स्थान : सीमा चौकसी चौकी, देश में कहीं भी..
खट्ट्क्क खट्ट्क्क खट्ट्क्क .. हवलदार रामबवाली भारती मेज़र फ़ेरन सिंह के सामने जा खड़े हुये, पंज़ों पर उचक कर एक सैल्यूट मारा, " शौह्हः , मेरा 10 दिन का लीव एप्लिकेशन रिकेमेन्ड एन्ड फ़ारवर्ड कर दीजिये ।" मेज़र उनसे भन्नाये अंदाज़ में पूछते हैं, "क्यों, क्या है ?" हवलदार बगलें झाँकते हुये बोले, "शौह्हः, मेरा ताऊ इलेक्शन में पिल पड़ा है... सो, थोड़ा परचार-उरचार कर आयें, फ़ेमिली की नाक ख़तरे में है, प्लीज़ शौह्हः !"
मेज़र किचकिचा पड़े, "अरे ज़वान, पहले यहाँ तुम अपने देश की नाक की सोचो. " बीस हफ़्ते की कैम्पिंग में सत्तरह हफ़्ते तुमने ऎंवेंई बिता दिये । दस दिन के छुट्टी और चार दिन की मूवमेन्ट के बाद तुम्हारे पास बचा ही क्या ? " हवलदार रामबवाली भारती उतावले हो उठे, " शौह्हः मेरी रेगुलर पेट्रोलिंग चल रही है, आज भी नाइट पेट्रोलिंग पर रिपोर्ट करना है ।" मेज़र भभक पड़े, " तो ? तो, अब तक की ड्यूटी में तुमको एक भी इन्ट्रूडर या घुसपैठ की रिपोर्टिंग का चांस ही नहीं मिला ? जाओ, अपनी ड्यूटी पर.. कोई कारनामा दिखाओ, तभी रिकेमेन्डेशन की सोचेंगे.. मूव नाऔ !" दहाड़ सुन कर, बेचारे भारती हवलदार उल्टे पाँव वापस हो लिये, गिनती परेड होनी थी ।
अगली सुबह रामबवाल हवलदार फिर मेज़र साहब के सामने हाज़िर, " शौह्हः रामबवाल रिपोर्टिंग सर !" पर, मेज़र जैसे कुछ सुनना ही नहीं चाहते थे, "नो नो, आई सेड नो वेऽऽ.. गो बैक टू योर पोस्ट !" अबकी हवलदार एकदम तड़क कर बोले, " शौह्हः हमने कल रात दुश्मन का एक टैंक अपनी सीमा के अंदर घुसते पकड़ लिया । सर, पूरा का पूरा क्रू तो एस्केप कर गया लेकिन टैंक हमारे क़ब्ज़े में आगया है ! आप गैरिसन में देख लीजिये, सर !"
अब मेज़र फ़ेरन सिंह हैरान.. यह कैसे ? बाहर निकल कर देखा तो सचमुच एक पाकिस्तानी टैंक खड़ा है ! ख़ुशगवार माहौल में अपने कुछ ज़वान उस पर टँगे हुये मग्गों में चाय पी रहे हैं और दो जन एक रज़िस्टर में कुछ औपचारिकतायें दर्ज़ कर रहे हैं । मानना ही पड़ा मेज़र को, उन्होंने आगे बढ़ कर रामबवाल को अपनी बाँहों में दबोच लिया, " वेलडन ज़वान, तुमने अपना वादा पूरा किया, तुम्हारी छुट्टी मंज़ूर हुई समझो.. मैं वायरलेस पर बेस को पूरी इन्फ़ार्मेशन दे देता हूँ, जाओ.. आराम करो !"
शाम को अनौपचारिक गपशप में मेज़र ने हुलस कर कहा, " बधाई हो, ज़वान छुट्टी मंज़ूर हो गयी । पर, यह सब तुमने अकेले कैसे कर लिया ?" रामबवाली ने सिर झुका लिया, "मैं आपका मातहत हूँ, सर.. झूठ नहीं बोल पाऊँगा ! सिपाही का दर्द सिपाही ही जानता है, अन्डरस्टैंडिंग है, सर ! उधर का सिपाही भी जब छुट्टी चाहता है, हमसे टैंक माँग कर ले जाता है ! यही अदला-बदली इसबार भी किया है, सर !"
"यह चीटिंग और जुगाड़ है, यू फ़्राड ?" मेज़र गुस्से जितना गुस्से से काँप रहे थे, उतनी ही शांति से हवलदार ने कहा.. क्या कहा ? वह बाद में .. .. ..
चाहे तो इसे आप ..सनक के समावेश पर शिवभाई की व्याख्या की पुष्टि ही समझें, या कुछ और..
1995 से 2000 के दौरान अपने वार्षिक अवकाश का गंतव्य मैं सीमा को छूते हुये देश के हर उस भाग को बनाता रहा, जो सड़क मार्ग और कुछेक ट्रैकिंग से नापा जा सकता था । इसी कड़ी में 1996 के शीतावकाश में मेरा जैसलमेर के निकट लगभग 27 किलोमीटर पर स्थित, सीमावर्ती गाँव सम तक जाना हुआ ! एक यादगार यात्रा, क्योंकि कई औपचारिकताओं से मुक्ति मिल गयी थी !
एक दूरी के बाद फोटो लेना मना है, इसलिये अंतिमबिन्दुके चित्र ही आप देख पा रहे हैं ! सच में बड़ा रोमांचक रहता है, नो मेन्स लैंड पर खड़े होकर विश्व का सर्वथा स्वतंत्र स्वछंद नागरिक होने का अनुभव करना ! कुछेक सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करते हुये..( जिसका मुझे खेद है ) और अपने एक नितांत अंधभक्त की सहायता से हम सीमावर्ती बाड़ तक जा सके ! दस कदम आगे और बढ़िये, और.. आपकी नागरिकता बदल गयी ! उधर से भाग कर आती हुयी पाकिस्तानी भेड़, दो छलांग में हिन्दुस्तानी कहलायेगी ! है न, अज़ीब बात ? खैर छोड़िये.. वहाँ रेत पर एक माचिस की खाली डिब्बी पड़ी देखी.. पिंज़रे में बंद बंदर छाप, उसपर कुल क़ैफ़ियत उर्दू में ही थी ! अंकों को छोड़ कर कुछ भी अंगेज़ी में नहीं था । मैंने यादव जी ( काल्पनिक नाम ) से पूछा, " पाकिस्तानी माचिस हिन्दुस्तान की ज़मीन पर कैसे ? " उसने बेपरवाही से उत्तर दिया, "हमारे किसी ज़वान ने सिगरेट वगैरह सुलगाने के वास्ते लिया होगा ।" मेरा 12 वर्षीय बेटा अपने जिज्ञासाओं का अनंत कोष यादव के सम्मुख खोल बैठा ! कुल ज़मा निष्कर्ष यह था, कि अपनी अपनी सीमाओं में हम अपनी ड्यूटी कर रहे हैं.. उसमें कोई ढील नहीं.. पर किसी चरवाहे या ज़वान से कुछ माँग लेना या कुछ दे देना एक सामान्य बात थी वहाँ ! लाउडस्पीकर से एक दूसरे के हाल चाल तक पूछ लिये जाते थे ! मुझे अटपटा लगा और मैं सत्ताधारियों के झगड़ों और इन सुरक्षा प्रहरियों में इन झगड़ों के प्रति कोफ़्त को नज़दीक से देख पाया ! कोलकाता से निकलने वाले देश ( দেশ ) के पूज़ा विशेषांक 2002 में यह प्रकाशित भी हुआ है ! पोस्ट उसी को आधार बना कर थोड़े अलग ढंग से लिखी गयी है, क्योंकि.. हवलदार भारती ने क्या कहा, इसका समावेश तो अभी बाकी है !
हवलदार ने फ़ीकी हँसी के साथ कहा, " अब आप जो भी कह लो साहब पर, जुगाड़ से ही तो दोनों मुल्कें बनी हैं, जुगाड़ से ही उनकी सरकारें चल रही हैं, और उनके इस जुगाड़ को ज़िन्दा रखने और चलाते रहने के लिये हमलोग नाहक आमने सामने खड़े ड्यूटी के नाम पर अपनी ज़िन्दगी खराब कर रहे हैं.."
यह तो उसने मुझसे कहा था, जिसको मैंने इस पोस्ट में मेज़र के मत्थे मढ़ दिया है, पर आलेख पूर्णरूप से आपबीती पर आधारित है
9 टिप्पणी:
vakrokti ke agle bhag ki bhi prateeksha hai.
No Mens Land यानि सिर्फ महिलायें ही वहाँ जा सकती हैं :) पंडिताईन जी दी तस्वीर वेख मैनुं एहो जिहा लगिया, तां कहिंदा हां, नईं ते मैनुं की :)
इस तरह की यात्रा हमेशा यादगार होती है.....अच्छी पोस्ट।
वैन अच्छी है :)
रिटायर्ड जस्टिस पानाचंद जैन की वकालत तब उतनी थी जितनी अब मेरी है यानी 30 साल की। मैं मुकदमे में अपने पक्ष की ओर से पेश करने को उन की लायब्रेरी से किताबें लाता था। सामने वाले पक्ष की ओर से पानाचंद जी वकील होते थे। यह सब बदस्तूर चल रहा है वकालतखाने में। अब हमारी किताबें जूनियर ले जाते हैं और अदालत में हमारे ही मुकदमे में पेश करते हैं। फर्क इतना है पानाचंद जी अक्सर हार जाते थे। हम अक्सर जीत जाते हैं। फर्क इतना सा है कि हम हारने वाले मुकदमे करते ही नहीं हैं, वे इफरात में करते थे।
सावधान डॉ साहब सावधान.. देखिये विवेक सिंह की नजर आपके वैन पर टिकी हुई है.. अगर कभी चोरी हुई तो सबसे पहला शक उन्हीं पर करना.. :D
और रही बात पोस्ट की तो ये कहानी चुटकुलों के स्वर में सुनी हुई थी.. और नो मेंन्स लैंड की बात पर, काश कभी हमें भी घूमने का मौका मिल जाये.. :)
कुछ साल पहले दोस्तो के साथ बाइक लेकर निकल लिए थे.. जैसलमेर.. सम में जाकर वापस लौटने का मन ही नही किया.. रात को धोरो पर सोने में जो मज़ा आया वो आज तक नही भुला हू..
बाइस किलोमीटर बिना पानी के पैदल चलने के बाद जब पानी दिखा था तब पानी की किमत पता चली थी.. बॉर्डर की तरफ जाने की लालसा में स्थानीय ऊँट वाले की मदद से बॉर्डर देखने निकल लिए थे.. बाद में फ़ौजियो ने पकड़ लिया.. और सज़ा में मिला बॉर्डर दर्शन.. सच बी एस एफ के जवानो की ज़िंदगी बड़ी भयंकर होती है.. रेगिस्तान पर बंदूक लेकर खड़ा रहना जब दूर दूर तक मिट्टी के गुबारो के अलावा कुछ नज़र नही आए..
आपने कुछ पुरानी यादे ताज़ा करा दी.. जिसे हम ज़िंदगी कहते थे...
गुरुवर वो व्हिस्की का एड याद आ गया .....जिसमे बॉर्डर वाले रात होते ही इधर झांकते है ... .ये वैन पे इत्ता जोर काहे है आपका ?लगता है बेचने के जुगाड़ में है...ब्लोगिंग का सदुपयोग ..... जुगाड़ से मुल्क भी चलते है ओर कई जिंदगिया भी.....कई बार इंसानी जरूरते कानून को बाय पास कर देती है
" नो मेन्स लैन्ड" का सफर बडा लिबरेटीँग लगा और तस्वीरेँ भी बढिया आप सभी की
स स्नेह,
लावण्या
यादगार यात्रा रही आप की.
जो वाकया major और हवलदार का बताया वह भी खूब रहा!
'जुगाड़ 'वाली बात हवालदार के मुंह से कहलवा कर सत्ताधारियों पर तीखा व्यंग्य भी कर दिया..
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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