बात बात पर उबल पड़ने और भारत माँ की सौगंध लेने की आदत के चलते रामनिहारी जाटव अपने बटालियन में रामबवाली भारती पुकारे जाते थे ! हमारे चरित्रनायक रामबवाली जी अब लांसनायक भारती के नाम से पुकारे जाने लगे हैं । दीपावली मनाने दो वर्ष बाद छुट्टियों में घर आये हैं । सब ठीक ठाक गुज़र रहा था, मात्र चार दिन ही रह गये थे, कि बेस से वारंट आगया.. ... रिपोर्ट इमिडीयेटली ! बीबी ने उनका सामान बाँधा, उन्होंनें कुलदेवी के सम्मुख सिर पर क़फ़न बाँधा और चल पड़े लाम पर ! रिपोर्टिंग की औपचारिकतायें पूरी हुईं, एक संक्षिप्त मीटिंग... और यह तय पाया गया कि जिसको जिस क्षेत्र की अधिक जानकारी है,उन्हें वहीं भेजा जाय !
आज लगभग दस दिनों बाद कुछ लिखने बैठा हूँ |ये अन्डरस्टैंडिंग है...का दूसरा भाग पूरा करना शेष था । ब्लागर की सीमित दुनिया में सुरक्षा संचेतना सुनामी या कहिये कापी-पेस्ट काँव-काँव के थमने की प्रतीक्षा में स्वामी का यह आम आदमी पाँच दिनों के लिये टीकमगढ़ के बंज़र की खाक छान आया ! बस ऎंवेंई ही... वहाँ की दुरावस्था पर बहुत कुछ सुना था, सो देख भी आया ! वहीं पाकिस्तान के विषय में गाम की एक औरत बमुश्किल बता पाती है, " किस्तान -उस्तान तै हम्मैं नाहीं पतौ ! लड़कन बतावत जे अपँयैं भारत माता ते जरन वारे लोग गुंडन के भेज के बम्बई मां दंगो धमाकौ कराय रहै अउर जे सरकार हाथै पै हाथ धरै आगि तापि रही !" किंचित हिचकिचाहट के बाद साहस बटोर कर एक झटके में पूछ भी लेती है, " तू कोनि सरकारी जसूस तै नाहीं ? " एक पोस्ट का मैटर है, सो छोड़िये यहीं ! कल शाम साबिहा समर की पाकिस्तानी पंज़ाबी फ़िल्म खामोश पानी देखी जिसमें ज़िया-उल हक़ के ज़माने की किरन खेर अपने लड़के सलीम मलिक को रफ़्ता रफ़्ता इस्लामी कट्टरवाद में डूबते जाते देखती है, असहाय बेबस ! निःसंदेह एक सशक्त फ़िल्म है, यह ! आज की विहंगम चिट्ठाचर्चा पर श्री सत्यनारायण ' कमल ' से परिचय हुआ.. उनकी वयोवृद्ध लेखनी से निकली जोशीली पोस्ट ने जैसे मुझे जगा दिया .. काल करै सो आज कर... लिख ले जो लिखना है, तुझे ! आपको मेरा सादर धन्यवाद शर्मा जी, यह रहा… वो अन्डरस्टैंडिंग थी और ये सियासत है ! |
अब शुरु हुआ कठोर श्रम और चुहलबाजी का दौर.. ख़तरों के इतने नज़दीक रह कर.. बारूद की गंध में भी यह ज़वान हँसने के मौके तलाश लेते हैं ! जीवट के जीवंत मिसाल हैं हमारे ज़वान ! यम भी इनसे पनाह माँगें, ऎसे हैं
पर, इस बार चुहल में वह बात नहीं थी.. चौकी पर लगे लाउडस्पीकर अपना अलग मक़सद रखते हैं ! पर, इसी के ज़रिये सीमा पार के सैनिकों से नोंक-झोंक भी कर ली जाती थी.. जस्ट फ़ार चेन्ज़ ! टैंक अदल बदल के किस्से तो अब चुटकुलों में भी शामिल हो गये हैं ! एक दूसरे की आवाज़ों के इतने अभ्यस्त..कि नाम भी पहचान लिये जाते हैं.. मसलन पिछली बार मोहायम.. परवेज़ वगैरह की ज़िन्दादिल पर रस्मी ललकार कभी कभी इनको भी मोह लेती थी ! एक बार मैंने पूछा भी था कि, " यह सब कैसे बर्दाश्त करते हैं ?" उन्होंने तन कर कहा फ़ौज़ी की कोई धर्म- जाति नहीं होती.. बस हमारे को एक चीज मालूम होता है, कि हमारा मुल्क सबसे ऊपर .. पीछू को चाहे मज़हब बोलो तो.. चाहे पालिटिक्स बोलो और चाहे.. और चाहे तो क्या और क्या .. करते हुये वह अपनी किसी लक्ष्मणरेखा पर ही अटक जाया करते ! मैं कायल था उनकी सतर्कता का..चींईं ईंईं ब्रेक लगा लेने का गुण !
हाँ तो, इस बार चुहल में वह बात नहीं थी । उस पार के लाउडस्पीकरों से पाक़ीज़ा, उमरावज़ान सरीखी उर्दू फ़िल्मों के गाने बजते, जो रेगिस्तान में दूर तक गूँजते हुये अज़ब का दिशाभ्रम पैदा करते । स्साले.. हमारा गाना सुने बिना ख़ाना हज़म नहीं होता.. अबे दुपट्टा ओढ़ता ही काहे है.. जो इन्हीं लोगों ने..इन्हीं लोगों ने ले लीना का रट लगाये है.. फिर हा हा हा उहू उहूः हू से बैरक गूँज जाता ! देखीए यूयन्नो में भि इ सार मुसरफ़वा ईहै दोपाट्टा गा गाके बुसवा को खसम बनाय लिहिस है .. सुमेर बलियाटिक ठुसकी मारते.. वह हमेशा यू.एन.ओ. को यूयन्नो ही कहते, और फिर वही अहाहाहा हा ह्हा ह्हायगे माई.. भाई लोग अगले पल से बेख़बर हँसते हँसते खुद ही दोहरे हो जाते, वाह जीना इसीका नाम है!
पर नहीं, इस बार चुहल में वह बात नहीं थी ! एक ख़ामोशी छायी हुई थी.. उस पार से " यूँ दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान.. कैयदेअज़म तेरा एहसान तेरा एहसान " जैसा कुछ लगातार सुनाई पड़ रहा था ! लांसनायक अपने ज़वानों से आँखें चुराने लगते.. काहेकि उनके ज़वान ऎसे लम्हों में अपनी प्रश्नवाचक निगाह उनके ऊपर लगातार साधे रहते,“बोलो,हमें क्या बोलते हो नायक ? ”
क्या करते लांसनायक भारती ? अभी तक ऊपर से एक्शन का कोई आर्डर नहीं आया है.. एक भद्दी गाली मन में दे लेते.. हमारे ज़वानों का मोरल डाउन हो रहा है.. एक बार आर्डर मिल जाये तो इनका रोज का किस्सै ख़ैत्तम कै दें। चबा कर बोलने के चलते उनका ख़तम हमेशा से ख़ैत्तम ही रहा है ! गौरमिन्ट सट्ट साधे है... कुछेक क्षण अपने को संयत कर दायें हाथ से छुक छुक गाड़ी जैसा एक्सन करते हुये बोलते, " पब्लिकिया भी ये नहीं करती और दुनिया का नाटकबाजी.. हाँय नहीं तो ? " उनकी हताश मुद्रा पर उनके ज़वान भी द्रवित हो उठते, पर.. क्या ?
ख़ैर, अब जल्दी से आगे बढ़ते हैं.. क्योंकि मेरा कुप्रसिद्ध तीन बजने को ही है ! इस रोज रोज की चिक चिक से ऊब कर आपस में यह तय पाया गया कि इस बार गश्त पर हम भी आमने सामने थोड़ा बहुत ज़ुबानी ज़माख़र्च हो लेंगे ! ताकि यह कुछ दिन तो शांत रहें ! अगली गश्त पर देखा तो सामने बाड़ के उस पार परवेज़ मियाँ गश्त पर हैं.. ' चलो, इनसे थोड़ा शिकवा शिकायत हो जाये । मियाँ नम्बरी चीज हैं.. टैंक अदल बदल करने का आइडिया इनका ही था..स्साला फ़रेबी ! बातचीत में इतने सधे और मीठे कि लगेगा अपनी बिटिया का रिश्ता देने आये हैं ! चलो अपना क्या है.. हाल चाल ले लें इनका भी मन बहल जायेगा और इस बदले मिज़ाज़ का रंग भी मिल जायेगा ।' यही सब मन में सोचते आगे बढ़े.. ऒईलो, ये तो स्साला गाली दिये जा रहा है ! एकदम से खौल गये, " ज़नानियों की तरह गाली क्यों देता है, बे ? " ससुरा वह आधी घुटी हुई दाढ़ी और जोर-शोर से गरियाने लग पड़ा.. क्या कहा वह आप न ही पढ़ें तो अच्छा है । भारती दहाड़े, "अबे गाली क्यों देता है.. सिर्फ़ दो हाथ लड़ ले तो जानें !" परवेज़वा जैसे गाँज़ा लगाये था, "किसने क्या कहा बे , सबूत है तेरे पास ?" भारती ऎसी स्थिति के लिये कतई तैयार न थे.. "ऒईलो, खुल्लम-खुल्ला गरिया भी रहा है और उल्टे मुझीसे सबूत भी माँग रहा है, धूर्त ?"
क्या करते लांसनायक भारती ? उन्होंने हनहना कर एक लात उसके पिछवाड़े जड़ दिया । बस, इतना ही था कि, सहसा तड़ तड़.. तड़ तड़ गोलियों की बौछार शुरु कर दिया मरदूद ने ! छिटक कर एक गोली हमारे लांसनायक के बाँयें टखने पर लगी, उन्होंने झटपट आड़ में पोज़िशन ले ली । तनिक झाँक कर चिल्लाये, "दिमाग ख़राब हो गया है... कल तक तो हमारे दम पर ऎश कर रहा था, 15-15 दिनों की दो छुट्टी दिलायी .. सो भूल गया ? " वह मेरी तरफ़ से अन्डरस्टैंडिंग थी.. यह था परवेज़ का ढीठ ज़वाब ! " तो फिर गाली क्यों देता है और कहता है कि सबूत दो, मक्कार ? " परवेज़ की मशीनगन थमने का नाम ही नहीं ले रही है ! फिर चिल्लाये हमारे नायक, "अबे, वार डिक्लेयर तो होने दे..!!" परवेज़ सचमुच मक्कारी से हँसने लग पड़ा, " किसी गाली वाली का कोई सबूत तो दिया नहीं.. उल्टे हमारे पिछवाड़े लात ठोंक दिया... हमलावर तो तू है, पाज़ी ! वार तो तूने ही डिक्लेयर कर दिया है !"
“ऒईलो, यह क्या कह रहा है, तू ? “ भोले भारती चकराये ! ” मैं कुछ नहीं कह सुन रहा... यह तो दुनिया ने देखा कि पहला वार तूने ही किया है ! जाकर किसी से पूछ.. यह सियासत है !” परवेज़ अबतक हँस रहा है
12 टिप्पणी:
हाँ डॉ साहब ख़तरा तो यही है और ये मरदूद केवल कांव कांव करते रह जायेंगे ! सही समय पर खबरदारिया पोस्ट !
मुशर्रफ़ का गाना गाकर पटाना मजेदार है। वैसे आप अपने कुख्यात समय पर ही क्यों लिखना पसंद करते हैं?
प्रतीक्षारत लगे हैं हम भी कतार में।
कुप्रसिद्ध टाईम पर लिखी गई कुप्रसिद्ध पोस्ट।
सबूत.. ??????????
आपका तीन बजना कुप्रसिद्ध नहीं जी . सुप्रसिद्ध है ,बोले तो मशहूर :)
कैसा स्बूत? यहां तो कोई उस नाम का है ही नहीं। जनाब, आप बिला वजह आरोप भी लगा रहे है और लात भी ऐसी जगह मार रहे है कि मुझे सुबह भी याद रहेगी।
गुरुवर आज आपने भावुक कर दिया.....आखिरी कुछ पंक्तिया जैसे चुभ सी गई .फांस सी चुभेगी देर तक....इस देश की हमारी सब की यही हालत है...मैंने एक पोस्ट लिखी थी उस पर किसी ने गुमनाम सी टिपण्णी दी थी की हम इसलिए चेत रहे है ये मुंबई ओर ताज पर हमला हुआ है....किसी गरीब के मोहल्ले में होता तो सब इतने सक्रिय नही होते....कुछ अखबारों को पलटा ओर लगातार टी .वी चैनल को देखा तो सच लगा ........ओर महसूस हुआ की यू पी वाराणसी या ट्रेन में हुए ब्लास्ट पर क्यों मीडिया नही चेता ....सच में हम कश्मीर के भीतर के हालात पर नही चेते क्यों ?क्यूंकि वहां की सही तस्वीर किसी ने नही दिखाई .एन डी टी वी सिर्फ़ अपने हिस्से का सच दिखाता रहा ...या जवानो के बीच किसी स्टार की मौजूदगी...उसकी कोवेरेज में संजीदगी नही थी....जितनी उस सवेदनशील इलाके को कवर करने के लिए होनी चाहिए थी ..
भारती जैसे जाँबाज़ सिपाहियोँ को हमारा नमन पहुँचे
- लावण्या
गरीब के मोहल्ले को कौन पूछता? अनुराग जी विज्ञापन डाउनमार्केट खबरों के लिए थोड़े ही मिलता है। मीडिया ही नहीं सभी की ये हालत है। डाक्टर भी उसी का इलाज करता है जिसकी जेब में कंसल्टेंसी फीस हो। हर कोई डाक्टर अनुराग नहीं हो सकता। दरअसल सियासत और धंधा मिलजुल कर काम कर रहें हैं।
आदरणीय डॉक्टर साहब,
आपको, आपके परिजनों और आपके मित्रों और परिचितों को भी नव वर्ष की शुभकामनाएं. ईश्वर आपको सुख-समृद्धि दे!
अनुराग शर्मा
नमन टिकाने जायें तो हमारा भी ले जाना. इती पहले की बात पढी है तो इत्ते पहले की शुभकामनाऐं नये साल की.
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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