वाह भाई, क्या नज़ारा है….. तू रूठा रहे, मैं मनाता रहूँ… तो मज़ा जीने का और भी आता है ! अय हय, अरविन्द भाई.. एकदम्मै से भभक पड़े.. अभी क्लिनिक से लौटा तो देखा, कि एक सार्थक ’ क्वचिदन्यतोअपि...’ चल रही है । देखा तो ज़ाकिर भाई भी कतार में खड़े गा रहे हैं..’आपने याद दिलायाऽ ऽ..तो मुझे याद आया ’ आनन्दम आनन्दम, जय हो भोलेनाथ त्रिपुरारी.. बोल बम्म
इधर स्साला मँईं बी बिज़्ज़ी रहा और.. अरॆऽऽ हः ,ऊ क्या बोलता कि लीखने ऊखने का जइसे मनइच नॆंईं करता ! लीखने का नॆंईं तो पढ़ने का.. कुच्छ तो करेंगा न बाबा… खाली पीली अक्खा टाइम का क्या करेंगा, मैन ? सो हम लेरका - लेरकी लोग का बिलाग पढता, जब्बी कोई बिलाग बेलाग किसिम का होता तो टीपता ज़रूर से.. ई तौ अमारा डियूटी है, के नॆंईं ? मँईं तो जिस बी का कुच्छ बी करेगा, जब्बी करेगा तो हार्ट से करेगा, के नेंईं ? अब्बी हानेस्टी मैनेज़मेन्ट का ऎडमिशन कानपुर में ई लेंगा, के नॆंईं ?
हुआ क्या कि मई महीने में पंडिताइन को विस्फ़ोट पढ़ने को मिल गया, और काउंटर विस्फ़ोट मुझ पर हो गया । ऎई सुनो.. अब तुम मुझे कंम्प्यूटर पर दिखना नहीं, कब अकल आयेगी तुमको ? हाँ नहीं तो.. एक से एक चीज़ बना बना के खिलाती हूँ, इसलिये नहीं कि रात रात भर जग कर गूगल की गुलामी करो । विस्फ़ोट नहीं पढ़ा होगा ना, तुमको हर जगह चँगू मँगू ही मिलते हैं, हुँह.. लगे रहिये.. जमाये रहिये, मुझी से सुन लिया करो, हुँह..फिर सड़क के एक कुत्ते को देख न जाने क्यों शरमा गयीं, यह तो चोखेरवालियाँ ही बता सकती हैं… या आपकी गैर-जागरूक घरैतिन । पूछ सके तो पूछ । अब, आगे बढ़ें ?
रात मॆं, थोड़ा नरम पड़ी.. ज़्वालामुखी कुछ कुछ सूरजमुखी फ़ेज़ में एन्टर हो रहा है..क्वेरी, वो क्या कहते हैं, जिस पर तुमलोग लिखते हो ? पता नहीं.. । ऊँउँहुँ बोलो तो सही, एक बात है । डोमेन.. चिहुँक कर देखा, अविश्वास से बोलीं.. डोमेन क्या नाम हुआ भला ? एक संशय.. जैसे उठता सा दिखा, कि मैं पहले ही हँस पड़ा.. हा हा हा, रात भर डोमिन के साथ ही तो बिताता हूँ ! मज़ाक छोड़ो..कहाँ मिलता है ? सहारागंज़ में ढाई-तीन हज़ार लगेंगे । बऽस्स, निराश हुईं, इससे भी कहीं स्टेट्स बनेगा ? बेचारी सोच रही हों कि 20-25 हज़ार की चीज हो, तो ठसके से अपनी किटी पार्टी में बतायें, कि मेरे हस्सबैंड का वेबसाइट है..
तीन-चार दिन से पूछा जा रहा था कि यह बरात की घोड़ी जैसे क्यों कर रहे हो ? कुछ लिखते क्यों नहीं, कब तक बेचारे फ़ुरसतिया तुमको हुर्र्पेटते रहेंगे ? डोमेन तो रिलीज होने दो । अभी भादों है, नयी चीज नहीं लेते हैं । वाह रे पंडिताइन.. पहले न समझ में आया था कि मुआ यह करमकल्ला भी भादों की फसल है, और मैं कोई सेकेन्ड हैंड भी नहीं हूँ..
सुबह पहुँचा चिट्ठाजगत पर.. देखा लेट चल रही है.. क्या पता कब आये ? किसी लिंक से सुराग मिला, चलो बतकही में शामिल हो लें.. बाप रे, चुहिया सी पोस्ट और लंगूरी लंबाई की टिप्पणी कतार, भाभी-देवर और गुजरात मालवा दर्शन कर के लौटा तो मिल लिये ’ क्वचिदन्यतोअपि...’ पढ़के एक टिप्पणी भी टपका दी, मालूम न था कि पोस्टिया में इतनी आग है । सो, डाक्टर आज तो तुम एक बिखरे मित्र को मान देने गये थे और फँसा पड़े अपना ही टेंटुआ । अरविन्द साहब से कुछ मुद्दों पर पंखा कूलर लगाना पड़ा था.. किंतु मेरे मतभेद विचारों और एकांगी निष्कर्षों पर ही टिके होते हैं । क्या लेना देना इन बातों से कि अगला नाटा है, मोटा है, खरा है, खोटा है, कंज़ा है, गंज़ा है, धोती है, कुर्ता है । लेकिन दूसरी फेरा में लोगों की प्रतिक्रियायों को देख कर मन व्यथित च पीड़ित होता भया । आज हम भी टिप्पणी तो नहियें देंगे, और पढ़ेंगे भी नहीं..
बैठे छाती पीटेंगे, क्योंकि मेरा मयख़ाना ही बंद है, आज टिपियाने लायक पोस्ट भी एक से बढ़ एक हैं, ऒऎ रब्बा हुण की कराँ
अरविन्द भाई, मेरा खली एकदम गुस्से में है,किसके ऊपर छोड़ना है..जरा बताओ तो ? ये सब रस निचुड़े रसिक हैं,समझो कि टें ! बड्डे बड्डे लेवेल की बातें हो रही हैं, मेरे को तो लगे कि आभिजात्य तो हावी है, किंतु ख़ानदानी आभिजात्य का नितांत टोटा है, यहाँ । भाई, मेरे बाबा परबाबा अपनी ज़मीनी सच को चरितार्थ करते हुये तश्तरी में उड़ेल उड़ेल सुर्र सुर्र – सुड़ुक सुड़ुक चाह पीते रहे , जबकि क्या ज़ुबान थी और ग्रंथों पर क्या पकड़ थी, सो मैं ज्ञान की सरलता और विनम्रता से अपरिचित भी नहीं हूँ । अब क्या कहें ज्ञानजी को, जो उछल उछल कर झाड़ पिला गये कि “ अभिजात्य अभिजात्य रहेंगे और प्लेबियन (plebeian) प्लेबियन। “ अब क्या कहें, गुरु हैं तो इनकी गुरुडम भी झेल ही लेंगे, यदि इनका पांडित्य मुझे हिंदुस्तान में इनका मूल सोदाहरण समझा दे । ई ससुर प्लेबियन के समधियाने का पता अब गुरु भी न बतायें तो क्या गोविन्द बतावेंगे ? हम तो पूरे चिट्ठाजगत को ज्ञानजी का जजमान समझते हैं, मुकर जायें, ई और बात है । क्या साबित करना चाहते हैं लोग अपने को ?
टिप्पणियों पर, या उसके आदान प्रदान से तो मेरा कोई विशेष सरोकार नहीं ही रहता । पोस्ट है.. खेत की, टिप्पणी आयी खलिहान की ! तेरा मर्म न जाने कोय ! एनिमल क्रुयलिटी की बात की जा रही है, टप्प.. तन्मय शीघ्र स्वस्थ हों । भारतीय किशोरों में मीडिया फ़्रेंज़ी से उपज रही राजनैतिक सोच की कट्टरता अनुपम को इन्सेक्टिसायड पिलवा देती है.. चार ठईं मूड़ हिल गये ’ क्या कहा जाये.. बड़ा ख़राब ज़माना है । ’ वकील साहब बिलबिला दिये कि काला कोट को सिरे से उड़ा दिया जाय । मित्र होने का दम भरते हैं, सो आप कहो तो, कालाकोट क्या, अपना मूड़ ही सिरे से उड़ा देंगे । अउर हमारा मूड़ पिराने लगा, ’ ये कहाँ आ गये हम.. सरे राह चलते चलते.. ! ’ घंटे भर बाद देखता हूँ, कि वह अपनी टिप्पणी ही ज़ेब में समेट कर ले गये । इस तरियों कुछ भी डिलीट करने या करवाने से ही लेखक को शायद इलीट का दर्ज़ा मिला करता होगा । हमें तो कोई इलीट कह दे, तो मुझे ज़मीन से ऊपर उठ जाने की आत्मग्लानि तो कहीं का न रखेगी । मुझे जन व ज़मीन ही भाते हैं । तभी मैं विदेश से भाग आया.. भात दाल हाथ से सान कर न खाया, तो क्या जिया । फिर पान के लिये भटकना..
फ़ुरसतिया गुरु परेशान हो रहे होंगे, लंबी पोस्ट का रिकार्ड न तोड़ दे यह डाक्टर बकलोला, सो स्वामी-चरित्र पर फिर कभी !
सूचना – आज दिनांक 28/8 को विशेष माँग पर फोटूओं को लिंकित कर दिया है । जिन बहन और भाईयों को देखना हो, वह अपनी पसंद के फोटू पर माउस ले जा कर किल्कित करें अउर बड़का फोटू देखें । व इसे बंदरवे को सबसे ज़्यादा हिट मिला है