जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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27 September 2008

रानी रूठेगी… अपना सुहाग लेगी

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बात तो भाई, एकदम्मै सही है. !  हाँ तो, शुरु किया जाय ? एक महीने का अंतराल होने को है.. और महीने में एक पोस्ट देने का वायदा भी है । मौका और मोहाल दोनों ही माक़ूल हैं  सो, इस नामाक़ूल की कलम चले ? पहले यह तो पूछो, कि गायब ही क्यों था ? गायब होंय भूत प्रेत बैताल के दुश्मन, हम तो वइसे ही अपना नया शौक में उलझ गये थे । देखि लेयो ईहाँ, एच०टी०ऎम०एल० की एचटीमेंएल कर रहे थे, इस सइटिया का कोड सँवार बिगाड़ि रहे थे, अउर अब ख़ाज़ खुज़ाने आयें हैं, कोई ऎतराज़ ? मेरे काबिलतरीन दोस्त श्रीयुत दिनेश राय द्विवेदी जी, पहले ही फ़रमा भये हैं कि सबहिं फुलन्तरू हँईयन लौट के अईहें, भागि नाय सकत कोऊ, ईहाँ तै ? वइसे ऎसी दलीलन को ओवर-रूल करै को वन हण्ड्रेड वन रीज़न्स हैं, अपने पास ! काहे कि अइसे छुट्टा- बेलगाम सुहाग से तो रँड़ापा ही भला ! बात में असल ये है, कि हम आहत हुई गये थे, अउर हैं !

आहत होना तो ख़ैर ब्लागर-कुलरीति ही है । लेकिन पगलवा गुट बोला कि ई कउनो ख़ास रीज़न नहीं, कुछ सालिड बताओ । काहे कि इत्तै वाद-विवाद हुई गये, लोग गरियाइन.. मारिन.. चप्पल ज़ूता घसीटिन… बल्कि हियाँ तो पतलून-जम्फर तक उतरवा के घुमावा गवा है, लेकिन अपमानित नहीं किया कब्बौ कि हम आहत हो जायें। हम बिरझ गये, ठीक है भईय्या, तौन अब आप जाके देश का नेतृत्व संभाल लेयो, ब्लागिंग का तो अनुभव ही पर्याप्त है तुम्हरे लिये ! मज़ाक नहीं भाय, अच्छा लेयो ई नाड़ा पकरो… “ देश का नेता कैसा हो.. हिन्दी ब्लागर जैसा हो ! ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद… चिरकुट अँधरा ज़िन्दाबाद ! अँधेरा तुम्हारे अंदर है.. बाहर तो उज़ाला है ! लेयो, अउर लेहो ? हम्मैं कउनो फ़िकिर नाहीं, ’  राजा नहीं फ़कीर ’  नारा वर्कशाप में काम किहा है ! यह तुलना ऎंवेंईं वाली नहीं बल्कि सच्ची की है, नेता ब्लागर और गैंडा के तुलनात्मक अध्ययन पर ज्ञानदत्त पांडेय जी ’ मानसिक हलचल फेम वाले ’ एक चार्ट भेजने वाले हैं, देखते रहिये यह   happy_feetस्पेस ] … गैंडा तो लीद करने को बैक गीयर में चलता है, सो उसको अलग किये दे रहे हैं,  अभी तो ब्लागिंग में अपार अन्यान्य  संभावनायें अन्वेषित होने को हैं  । गैंडत्व अभी दूर की कौड़ी है, मित्र श्री !

सो, हम सीनाठोंक आहत रहे अउर हैं। टंकी रिपेयरिंग अभी पूरी नहीं हुई है, वरना डिक्लेयर कर जाते । फिर यह भी सच है कि, 100 टुटपुँजिया पोस्ट के बूते टंकीरोहण करना समझदारी भी नहीं, वह भी ऎसे हालात में जबकि आप अपने नेटवर्किंग पर भी भरोसा नहीं कर सकते, यहाँ  कई तो आया राम - गया राम भी होंगे, कहाँ नहीं हैं ? तो, हम एक बार फिर दोहरा रहे हैं,कि .अँ,  कि ..ऊँ,  कि हम आहत थे  और आहत हैं ! आहत था…बोले तो…

मेरे एक सहकच्छामित्र ( एक नया शब्द, नोट करें अब लंगोटिया यार नहीं चलेगा । लंगोट पुराना और बासी माल है, हर गाँव पुरवे में रूपा की ही ठेलमठाल है। और यार, अरे यार तो यवन संबोधन है, मेरे यार ! भारत में यदि रहना होगा, सहकच्छामित्र कहना होगा )

Binavajah Sept'08

तो यह सहकच्छामित्र श्रीमान एक दिवस हमरे कनें टहल लिये,  ’मुन्ने ’ यानि कि मोहम्मद अज़हर खाँ मंथर चाल से प्रगट हुये, साहित्यानुरागी हैं ! सो, कभी कदार साहित्य चरने की गरज़ से भटक आते हैं । मित्र को आलोचक का दर्ज़ा देकर रखो, तो बड़प्पन कहलाता है । बट ही इज़ अ नाइस ज़ेन्टलमैन, अ बिट डिफ़ेरेन्ट फ़्राम शिवकुमार ! हज़ कर आये हैं, सो हाज़ी हैं.. पर ज़ेहादी नहीं हैं । चा – पानी की पूछ-ताछ दिल से हुयी  और वह जुगा़ड़ पक्का देख आश्वस्त हो  लिये, फिर बोले, ” और सुनाओ,, कुछ नया लिखा –ऊखा, या वही इन्टरनेट पर लिख रहे हो ? कुछ लिख रहे थे, ना ? और वह“ भउजी दर्शन को प्यासी अँखियाँ इधर उधर दौड़ा कर मेरे कंम्प्यूटर चेयर पर क़ाबिज़ हो लिये । सफ़ारी मिनिमाइज़्ड मोड में थे, एक चटका माउस का और चिट्ठाजगत का पन्ना स्क्रीन में से दीदे फाड़ फाड़ खाँ साहब को घूरने लगा । अज़हर मियाँ कौतूहल से आगे को झुक ज़ायज़ा लेने लगे, फिर अपने स्वभाव के विरूद्ध बिफ़र पड़े, “  अमाँ डाक्टर, यह क्या भँड़ैती है, तुम यही सब कर रहे हो ? तुम्हें और कोई चूतियापा नहीं मिला दुनिया में, फ़ालतू का टाइम-वेस्ट ? वह तो बेटा आज रंगे हाथ पकड़ लिया, तुम अपने लिटरेचर को क्या दे रहे हो, यह तो सोचो ? “ वह मेरे इतने अज़ीज़ हैं, इसलिये तारीफ़ न भी करते पर ऎसी असहमति भी क्या ? लिहाज़ा हिन्दी ब्लागिंग की ख़ातिर कुछ तो आहत होना ही पड़ा ! ईद के बाद मेरी क्लास फिर ली जायेगी, यह मुझे पता है । आहत हूँ… बोले तो.. .

लगभग इसी दौरान एक GhostBusterPhoto जी रूपी पुच्छल तारे का उदय हुआ । उनकी बेदुम बेसिर-पैर की जिन लोगों ने पढ़ी हो, वह मेरा विषय नहीं है, आप स्वयं ही बहुत कुछ जानते हैं । यदि ठीक से मौज़ लिये की मौज़ाँ ही मौज़ाँ लिये होंगे तो  ’ ये अंदर की बात है ’  का मर्म समझाने की आवश्यकता ही नहीं ! किन्तु मेरा केस  कुछ डिफ़ेरेन्ट है… वर्ज़नाओं को तोड़ना और गलत का विरोध  करना मेरा स्वभावगत दोष है, बस यूँ समझें कि जन्मजात मैन्यूफ़ैक्चरिंग डिफ़ेक्ट ! अब जो करना हो, करलो ! लेकिन गौर किया जाय कि मुझे तो इनका फोटो लगा कर संबोधित करना पड़ रहा है । धन्य हैं, जय हो.. इत्यादि इत्यादि इनके लिये, क्योंकि इन ज्ञानी GhostBusterPhoto जी के हलचल पैदा करके अपने को अमर कर लेने की सनक ने कुछ अधिक ही आहत किया, अब्भी अब्भी तो बताया था कि गैंडत्व अभी दूर की कौड़ी है ! क्योंकि यह तो मेरे पिछवाड़े की गली ही के निकले । धन्यवाद श्रीमती पुष्पा पांडेय, जिन्होंने अपने पद एवं तंत्र का उपयोग कर इनके नाम-पते को कालर पकड़  सामने ला खड़ा किया । कौन हैं, यह… जान कर हैरत होगी.. विचित्र किन्तु सत्य ? सच बड़ा ज़ालिम हुआ करता है, इस दुनिया में किसिम किसिम के लोग हैं । प्रणाम GhostBusterPhoto जी, एक दिन अचानक धमकूँगा, चाय पीने, दोहरा व्यक्तित्व या ’ स्प्लिट पर्सनालिटी ’  बड़ी कुत्ती चीज है, एक लाइलाज़ मनोरोग ! मुझे तरस आ रहा है, इन GhostBusterPhoto पर ! हलचल जो न करवा दे… इस वर्चुअल दुनिया में !  एक वर्चुअल चरित्र गढ़ने की फ़ैंटेसी बड़ी रोमांचक हो सकती है, इन GhostBusterPhoto जी के लिये .. पर इसके दुष्परिणाम बड़े भयावह हुआ करते हैं । सुना है, अवध के कोई नवाब ज़नाना कपड़े पहन के रंगरेलियाँ मनाया करते थे, नतीज़ा यह हुआ कि वतन गया फ़िरंगियों के पास ! आपको इतिहास से एलर्ज़ी है, क्योंकि यह आपको डराता है ! मुझे ऎसा कोई डर नहीं है ।

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मुझे तो एक मुहिम मिला था, वह पूरा हुआ समझो । इस बेगैरती में शायद न भी पड़ता किन्तु मुझे एक वक़्त की रोटी देने वाली पंडिताइन गश खा खा कर बेहाल थीं । इसको सामने लाओ.. देखें तो कि यह 75 किलो का औसत भारतीय कौन है ? कुछ पता तो चले कि यह नर हैं कि मादा… हिज़ड़ा कहीं का ! जरा देखो तो कैसे लिखा है… और अपनी लम्बाई बताने में हीन भावना से ग्रसित हो झूठ लिख गया है, सात पुश्तों का ज़नख़ा ! ओह्हः, इन स्त्रियों का क्वथनांक, ज़्वलनांक इतना कम क्यों हुआ करता है, रे विधाता ? पर एक बात ज़रूर है, तू चीज बड़ी है, मस्त मस्त !

अपने डाक्टर अनुराग जी चिट्ठाचर्चा पर टिप्पणी लिखते पाये गये, कि अब पोस्ट चढ़ाने से पहले सोचना पड़ता है । बस यही बात तुमको औरों से अलग करती है, अनुराग । तुम चमड़ी के उस पार देखने लगते हो ! जहाँ ठेलो-गुहार चल रही हो, तो ठेलने के उस पार मत देखो । लोग शौचते हैं, और तुम सोचते हो ! भला ब्लागिंग के लिये भी कोई सोचता है ? मेरे लिये यह नयी जानकारी है ।

देखो मुझे, बिना सोचे लिख रहा हूँ कि नहीं ? इसमें भी धुरंधरों को ज़लेबी इमरती दिख जाती है, तो मेरा अहोभाग्य ! भाषा पर कोई रोक टोक न लगा कर, खुद को.. खुद ही.. अपने अंदर की खुदखुद को परोसता हूँ, वह भी खुद्दारी के साथ खुद बन के ! इतना ही तो ?

भाई कुश सांप्रदायिक भाई गिरी से परीसान हैं, किंवा उन्होंने मेरी टिप्पणी पर ध्यान न दिया.. भाई यह फ़साद वहीं ख़त्म होगा, जहाँ से शुरु किया गया था । अब यदि मुसलमानों में पाकिस्तान ही ढूँढ़ा जाता रहा, तो उनको भारतीय बनने देने की राह का रोड़ा कौन है ?

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एक पोस्ट चढ़ाने का घणा ताव तो मुझे उसी दिन से था, जब अपने ताऊ की कविता पढ़ी । मैं भी लिक्खूँगा कविता… पर भाया मेरे, पूरे तीन दिन बरबाद हो गये, कविता निकल के ना दी ! कमरे में अँधेरा करके महसूस करने की कोशिश की, महसूस हुआ मच्छरों का दंश ! आकाश को निहारा किया.. मिला कऊव्वे की बीट ! तलईय्या किनारे बैठा.. दिखा तैरता सिवार ! सुंदरियों को निहारा.. तो सुना ’ नमस्ते अंकल ’ ! आम आदमी के दर्द को टटोला… और कविता हवा हो गयी ! 27 सितम्बर की डेडलाइन सिर पर, स्वपनिल जी से कविता उधार माँगने गया । बेचारे गदगद हो गये… हैरत से पूछा, नेट पर दिक्खेगा ? तो लीजिये यह ताज़ा माल.. कल रात ही इसका प्रसव हुआ है, और वह सस्वर प्रसवपीड़ा से सड़क पर ही चीत्कारने लगे । दईय्या रे, मैं भाग खड़ा हुआ, ज़ूते पड़ जाते !

एक टूटी फूटी कविता हाथ लगी, इसी से काम चलाइये..

ब्लागरों के इस ज़मात में
रोज सुबह उगता कोहराम है
वह रोज आधीरात
फ़ाँसी के तख़्ते से वापस आता है
सुबह फिर चढ़ जाता है

यह उपक्रम तब से जारी है
जब से कुछ ब्लागर बैलों ने
संवेदनाओं और वास्तविकता का जुआ अपने कंधे पर रखा है
शायद जीतना चाहते हैं
ईमानदार लेखन का ख़िताब

टिप्पणीकारों से पूछा भाई
इसका कसूर क्या है
रोज फाँसी के तख़्ते पर
क्यों लाया जाता है ?
ज़वाब में वो भुन्न से बुदबुदाये

यह अपनी कलम से
उनकी हत्या क्यों करता है
जो झूठ व नफ़रत के खिलाफ़
बोलने वालों का मुँह सीना चाहते है
यह तो बुद्धिजीवी कहलाता है
फिर भी क्यों न समझता
लिखो और लिखने दो का रिश्ता


अरे, कितनी देर से क्या लिखे डाल रहे हो ? यह पंडिताइन हैं कि विक्रम की बैताल ? ( इनको सहकच्छाधर्मिणी कहें, तो चलेगा ? )बस फ़िनिशिंग मार दूँ । समझती नहीं है, मासिक स्राव पर भी रोक है, क्या ?  कुल निष्कर्ष ई बा मरदे जी कि हम्मैं अपने सुहाग की कोनौ चिन्ता नाहीं, जेहिका होखे ऊ करै । हिंयाँ त भतरा के लइनिया लागल हौ, मोहब्बत चाही.. त तुहौ मोहब्बतै देबा नू ? वरना हम तो भाई हमहिं हैं, अउर हमने कसम खा रखी है कि… हम न सुधरेंगे । आप टिप्पणी न करने लिये स्वतंत्र हैं, कोई वांदा नहीं ! टिप्पणी-ऊप्पणी राय विचार कर दीजियेगा कि इसका बी.आर.पी. केतना बढ़ाना है ! बोलिये,  जय हिन्द और सरकिये अगले पन्ने पर !

इससे आगे

12 September 2008

असली…. “ और भी काम हैं ज़माने में “

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लोगबाग यहाँ पूरी की पूरी पोस्ट साफ़ कर देते हैं, मैं तो केवल शीर्षक से गु़ज़ारा चला रहा हूँ। माफ़ करना समीर भाई, यह गुस्ताखी न करता लेकिन आपको यह शीर्षक एक ही दिन के लिये दिया था .. ब्याज़ के 21-22 टिप्पणियाँ आप रख लो, फिलहाल तो मैं यह शीर्षक उठाये लिये जा रहा हूँ, कल्लो जो करना हो । आप ढाई साल बड़े हो हमसे .. तो हमारे परिवार की परिपाटी अनुसार आपकी उतरन पर हमरा हक़ बनता है, आप कहोगे तो इसके बाद राजीव को दे दूँगा । नाराज़ हो गये ? ठीक है..
खैर मैं भी नाराज हूँ, आपसे तो नहीं … पर, किस किस से नहीं हूँ, यह तो पूछि लेयो भ्राता ? जब  हमरे शिवकुमार भईय्या श्रीयुत, दुर्योधन ( Last Name, Optional रहा वोहि युग में ) को हीरो बनाय रहे हैं, तो इस ब्लागर सभा में धृतराष्ट्रन की पैठ तो होबे करेगी । कल सुबह देबाशीष पैदा लेने वाले हैं, सो ब्लागस्पाट, वर्डप्रेस वगैरह को दुई घंटा से निरंतर अगोरे बैठे रहें, कि कोई एक्सक्लूसिव बाइट मिल जाय । जम्हुँआई लेते लेते, कुछेक लोगन को टिप्पणोपकृत करे को टहलने निकले, हौसला लेना अउर देना, कितना ज़रूरी है.. यह आपसे अच्छा भला कउन जानता  है, लेकिन भाई एक जगह पर तो होश ही उड़ गये.. कौउनो घोश्त-बस्तर के दुआरे बड़ी  हसरत से  आरज़ू…. ज़ुस्तज़ू … अउर भी कई तरह तरह के ’ज़ू ’ लेकर पहुँचे, कि मनावेंगे, बड़े रिसियाये हुये कई दिनों से तहमद की गाँठ खोल-कस रहें हैं । किंतु भ्राता, हमरे दिमाग में तो 11 सितम्बर हुई गवा, सच्ची बताय रहें हैं भाय !
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झूठ नहीं, अब आपै देख लेयो.. सो भाई, हमतो अपनी आधी अधूरी टिप्पणी लइके भागि आये, ज़ल्दबाज़ी में चिट्ठाजगत पर जो टाप नम्बर वाला शीर्षक रहा, वही समेट के सीधे यहीं साँस लिया । ई चिट्ठाजगत वाले आपै का शीर्षक ऊप्पर रखते हैं, कि हमला होय.. तो जाय देयो इन्हीं का शीर्षक । एक दुई दिन में फिर कोई शीर्षक लेकर उतरेगी ’ उड़न तश्तरी ’, जरा ध्यान रखा करो इन बातों का !जो हुआ सो हुआ,ब्लागर एकता ज़िन्दाबाद..’टिप्पणी हमारी – हेडिंग तुम्हारे’ बिल्कुल हिट पोस्ट का जुगाड़ है, गुरु अरे वही.. समीर भाई !
अथ आरंभ भूत – प्रेत – बेताल – अगिया बेताल विनाशक टिप्पणी ( सभी लोग अपनी अपनी मुट्ठी खोल लीजिये.. )
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इस मंगलमूरत को प्रनाम किःजीएऽए
शिरिमान ’ पता नहीं क्या जी ’
सादर छिह्हः अभिनंदन
क्या बवाल फैला रखा है, भई आप लोगो ने ?
आप एक मिशन पर बिज़ी हैं, इसलिये माफ़ी चाहूँगा, पर..
दुनिया में हज़ारहाँ काम है, एक दूसरे के लिंग ढूँढने के सिवा...
आप स्वयं विचार करो कि आप हिन्दी ब्लागिंग को कुछ् दे भी रहे हो.. या केवल विध्वंस ( Sabotage ) करने के इरादे से बेवज़ह जूझे पड़े हो । यदि आपके लिंग सत्यापन करवाने  की माँग अब तक नहीं उठायी गयी है, तो आप दूसरे के जम्फर में झाँकने पर क्यों आमदा हो ? जिस सनसनी-परक ख़ुज़ली से मीडिया परेशान है, वह वहीं तक रहने दो भाई या बहन मेरे ! यदि ब्लाग पर दिया गया आलेख दमदार है, तो क्या फ़रक पड़ता है कि लिक्खाड़ नर है या मादा, बुड्ढा है ज़वान, नवा है कि घिसा माल है ?  हद है भई , यह क्या बवाल है ? चाँय.. चाँय.. चाँय.. चाँय..  महीना बिता कर आये हो, अपनी बिसरायी गदरायी ज़ोरू के पास, चैन से रहो ! ब्लागिंग की बुद्धि किसी नसीब वाले को ही मिलती है…. उसमें भी, ये नहीं वो ?

मैं अमरकुमार अपने प्रोफ़ाइल पर किस जीवित या मृत व्यक्ति की फोटो टाँगे पड़ा हूँ, इससे मेरी सोच या लेखन में क्या अंतर पड़ता  है ? अब किस किस की सूँघते फिरें कि यह नर हैं या मादा, और इनकी तहमद खींच कर या चीरहरण करके किस तरह ब्रेकिंग न्यूज़ बनाया जाये ? क्या बक़वास है, और यह किस तरह की चिट्ठाकारिता है, और इसका ब्लागमैटर से क्या ताल्लुक है ? कोई आपके विचारों के उलट लिखता है.. तो उसका ज़वाब अपने तर्क से दो, जनमत को अपनी तरफ़ खींचो या उसके लत्ते नोचने लग पड़ोगे ? यह तो कतिपय विद्वानों के हिसाब से श्वानवृत्ति है, काहे के प्रेत हो स्पष्ट तो कर दो ! बोलो, हम इसी पितृपक्ष में ब्लागर पर प्रेत-बाधा नाशक अनुष्ठान करवा देंगे, भटकने से मुक्ति पा जाओगे और ब्लागर को भी मुक्त करोगे !
छिःह, घिन आ रही है.. ऎसे ब्लाग पर और घटिया विवेचनात्मक आलेख पर टिप्पणी देने में भी !
अब मैं यहाँ कभी टिपियाने से तो रहा.. साथ ही यहाँ के टिप्पणी कालम में दिखने वाले हर   सज्जन और सजनी के सहभागिता निभाने वाले का डब्बा गोल !
अब ये पूछिये कि मैं यहाँ कर क्या रहा हूँ ? आपको अपने फ़ीडरीडर से हटाने गया था तो कौतूहलवश यहाँ की सड़ी बज़बज़ाती सोच को अलविदा कहने आ गया था । देखा कि द्विवेदी जी भी आपकी चोखेरबाली हैं । मेरे खिचड़ी-भोजी ज्ञानदत्त जी के इर्द-गिर्द ऎसा ताना बाना बुना कि एक टीम अन्वेषण में जुटी पड़ी है.. कि  ज्ञानदत्त ही प्रेतावतार हैं !
कापुरुषों को युगपुरुष में शुमार करने के पाप का यही अंज़ाम हर किसी के साथ हो सकता है । क्या वाहियात बात है, पोस्ट लिखने वाले को अपना लिंग टटोलवाना पड़ेगा, ऎसा प्राविधान बनाने  की सनक का क्या अंत होगा, यह तो सोचो ? क्यों चिराँधबाज़ी फैलाये पड़े हो यार ? यारा ?
यह भी पूछोगे कि मैं क्यों परेशान हूँ.. क्योंकि रख़्शंदा को एक मानसपुत्री के रूप में देखता हूँ,  और उसके वज़ूद को भौतिक रूप से सत्यापित कर चुका हूँ , इसलिये  !  मज़हब के झमेलों  की  टुच्चई मुझे नहीं भाती, इसलिये ! उसके समकक्ष के सभी समलिंगी या विपरीतलिंगी भी मेरी इस फ़ेहरिश्त में शामिल हैं, इसलिये !

आपको एक नया होमवर्क दिये जा रहा हूँ, अब आप सिर धुनिये कि यह सत्यापन कब कैसे और क्यों हुआ, पर पहले अपना चश्मा साफ़ कर लीजियेगा, ब्लड सुगर वगैरह करवा लीजियेगा । ईश्वर आपको किंचित बुद्धि दे, जो वेबपेज़ों और दूसरे की मेहनत से तैय्यार किये अध्ययन को टीप लेने मात्र से नहीं मिला करती ।
शुभाकांक्षी - आप की पसंदीदा गाली ( जो भी आपके श्रीमुख से उच्चरित हो रही हो..कोई वांदा नहीं  )
baby5tb4 ऎई सुनो… सुनो तो ? जरा मेरा भी लिंग बताते जाओ, मेरा भी एक ब्लाग है ! बताओ ना, ऊँऊँ
बयान इकबालिया – टिप्पणी कुछ कसैली थी न ? मुझे भी लग रहा था .. किसी ने बताया ही नहीं ? तभी तो मैं ’ न उधो का लेना.. न माधो का देना ’ टाइप ज़ेन्टलमैन ब्लागर समीर लाल जी के चिट्ठाचर्चा का शीर्षक ही उठा लाया.. और उसी की टिकुली साट दी यहाँ…  इससे कुछ तो डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी..मिलबे करेगा कि नहीं ? हम हैं पीर.. अनूप बीर… समीर भाई फत्ते !

इससे आगे

06 September 2008

शब्दों की तलाश में निकली एक प्राणहीन पोस्ट

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कुछेक अहसास को आप शब्दों में बाँध नहीं सकते । लगता है, बहुत कुछ ऎसा ही अभी सारे देश और पूरे विश्व में देखा गया है । इसकी आप भर्त्सना कर लें, निंदा करें, बहसियायें, गरियायें.. फिर भी इस तरह के वतनी शर्मिन्दगी को लफ़्ज़ों मे कैद न कर पाने की छटपटाहट जस की तस बनी रहती है । किसी उपयुक्त शब्द को तलाशने आप कंदराओं में क्या जा पायेंगे, क्योंकि आपका तपोबल तो बलात्कार ( चलो भाई, मानसिक ही सही ) करते रहने और अपने साथ अनेक ( आर्थिक स्तर के ) बलात्कार होने देने में ही चुक गया है । ध्यान रहे, कि यहाँ  मैं नैतिकता का कोई  प्रश्न ही नहीं उठा रहा । मुझे उठाना भी न चाहिये, क्योंकि अनैतिकता की थाली में खाते रहने वाले कराह भले लें, पर गरजा नहीं करते । यह तो.. ऎंवेंई उबाल है, संभवतः कल तक ठंडा भी हो जाय । एक ई-मेल ने कुछ कुरेद दिया, सो आप मित्रों के सामने बिलबिला पड़ा । नैतिकता की कस्तूरी की खोज में भागा करता था, ज़नाब फ़लाँ-ढिंकाँ ने फ़रमाया …  इसको कहाँ ढूँढ़े रे बंदे.. शाम  को बुलाया है कि मेरे भीतर से ही बरामद करके दिखा देंगे । अब देखिये.. क्या होता है ?  अगर कल को यहीं ब्लागर पर ’ निट्ठल्ला टाइप ’ पोस्ट लिखते पाया जाऊँ, तो समझो नैतिकी ब्रांड कस्तूरी बरामद होने से रह गयी । अपनी जगह पर है तो, सवा सोलह आने , पर मैं भी तो आप सब की तरह बाल बच्चे वाला आदमी हूँ .. सुना है कस्तूरी के लिये उस्तरा चलने का दर्द झेलना पड़ता है.. माफ़ करना बंधु, यह तो मुझसे न होगा ! अरे भाई, को घर फूँके आपना.. !

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इस चित्र /कार्टून ने भाई बवाल काट रखा है । पूरे देश का कार्टून बना रखा है, तब भी चैन न मिला तो नीरज गुप्ता जी से कह सुन कर मेरे मेल-इनबाक्स में प्रगट हो गये… और मैं उलझ गया । पंडिताइन की सोहबत अभी तक तो ठीकठाक है, सो प्यार से गोहरा कर बोली.. “  बहुत दिनों के बाद समय से घर आये हो, आओ आराम कर लो ।“ कोई ज़वाब न पाकर दौड़ी आयीं कि क्या हो रहा है ? कुछ संतोष से बोलीं… पोस्ट लिख रहे हो.. अच्छा लिखो लिखो । उनको बड़ा कष्ट था कि लोग रोज एक पोस्ट पेलते हैं, और मैं महीने से नहीं लिख रहा । वह कुछ और ही समझ कर, सांत्वना देतीं, “ अरे तुमको समझने वाले कितने लोग ही हैं, यहाँ, जो टिप्पणी दें । मेरे लिये लिखो, मैं तो पढ़ती हूँ !”  अरे भाई, परेशान कर दिया था.. उनका नारी तत्व ( श्श्शः कोई है तो नहीं ? ) बोल पड़ा करता, “ ये क्या हो रहा है, आज फिर टिप्पणियाँ बाँटीं जा रही हैं ? “ मैं विहँस पड़ता हूँ ( अब क्या ज़वाब दूँ, मैं… तुम्हारे सवाल की ) मौका है, अपने को आफ़ताब बना ले यार अमर कुमार, “ अरे पंडिताइन छोड़ो भी, दान देने वाले प्रतिदान की परवाह नहीं करते “

ओह्हः लगता है कि विषयांतर हो रहा है ? यही तकलीफ़ है, मुझे ब्लागिंग में.. बेलगाम छुट्टा लेखन पर उतारू हो जाता हूँ । और, मज़बूरी है, संपादक का भेजा फ़र्मा नहीं कि लेख चढ़ा कर भेज दो, मारकेटिंग विभाग का ऎतराज़ नहीं कि प्रसार संख्या कम हो जायेगी, पाठक की परवाह नहीं कि आहत हो जायेगा । बड़े धोखे हैं, ब्लागिंग  की राह में.. अमर बाबा जरा संभलना । तो, मित्रों ( जलकुकड़े मित्रों ) आप लोग ई-मेल प्रेषक को धन्यवाद दो कि ना ना करते पोस्ट हम ये लिख बैठे ! देश को कार्टून कोना बनाते नेता जी ( लेता जी, चलेगा ? ) पर एक चटका लगाओ.. और बायस्कोप देखो,  बस वोट मत फेंक देना ! यह नोट शोट भी रहने दो.. बस मेरी जान छोड़ो और मुझे चलने दो । सत श्री अकाल !  राम राम हरे हरे

भूल सुधारअपने आपसे.. मैं राजनीति पर लिखने से परहेज़ किया करता हूँ, अपने बाबा की पीठ पर सन 42 में पड़े बेंत के निशान याद आ जाते हैं। यह आलेख मलाई काटते क्रीमी अवसरवादियों के लिये अरण्य रूदन से अधिक कुछ नहीं !  इससे पहले एक गलती आज ही दोपहर में हो चुकी थी । अपनी क्लिनिक में 12” x 8” का एक डिस्प्ले बरसों से ( 1989 से – किस्सा ए पृष्ठभूमि फिर कभी.. ) लगा रखा है । परामर्श अधिकार सुरक्षित साथ ही रोगी कृपया अपने को नेता, पत्रकार या अफ़सर के रूप में प्रस्तुत न करें , आलोचनायें हुईं, हमहू कहा चाहे माड्डाले जाई, बोर्डवा न हटिहे ! सो, इसका निर्वाह हो रहा है । आज एक सज्जन आये, संयोगवश गुप्ता जी ही थे, कुल मिला कर यह साबित पाया गया कि वह डायबिटीज़ के सताये हुये हैं । दवा अपनी जगह पर.. पर थोड़ी काउंसलिंग आवश्यक हुआ करती है, इनके लिये । सो, पूछा , क्या करते हैं.. जी कोई ख़ास  नहीं, दुकान भाई देखते हैं, मैं पालिटिक्स करता हूँ । शकल से तो दलाल लगते थे, और अकल से भी .. पूछ बैठे कि रात में ज़्यादा नहीं, बस 60-70 एम.एल. इन्ज़्वाय चल सकता है, कोई नुकसान तो नहीं.. इसमें सुगर तो नहीं है ना ? बड़ी मुसीबत है, भाई .. कइसे समझायें । मैंने प्रयास किया देखिये त्रिलोकी जी, डायबिटीज़ से आज तक एक भी व्यक्ति नहीं मरा, फिर भी नियंत्रण ज़रूरी है.. क्योंकि यह अन्य तत्वों को उकसाने का मौका ढूँढ़ती है, यूँ समझिये कि… समझिये कि आपके शरीर के सिस्टम में ममता बनर्जी है !  हा हा हा.. सहसा वह एकदम सीरियस हो गये.. बात लग गयी डाक्टर साहब, शुरु में ही कंट्रोल कर लें, नहीं तो बवाले-बवाल है ! जाते जाते एक पुस्तिका भेंट में ( बल्कि सप्रेम भेंट में ) दे गये.. मज़हब ही सिखाता आपस में बैर रखना , आगे थोड़े महीन टाइप में ’ सिवा सनातन धर्म के ’ । घर लौटा तो देखा यह ई-मेल !  तबियत मेरी भन्ना गयी और झेला आपको दिया ।

एक निट्ठल्ला सवाल – इससे पहले कि कबाड़खाना वाले निट्ठ्ल्ला-चिंतन का छोड़ा हुआ कबाड़ बटोर ले जाते, मैं भी कुन्नु सिंह को साथ लेकर लपक पड़ा, कुछ बीन लाया जाय.. पकड़े जायें कुन्नु, मुसीबत में हमारे ताऊ की मदद ना करी । कुछ खास हाथ नहीं लगा सिवाय इस सवाल के.. “ यदि आपने रूपा की अंडरवियर पहन रखी है.. तो भला आपकी रूपा ने क्या पहना है ? “ यह भी कोई भला आदमी पूछता है, इससे क्या मतलब ?

आज से ब्लागिंग बन्द - तो अब हम भी फाइनली चल ही दें, पंडिताइन ( मेरी रूपा ) प्रगट होती भयी हैं, “ आज क्या पूरी रामायण ही लिखी जायेगी ? खाना वाना खाओगे कि नहीं ? “ मैंने कनखियों से उनके चेहरे का बदलता रंग देख फटाक से फ़ुरसतिया दाँव फेंका “  अरे यार, इतने सालों से तो गुलामी कर रहा हूँ, कुछ तो कंसीडर किया करो “ यह दाँव फ़ुरसतिया युग का होगा, फौरन ख़ारिज़ हो गया, “ कंसीडर कर लूँ, ताकि तुम जो है, आज़ादी के ख़्वाब देखने लगो ? “ अब देख ले भाया, इतनी देर में ही इनकी सोहबत बिगड़ कइसे गयी, कंम्प्यूटर पर तो मेरा कब्ज़ा था । आज ही से ब्लागिंग बन्द !

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यह अपना हिन्दी ब्लागजगत, जहाँ थोड़ा बहुत आपसी विवाद चलता ही है, बुद्धिजीवियों का वैचारिक मतभेद !

शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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