नेशनल ज़ियोग्राफिक से टाँचे गये यह चित्र किस तरह के रिवाज़ को दर्शाता है, यह मेरी समझ से बाहर है । शायद आप कुछ बता सकें ! मैं तो निढाल होकर इसे अपलोड कर रहा हूँ, यह कोई फ़िलर नहीं है ।
ऎसे रिवाज़ों के उदगम की आवश्यकता कैसे पड़ी होगी ? यदि कोई अटकलबाज़ जानता हो तो अवश्य यहाँ साझी करे, हम अज्ञानियों का कुछ भला हो जायेगा । इसे निट्ठल्ले की खुरपेंच समझ कर ख़ारिज़ न करें !
3 टिप्पणी:
नमस्कार, इस रिवाज के पीछे कई कारण हे,ओर यह रिवाज बर्मा मे लेकर थाइलेण्ड तक हे,ओर इस प्र्जाति को कयान ओर इन महिलाओ को कारेनि कहते हे,गले मे जो छले हे, यह हर साल बडते रहते हे,ओर इसे पहनने के तीन मुख्य कारण हे,
पहला कारण कोई जगली जानवार गर्दन पर हमला नही करता,यानि के जगली जानवारो से सुरक्षा,
दुसरा कारण,राजा या कोई भी पहुच वाला आदमी ऎसे लोगो को गुलाम नही बनाता,
तीसरा कारण गर्दन लम्बी करने के लिये,जिस्के कारण महिला लम्बी गर्दन के कारण खुबसुरत दिखे ओर श्याय्द राजा अपनी रानी बना ले.
धन्यवाद मित्र,
एक तो जिज्ञासा शांत करने के लिये
और दूसरा ब्लागिंग के माध्यम से
नालेज़ शेयरिंग के मेरे नये तज़ुर्बे के लिये !
वैसे तो मैं गूगलग्रुप जानकारी का सदस्य भी हूँ
किंतु यह फ़ाइलें वहाँ अपलोड करना टेढ़ी खीर
प्रतीत हो रहा था ।
एक बार पुनः धन्यवाद !
एक चलन चल गया, बस और कुछ नहीं । जानवरों से रक्षा यदि कारण है तो पुरुषों को भी पहनना चाहिये ।
घुघूती बासूती
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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