जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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03 February 2009

क्षमा करें डा. मान्धाता

Technorati icon

ब्लाग में आख़िर क्या लिखा जाना चाहिये..  पढ़ कर मेरी प्रतिक्रिया रोके ना रूक सकी ।
बड़ा अनुकूल विषय है,सो टिप्पणी के रूप में यह पोस्ट यहीं चेंप देता हूँ ।

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डा. मान्धाता जी, आपने मेरा मनोनुकूल विषय उठाया है, अतएव..
सहमत हूँ, कि हिन्दी ब्लागिंग स्तरहीनता से ग्रसित है ।
पर किसी भी घटक को स्तरहीन मानने के सभी के अपने अपने मापदंड हैं, और सभी ज़ायज़ हैं ।

हिन्दी किताबों के स्टाल पर, यदि भीष्म साहनी और कृष्णा सोबती शोभायमान हैं..
तो उनको काम्बोज, शर्मा और भी न जाने कौन कौन अँगूठा दिखाते धड़ाधड़ माल बटोर रहे हैं ।
यह अपनी अपनी रूचि है.. और व्यवसायिकता की माँग है ।

पर, डा. मान्धाता, इसे बहस का मुद्दा न बनाते हुये मैं केवल यह बताना चाहूँगा,
कि यह तथाकथित स्तरहीनता हर भाषा के ब्लागिंग में समानांतर चलती रही, फलती फूलती और फिर दम भी तोड़ती रही है ।
यहाँ भी यह स्तरहीनता आर्कुटीय हैंग-ओवर के चलते उपस्थित है ।
साथ ही, साहित्यतिक स्तर बनाये रखने को कृतसंकल्पित ब्लाग भी यहाँ उपस्थित हैं ।
सो, दोनों ही समानांतर रूप से चलने चाहियें, हम अपना स्वरचित अंतर्जाल पर देते रहें.. नाहक क्यों परेशान हों ?

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अंग्रेज़ी ब्लागिंग को मापदंड का आदर्श मानना तर्कसंगत नहीं है,
फिर तो, अपनी पहचान ही तिरोहित होने का खतरा सामने आ खड़ा होता है ।
अंतर्जाल पर हिन्दी-लेखन को बढ़ावा देने की मुहिम के पीछे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के
अपने निहित अदृश्य स्वार्थ हो सकते हैं... पर यह बाज़ार आधारित एक अलग ही मुद्दा है ।

कुछ भी लिखते वक़्त, कम से कम मैं तो यह ध्यान रखता हूँ,
कि यदि इसे आगामी 25-30 वर्षों के बाद की पीढ़ी पढ़ती है,
क्योंकि लगभग हर सर्च-इंज़न के डाटाबेस में हिन्दी का अपना स्थान होगा.. ..
तो इस सदी और दशक के हिन्दी ब्लागिंग के किशोरावस्था को किस रूप में स्वीकार करेगी ?

यदि टिप्पणी के अभाव में कुछेक ब्लाग दम तोड़ते हैं,
तो उस ब्लागर की हिन्दी के प्रति निष्ठा पर संदेह होने लगता है ।
पर, यह भी यकीन मानें कि वह आपके ऎसे किसी संदेह की परवाह भी नहीं करते ।
ट्रैफ़िक-टैन्ट्रम और टिप्पणी प्रेम पर मेरा कटाक्ष, आप लगभग मेरे हर पोस्ट में देख सकते हैं ।

हाँ, एक गड़बड़ और भी है, जब हम अनायास किसी न किसी स्थापित (?) ब्लागर को
उसकी पाठक संख्या से ही अँदाज़ कर अपना आदर्श बना बैठते हैं या जब अपने किसी समकक्ष पर नज़र डालते हैं,
और पाते हैं कि 'सस्ती वाली साबुन की बट्टी के बावज़ूद भी उसकी कमीज़ मेरे से सफ़ेद क्यों ?'
पर, यह भी तो संभव है, कि आपको सस्ता लगने वाला माल उसकी औकात से अधिक मँहगा हो !

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स्तरहीन और स्तरीय के मध्य के बीच की खाई जब पाट नहीं सकते,
तो उसमें झाँकने और उसकी गहराई आँकने से लाभ ही क्या है ?

8 टिप्पणी:

विनीत कुमार का कहना है

आपकी बात से सहमत हूं, ब्लॉग की आचार-संहिता तैयार करने के पहले इसमें शामिल लोगों के मिजाज को समझना जरुरी है

Science Bloggers Association का कहना है

यह स्‍तरहीनता सवृत्र विद्यमान है, चाहे ब्‍लॉग हो अथवा साहित्‍य, चाहे समाज हो अथवा राजनीति। इससे बचकर कहां जाओगे।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } का कहना है

स्तर कौन तय करेगा ब्लोगिंग का . हम जैसे स्तरहीन लोगो का क्या होगा . क्या ब्लोगिंग भी पढ़े लिखे सो काल्ड बुधिजीविओं की जागीर बन जाएगा .

भारतीय नागरिक - Indian Citizen का कहना है

bahut khoob, gambhir mudde par achchha lekh.

Udan Tashtari का कहना है

अपनी बात विस्तार से डॉ मन्धाता जी के ब्लॉग पर कह ही दी है मैने. यहाँ बस आपसे सहमति दर्ज करने आया हूँ.

makrand का कहना है

bahut gambhir chintan

डॉ .अनुराग का कहना है

हम भी वही लंबा टिपिया आये है .बस सहमति दर्ज कर देते है

Tarun का कहना है

जो टिप्पणियों का रोना रोते हैं पता नही क्यूँ मुझे वो टिप्पणी करते नही दिखते।

लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

आपकी टिप्पणी ?

जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

Note: only a member of this blog may post a comment.

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यह अपना हिन्दी ब्लागजगत, जहाँ थोड़ा बहुत आपसी विवाद चलता ही है, बुद्धिजीवियों का वैचारिक मतभेद !

शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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