यह शीर्षक कलेज़े पर स्काईस्क्रेपर रख कर दे रहा हूँ । हाँ,मैं अमर कुमार IPfe80::9dbb:aa5e:63db:1c9b/ 192.168.1.100 से इस बेला रात्रि के तृतीय प्रहर मानों किसी प्रेत के वशीभूत होकर यह पोस्ट चेंपने बैठा हूँ । इधर कुछेक वर्षों से रात्रि की इस बेला सुंदरियों के ख़्याल कम आते हैं । टाइम इज़ अप की घंटी कब बज जाये, कहा नहीं जा सकता सो जीवन के प्रश्नपत्र में बाद के लिये छोड़ कर रखे गये मुश्किल सवालात को निपटाने की हौल मची रहती है, संगिनी द्वारा दिया जा रहा ख़र्राटों का अनोखा पार्श्वसंगीत न चल रहा हो तो मेरा ‘अटको मत चलते चलो ‘ प्रेरित मन बेचैन होने लगता है । आज ही श्री मकरंद जी ने हैप्पी वीकएंड जैसा कुछ कहा था । पर, मकरंद तुम शायद रस्मी तौर पर बोल गये होगे, क्योंकि हुआ इसका उल्टा । सोने जाते समय लगा कि महबूबा को एक झप्पी दे दिया जाये सो, अपने सिस्टम पर आया, और फिर उसे खाली पा कर बेसुध सा हो गया, बेसुध नहीं बल्कि बेखुदी कहो इसे ! सो इस बेखुदी में हम चिट्ठाजगत खोले चले गये । नहीं यार, यह गलत है, छोड़ दो इसे.. यह ठीक टाइम नहीं हैं, यह मेरे दिमाग का डायलाग है । पर दिल ? दिल है कि मानता नहीं ! अरे खोल ही लिया तो जरा टटोल भी लो, यह दिल की ललकार है ! बस यहीं पर गड़बड़ेशन की शुरुआत हो गयी!
टटोलने के चक्कर में पूरे पेज़ को स्कैन करके, धड़ाधड़ टिप्पणियों की सूची में अपने आज की पोस्ट का नाम खोजने लगा । पर वहीं अटक गया । भली चंगी 8 टिप्पणियों को निहार निहार कर तो रात की क़ाफ़ी पी थी, और यहाँ पर जिक्र तक नहीं । सूची से गायब ? चलो हो जाता है, कहीं होगा भी तो ग्रेसमार्क्स वाले कल की लिस्ट में दिख ही जायेगा । इतने में कोई बोला ‘ अटको मत.. चलते चलो ‘ यह कोई होमगार्ड या ट्रैफ़िक वाला है, क्या ? नहीं तो, ध्यान से देखा तो यह किसी ब्लाग पर यातायात के फ़ुटकर सोच की आवाज़ थी, एकदम शीर्ष पर से बाँग देती हुई सी । आओ जरा उधर टहल लें, दिल तो पागल है, वाला दिल उकसाता है। दिमाग तो चुप रह गया, और दिल की सुन ली गयी । यह पोस्ट मेरे गुरुवर ‘अब क्या कहें जी ’ की निकली । अजी छोड़िये भी, इन बातों में क्या रखा है… पर उनका दावा है कि अब सर्च इंज़न उनका थोक व्यापार करते हैं, और एग्रीगेटर तो फ़ुटकर में केवल एक चौथाई के हिस्सेदार हैं । ठीक तो है, यही सत्य होगा, इसमें मेरा क्या ?
किन्तु पता नहीं क्यों मुझे यह वहम बना रहता है, कि यह पाई चार्ट, बार डायग्राम, ग्राफ़ वगैरह ने देश का बेड़ा गर्क कर रखा है । अब कोई आपको समझाये कि देखो हमारे बार डायग्राम के हिसाब से तुमने पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष 263 ग्राम कार्बोहाइड्रेट व 39.87 ग्राम अधिक प्रोटीन पायी है, तो आप सहम कर अपने पेट पर एक बार तो हाथ फेर ही लेंगे ! जब यह रहस्योद्घाटन होगा कि इसी दर से प्रति व्यक्ति प्रति दस हज़ार की आबादी पर प्रति जिले अगले दस वर्ष तक खपत जारी रही तो आपका वज़न 89 किलोग्राम तक जा सकता है, जिसकी वज़ह से औसत आबादी में हृदयरोगियों की संख्या 12.06 % की दर से बढ़ जायेगी ! अब आप ऎसे किसी पाईचार्ट को ले जाकर अपने पारिवारिक चिकित्सक का भेजा नहीं चाटते, तो इसके दो ही विकल्प दिखते हैं । या तो आप अपनी ज़िन्दगी से तक़ल्लुफ़ बरत रहे हैं, या फिर निहायत चुगद आदमी हैं, हे अवधबिहारी, हे रघुकुल नंदन, हे श्रीराम.. इस भोले आदमी का भला करना !
अब अटको मत, चलते चलो एक सम्मानित बिटियायुत ग्रेज़ुएट हैं ( यानि बिट्स पास आउट ) सो उनकी आँकड़ों में जान बसती है । पर मेरी जान सूखती है, क्योंकि वह गुरुवर हैं, और मैं धुरगोबर ! किन्तु आगे उन्होंने जो भी लिखा बिल्कुल ही ज़ायज़ लिखा होगा, मगर मुझ जैसे धुरगोबरई बुद्धि में इतनी देर तक बज़बज़ाता रहा कि यह पोस्ट लिखने को बैठना ही पड़ा.. मसलन
…. .. लिहाजा जैसे ठेला जा रहा है – वैसे चलेगा। फुरसतिया की एंगुलर (angular) चिठ्ठाचर्चा के बावजूद हिन्दी भाषा की सेवा में तन-मन (धन नहीं) लगाना जारी रखना होगा! और वह अपने को अभिव्यक्त करने की इच्छा और आप सब की टिप्पणियों की प्रचुरता-पौष्टिकता के बल पर होगा। |
या फिर….
ओइसे, एक जन्नाटेदार आइडिया मालुम भवाबा। ब्लॉग ट्राफिक बढ़ावइ बदे, हमरे जइसा “उदात्त हिन्दूवादी” रोज भिगोइ क पनही चार दाईं बिना नागा हिन्दू धरम के मारइ त चार दिना में बलाग हिटियाइ जाइ! (वैसे एक जन्नाटेदार आइडिया पता चला है ब्लॉग पर यातायत बढ़ाने के लिये। हमारे जैसा "उदात्त हिन्दूवादी" रोज जूता भिगा कर चार बार बिना नागा हिन्दू धर्म को मारे तो ब्लॉग हिट हो जाये! |
नतीज़ा यह हुआ कि मुझे यह पोस्ट पढ़ने के एवज़ में टिप्पणी करनी ही पड़ गयी । आपको दिखे ना दिखे, कोई भरोसा नहीं सो वह यहाँ पर दे देना अप्रासंगिक न होगा । ब्लागर संहिता की प्रति न उपलब्ध होने से व मोडरेशन में एन्काउंटर न हो…
इसलिये.. यह रही मेरी खेदजनक टिप्पणी
ऎ गुरु जी, आप इतने आत्ममुग्ध क्यों रहा करते हो ? यह तो यह इंगित कर रहा है, " चिट्ठालेखक रूग्णो वा शरीरेन वा मनसा वा " इस तरह की यातायात विश्लेषण से आख़िर सिद्ध ही क्या हो रहा है, मुझ मूढ़मति को इतने सुजान टिप्पणीकर्ताओं के मध्य प्रतिवाद न करना चाहिये क्या ? एक ब्लागिये को उलझाये रखने के लिये यह अमेरीकन लालीपाप है, क्या फ़र्क पड़ता है कितने आये, किधर से आये, कितनी देर टिके, दुबारा आये, यूनिक ( ? ) आगंतुक कितने रहे ? रही हिन्दूविरोधी बीन बजाने पर ज़्यादा भीड़ खड़ी हो जायेगी.. तो यह सूचना सविताभाभी डाट काम के लिये अधिक उपयोगी हो सकती है, यदि एक्टिव व पैसिव सब्जेक्ट्स की अदला बदली दोनों धर्मों के चरित्रों से करती रहें.. पर, आप उनके यहाँ की ट्रैफ़िक को इस जन्म में छू भी नहीं सकते तो क्या ट्रैफ़िक मोह में हमें भी ऎसा कु्छ अपनाना चाहिये , यदि हाँ तो जुगाड़ भिड़ाइये ! हम आपके साथ हैं, दिनेश जी बिल्कुल काँटे की बात कह गये हों तो क्या.. हम उनको मना लेंगे, आप यह टिप्पणी भी माडरेट कर जाओ तो भी कोई वांदा नहीं, अब वैसे भी यहाँ आने का मन नहीं करता ! बाई द वे, आज एक एग्रीगेटर ही फ़ुसला कर ले आया है, ' चलो चलो, वहाँ कोई बड़ा तमाशा चल रहा है, दो ढाई दर्ज़न आदमी जुटे झख लड़ा रहे हैं ।' देखो भाई लोगों, यदि पोस्ट पढ़ा है तो टीपियाऊँगा अवश्य, यह अनर्गल ही सही किन्तु अनर्गल होने का कोई कारण भी तो होता होगा, न्यूटन की मानें तो ? |
यह पोस्ट लिखने का मंतव्य ? अपने गुरुवर के प्रति आशंकित मन ! यह उनका दग्ध भाव मुझे नहीं रास आ रहा है, टिप्पणीयों की प्रचुरता पौष्टिकता कितनी होती है, यह वह जानते हैं । विषयवस्तु में वह क्या पकड़ें, क्या छोड़ें, उनकी सोच है
18 टिप्पणी:
अरे भई लगता है सवीताभाभी डॉट कॉम देखने के बाद ही यह पोस्ट ठेली है वरना ऐसे मौजूँ और रोचक पोस्ट ....वह भी रात के तीसरे-चौथे, पांचवे पहर :)
अच्छी पोस्ट।
पिछले दिनों एक आलेख में 65% का आंकड़ा दे दिया। बवाल हो गया। उसे साबित करने में लोगों ने लोहे के चने चबवा दिए। औरों की तो खैर, बेटी कहने लगी -पापा ये आंकड़ेबाजी कब शुरू कर दी इस पर तो हमारा एकाधिकार है। अब वो इन आंकड़ों की सत्यता पर शोध कर रही है। हम सोच लिए आंकड़ेबाजी उस से पूछ कर किया करेंगे।
अब अपना ट्रेफिक देखने का फुरसत जिस को हो देखे। अपना काम गाहे-बगाहे लिखना और ठेलना वही ठीक है। वो तेंदुलकरवा का बयान जरूर पढ़ा पसंद भी आया कि कल और कर को मत देखो बस आज को देखो आज क्या करना है। सो कल कैसा होगा कौन जानता है?
गुरुदेव प्रणाम ! इस बहाने आपके दर्शन तो हुए ! रात्री के इस प्रहर में लेखन ? बिल्कुल सही चिंतन है !
अरे महाराज कहाँ चले जाते हो ! आपका नियमित रहना ब्लॉग जगत के लिए बहुत आवश्यक है ! कई बार आपके कमेंट्स की बहुत याद आती है ...
pujniya, blogging ke siddhu sir, kis dictionary se laate hain yeh phrases hamen bhi batayen, jisse ki ham bhi apni post ko thoda rochak bana liya karen
बड़ी मौज ले रहे हैं आप! ये बायीं तरफ़ वाला फ़ोटो बड़ा धांसू आया है जी। फ़ीड, एग्रीगेटर और ग्राफ़ ज्ञानजी के पसंदीदा विषय रहे हैं। मेरे ख्याल से फ़ीड पर सबसे ज्यादा ब्लाग फ़ीड उन्होंने ही दी है। उसका भी मजा है। उसी से तो आपकी इस पोस्ट सरीखी पोस्टें निकलती हैं।
आज हमारा टिपण्णी डे है, इस लिये आप सभी कॊ टिपण्णी डे की बहुत बहुत बधाई.
आधी रात को चिंतन??? साथ मे खुराटा संगीत, आप का लेख पढ कर मै तो चला सविता भाभी डाट कम पर. प्राणाम
बहुत दिनों बाद लिखा लेकिन खूब लिखा है आपने...वाह.
नीरज
आगे से रात्रि के इसी प्रहर में लिखा किजिये-कुछ अलग सा बहाव बन पड़ता है लेखनी में. :)
लगे रहिये-शुभकामनाऐं.
आत्ममुग्धता किसी भी शक्ल में दिखाई दे सकती है.
कोई पाई चार्ट, काई चार्ट वगैरह बनाकर फीड अग्रीगेटर और ब्लॉग ट्रैफिक के ऊपर पोस्ट लिखता है तब भी और कोई इस बात का ढिढोरा पीटता है कि तीस साल पहले उसने बिना दहेज़ लिए शादी कर के एक कीर्तिमान बनाया था तब भी.
कोई अगर अपना तथाकथित आत्मचिंतन ठेलता है तो भी और कोई अपनी तथाकथित सधुक्कड़ी भाषा में किसी वृद्ध महिला की चुचकी छाती के बारे में लिखता है तब भी.
कोई अगर रोज-रोज सुबह उठाकर पोस्ट ठेलता है तब भी और कोई अगर पिछली पाँच पोस्ट में से पाँचों में किसी के पीछे पड़ते हुए केवल उसे चिढ़ाने के लिए पोस्ट लिखता है, तब भी.
कोई अगर किसी के लेख पर बिना कोई प्रतिक्रिया दिए हुए निकल लेता है, तब भी और कोई अगर किसी को प्रोवोक करने के लिए ही ब्लागिंग करता है, तब भी.
इसलिए मेरा यही सुझाव है कि दूसरों की आत्ममुग्धता के बारे में सवाल उठाने से पहले अपनी आत्ममुग्धता को भी निहार लेना चाहिए.
किसी की ब्लागिंग उसकी आत्ममुग्धता का परिणाम हो सकती है. वो अगर आत्ममुग्ध है तो इसमें आपको कौन सा नुकशान पहुँच रहा है? उसकी आत्ममुग्धता से आपको कोई नुकशान हो, तो आप ज़रूर बताईये.
और हाँ, इस टिप्पणी पर मुझे कोई खेद नहीं है.
लगता है कोई इमर्जेंसी कॉल अटेन्ड करी आपने फ़िर नींद नही आयी तो कोम्पुटर के कान उमेठ दिये..इस देर रात्री में उंघते हुए भी आपका सेंस ऑफ़ ह्यूमर मगर जगा रहा ....
@ दिनेश राय द्विवेदी जी
बहुत सही बात कही है वकील साहब आपने. आंकड़े के बारे में. लेकिन वो ६५ प्रतिशत वाला जो ब्लॉग पोस्ट का शीर्षक आपने दिया था, वो था ही ऐसा कि आपको नाकों चने चबाना पड़े. और ये आज में जीने का दर्शनशास्त्र जो टिपण्णी में झाड़ कर गए हैं, वो उस दिन कहाँ था जब नौकरानी के दूसरी शादी करने के मुद्दे पर राय मांग रहे थे? उस दिन कहाँ था जब आई बी एन - ७ पर ब्लॉग की चर्चा पर पोस्ट ठेल रहे थे?
दूसरों का मजाक उड़ाना और साथ में ख़ुद को पाक साफ़ घोषित कर देना बहुत आसान है. अपनी ही लिखी गई बातें लोग भूल जाते हैं. ठीक वैसे ही, जैसे आप जैसे ज्ञानी.
डा साहब आप कह रहे हो मौन तोड़िए.. अजी हम मौन थे ही कब?
किंतु शिव कुमार जी के अलावा और किसी महनुभव ने अपने विचार नही रखे.. सब अपनी दुकान बचाकर टिप्पणी कर गये.. अब क्या है की दुकान तो हमे भी प्यारी है.. इस लिए हम भी एक सदाबहार टिप्पणी सरका के निकल लेते है..
"अब तो आप रोज़ रात को इसी वक़्त लिखा करे.. क्या खूब लिखा है आपने"
क्या कहा हमारे अपने विचार??? अजी आँकड़ो को देखेंगे तो पता चलेगा, हमारे विचारो का कोई मूल्य ही नही है...
@ भाई शिव कुमार मिश्र
भाई जी, आपकी टिप्पणी टनाटन ज़ायज़ है..
हम बुरा नहीं माना करते, ब्लागिंग में बुरा मानना आभिजात्य
सोच की भले हो, पर हम तो प्लेबियन तबके से आते हैं, न ?
मन तो कर रहा है, कि इस एकांगी टिप्पणी पर गरियाऊँ,
पर हरे राम हरे राम... भला छोटे भाई को भी कोई
गरियाता है क्या ? सो अभी टैम नहीं है, शिव भाई !
छोटन को तो उत्पात का पेटेन्ट हासिल है ...
दो सैकड़ा पोस्ट जमाने पर बधाई लेयो, पहिले !
बाकी बातें होती रहेंगी.. अभी टैम नहीं है, शिव भाई !
दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
अमर भाई !
दीपावली की शुभकामनायें स्वीकारें !
परिवार व इष्ट मित्रो सहित आपको दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
पिछले समय जाने अनजाने आपको कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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