विष्णु प्रभाकर जी नहीं रहे । कुछेक शीर्ष अख़बारों के लिये यह ब्रेकिंग न्यूज़ न रही होगी ! अनूप जी ने उचित सम्मान दिया ! विष्णु जी ने आवारा मसीहा के लिये सामग्री जुटाने के लिये जो कल्पनातीत श्रम किया है, मैं तो केवल इसी तथ्य से ही उनका भक्त बन गया । बाद के दिनों में तो उनके अन्य तत्व भी दिखने लगे थे ! अपने साहित्य साधना में वह विवादो की काग़ज़ की रेख से अपने को बचा ले गये, यह उनकी एक बड़ी उपल्ब्धि है !
उन्हें सच्चे मन से श्रद्धाँजलि !
चिट्ठा-चर्चा को लेकर अनूप जी की व्यथा बहुत ही स्पष्ट है, इससे भी अधिक इसके प्रति आज उनका दृष्टिकोण भी स्पष्ट और मुखर है ।
हालाँकि एक बार उन्होंने ही चिट्ठों के चयन को लेकर चर्चाकार की अबाध्यता को ज़ायज़ ठहराते हुये अपना पल्ला झाड़ लिया था ! एक वरिष्ठ चिट्ठाकार को सलाह देना कितना प्रासंगिक हो सकता है, नहीं जानता .. पर मेरा ’ सचेतक ’ चरित्र अपनी बात ठेलने को प्रेरित कर रहा है !
आगे बढ़ने के लिये परस्पर विमर्श आवश्यक है, क्या वज़ह है कि आज़ तमिल चिट्ठाकारी हिन्दी से कहीं आगे है ? कोई 2005-2006 के मध्य वहाँ चलने वाली बहसों की बानगी लेकर देख सकता है ! आपसी सिर-फ़ुट्टौवल तो नहीं, पर बाँगला ब्लागरों में परस्पर अहंभाव ने उसे भी न पनपने दिया ! बीस पोस्ट के बाद स्वयं का डोमेन लेकर अपना चूल्हा अलग !
बहुचर्चित एक लाइना को चिट्ठों के शीर्षक के पैरोडी मात्र के रूप में लिया जाना, मुझे कभी से भी अच्छा न लगा । हरि अनन्ता-संता बंता अपवाद भले हो, संभवतः आज तक मैंनें इनकी तारीफ़ न किया होगा ! आनन्द अवश्य लेता रहा ! पोस्ट के लिंक को सपाट रूप से न देकर रोचक बनाने का प्रयास ही माना जाय, एक लाइना ! होता यह है, कि लोग चर्चा के मूल पाठ को भी न पढ़. .. सीधे एक लाइना पर एक टिप्पणी ठोक कर बढ़ लेते हैं ।
और.. इसमें भी वह इतने ईमानदार हैं, कि जिस भी चिट्ठे के शीर्षक और लाइना की जुगलबन्दी पर झूम उठते हैं, शायद ही वहाँ पहुँचते हों !
जी हाँ, मैंने चिट्ठाचर्चा के कई नियमित टिप्पणीकारों का ’ पीछा किया है :), और ताज़्ज़ुब है कि पोस्ट तो छोड़िये.. पूरे के पूरे ब्लाग पर ही उनकी टिप्पणी नदारद है ! मानों वह यहाँ चर्चा पर, केवल छींटाकशी करने के लिये ही आते हों !
फिर तो हो चुका कल्याण ? यदि पाने की अपेक्षा रखते हैं, तो देने की क्यों नहीं ?
किसी भी बहस के निष्कर्ष सभी को एक दिशा देते हैं । भले ही पाठक-चिट्ठाकार उस पर न चले, पर दिशा तो मिले ? इसका यहाँ अभाव केवल इसलिये है, कि ऎसी बहस में अंतिम मत मोडरेटर या चर्चाकार का होना ही चाहिये, जो कि बहुधा नहीं होता ! गोया हनुमान गुरु अपने चेलों का रियाज़ देख रहे हों । नतीज़ा.. हर सार्थक बहस ’ दूर खड़ी ज़मालो के आग़ ’ जैसी बुझ कर राख़ हो जाती है ! यह अलंकार लगभग हर बहस में खरी उतरती है, आपके पास अनुभव है, चिट्ठाकारी का रोमांचक इतिहास है.. सो विषम मोड़ों पर, कुछ तो.. मोडरेटर का मत होनाइच मँगता, बास ! बुरा मानने का नेंईं..
अपने पोस्ट का लिंक यहाँ सभी देखना चाहते हैं.. पर, दूसरे के लिये ?
मत लीजिये मेरा मत, कि चर्चा के लिये माडरेशन का एक सार्थक उपयोग भी हो सकता है.. !
वह यह कि हर टिप्पणीकार के लिये अपनी टिप्पणी में एक पढ़े हुये पोस्ट का लिंक और उसके साथ उस पोस्ट पर अपनी मात्र दो पंक्तियाँ जोड़ कर देना अनिवार्य समझा जाये .. अन्यथा उनकी टिप्पणी हटा दी जायेगी ! हाँ, मुझ सरीखे लाचार टिप्पणीकार को यह छूट मिल सकती है ! इससे लाभ ?
१. चर्चा का दुरूह का कार्य चर्चाकार के लिये आसान हो पायेगा !
२. दूरदराज़ के अलग थलग पड़े चिट्ठों का संचयन स्वतः ही होने लग पड़ेगा !
३. एक लाइना की नयी पौध भी सिंचित हो सकेगी !
४. यदा कदा कुछ चर्चा जो थोपी हुई सी लगती है, न लगेगी !
५. मेरे सरीखा घटिया आम पाठक भी चर्चा तक ले जाने को एक बेहतर लिंक तलाशेगा,
६. ज़ाहिर है, कि ऎसा वह अपनी मंडली से बाहर निकल कर ही कर पायेगा !
मानि कि, कउनबाजी तउनबाजी कम हो जायेगी !
७. ’ तू मेरा लिंक भेज-मैं तेरा भेजूँगा ’ जैसी लाबीईंग हो शुरु सकती है, पर ऎसे जोड़े भी काम के साबित होंगे ! क्योंकि तब भाई भाई में मनमुटाव भी न होगा !
८. क्योंकि इस होड़ में नई और बेहतर पोस्ट आने की रफ़्तार बढ़ेगी.. धड़ाधड़ महाराज़ का हाल आप देख रहे हैं, श्रीमान जी स्वचालित हैं.. वह क्यों देखें कि यूनियन बैंक की शाखा के उद्द्घाटन सरीखी पोस्ट हिन्दी को क्या दे रहीं हैं ?
९. मेरे जैसा भदेस टिप्पणीकार अपने साथी से पूछ भी सकता है, चर्चाकार ने तुमको क्या दिया, वह बाद में देखेंगे ! पहले यह दिखाओ कि, टिप्पणी बक्से के ऊपर वाले हिस्से में तुम्हारा योगदान क्या है ?
१०. लोग कहते हैं, चर्चा है कि तुष्टिकरण मंच.. मैं कहुँगा कि, नो तुष्टिकरण एट आल ! तुष्टिकरण के दुष्परिणामों पर यदि हम पोस्ट लिखते नहीं थकते, तो अपने स्वयं के घर में तुष्टिकरण क्यों ?
११. यहाँ पर मैं श्री अनूप शुक्ल से खुल्लमखुला नाराज़ हूँ.. किसी के ऎतराज़ पर कुछ भी हटाया जाना.. नितांत गलत है ! कीचड़ में गिरने को अभिशप्त या संयोगवश, मैं उस रात धुर बारह बजे पाबला-प्रहसन देख रहा था ! बीच बीच में तकरीबन डेढ़ घंटे तक मेरा F5 सक्रिय रहा, निष्कर्ष यह रहा कि कुश ( बे... चारा ! ) को सोते से जगा कर उनकी अनुमति से एक चित्र हटाया गया.. अन्य भी प्रसंग हैं ।
कुश देखने में शरीफ़ लगते हैं, तो होंगे भी ! क्योंकि मैं इन दोनों की तीन कप क़ाफ़ी ढकेल गया.. पर यह अरमान रह गया कि वह इस प्रकरण को किस रूप से देखते हैं, कुछ बोलें !
१२. विषय का चयन, निजता का हनन, अभिव्यक्ति का हनन इत्यादि नितांत चर्चाकार के विवेक पर हो, और ऎसा डिस्क्लेमर लगा देनें में मुझे तो कोई बुराई नहीं दिखती !
१३. क्या किसी को लगता है, कि इस प्रकार पोस्ट सुझाये जाते रहते जाने की परंपरा से अच्छे पोस्ट की वोटिंग भी स्वतः होती रहेगी ?
१४. चिट्ठाचर्चा के अंत में के साथ ही आभार प्रदर्शन के एक स्थायी फ़ीचर में अपना नाम कौन नहीं देखना चाहेगा ?
१५. स्वान्तः सुखाय लिखने वालों के लिये, कोई भी व्यक्ति बहुजन-हिताय जैसे चर्चा श्रम में क्यों शेष हो जाये ? जानता है, वह कि, यह श्रमसाध्य कार्य भी अगले दिन आर्काईव में जाकर लेट जायेगी.. कभी खटखटाओ तो Error 404 - Not Found कह कर मुँह ढाँप लेंगीं !
१६. गुरु, अब ई न बोलिहौ.. लेयो सामने आय कै आपै ई झाम कल्लो, इश्माईली ! यह मेरा मत है.. जिसका शीर्षक है.. मत मानों मेरा मत ! क्योंकि मेरा तो यह भी मत है, कि एक को ललकारने की अपेक्षा सभी को अपरोक्ष रूप से शामिल किये जाने की आवश्यकता है !
१७. इन सब लटकों से पाठकों की संख्या घट सकती है, तो ? मेरी भी तो नहीं बढ़ रही है ! लेकिन कमेन्ट-कोला की माँग पर ’कोई भी बंदा ’ खईके पान बनारस वाला ’ तो नहीं गा सकता .. " मेरे अँगनें में तुम्हारा क्या काम है ..
यह रहा कविता जी के कालीदास का १८ सूत्र ... उन्नीसवाँ सूत्र निच्चू टपोरी का टिप्पणा वाला डब्बा में पड़ेला सड़ेला होयेंगा ! बीसवाँ सूत्र तो शायद स्व. इन्दिरा गाँधी का पेटेन्ट रहा है, सो, इस चुनाव में कौन गाये… अबकी बरस भेजऽऽ, उनको रे तू वोटर… गरीबी जो देयँ हटाऽऽय हो
माहौल गड़बड़ाय रहा है.. लोकतंत्र लड़खड़ाय रहा है... चिट्ठाचर्चा खड़बड़ाय रहा है.. ज़िन्दा सभी को रहना है.. ज़िन्दा हैं.. तो ज़िन्दा रहेंगे भी ! चर्चा चलती रहेगी.. मरें चर्चा के दुश्मन ..
कुछ अधिक हो गया क्या ?
मैं चाहता तो न था , कि छोटे मुँह से बड़ी बातें करूँ ! लोग मुँहफट कहेंगे.. पर यदि चर्चा के मोडरेटरगण ने किसी को चर्चा के लिये चुना है, तो यह उन्हीं का अपना वरडिक्ट है । अगला चर्चा करने ही न आये तो दुःखी क्यों ? मैं भी तो ब्लाग लिखने तक ही दुःखी होता हूँ.. जबकि हमारे वरडिक्ट की भी ऎसी तैसी मचा कर भाई लोग संसद ही नहीं पहुँचते, तो ?
मैं चाहता तो न था , कि छोटे मुँह से बड़ी बातें करूँ ! लोग मुँहफट कहेंगे.. पर यदि चर्चा के मोडरेटरगण ने किसी को चर्चा के लिये चुना है, तो यह उन्हीं का अपना वरडिक्ट है । अगला चर्चा करने ही न आये तो दुःखी क्यों ? मैं भी तो ब्लाग लिखने तक ही दुःखी होता हूँ.. जबकि हमारे वरडिक्ट की भी ऎसी तैसी मचा कर भाई लोग संसद ही नहीं पहुँचते, तो ?
7 टिप्पणी:
its always better to delete the post that has some personal offence and is objected upon by the said person . i see no reason to retain all these posts and pictures when a objection is raised .
and one thing is sure about hindi bloging blogger want rules and regulations only for others and not for themselfs .
in hindi bloging there is a "set" rusticism here people dont blog they "write" .
those who comment sometimes dont even read the post . bloging needs more reading then commenting but here we find and encore of 100 bloggers clapping hands on every thing as if they have come here merely to clap
and besides every thing hindi bloggers run away from discussions .
some bloggers are so irregular in frquency that they comment on a ongoing discussion without even clicking on all relevant links in the post and if you question them they are lost in time capsule
चिट्ठामृतं!
Mai ek qatrahee sahee..."behtareen pnktiyaan padhne milee...isse adhik kuchh tippanee likhun, itnee qabiliyat nahee..
Aapka sujhaw sahee hai...shayad har kadee itnee lambee naheebhi hogee...isme ek suvidha ye hai, ki jahan, punravruttee dikhe, chhod den...
Ye 5 vi kadee khaas ehmiyat rakhtee hai...ispe aadharit bhavishyme ghatnewalee kayi ghatnayen hain..isliye shayad mai zyadahee bahawme aa gayi...seedhe netpe likhneka ye ek minus point hai! Aapka sujhav dhyanme rakhungee ye lekin nishchit hai.
अरे डा. साहब बड़े सेंटी हो कर लिख डाला और मस्ती भी दिखा रहे हैं!!
वैसे कोई हर्जा नहीं है तरह तरह के सुझवों को आजमाने में !!
आपके सुझाव कल ही पढ़े थे। कभी विस्तार से इनकी चर्चा करेंगे वैसे जो आपने पोस्टों का लिंक देने वाली कही है उसकी चर्चा/अनुरोध हमने अपनी सबसे पहली चर्चा में की थी। कोई नहीं आता। पाठक सर्वेसर्वा है। आप उसे बाध्य नहीं कर सकते ऐसे टिपियाओ/वैसे लिंक लगाओ। पहली चर्चा का लिंक है
http://chitthacharcha.blogspot.com/2005/01/blog-post.html
सबसे पहले तो बधाई स्वीकार करिए इस निर्भीक पोस्ट के लिए हालाँकि आपके लिए ये कोई नयी बात नहीं है..
चिटठा चर्चा पर कथित प्रकरण के बारे में मुझे कुछ कहना न तो उचित लगा न ही मेरे पास में इतना समय था कि मैं एक अकारण विवाद में जा पडू.. जो मैंने लिखा यदि किसी को बुरा लगा हो तो ठीक है. उसे हटा दिया गया..
हालाँकि मेरा ये मन्ना है कि यदि किसी भी कार्य में से उसका मोटिव नहीं देखा जाये तो ये सर्वथा अन्याय होगा.. भगत सिंह के बारे में सुना था जब जज ने उनसे बिना कारण जाने उन्हें असेम्बली में बम फेंकने का अपराधी घोषित किया था तब शहीद भगत सिंह ने जज से कहा था यदि आपके किसी व्यक्ति को सजा देने के पीछे से आपका मोटिव हटा दिया जाये तो आपमें ऑर एक हत्यारे में कोई फर्क नहीं है..
यदि किसी गलत सोच के चलते या फिर व्यक्तिगत दुश्मनी के लिए ऐसे किया गया होता तो अलग बात थी.. परन्तु परस्पर विनोद के लिए किये गए कार्य जिसके लिए बहुत म्हणत की गयी ऑर सर्वाधिक सराहना भी जिस कार्य के लिए मिली उसे हटाया जाना वाकई दुखद है.. फिर भी अनूप जी ने मुझसे पूछकर हटा दिया.. मामला वही थम गया.. अब ऑर बढाया जाना भी ठीक नहीं.. हालाँकि ऐसे मैटर्स के बाद ब्लोगर्स की परिपक्वता का पता चलता है..
बाकी चर्चा के लिए आपके विचार गौर करने लायक है.. मैंने अपनी चर्चा में इस बात का जिक्र भी किया था दो चार बार सिर्फ डा. अनुराग ने टिप्पणियों में कुछ लिंक्स दिए पर अब नहीं मिलते है.. फिर भी आपके सुझाव बढ़िया है.. अमल किया जानाचाहिए
अभी के लिए तो इतना इच.. अपुन अभी चलता है..
गुरुवर
छुट्टी से लौटने के बाद आपकी पोस्ट ओर बेलगाम विचार पढ़े जो डॉ अमर कुमार की फेक्ट्री से ही निकल सकते है ...मै इसमें से केवल सकारात्मक चीजे उठा लेता हूँ....कुश ने स्पष्ट कर ही दिया है....वैसे आपकी पोस्ट को मैंने बुकमार्क कर दिया है
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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