जो इन्सानों पर गुज़रती है ज़िन्दगी के इन्तिख़ाबों में / पढ़ पाने की कोशिश जो नहीं लिक्खा चँद किताबों में / दर्ज़ हुआ करें अल्फ़ाज़ इन पन्नों पर खौफ़नाक सही / इन शातिर फ़रेब के रवायतों का  बोलबाला सही / आओ, चले चलो जहाँ तक रोशनी मालूम होती है ! चलो, चले चलो जहाँ तक..

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08 May 2008

खौंखिया रहा ललमुँहा बानर, भला काहे ?

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बड़कन के बीच में बोलना न चाहिये । बोले बिन रहा भी नहीं जा रहा है । ई ससुरा ललमुँहा बानर पूरे भारत महान पर खौंखिया रहा है, किसी को कोई चिन्ता फ़िकिर ही नहीं । मंत्री ताल ठोक रहे हैं, संतरी सुरती ठोक रहे हैं । और हम पता नहीं पूरे संसार के अंदेशे में दुबले हुये जा रहे हैं । थोड़ा लताड़ दें, ई बनरवे को तो, आज चैन की नींद आये । होगा पाताल नरेश, तो हम भी ब्लागर भदेश हैं !  जिसकी कहो तो धो के, उसीको पिला दें ।  अइसा ब्लागिंग सुख बड़ी तपस्या के बाद, पूर्वजों के करमों से मिलता है । पूरा का पूरा हठयोग है, पंडिताइन अभी रिझा के गयीं हैं, हमने कहा, 'तुम चलो हम आते हैं । बताओ ऎसा नियम संयम इस कलिकाल में किसको नसीब है  ? बड़ा संतोष मिलता है, एक सेफ डिस्टेंस से घर बैठे, जो चाहो, जितना चाहो , जइसे चाहो, जिसको चाहो ठेल देयो, तबियत से । अपने फ़ुरसतिया सुकुल कउनो ऎसे ही ठुमका थोड़े मार रहे हैं, 'हमार कोऊ का करिहे ! ' एकदम बरोबर बात, गुरु , जब अपने कीबोर्डवा में ही बड़े से बड़ा IBM  मिसाइल वगैरह के रिमोट कंट्रोल की ताकत है, तो फिर कौन का करिहे, भाई ?  भड़ास पदास हगास संडास जउन चाहो, सब मिली इहाँ । भले कोई खुल कर न बोले, बदबू तो सबको आती होगी । नहीं आती तो अवधिया जी से अपना केस रेफ़र कराके हमारे पास आओ । लेकिन मुझको भी, यह कौन डिस्टर्ब रहा है, बीच में ? हटो लिखने दो ।
                                                            पिछलग्गू-अमर
यह डिस्टर्बिंग एलिमेंट तो अपनी ही आत्मा निकली । चलो किसीके पास कुछ बची खुची आत्मा मिली तो सही । भले दिन भर मरी पड़ी थी, और इस समय बेमौके जाग गयी । ( द्विवेदी जी, अब डिस्टर्बिंग धातु पर एक पोस्ट हो जाये, जब तक आपकी चाय की बंद  दुकनिया नहीं खुलती, यही करो ) तो अपने आत्माराम की आवाज़ आरही है, "  अरे रुको, सुनो सुनो, सुनिहो तो ? सुन तो लो, ई बड़कन को छोड़, अपने ही बिरादरी पर कहाँ पिल पड़े ? ठीक है कि ब्लागिंग में महाभारत घमासान पर है, लेकिन तुमको अर्ज़ुन का एपांइटमेंट लेटर किसने दे दिया ? चुप्पे अपना काम करो और सो जाओ। हनुमानुद्दीन को तो लटकाये पड़े हो, अब क्या ललमुँहे को भी लटकाने का इरादा है ? "  सत्यवचन प्रिये,  ललमुँहा तो लटकाने ही लायक है ! यह ससुरा आजकल अलाप रहा है, " खा गये गल्ला...,पी गये तेल,   यह देखो इंडिया का खेल "
                                                       ललमुंहा-अमर११३४५ ललमुँहा बंदर-अमर ललमुंहा-अमर१
अब बताओ अपने शस्य श्यामला मातरम की खोज में, कोलंबस की भयंकर भूल का खमियाज़ा हमको भरना पड़ रहा है ? बाँस तो उसीने पैदा किया, और बेसुरी बाँसुरी हमीं को सुननी पड़ रही है ! ऎहसान फ़रामोश ललमुँहा कह रहा है कि पूरे विश्व का गल्ला भारतीय भुक्खड़ खा गये ।  अब कह रहा है कि यही लोग तेल भी पी गये, तभी इतनी त्राहि त्राहि है । ये चुनाव के समय भी क्या उधार के इंडियन दिमाग से बोल रहा है। यह सब अलाय बलाय बयान तो हमारे नेता लोगों के लिये छोड़ दो, ललमुँहें । अभी हल्दी पर लपक रहे थे, और पेटेंट इनके दिमाग का लेलिया ?
                 बुश के तेवर-अमर साले बुश का क्लोन-अमर बुश के तेवर-अमर४४५५
अब इनको ज़वाब देने का साहस यहाँ किसी के पास नहीं है । इस ललमुँहे से पूछो कि इसी वर्ष जनवरी में तो तू शेखी बघार रहा था कि अमेरिका में प्रति व्यक्ति प्रोटीन की खपत, अविकसित देशों की तुलना में साढ़े बारह गुने ज़्यादा है । यानि कि हम आदिम युग के कंदमूल पर पलने वाले कुपोषित आदिवासी हैं, उनकी बराबरी तक आने में हमें 30 वर्ष तक लग सकता है । तो ज़िल्ले कायनात, यह अचानक तेरे देश समेत पूरे संसार में अनाज़ का टोटा भारतीयों के मत्थे क्यों मढ़ रहा है । अब खंभा इतना भी न नोचों कि हाथ ही में आ जाये । भारत और चीन इतना तेल जला डाले, इतना तेल जला डाले कि अब तेरे यहाँ की लंबी लंबी लाइमोस्यूनें कबाड़ी भी नहीं ख़रीद रहा है । ओए ललमुँहें, इसी फ़रवरी में तो पूरे संसार को अपना बड़प्पन दिख रहा था कि अमेरिका में एनर्ज़ी बोले तो उर्ज़ा की खपत यूरोप से भी तीनगुना ज़्यादा है । भारत में तो इतने बेकार  हैं कि वह  लखटकिया पर टकटकी लगाये हैं, चीन भी उर्ज़ा संरक्षण में इतना चौकस है कि 20 वर्ष से कम आयु के लड़कों को दोपहिया बाइक चलाने की अनुमति नहीं देता । एक परिवार में केवल एक ही कार रखी जा सकती है, और प्राइवेट कार से यदि केवल एक व्यक्ति चल रहा है, तो उसे अर्थदंड भरना पड़ता है कि शेयर करके पेट्रोल बचाने के प्रति उदासीन क्यों है । पिछले शनिवार तक वहाँ पेट्रोल मात्र 19.87 रूपये लीटर थी । फिर तुम रोज़ एक नया चूतियापा उछाल कर किसको डराना चाहता है ?  काँकड़ पाथर जोड़ के अमेरिका लियो  बनाय, औ खु़दा से भी न रह्यो डेराय ,  भला ई कउन भलमंशी  आय ?  दंभ तो रावण का भी नहीं रहा है, और तू किस खेत की मूली है, यह तो शायद तू भी न जानता होगा ?
              तोते उड़ाओ बुश-अमर   खबीस बुश-अमर  बंदर बुश-अमर
तुझमें खैर इतनी अक्ल तो है कि तू समझ गया है कि आने वाला समय भारत का है । चीन भी भारत के इर्द गिर्द ही बना रहेगा । यूरोप अमेरिका पर एशिया भारी पड़ता जा रहा है । फिर इतना घबड़ा क्यों रहा है ? इसको स्वीकार करके इज़्ज़त से रह, तेरे यहाँ तो बाप भी अपने लौंडे से इज़्ज़त को तरसते हैं । और हम दे भी रहे हैं, तो तुझको पहले से ही डकारें आने लगी । देख तेरे अपने देश में तेरी कितनी कदर है, देख ज़रा !
                                                                          जिंदा या मुर्दा-अमर
ख़बरदार जो हमारे ऊपर ऊँगली उठाया तो ! समीर भैय्या, इसको आपका लिहाज़ भी नहीं है, कि आप पड़ोस में अंगोछा पहने बैठे हो, और यह रोज़ कुछ न कुछ बके जा रहा है । कुछ कहते क्यों नहीं ?  एक बार देख भर ले, खुद ही चुप हो जायेगा । फिर भी न माने तो अपनी उड़नतश्तरी सीधे व्हाइट हाउसिया पर लैंड करा दो । सारा जग आपका ऎहसान मानेगा ।

3 टिप्पणी:

दिनेशराय द्विवेदी का कहना है

गुरू कितने दिनन से भरे बैठे थे, पर ललमुहें को अच्छी तड़ी पिलाई।
बिचारा परेसान हुई गवा है। जिधर नजर फिरावत है हिन्दुस्तानी देखबे को मिले हैं, परमाणु-अरमाणु तो पूरा भया नाहीं, तो अउर का कहवे? पर जे समझ लेओ के अब कोई पिरोगराम जनसंख्या-बनसंख्या पर बनावत रहे। जे वाही का टिरेलर दिखावत।

Udan Tashtari का कहना है

आपका निवेदन कैसे टालूँ...अभी जल्द घर्र्र्र्र..शुरु करते हैं और लैंड करवाते हैं...और भी जो आदेश हो, बताना.. :) अब हमारी सुनो...!!


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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

एक नया हिन्दी चिट्ठा भी शुरु करवायें तो मुझ पर और अनेकों पर आपका अहसान कहलायेगा.

इन्तजार करता हूँ कि कौन सा शुरु करवाया. उसे एग्रीगेटर पर लाना मेरी जिम्मेदारी मान लें यदि वह सामाजिक एवं एग्रीगेटर के मापदण्ड पर खरा उतरता है.

यह वाली टिप्पणी भी एक अभियान है. इस टिप्पणी को आगे बढ़ा कर इस अभियान में शामिल हों. शुभकामनाऐं.

Gyan Dutt Pandey का कहना है

बुश जूनियर की मनमोहक छवियां प्रस्तुत करने को बधाई। लिखा बहुत धारदार है।

लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...

आपकी टिप्पणी ?

जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥

Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!

Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है

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यह अपना हिन्दी ब्लागजगत, जहाँ थोड़ा बहुत आपसी विवाद चलता ही है, बुद्धिजीवियों का वैचारिक मतभेद !

शुक्र है कि, सैद्धान्तिक सहमति अविष्कृत हो जाते हैं, और यह ज़्यादा नहीं टिकता, छोड़िये यह सब, आगे बढ़ते रहिये !

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