जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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31 December 2008

तू क्या कर रहा है, बे ?

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अमर-नवम्बर२००८ आतंक आतंक आतंक.. आह, आतंक ! यह ससुरा आतंक शब्द ही इतने गहरे पैठ गया है, कि इसको सुनने मात्र से आतंक उभर आता है । न जाने क्यों, मैं इसके पीछे लट्ठ ( अपना लट्ठ है, भाई ) लेकर पिला पड़ा हूँ ! पर, वज़ह क्या व्यक्तिगत है ? नहीं जी.. भला आहत स्वाभिमान लेकर कौन चैन की नींद सो सकता है ? सच ही सोच रहे हैं आप कि, लगता है स्वाभिमान की ठेकेदारी अमर कुमार को ही मिली है ? सत्य वचन महराज़.. जो चला गया उसे भूल जाओ  ! पर, मेरी मोटी समझ कहती है कि, अक्षुण्ण भारत की इकाई के रूप में अपना स्वाभिमान जगाये रखने से ही देश की अक्षुण्णता बनी रह सकती है । राजनीतिक हितों के लिये हम प्रान्त, धर्म, सम्प्रदाय और जाति तक के स्वाभिमान के नाम पर..".जो हमसे.... चूर चूर हो जायेगा " सरीखे नारे लगाते लगाते दुनिया से खर्च हो जाते हैं, पर देश ? छोड़िये भी, मैं यहाँ कोई युद्ध की पैरवी नहीं करने जारहा ! सभ्य दिखने के लिये इसकी भर्तस्ना की जानी चाहिये.. पर जहाँ समझौतों के तर्क का अंत होता है, वहीं गाली गलौज (hotanim_e0at blogger ) और फिर हाथ-पैर  वाली भाषा की ज़रूरत आन पड़ती है ! समझौते ? राजा हरि सिंह जंक्शन से वाया ताशकंद-शिमला चलते हुये मुशर्रफ़ हाल्ट तक.. समझौतों की ऎसी तैसी का गवाह कौन नहीं हैं ? पर गौर करें कि, क्या सब शांत है ? नहीं जी, हम तो पड़ोसी से ‘सबूत दो..सबूत लो’ सिरीज़ खेल रहे हैं !

             Fighter3airdef8          क्रिकेट से लेकर मैदान-ए-ज़ंग तक के सफ़र की तरह, यह तय है, कि.. यह सिरीज़ भी हमारे हाथ ही लगेगी । पर, वहाँ ड्रेसिंग रूम में किसी अलग तरह की नेट प्रक्टिस चल रही है ! पड़ोसी अपने बाशिन्दों को थपकी देकर शांत कर रहा है, टी.वी. पर अपने ज़ाँबाज़ ? हवाई लड़ाकूओं की तस्वीरें दिखा कर ' खून गर्म रखने के बहाने ' समझा रहा है ! पिछले पखवाड़े से मेरा पड़ोसी आज-टीवी (Aaj TV & ARY) समेत अन्य चैनलों पर यही परोस रहा है ! यह सब दिखलाने के लिये मैं शर्मिन्दा हूँ, पर बगल के घर से सालन की आती महक से आँख भले मूँद लें.. नाक तो बन्द नहीं  किया जा सकता है, न ? वह हैं कि, नहीं सुधरेंगे.. हम ?

                  Fighter12Fighter13

चलिये.. छोड़िये, यह उनका अंदरूनी मामला है, पर यह दिखाना कि भारतीय विमान को निशाना बना लेना पाकीयों के लिये बाँयें हाथ का खेल है ! यह तो भाई, मेरे गले का डिप्थीरिया है! नीचे के दाँयें और बाँयें चित्रों को ध्यान से देखें, वाह रे, प्रोप-अ-गैन्डा !

                  Old%2010Old%2011

पृष्ठभूमि में बजती कई पंचलाइनों में सबसे प्रमुख है " झपटना पलटना..पलट कर झपटना, लहू गर्म रखने का.. है इक बहाना "  क्या समझे.. नहीं समझे ? तो, समझ लीजिये कि, वो निहायत अमनपसंद लोग हैं, जिनको ये नाशुक्रे क़ाफ़िर चैन से जीने नहीं देते, सो यह नाटक लहू को गर्म रखने के लिये किये जा रहे हैं ! बकरे दर बकरे कुर्बान किये जाते हैं, पर लज़्ज़त ही नहीं मिलती!मुंबई में 200 हलाल किये गये हैं, अब देखिये इस मौज़ूदा सबूत-सिरीज़ के बाद अगली कुर्बानी का करबला कहाँ का तय होता है ?

अपुन का ध्यान इस समय स्व० रामप्रसाद 'बिस्मिल' पर लगा हुआ है, सो मैं इन दरिन्दों को उनकी ही एक लाइन से चेताना चाहूँगा .. " वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां, हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है । बिस्मिल’

उनके अपने जन क्या कहते हैं. During the last three days or so, the situation between Pakistan and India has nothing but worsened. The critic - cynical nonetheless - in me reminds me that Pakistan, with her Zardaris, Gillanis and other cronies has actually played their part well. Too well for comfort, but a well-played innings so far. Consider this: India gets her major city Mumbai taken hostage by a handful of terrorists. Why were they there? Terror in the name of what? We are not told clearly. Then India, as the three day saga is unfolding, goes ahead and blames the Pakistani government. Note, there is a difference between blaming someone ‘from’ Pakistan and blaming the Pakistani establishment in itself. India, it seemed, blamed both. Eventually, India names Jamat-ud-Dawa as the main culprit organization that trained and brainwashed the Mumbai attackers. The UN - based on proof - declares the JuD a terrorist outfit. The JuD is closed down by Pakistan, not because India said so, but because UN says so. Pakistan plays the UN card well, reminding the world that Pakistan listens to world elders (Kashmir being the first point in this case). Pakistan asks for the same proof that India has given to UN. None is presented. Now, what is all of this? Pakistan has played the calm, mature ‘uncle’ part well. As in most families, this uncle can be seen as the coward, the one without the ‘heart’ to fight for its right, only later to realize that the uncle was being the most far-sighted. Of course, this uncle can be called the ‘mamoo’ if it turns out that the resolve and calmness was based on cowardice instead of cold logic. Nonetheless, India knows well enough that the nuclear bombs are not for display only, and much more potently, Muslims would love nothing more than a state-declared Jihad. The centuries old “We hold death more dear than you hold dear your life” line holds true today as far as any Muslim is concerned. Jihad is struggle, and in the case of war, it becomes an armed struggle. Armed Jihad is valid, as far as pristine Islam is concerned, in self-defense and has to be on a state level. Pakistan has very clearly, very calmly placed herself in a defensive role. And try as some may to portray it differently, Pakistan is still a state. A Muslim state that the world can see has been pushed into a corner by India. If war does break out, regardless of the result, the world will bear witness to the above perspective being the truth
और इनको भरोसाइच नहीं हैं

kaami on December 6th, 2008 @ 4:14 am

Who is paying for this extravaganza! This country is already under the heavy burden of returning thieves, rampaging terrorists, fleeing money, communal, sectarian and ethnic strife. We have sent packing a competent, honest and straight talking president and invited back mediocres to replace him. We are now reliant on IMF, govt has no control over its citizens, they can do what they want, inside or outside the country. Talent is fleeing, just another day I was introduced to a guy who paid one million rupees for a Canadian Work Permit. Again who is paying for this and why? Only a fool would attempt to attack this country, In 2002 India showed an aggressive posture and was reigned in by Mush, they dare not do it again, unlike us they have too much at stake, things like economy, progress and tourism etc. The whole world is at a loss, as to how to deal with Pakistan. Even Pakistani’s dont know where they are going and where they see this Nation in the next five years.

kaami on December 6th, 2008 @ 4:21 am

The only threat that I see is Mr. Osama Bin Laden taking over via his proxies, which are now super charged and very active. If that happens then we will be attacked by the whole world because nobody wants to see nuclear weapons in the hands of a monkey.

kaami on December 6th, 2008 @ 5:25 am

By monkey I mean Osama

ڈفر (duffer) on December 6th, 2008 @ 11:38 pm

ha ha ha ha …   exercises and pak army what they gonna get with these exercises? how to kill own ppl? how to be a response like a dam s**t when somebody roars on you? یہ صرف نعرے لگا سکتے ہیں کسی قوم کی فوج کہلانے کی انکی اوقات نہیں ____________________ http://www.dufferistan.com

पोस्ट कुछ लम्बी हो गयी न ? आज आपको झेलवा दिया ? आख़िर मेरी दुम भी इन पाकियों से कम ज़ब्बर थोड़े ही है ?

पर बेचारे ज़रदारी की तो सोचिये...क्या हालत है ? उनसे आतंकवादी माँग रहे हो.. और वह इतनी हैसियत भी नहीं रखते कि ऊँचे बोल सकें ! कभी ज़नरल कयानी हड़का देते हैं, आई.एस.आई चीफ़ से डाँट खाये बिना गुसल नहीं होती है, नवाज़ शरीफ़ इनको देख सारी शराफ़त भूल जाते हैं..अमेरिका का तो एक चपरासी भी डाँट दे तो निहाल हो जाते हैं, और तो और, अपुन के इन्डिया का एक फ़र्ज़ी आदमी भी फोन पर इनको लतिया देता है !

11 टिप्पणी:

Arvind Mishra का कहना है

जी डाक्टर साहब स्थितियां तो चिंता जनक हैं हीं-समझ में नही आता इस समस्या का हल !

सतीश पंचम का कहना है

ढेंटे ढेन....अब आयेगा हीरो....जाँबाज हीरो....अपने उसूलों के खिलाफ जाने वालों को सबक सिखाने अंधेरी लोकल पकड कर एक विमान निकलता है....ढेंटे ढेन...ढेटे ढेन....।
टेलिविजनई और फिल्मी नाटकों के मानिंद पाकिस्तान के किश्त-दर-किश्त चल रहे इन ढेंटे ढेन नुमा करतबों पर उम्दा पोस्ट।

दिनेशराय द्विवेदी का कहना है

जो कुछ भी है, उस का हल मेरे पास नहीं। और न डाक्टर साहब के पास। हम भी बस कुछ देर के लिए खून खौला कर छोड़ देते हैं अपना। इस लिए अब उधर फ्रिज में रख दिया गया है सारा खूं, जब जरूरत होगी, तब निकाल खौला लेंगे। क्यों दें अभी से उसे कष्ट?

Satish Saxena का कहना है

आपके अंदाज़ और कलम की तीखी धार को नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ सलाम !

कुश का कहना है

कुछ भी समझ नही आ रहा.. क्या चल रहा है.. कब तक चलेगा.. ??

काकोरी वाला ब्लॉग उम्दा सोच है...

L.Goswami का कहना है

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें .

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" का कहना है

फिर से उम्मीद के नए रंग
भर लाएँ मन में नित उमंग

खुशियाँ ही खुशियाँ बेमिसाल
हो बहुत मुबारक नया साल

डा. अमर कुमार का कहना है


एक टिप्पणी मेरे मेलबाक्स से...

आदरणीय नीरज रोहिल्ला जी फ़रमाते हैं, कि


अमर जी,
आपकी पोस्ट पढी और टिप्पणी लिखते लिखते सुरसा के मुंह जैसी हो गयी । अब इसे आपको ईमेल कर रहे हैं, आप उचित समझें तो अपने ब्लाग पर चिपका दीजियेगा :-)

वैसे इसी बहाने नववर्ष की भी हार्दिक शुभकामनायें ।

-----------------

अजी लम्बी पोस्ट हो तभी तो कुछ मजा आता है पढने में, वरना पढना शुरू किया और एल्लो खतम हो गयी, :-)

देश से दूर बैठकर एक चीज का अनुभव किया है । पाकिस्तानी मीडिया के नजरिये से देखें तो वो कहते हैं कि भारत में बहुत एकता है और पाकिस्तानी कौम एकजुट नहीं है, इसीलिये हमें कई बार मुंह की खानी पडती है । पाकिस्तानी मीडिया कहती है कि भारत का मीडिया इस मसले पर एकजुट है और हमारे यहाँ लोग आपस में लडे जा रहे हैं । धन्य है भारत देश और भारत की मीडिया, अच्छा ही है कि हमारी एकता के बारे में उनकी ऐसी राय है ।

यहाँ एक आम अमेरिकी की राय है कि पाकिस्तान ने इस बार भारत से पंगा लेकर अच्छा नहीं किया । वाह री दुनिया, कम से कम कहीं तो पढने सुनने को मिलता है भारत लुंज पुंज नहीं है ।

भारत की मीडिया को देखो तो वो इसका उल्टा कहते हैं कि हम आपस में लडे जा रहे हैं और पाकिस्तानी एकजुट हैं । बस ऐसा ही गडबडझाला बना रहे तो अच्छा है ।

अब खाली समय है तो लम्बी टिप्पणी ही करेंगे न, पहले ही बोल दिया था । अब कसाब के खिलाफ़ सुबूत की बात भी कर लो । अगर हम चाहते हैं कि पाकिस्तान अपने यहाँ के आतंकियों को सजा दे, तो पाकिस्तान भी इंडिपेंडेंट ज्यूडिशियरी का पाखंड फ़ैलायेगा । अब जरदारी साहब की बात सही है कि भारत और अमेरिका ने जो सुबूत दिये हैं वो काफ़ी नहीं हैं । अपने दिनेशजी से पूछ लीजिये, जितने भी सबूत हैं उनमें Significant Doubts खोजे जा सकते हैं, और फ़िर सारे आतंकी बाईज्जत बरी । जब अपने यहाँ ही अदालत शहाबुद्दीन जैसों को सजा नहीं दिलवा सकती तो पाकिस्तान में अजहर मसूद को कैसे सजा मिलेगी । इसीलिये तो हर बार पाकिस्तान उन्हें पकडता है, गेस्ट हाऊस में बैठाता है और सबूतों के अभाव में छोड देता है । हम भी तो यही करते हैं नेताओं और अभिनेताओं के साथ, देख लीजिये संजय दत्त अभी भी फ़ोटो खिंचवाते घूम रहे हैं इतने न्याय के पाखंड और कोडा साहब के कोशिश के बाद भी ।

तो साहब, अब इलाज है कि बहुत हुआ सम्मान, अब दूसरी भाषा की आवश्यकता है । भाषा कोई जरूरी नहीं कि युद्ध की हो, लेकिन कम से कम ऐसी हो जिसका पाखंड न बन सके और पाकिस्तान को लगे We mean business |

आभार,
नीरज रोहिल्ला

@ नीरज जी..
अतिशय आभार एवं धन्यवाद, नीरज जी,
इतने ध्यान से पोस्ट पढ़ने के लिये एवं समुचित मीमांसा
प्रस्तुत कर इस पोस्ट को एक नया आयाम देने के लिये !

मैंनें एक बार आपके लिये लिखा था...
फिर वही दोहरा रहा हूँ..
" चलो ईश्वर का धन्यवाद कि आप मिल गये, आप जैसे 10 पाठक हों,
तो मैं ब्लागर पर अपने दीर्घायु होने की कामना करूँगा!
आप तो खैर रहेंगे ही ऎसी पोस्ट पढ़ने के लिये !
इसी को कहते हैं, डबल मज़ा !
हा हा हा हा "
आपका मान रखने का प्रयास करता रहूँगा, नीरज जी !

समयचक्र का कहना है

नववर्ष की हार्दिक शुभकामना और बधाई . आपका जीवन सुख सम्रद्धि वैभव से परिपूर्ण रहे . उज्जवल भविष्य की कमाना के साथ.
महेंद्र मिश्रा
जबलपुर.

Bahadur Patel का कहना है

wah! dr. saheb bahut majedar blog hai aapaka.
badhai.

Ram Shiv Murti Yadav का कहना है

अतिसुन्दर प्रस्तुति, साधुवाद !! मेरे ''यदुकुल'' पर आपका स्वागत है....

लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

आपकी टिप्पणी ?

जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

Note: only a member of this blog may post a comment.

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यह अपना हिन्दी ब्लागजगत, जहाँ थोड़ा बहुत आपसी विवाद चलता ही है, बुद्धिजीवियों का वैचारिक मतभेद !

शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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