कव्वे बेचारे को लोग अपनी छत की मुंडेर पर बैठने तक नहीं देते और यहाँ उनके चरित का बखान किया जा रहा है । भई, क्या बात है ? डाक्टर सनक गया है ! हो सकता है आप ठीक समझ रहें हों । फ़ुरसतिया,ठेलुआ,पखेरू जैसी अनवरत श्रेणियों में इस निट्ठल्ले का क्या काम ? अब आये हो तो झेल लो ।
काकस्य चरितं वक्ष्ये यथोक्तं मुनिभाषितम । यस्य विज्ञानमात्रेण सर्वतत्वं लभेन्नरः ॥
अर्थात - किसी समय नागराज ने अर्जुन से पूछा कि, महाराज ! काकभाषा से शुभ और अशुभ फल किस रीति से जान पड़ता है ? तब सर्पराज का प्रश्न सुन, अर्जुन बोले कि, हे सर्पराज ! काक का चरित्र विस्तार पूर्वक कहते हैं, सुनिये । दिन के घड़ी के प्रमाण से ही काक की बोली सुनी जाती है, एवं उसी से शुभाशुभ फल का विचार जाना जाता है । जिसका विचार मुनियों ने किया है, वह विस्तारपूर्वक कहते हैं । जारी....












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2 टिप्पणी:
भाई अभी तो दुकान का बोर्ड लगा है। आगे देखते हैं क्या,क्या माल आता है। मगर इस जमाने में जब उल्लुओं पर बात हो रही है तो काक क्यों उपेक्षा भुगते।
कथा जारी रहे......
इंतजार है आगे की कथा का!
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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