जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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20 February 2008

केवल मस्केबाजों के लिये

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मित्रों, मैं यानि कि अमर कुमार आपकी ज़रूरत और मज़बूरी समझता हूँ । पापी पेट के लिये, बाल-बच्चों के लिये, प्रमोशन के लिये और सच पूछो तो अपने अस्तित्व एवं अस्मिता के लिये मस्का अनिवार्य है । पता नहीं क्यों, मस्केबाजों को एक अलग नज़रिये से देखा जाता है ? आपसे ईर्ष्या करने वाले  अपनी  खीझ एवं  नाकामी के लिये मस्का न मारने का दम भले भर लें, वस्तुस्थिति इससे भिन्न है ! लीजिये ..  

अमर-एकअमर-ग्यारह

गया ज़माना पोल्सन का ! अपना अमूल है ना, पूर्ण स्वदेशी एवं निहायत से निहायत देशी जनों के लिये !

अमर-दसअमर-छः

देखा आपने मनमोहिनी की इज़ी-च्वायस प्रतिभा ! माया मेम साब की पार्टी प्राथमिकता, और क्या चाहिये ?

 अमर-आठअमर-नौ

इतनी रच बस गयी है हमारे बीच फिर क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की चयन नीति पर ही शर्म क्यों ?

अमर-चारअमर-सात

कोई वांदा नहीं, अमूल के लिये परेशान न हों ! अपना लोकल ब्रांड भी चलेगा, मस्का तो मस्का ही है ।

अमर-तीनअमर-दो

मीडिया नाहक बच्चन के पीछे पड़ी थी, उनके यहाँ कोई कोटा भी नहीं था । सरकार की तो..  छोड़िये भी !

अमर-पाँचअमर-बारह

तो भइय्या, लाज शरम तजि के मस्का के शरणागत होय लेयो, इसी में भलाई है ! ज़माने का पानी मर गया है तो क्या ? मस्का तो अब अपने भारत महान को चलाय रहा है ! फिर क्या ग़म ? शुरु हो जाओ !  

2 टिप्पणी:

Anonymous का कहना है

बहुत ही बढ़िया ।
घुघूती बासूती

Anonymous का कहना है

Namaste Sir,
Maine aap ka ye article padha accha laga aour sorry main bina batai aapko chala aaya lekin meri job lag gayee thi aour aap gaon chale gaye the so i really sorry for my guilt. i hope u forgive me.
kaif

लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

आपकी टिप्पणी ?

जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

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यह अपना हिन्दी ब्लागजगत, जहाँ थोड़ा बहुत आपसी विवाद चलता ही है, बुद्धिजीवियों का वैचारिक मतभेद !

शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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