस आतंकावाद की असली मां तो यह कमीना अमेरिका ही है.
मेने कई बार पहले भी अपनी टिपण्णीयो मे लिखा है जिस ने वरबाद होना है, अपने देश का सत्या नाश करना है वही इस अमेरिका से दोस्ती करे, आप इतिहास उठा कर देख ले जिस से भी इस अमेरिका ने हाथ मिलाया, उस का क्या हश्र हुआ,
धन्यवाद इस लेख ने सब की आंखे खोल दी होगी.
सब अपना फायदा पहले देखते हैं, अमेरिका भी वही कर रहा है. असली गलती तो हमारी है... बाकी आपकी वरना वाली लिस्ट !
आपने बिल्कुल सटीक बात लिखी है ! असल में जड़ वही है जो आप बता रहे हैं ! और ढूंढ़ते हम कहीं दूसरी जगह पर हैं ! अमेरिका का चरित्र जग जाहिर है ! उसका सीधा सिद्धांत है की वो "चोर को कहता है चोरी कर और साहूकार को कहता है जगता रह " तो ऐसे दोगले चरित्र के राष्ट्रों से आप अपनी अक्ल से डील करे तो ठीक है वरना खामियाजा तो भुगतना ही है !
रामराम !
ऐसी भड़काऊ पोस्ट तो और लिखी जानी चाहिए... आपकी सोच वाहा तक ले जाती है.. जहा हम अपने आलसी मान की वजह से नही जा पाते.. बहुत सारी बाते समेटी है आपने..
पता था आप जैसे लोग बेचारे ओबामा को चमड़ी के रंग की वजह से दो दिन भी झेल नही पायेगे ओर ऐसी भड़काऊ पोस्ट लिख मारेगे .....बेचारा हिन्दुस्तान का सरकारी तंत्र पलक बिछाए बैठा था की अब राईस आयी .....अब राईस आयी.. देखना तुम्हारी शिकायत इस बार फोटो के साथ है ....उन्होंने डांट दिया फ़िर अकेले में घर जाकर पुचकार दिया ....रही ओबामा की बात तो उनकी बस चमड़ी का रंग अलग है....!
अमेरिका को क्यों कोसें? हम क्या कर रहे हैं, यह हमारा सरोकार हो। हम सपोलों को पाल रहे हैं और अमेरिका को कोस रहे हैं। रही मीडिया की बात तो सैंडविच खाते हुए आतंकी हमला कवर करना एक बात है और जंगेमैदान में जाना और। कौन जोखिम उठाए? आखिर हमार भी परिवार है ना!
@ श्री, चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद जी,
लगता है कि, मैं आलेख की मूल आत्मा उकेरने में अक्षम रहा..
अमेरिका को नहीं, बल्कि अकर्मण्य भारतीय चरित्र, देशद्रोही आत्माओं और
आत्मविश्वास-विहीन भारतीय नेतृत्व को दोषों को इंगित करने का प्रयास है, यहाँ ..
मेरी शब्दों की निर्धनता किंचित आलेख के विषय के आड़े आ रही है, कृपया वहन करें !
फिर भी, लीक से हट कर आपके टिप्पणी देने के प्रयास को मेरा प्रणाम है !
डॉक्टर साहेब, अगर आप खोजी पत्रकारिता में चले गयी तो मौजूदा (अधकचरे) पत्रकारों की तो छुट्टी ही हो जायेगी. रही बात अमेरिका की तो रास्ते में वे कितना भी कचरा फैलाएं, अपना घर तो साफ़ रखते हैं. हमें भी अपने घर में झाडू तो ख़ुद ही लगानी पड़ेगी.
बाबा अमेरिका की करनी और कथनी में बड़ा अन्तर है जो उसके भ्रमजाल में फंस जाता है उसकी मिटटी पलीद हो जाती है यही भूल हम भारत वासी हमेशा दुहराते आये है और दुहराते रहेंगे. जी
फ़ोटो-सोटो बढ़िया हैं। बाकी देश अपने अनुसार चल ही रहा है। आरोप-प्रत्यारोप शुरू ही हो गये!
अच्छी चर्चा...और इन तस्वीरों के लिये भी बधाई
आदरणीय आपने बहुत ज्यादा आंखें खोलने वाली बातें लिखी और दिखलाई हैं. वाकई तडक तो हो ही गई सरजी.
काश कि हमें तडकना या भडकना कुछ भी आता होता, पुंसत्वविहीन लोगों से पिता बनने की उम्मीद!
ऑंख खोलने वाली पोस्ट है, शुक्रिया।
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
Note: only a member of this blog may post a comment.