सुबह सुबह अख़बार पढ़ दिन ख़राब करने से बेहतर लत है, चिट्ठाचर्चा !
आदत के मुताबिक आज भी पलटाया तो ..
" उपस्थित श्रीमान / मैडम साथ एक बेहतरीन लिंक लेकर अनूप जी को पाता हूँ, ”
जो कि स्वयँ में चर्चाकार का ही टैगलाइन है, और बहुत अच्छा है
बड़ा भला लग रहा है, चुहल सूझ रही है..कि
एक पोस्ट लिखूँ, " आओ सखि, लिंक मिलि बाँटैं "
कौन जानता है, कब समय मिल पाय...
अभी ही लिख लेता.. लेकिन सिंह साहब की पत्नी नीरू किसी काम से पँडिताइन से मिलने आयीं हैं,
और जम कर बैठ गयीं, क्योंकि उनके पास टैम नहीं है (यदि होता.. तो शायद एक अदद बिस्तर और डोलची के संग पधारतीं ! ) अपना प्रिय विषय ’ रिशि का अँग्रेज़ी स्कूल ’ पर सराहना भरे अँदाज में बिसूर रहीं हैं .." देखिये न भाभी .. इत्ती गर्मी में सभी स्कूल बंद हैं, इनलोगों ने बँद न किया,
और तो और, ज़ूते साफ़ नहीं थे, तो आज स्कूल से लौटा भी दिया ! "
पँडिताइन की टिप्पणी भी सुन लीजिये, " सही बात है..
डिसिप्लिन तो होना चाहिये, न ? भला कब तक बच्चे बने रहेंगे ?
अँग्रेज़ी स्कूल है, कोई मज़ाक बात थोड़े है ? "
मेरा मन कर रहा, मैं इन ज़नानियों के बीच टपक पड़ूँ..
मुझे भी तो मऊ नाथ भँजन वाले स्कूल में बैठने के लिये अपने संग टाट-पट्टी ले जानी होती थी ! "
पर, दोपहर के बारह बजने को हैं । मुझे भी क्लिनिक जाने की देर हो रही है,
अपने मरीज़ों की मैंने इसी समय की आदत डाल रखी है ! "
10 टिप्पणी:
मुझे भी तो मऊ नाथ भँजन वाले स्कूल में बैठने के लिये अपने संग टाट-पट्टी ले जानी होती थी ! "
गुरुजी अब तो आप हम बच गये हैं. टाटपट्टियां तो कब की हवा हुई?:)
रामराम.
एक कम्प्यूटर क्लीनिक में भी लगवा लीजिए, बीच बीच में अप्रासंगित बातें और भी हो जाया करेंगी।
-----------
SBAI TSALIIM
सच्ची बात है भइये !! अंगरेजी स्कूलों का डिसिप्लिन है !!
प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर
बाई सफाई करके गई है,श्रीमती जी की सुबह की शिफ्ट समाप्त।
हम बोले। वोट दे आएँ?
जवाब है -सोने का वक्त है।
हम क्या कहते- चलो सो लो बाद में दे आएँगे।
हम कम्प्यूटर पर आ कर बैठे हैं।
अँग्रेज़ी स्कूल है, कोई मज़ाक बात थोड़े है ? बात तो सही है ! कौनो सेंट बोरिस स्कूल थोड़े न है. http://ojha-uwaach.blogspot.com/2008/09/blog-post.html
कुच्छौ समझ नही आया -जो समझे वू महान लोग हैं ! अब इस तरह का लेखन कहीं इकसटिंट न हो जाए -भैये इस प्रजाति को बचाना जरूरी है जरा इसे रेड लिस्ट में लो और टिप्पणियाँ और डालो !
हम तो खुद टाट पट्टी पर पढ़े हैं मगर इस तरह बीच में कूद प़अने का विचार तो सपने में भी नहीं आ सकता...पंडिताईन ने कमान जरा हल्के थामी दिखे है...शुरु में प्रेम पगुआई ठीक से समझ न पाईं होंगी..अब भी क्या बिगड़ा है..फोन लगाना पड़ेगा उनको.
क्या बात होगी..वो क्यूँ बताऊँ.
डिसिप्लिन तो हमारे टाट पट्टी वाले स्कूल का भी था । टाट-पट्टी-पंक्ति थोड़ी भी इधर उधर हुई कि श्रीराम मास्साब कनपट्टी चढ़ा देते थे । हाँ डिसिप्लिन तो एक रुपया दस पइसा की फीस में था, मजाल है कि पाँच तारीख निकल जाय सामने से ।
और ये हमरे प्राइमरी के मास्टर को का होइ गवा ? कहत हैं अपने को प्राइमरी कै मास्टर और पानी भरत हैं इंग्लिस स्कूल कै डिसिपिलिन के समने ।
अपने प्राइमरी के श्रीराम मास्साब से मिलवाय देइ का !
@ हिमाँशु आज बताता हूँ, मास्टर जी ठहरे गुरुपद पर.. सो हम न उलझे ! शहीद स्व. रामप्रसाद ’ बिस्मिल’ जी को होली की शुभकामनाओं के सँग पीछा करने का न्यौता भी दे आये । तब से मैंने उस अमर शहीद के आत्मकथा की आगे की कड़ियाँ रोक रखी हैं !
किसी कविता को टपा कर लाये जाने की निराधार शँका कर मुझे नीचा दिखा लो, भाई .. पर हुतात्मा की अवमानना में मुझसे भागीदारी न करवाओ ।
इस पीछा करो लटके के निहितार्थ क्या है, . यह समझे बिना बिस्मिल कैसे पीछा करते ? जिसके पीछे पड़े थे, वह तो भारत छोड़ गया ।
मेरे घाव फिर से हरे कर देने का आपका धन्यवाद बनता है, हिमाँशु !
आपको किसने बरगलाया की यहाँ बाकी प्रसांगिक सा कुछ कह रहे है
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
Note: only a member of this blog may post a comment.