आज सुबह उठने के बाद गैलरी में ज़मीन पर पड़े अख़बार से आँखें चुराता हुआ, मैं टायलेट की ओर बढ़ लेता हूँ । इससे तो आप भी सहमत होंगे कि मुद्दों से ज़्यादा संडास ज़रूरी है, बड़े बुज़ुर्ग यह कहते पाये गये थे कि, “ पेट भारी तो सिर भारी !“ अब उनके ज़माने में यह ब्लागिंग नामक पंछी तो सोचा भी न गया होगा, वरना वह ब्लागिंग को अपवाद स्वरूप अवश्य ही शामिल कर लेते ! शायद कहते “ पेट भारी तो सिर खाली “, यह शिव का यह ज्ञान मुझ पर भी लागू होता होगा ! हाँ तो, मैं अख़बार से नज़रें चुराता गया, जाने क्या संदेशा लाया हो, मुख्यपृष्ठ पर अच्छी ख़बरों का टोटा तो बना ही रहता है, वैसे भी । अक्खा इंडिया में कुझबी तो मस्त नहीं दिखेला है, भिड्डू !
अब गिरे हुये को तो उठाना ही पड़ता है न, भाई ? देहरी पर पड़े की कब तक अवहेलना करोगे, जब इनका बहुमत हो जायेगा, तब ? सो, मैंने अख़बार उठा ही तो लिया.. और जिसका डर था बेदर्दी … वही बात हो गयी ! सामने शिवम सुंदरम से अटा पन्ना !
किंचित अफ़सोस है, यह पहले ही देख लेता तो संडास के लिये काँखना तक न पड़ता ! सरकारें आती हैं.. खुद को बचाती हैं, संभल तो जाओगे.. कभी तो संभल ही जाओगे… खुद को बेखुदी से बचाओगे… संभल तो जाओगे.. . कि तुम बिन सूना सूना है ! छोड़िये जी, आपको कोई इसी लिये पसंद नहीं करता, सदा कंधे पर सवार पंडिताइन लानत मलानत करती हैं,” क्या ज़रूरत है, सब काम छोड़कर यह कार्टून गढ़ने की… और यह पैरोडी बनाने की ? आराम से चाय पियो, ठंडी हो जायेगी तो क्या मज़ा देगी ?”
सत्यवचन पंडिताइन, मैं ख़्वामख़ाह ही अली-रज़ा पर लानतें भेजता रहता हूँ, मज़ा तो यहीं रखा है.. बिल्कुल सामने ही, इस गरम चाय की प्याली में ! वह तो हमारे लोकतंत्र की संप्रभुता सार्थक कर रहे हैं.. पंज़ाब सिंधु गुजरात मराठा.. अब द्राविड़ उत्कल बंगा !
“ फिर भी तुम यह पोस्ट ठेले जा रहे हो, बेशर्म कहीं के ! जाओ, क्लिनिक जाओ.. बारह यहीं बजा रहे हो !” बट नेचुरल, इट इज़ माई एनिमी नंबर वन, पंडिताइन ! सो, मैं चलता हूँ मित्रों ( कहने में क्या जाता है ? ), यदि आपमें से कोई टिप्पणी बक्से की ओर जाये, तो जरा यह ज़रूर बताये कि बारह किसके बज रहें हैं ? बाकी लिखा सुना माफ़ करना.. आप सब को मेरा सुप्रभात !
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14 टिप्पणी:
ठीक जैसे समाचार पढने वाला एंकर बम ब्लास्ट की ख़बर की क्लिप ख़त्म होने के फ़ौरन बाद सैफ ओर करीना की ख़बर मुस्करा कर देता है...हम सब भी अब अखबार के मुख्या प्रष्ट को अब शायद उतना गंभीरता से नही लेते है ...पढ़ ओर सुनकर खून जलाने से बेहतर है ...अखबार को फौरी तौर पे अपने मुताबिक पढ़ा जाये ...वैसे ही जैसे कुछ ब्लॉग सिवाय मजहबी रोने ...ओर शिकायते करने के अलावा कुछ नही करते है
अब आम बात हो चली है. आज यहाँ कल वहाँ... धीरे-धीरे सामान्य घटना सी लगने लगी है. मानव कमाल का जीव है ये वीभत्सता भी सामान्य लगने लगती है ! कुछ दिनों में ऐसी खबरें हेडलाइन की जगह चौथे पन्ने पर आने लगे तो आश्चर्य नहीं होगा.
आपके चिर-परिचित स्टाईल में बिंदास लिखा आपने ! बारह बजे किसके तो फ़िर आप सरदार जी से पिटवाएँगे क्या ? इससे तो अच्छा है दो चार आप ही लगा दो ! :)
बारह तो हम सबके ही बज रहे हैं.
लोग तो इलेविन्थ आवर में संभल जाते है लेकिन हम तो बारहवे में भी आंखें मूंद कर बैठे है. अब आगे न जाने क्या क्या बजेगा?
भारत सरकार का आतंक निरोधी योजना आपको कहां से मिली? ये तो टॉप सीक्रेट डाक्यूमेंट है जी.
पाँच दिनों के अवकाश के बाद अदालत पहुँचे, ठीक बारह बजे। पता लगा दीपावली के अवकाश में एक वकील साहब भाई के झगड़े में बीच बचाव में मार खा गए, मार खाने के सम्मान में काम बंद है। अधिकतर जज दो दिनों की सीएल ले कर अपने अवकाश को आठ दिन का कर चुके हैं। जो आ गए उन को कम से कम तीन तीन अदालतों की फाइलों पर ऑटोग्राफ मारने हैं।
दीवाली की सब से राम राम की और वापस पैवेलियन को लौट आए, बिना आउट हुए और बिना कोई रन बनाए, तो बारह तो हमारे ही बजे।
।
ऎ मैथिली भाई, मुझको मरवाओगे क्या ?
आप सबने यह ब्लाग पढ़ तो लिया न ?
सो, फ़ालो द सेन्ट्रल पालिसी.. जस्ट रीड इट एंड डू नथिंग !
ज़्यादा से ज़्यादा अगर कुछ करना ही चाहते हो, तो..
अपने अली रज़ा हैं न, कोसने के लिये..
सो, कोसोफ़ाई हिम तबियत से... बट डू नथिंग !
ऐसा हो तो कितना अच्छा हो कि प्रधानमन्त्री महोदय, अगले दो-तीन सालों में होने वाले धमाकों के लिये पहले ही कमेटियां व मुआवजा वगैरा की घोषणा कर दें.
घबराते क्यों हैं, मनमोहन जी स्थिति पर कड़ी नजर रखे हुए हैं, और वह जल्दी एक योजना बनाने वाले हैं जिसमें एक जांच समित के गठन के बारे मैं बात की जायेगी जिसमें इन धमाकों के बारे में अध्धयन किया जायेगा. उन्हें गुवाहाटी की भले ही पूरी जानकारी न हो पर वह यहीं से तो राज्य सभा की गली से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक आए हैं. हमें भारत के पहले मनोनीत प्रधानमन्त्री, जो जनता द्वारा कभी नहीं चुने गए, पर भरोसा होना चाहिए.
इतने धमाको के बाद भी अभी जांच कमेटी के गठन के बारे बात ही होगी, वाह सरकार हो तो ऎसी प्रधानमंत्री हो तो ऎसा ही ईमान दार लगता है अब बारह बजने वाले है सो शुभ रात्रि.
धन्यवाद
आमतौर से आपकी पोस्ट को पढने के लिए दिमाग को काफी कसरत करनी पडती है, पर इस बार की पोस्ट ने राहत दिया। आपने सामयिक घटनाओं पर तीखा व्यंग्य किया है। और साथ के कार्टून तो कमाल के हैं। मन कर रहा है कि बनाने वाले के हाथ चूम लूं।
बहुत जबरदस्त कार्टून..सभी की बारह बजी है.
तीसरे पहर सॉलिड चूके हैं भाई!!! :)
कार्टून बड़े धांसू हैं। नियम निकलता है- कार्टूनों की स्थिति देश की दशा के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
मज़ा आगया, आप लंबा गैप देने लगे हो, लिखने में, भाई जी ! आपके चाहने वाले आपसे खुश नही होंगे !
शुभकामनाऐं..
लगे हाथ टिप्पणी भी मिल जाती, तो...
जरा साथ तो दीजिये । हम सब के लिये ही तो लिखा गया..
मैं एक क़तरा ही सही, मेरा वज़ूद तो है ।
हुआ करे ग़र, समुंदर मेरी तलाश में है ॥
Comment in any Indian Language even in English..
इन पोस्ट को चाक करती धारदार नुक़्तों का भी ख़ैरम कदम !!
Please avoid Roman Hindi, it hurts !
मातृभाषा की वाज़िब पोशाक देवनागरी है
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