जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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11 February 2008

सरस्वतिः महाभाग्ये विद्यकमले्लोचिनि विश्वरूपे विशालाक्षी विद्य्ंदेहि नम्ःस्तुते ।। जयं देहि जयं देहि चराचरे . . . . . . .

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आदिशक्ति के विद्यास्वरूप को नवबसंत की संध्या पर बारंबार नमस्कार है । ' जय हो जय हो '
इस आवाह्नन मंत्र के साथ आप सब ब्लागरवृंद को बसंतोत्सव का हार्दिक अभिनंदन !

बसंत का पूर्ण उत्कर्ष आज हम सब के टूलटिप पर भी छाया है, सरस्वति स्तुति पर कर्सर फिरा कर इसका साक्ष्य ले लें और संकल्पित हों कि हिंदी ब्लागिंग को भी इसी शिखर पर, इसी खिले खिले रूप में निखारना है । हम आप, लेखक पाठक सभी के समवेत प्रयास इसको अवश्य ही संभव कर सकेंगे । अमर

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जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

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यह अपना हिन्दी ब्लागजगत, जहाँ थोड़ा बहुत आपसी विवाद चलता ही है, बुद्धिजीवियों का वैचारिक मतभेद !

शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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